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क्या कोरोनावायरस हवा से फैलता है? पढ़िये क्या कहती है यह रिपोर्ट

सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल (सीडीसी) ने हवा के रास्ते एयरोसोल्स (हवाई-कण) के माध्यम से कोरोनावायरस के फैलने को मान्यता देने वाले अपने दिशा निर्देशों को वापिस ले लिया है. इन हवाई-कणों की माप पांच माइक्रोमीटर से भी कम होती है, ये हवा में फैले होते हैं और कुछ समय तक लटके रह सकते हैं. हालांकि अब कहा गया है कि आधिकारिक वेबसाइट पर यह जानकारी गलती से पोस्ट हो गई थी.

सीडीसी ने 18 सितंबर को अपनी सिफारिशों में प्रस्तावित परिवर्तनों का एक मसौदा जारी किया था, जिस पर बहस शुरू होते ही बाद में 21 सितंबर को उन्होंने उसे वापस ले लिया. सीडीसी ने इस बात की पुष्टि की थी, कि संक्रमित व्यक्ति से निकलीं कोरोनावायरस युक्त सूक्ष्म-बूंदों से हवाई-कण बनते हैं, जो कुछ समय तक हवा में लटके रह सकते हैं, कुछ निश्चित परिस्थियों में यह छह फीट से अधिक दूरी तक भी फैल सकते हैं और ऐसी दूषित हवा में सांस लेने से अन्य स्वस्थ लोग संक्रमित हो सकते हैं. सीडीसी वेबसाइट पर जारी किए गए एक संदेश में, वे कहते है कि "इन सिफारिशों के प्रस्तावित परिवर्तनों का मसौदा-संस्करण एजेंसी की आधिकारिक वेबसाइट पर त्रुटिवश पोस्ट हो गया था और एजेंसी वर्तमान में कोरोनावायरस के हवाई-कणों द्वारा संक्रमण के बारे में अपनी सिफारिशों को अपडेट कर रही है प्रक्रिया पूरी होने के बाद संशोधित दिशानिर्देशों को जारी किया जायेगा"

कोरोनावायरस संक्रमण के प्रसार पर नौ जुलाई के दिशानिर्देशों की तुलना में, 18 सितंबर के मार्गदर्शन में उल्लेख किया गया है कि श्वसन-बूंदों (ड्रॉप्लेट्स) के अलावा वायरस हवाई-कणों के माध्यम से भी फैलता है. जबकी, 21 सितंबर को पोस्ट किए गए नवीनतम मार्गदर्शन में वायरस के संभावित वाहक के रूप में हवाई-कणों का कोई उल्लेख नहीं है. खांसने, छींकने और बात करने के अलावा, 18 सितंबर को जारी किए गए दिशानिर्देशों में श्वास और गायन का उल्लेख संक्रमण के संभावित तरीकों के रूप में किया गया था, जिससे अति-सूक्ष्म-बूंदें ‘हवाई- कण’ उत्पन्न कर सकती हैं. लेकिन 21 सितंबर के दिशा-निर्देशों ने अब सांस लेने और गाना गाने के उन संभावित संक्रमण के तरीकों को हटा दिया है.

18 सितंबर के दिशानिर्देशों में यह भी उल्लेख किया गया था कि "हवाई-कण नाक, मुंह, वायुमार्ग के रास्ते फेफड़ों में प्रवेश कर सकते हैं और संक्रमण का कारण बन सकते है." इसके स्थान पर, 21 सितंबर का मार्गदर्शन अब बताता है कि "संक्रमित व्यक्ति के आस-पास उपलब्ध सतहों पर श्वसन-बूंदों या ड्रॉप्लेट्स के गिर जाने और संभवतः नाक या मुंह के रास्ते दूसरे स्वस्थ व्यक्ति के फेफड़ों में उतर जाने की सम्भावना बताई गयी हैं. इन हवाई-कणों में फंसी हुई कोरोनावायरस युक्त अति-सूक्ष्म बूंदें, हवा के झोंके के साथ छह फीट से अधिक दूरी की यात्रा भी कर सकती हैं." 21 सितंबर के दिशानिर्देशों में इन बातों का कोई उल्लेख नहीं है.

कोरोनावायरस की एयरोसोल-जनित संक्रमण के इस सिद्धांत को ये स्वीकार्यता एक लंबे विलंब के बाद मिली थी, हालांकि, इसके कुछ वैज्ञानिक साक्ष्य पहले ही प्रकाशित किये जा चुके थे. फरवरी के पहले सप्ताह में नेचर में प्रकाशित एक पेपर में चीन के वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी के शोधकर्ताओं ने पहली बार प्रस्ताव दिया था कि यह वायरस वायुजनित संचरण के माध्यम से फैल सकता है. इस बात के पर्याप्त संकेत मिल चुके हैं कि ये वायरस विशेष रूप से

कम हवादार और बंद जगहों में एक संक्रमित व्यक्ति के साथ लंबे समय तक संपर्क के बाद तेजी से फैलता है. यह शोधपत्र इस लिए भी विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसी अध्ययन में सबसे पहली बार इस महामारी को फैलाने वाले कोरोनवायरस की अनुवांशिक पहचान और अन्य विशेषतायें बताई गयी थीं, और इस बात की भी पुष्टि की गयी थी की यह विषाणु संक्रमण करने के लिए सबसे पहले मनुष्यों की कोशिकाओं की सतह पर पाए जाने वाले ACE-2 रिसेप्टर के संपर्क में आता है.

