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उन्नाव केस: रेप के मामले में भाजपा विधायक को बचाने वाले अधिकारियों का योगी सरकार ने किया प्रमोशन

उन्नाव केस में नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोपी विधायक कुलदीप सिंह सेंगर आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं. अब इस मामले में एक और नया खुलासा हुआ है. बता दें कि सीबीआई के मुताबिक इस केस की जांच कर रहे उच्च अधिकारियों ने सेंगर को बचाने की कोशिश की थी. जबकि योगी सरकार ने उन पर कार्रवाई करने की बजाय उनको पदोन्नत किया है.

मालूम हो कि इस साल के दूसरे सप्ताह में केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक पत्र लिखकर एक नौकरशाह और तीन उच्च अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की थी. इनमें उन्नाव की पूर्व जिला अधिकारी अदिति सिंह, पूर्व पुलिस अधीक्षक नेहा पांडे, पुष्पांजलि देवी और पूर्व अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अष्ठभुजा सिंह शामिल हैं. इन सभी पर सीबीआई ने आरोप लगाया था कि ये नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के आरोपी के खिलाफ कार्रवाई नहीं कर रहे हैं.

इस मामले में योगी सरकार ने अब तक तीनों ही आईपीएस अधिकारियों के खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं की. बल्कि सरकार ने इनमें से एक को सीबीआई का पत्र मिलने के तीन सप्ताह बाद ही एक आरामदायक पोस्ट सौंप दी. जबकि इधर योगी सरकार ने 29 सितंबर को नौकरशाह अदिति सिंह को भी क्लीन चिट दे दी है.

53 वर्षीय भाजपा के पूर्व विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दिसंबर 2019 में नाबालिग लड़की के अपहरण और बलात्कार के मामले में दोषी ठहराया गया था. इसके बाद सेंगर को बीते अगस्त में भाजपा ने पार्टी से भी निकाल दिया. वहीं इस साल मार्च में सेंगर को पीड़िता के पिता द्वारा की गई आत्महत्या का भी दोषी पाया गया. इसके साथ ही दो पुलिस उप निरीक्षकों को आपराधिक साजिश और सबूतों को नष्ट करने का दोषी भी ठहराया गया. पीड़िता के पिता की मौत अप्रैल 2018 को पुलिस हिरासत में हो गई थी.

द वायर की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई ने सितंबर में पाया था कि दुष्कर्म पीड़िता की मां, बहन और मृतक पिता ने डीएम अदिति सिंह के साथ-साथ अन्य दो एसपी रहे नेहा पांडे और पुष्पांजलि देवी से न्याय की मांग की थी. तीनों ने कोशिश की थी कि, सेंगर के खिलाफ मामले को खत्म कर दिया जाए, जिसपर शुरूआत में केवल अपहरण का केस दर्ज किया गया था. रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि, डीएम और एसपी ने इस मामले में कुछ नहीं किया, सिर्फ एक दूसरे को केस पास करने के अलावा.

सूत्रों का हवाला देते हुए न्यू इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि सीबीआई ने योगी सरकार से मामले में जांच कर रहे तीन पुलिस अधिकारियों के खिलाफ विभागीय जांच की सिफारिश की थी. बलात्कार के मामले में सीबीआई ने अपनी जुलाई 2019 की चार्जशीट में इसी तरह के आरोप लगाए थे. उत्तर प्रदेश पुलिस के पोर्टल पर नेहा पांडे और पुष्पांजलि देवी के मौजूदा प्रोफाइल से पता चलता है कि अब वे अप्रैल 2018 की तुलना में अधिक रैंक वाले पद पर तैनात हैं.

नेहा पांडे 2 फरवरी 2016 से 26 अक्टूबर 2017 तक उन्नाव में पुलिस अधीक्षक के पद पर तैनात थीं. जबकि भाजपा नेता सेंगर और उनके सहयोगियों ने जून 2017 में दुष्कर्म की घटना को अंजाम दिया. इसके बाद दिसंबर 2017 में पांडे को नई दिल्ली में इंटेलिजेंस ब्यूरो में एक सहायक निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया. वह 2009 आईपीएस बैच के राजस्थान कैडर से हैं.

वहीं इसके बाद पुष्पांजलि देवी ने उन्नाव पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्यभार संभाला. वह 27 अक्टूबर 2017 से 30 अप्रैल 2018 तक उन्नाव में एसपी थीं. वह 2006 के आईपीएस बैच के मणिपुर कैडर से हैं. देशभर में जब यह मामला ज्यादा तूल पकड़ने लगा तो उनका उन्नाव के बाहर ट्रांसफर कर दिया गया. उन्हें इसी साल जनवरी में उप महानिरीक्षक के पद पर रखा गया. जबकि राज्य सरकार को सीबीआई का पत्र मिलने के बाद 8 सितंबर को उन्हें लखनऊ में रेलवे पुलिस के डीआईजी के रूप में तैनात किया गया था.

सीबीआई ने कहा था कि उन्नाव में एसपी के रूप में नेहा पांडे और पुष्पांजलि देवी ने 17 वर्षीय नाबालिग से बलात्कार की दलीलों को नजरअंदाज किया था. यानी पीड़िता की अपील पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. पीटीआई ऐजेंसी ने भी सितंबर में प्रकाशित मामले से संबंधित एक रिपोर्ट में यह बात कही थी.