हवाई-कणों के द्वारा संक्रमण को स्वीकार करने में सीडीसी द्वारा की गयी देरी और भी अधिक अक्षम्य हो जाती है, क्योंकि नौ जुलाई को विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ये स्वीकार कर लिया था, जब एक पत्रिका में 200 से अधिक वैज्ञानिकों द्वारा एक खुला पत्र प्रकाशित किया गया था, जिसमे उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा अधिकारियों और वैज्ञानिकों के वैश्विक समुदाय से ये अपील की थी कि इस महामारी में हवा द्वारा संक्रमण फैलने की क्षमता को मान्यता दी जानी चाहिए.

फरवरी (2020) के महीने में क्रूज शिप डायमंड प्रिंसेस, जो कि जापान के तट पर था, जब ये पता चला की उस पर सवार 3700 लोगों में से 171 कोरोनावाइरस से संक्रमित हैं, इसके बाद, दक्षिण कोरिया और सिंगापुर, जेलों, वृद्धाश्रमों, दक्षिण कोरिया के जुम्बा क्लासेस, ऑस्ट्रिया में स्की-रिसॉर्ट्स और माउंट वर्नोन, वाशिंगटन में एक चर्च में महामारी का फैलना देखा गया था. इन सभी घटनाओं से ‘हवाई-कणों’ के द्वारा इस संक्रमण के फैलने के पुख्ता सबूत मिलते हैं. इसलिए यह बहुत ही भयावह है, कि डब्ल्यूएचओ और सीडीसी दोनों ने एहतियाती सिद्धांत को समय पर नहीं अपनाया. इन वैश्विक निकायों के किसी भी दिशा-निर्देश के अभाव में, भारत समेत कई देशों ने कुछ बंद जगहों जैसे कि रेस्त्रां, बार, थिएटर, जिम और धार्मिक स्थानों पर लोगों के बड़े समूहों को एकत्रित करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया और इस प्रकार वे ऐसे मामलों से बच सके.

हवाई-कणों द्वारा संक्रमण की पुष्टि होने के साथ ही इसके भी प्रमाण मिले हैं कि इसका फैलाव छह फीट से अधिक दूरी तक भी हो सकता है, ऐसी परिस्थियों में संक्रमण को रोकने का एकमात्र सार्वभौमिक तरीका लोगों का मास्क लगाना है, ऐसा तब भी करना फायदेमंद रहेगा, यहां तक की टीके भी उपलब्ध हो जाएं. ये सुरक्षा का एक अतिरिक्त व्यूह साबित होगा. अगर डब्ल्यूएचओ और सीडीसी जैसे संगठन समय रहते हवाई-कणों द्वारा संक्रमण की संभावना को मान्यता दे देते तो समय पर सावधानी बरतने से लोगों को मास्क को जल्दी पहनने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता था, इससे हजारों संक्रमण के मामलों को रोका जा सकता था.

‘यूनिवर्सल मास्किंग’ या सार्वभौमिक मास्क-उपयोग से संक्रमण को फैलने से रोका जा सकता है, और यदि कोई संक्रमित हो भी जाता है, तो उस व्यक्ति में वायरस की मात्रा बहुत कम जाती है, वो केवल स्पर्शोन्मुख संक्रमण (बिना लक्षण वाले) या हल्के रोग से ग्रस्त होगा. डायमंड प्रिंसेस की घटना के विपरीत, एक और जहाज में सार्वभौमिक मास्किंग अपनायी गयी और पाया गया कि संक्रमित होने वालों में से 81% स्पर्शोन्मुख थे. इसी तरह के परिणाम अन्य मामलों में भी देखे गए हैं, जहां सार्वभौमिक मास्किंग को कठोरता से लागू किया गया था।

अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव के इस मौसम में ट्रंप प्रशासन इन बातों केमोर्बिडिटी एंड मॉर्टेलिटी वीकली रिपोर्ट (MMWR) में प्रकाशित होने से पहले कागजों के साथ बहुत सावधानी बरत रहा है। उन्हें पता है कि इस बात से लोगों में भय की एक लहर फैल सकती है, इसीलिए, सीडीसी के दिशानिर्देशों में फेरबदल किया गया होगा, हालांकि यह अभी बिल्कुल स्पष्ट नहीं है, कि 18 सितंबर को जारी किये गए संशोधित मार्गदर्शन का त्वरित निष्कासन ट्रंप प्रशासन के दबाव के कारण किया गया था.

ट्रंप प्रशासन ने सीडीसी को इसे हटाने के लिए मजबूर किया होगा, क्योंकि यह हो सकता है कि संशोधित मार्गदर्शन, जो स्पष्ट रूप से हवाई-कणों द्वारा संक्रमण को वायरस के प्रसार के एक मुख्य मार्ग के रूप में प्रदर्शित करता है, नीतिगत निर्णयों पर भारी प्रभाव डालता, जिसमें मास्क पहनना, स्कूल-कॉलेजों को फिर से बंद करने की मजबूरी, रेस्त्रां, जिम, सिनेमाघर और पब जैसे व्यवसायों को खोलना शामिल है. चुनाव से ठीक पहले सत्ता में काबिज राजनेता किसी भी तरह का कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते, वे न तो महामारी के खिलाफ इस जंग में हारते हुए दिखने पर लोकप्रिय वोटों की हानि चाहते हैं और न ही मोटा चंदा देने वाले उद्योगपतियों का दंश.

(लेखक बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालय, केंद्रीय विश्विद्यालय, लखनऊ, में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)