अष्टभुजा सिंह सिंह भी इनसे अलग नहीं हैं. नाबालिग से बलात्कार के दौरन वह उन्नाव के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक थे. जबकि अब वह फतेहपुर में एक पीएससी बटालियन के कमांडेंट हैं. वह 1999 में राज्य पुलिस सेवा में भर्ती हुए थे. वह 2019 में आईपीएस के लिए पदोन्नत हुए. पीटीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक सीबीआई का मानना है कि सिंह ने भी सेंगर के खिलाफ शिकायतों पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की.

अदिति सिंह उत्तर प्रदेश कैडर से 2009 आईएएस बैच की हैं. सीबीआई के मुताबिक 24 जनवरी 2017 से 25 अक्टूबर 2017 तक जिला अधिकारी के रूप में कार्यरत रहीं सिंह ने भी दोषियों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई नहीं की. उन्नाव से ट्रांसफर होने क बाद छह महीने के लिए नोएडा में वाणिज्यिक कर विभाग में एडिशनल कमिश्नर ऑफ पुलिस नियुक्त किया गया. अप्रैल 2018 में उन्हें हापुड़ का जिला अधिकारी नियुक्त किया गया.

हाथरस में 29 सितंबर को एक दलित लड़की से कथित गैंगरेप के बाद दिल्ली के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई. उसी दिन अमर उजाला और पत्रिका की खबर के मुताबिक योगी सरकार ने अदिति सिंह को क्लीन चिट दे दी. जिसमें कहा गया है कि सिंह के खिलाफ सीबीआई की रिपोर्ट आधारहीन और गलत थी. क्योंकि पीड़िता कभी सिंह के पास शिकायत लेकर गई ही नहीं थी.

अमर उजाला की रिपोर्ट के मुताबिक सरकार ने माना है कि सीबीआई ने अदिति सिंह के कार्यकाल में हुई गतिविधियों की गंभीरता से जांच नहीं की है. कार्रवाई करने की बजाय सरकार ने कहा कि सिंह का प्रशासनिक कार्यकाल बहुत अच्छा रहा है. जबकि सीबीआई ने अदिति सिंह के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की थी.

सरकार ने अदिति सिंह का जिक्र करते हुए एक प्रेस नोट में कहा कि कुलदीप सिंह सेंगर से संबंधित कोई शिकायत उनके कार्यकाल में कभी नहीं आई. साथ ही कहा कि सीबीआई की जांच में गलत तारीखें हैं. सिंह को 19 अक्टूबर 2017 को सरकार के पोर्टल पर शिकायत मिली थी. जिसे उन्होंने कार्रवाई के लिए पुलिस अधीक्षक को सौंप दिया था. इसके बाद 26 अक्टूबर को उनका ट्रांसफकर कर दिया गया.

प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक पीड़िता ने सेंगर के खिलाफ रेप के मामले में अगस्त 2017 में पुलिस से संपर्क किया था. उन्होंने आरोप लगाया कि इस मामले को पुलिस ने नजरअंदाज कर दिया और को कोई कार्रवाई नहीं की. वहीं इस मामले में अप्रैल 2018 में सेंगर के खिलाफ आठ महीने बाद एफआईआर दर्ज की गई. यह भी तब हुआ जब पुलिस द्वारा कोई सुनवाई नहीं करने पर पीड़िता ने लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास के बाहर आत्महत्या करने की कोशिश की.

न्यूज़लॉन्ड्री ने इस मामले में जवाब के लिए उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी से संपर्क किया. लेकिन उन्होंने हमारे सवालों का जवाब नहीं दिया. हालांकि उन्होंने कहा कि अगर कोई प्रतिक्रिया होगी, तो हम इसे औपचारिक रूप से और आधिकारिक रूप से देंगे.

वहीं इसके बाद न्यूज़लॉन्ड्री ने पूर्व नौकरशाह और ट्राइबल आर्मी के प्रवक्ता सूर्य प्रताप सिंह से बात की. इससे जुड़े सवालों पर उन्होंने कहा कि योगी सरकार सेंगर की मदद करना चाहती थी. साथ ही योगी सरकार चिन्मयानंद की भी रक्षा करना चाहती थी. जबकि अब यह सरकार हाथरस मामले में भी अपराधियों को संरक्षण देना चाहती है.

उन्होंने कहा कि सीबीआई की सिफारिश राज्य सरकार पर कानूनी रूप से बाध्य नहीं थी. अधिकारी गलत कर रहे थे इसलिए सरकार को विभागीय जांच शुरू करनी चाहिए थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसलिए यह दिखाता है कि सरकार पक्षपात करने के साथ ही दोषियों की मदद कर रही है. उन्होंने कहा कि नियम के अनुसार यदि किसी अधिकारी को आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है तो उनकी पदोन्नति नहीं की जाती है. विभागीय जांच के बाद उन्हें सजा दी जाती है.

सूर्य प्रताप सिंह ने यह भी कहा कि सीबीआई की सिर्फ एक सिफारिश से कोई पदोनत्ति नहीं रुक जाती. कई बार ऐसे मामले हुए हैं जहां सुप्रीम कोर्ट ने नौकरशाहों के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है लेकिन राज्य सरकार ने ऐसा नहीं किया. सिंह ने कहा कि अधिकारी लोगों के प्रति जवाबदेह होने के बजाय अब दोषियों के प्रति जवाबदेह हैं. उन्होंने कहा कि अधिकारी आज अपने आप को बचाने में लगे हैं. वे सरकार जो चाहती है वह करते हैं.

अपडेट- अदिति सिंह मामले में अतिरिक्त सूचना मिलने के बाद इस रिपोर्ट को अपडेट कर दिया गया है.

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