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लखीमपुर खीरी में नाबालिग बेटी के बलात्कार, हत्या का दर्द झेल रहे परिवार को सिर्फ भगवान का सहारा

उस दिन तारा को घर से जाते हुए किसी ने नहीं देखा.

लखीमपुर खीरी के ईसानगर के एक गांव में एक कमरे के कच्चे घर में रहने वाला तारा और उसका पूरा परिवार, जिसमें दो बड़े भाई भी हैं, शौच करने घर से कुछ दूर खेत में जाते हैं क्योंकि उनके घर में शौचालय भी नहीं है.

14 अगस्त को दोपहर के दो बजे जब तारा शौच के लिए बाहर गई तो उसकी मां शांति, जो आमतौर पर उसके साथ जाती थी, नहीं गई क्योंकि उस दिन उसे कुछ सुस्ती महसूस हो रही थी और इस वजह से वो घर पर ही आराम करने के लिए रुक गई.

शांति ने याद करते हुए कहा, "लेकिन उसने दुपट्टा लिया था, वह इसे नहीं भूली."

तारा, गांव की अन्य लड़कियों की तरह, घर से थोड़ी दूर जाने के लिए भी अपने दुपट्टे को ले जाना नहीं भूलती थी और उससे अपने ऊपरी हिस्से को ढक लेती थी. यहां हर लड़की को छोटी उम्र से ही बता दिया जाता है कि उसका दुपट्टा ही उसका रक्षक है और उसे उस दुपट्टे से खुद को ढकना चाहिए. इसलिए कोई भी लड़की अपने दुपट्टे को लेना नहीं भूलती.

दुपट्टा लेने के बावजूद तारा का अपने घर से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर बलात्कार हुआ और उसी दुपट्टे से, जो उसकी सुरक्षा के लिए था, उसका गाला घोंट कर उसकी हत्या कर दी गई.

संतोष यादव और संजय गौतम नाम के दो लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है. संतोष उस खेत का मालिक है जहां तारा की लाश मिली. तारा की मौत से कुछ हफ्ते पहले ही उसने गांव वालों को अपने खेत में शौच करने के खिलाफ चेताया था. तारा दलित परिवार की बेटी थी. संजय भी उसी जाति का है जबकि संतोष यादव है जो उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़े वर्ग में आते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने 23 सितंबर को तारा के परिवार से मुलाकात की ताकि यह पता लगाया जा सके कि उस दिन क्या हुआ था.

तारा की खोज

तारा के पिता शिव कहते हैं, "अगर हमारे घर में समय से शौचालय बन गया होता तो शायद तारा की मौत ना होती."

55 वर्षीय शिवा एक छोटे किसान हैं और कभी-कभार मजदूरी का काम भी करते हैं. तारा उनकी सबसे छोटी संतान थी, उनके एक बेटे 18 और दूसरे 28 साल के हैं.

शिव कहते हैं कि 14 अगस्त को एक घंटे बाद हमें यह एहसास हुआ कि तारा घर वापस नहीं आई है. उसके पिता ने उसको ढूंढ़ना शुरू किया और बकरियां चरा रहे कुछ लोगों से भी तारा के बारे में पूछा. उन लोगों ने शिव को बताया कि उन्होनें तारा को खेत की तरफ जाते देखा था.

वह खेत शिव के पड़ोसी संतोष यादव का है जहां संतोष गन्ना उगाते हैं. शिव ने खेत में पहुंचकर देखा तो संतोष को वहां बैठा पाया. शिव ने कहा, "मैंने दूर से ही उससे पूछा कि क्या उसने मेरी बेटी को देखा है. संतोष ने वहीं से हाथ के इशारे से कहा कि वो यहां नहीं है."

शिव ने संतोष के खेत में दूसरे पड़ोसी संजय गौतम को भी वहां देखा. तारा के पिता ने कहा, "मैंने संजय को संतोष से कहते सुना कि कौन है? जिस पर संतोष ने कहा कि शिव है. उसके बाद संजय ने उससे यह भी पूछा कि क्या वो गया जिस पर संतोष ने कहा हां."

शिव ने यह पूरी बातचीत दूर से ही सुनी और यह बिल्कुल स्वाभाविक लगी. उसके बाद वो अपनी बेटी को ढूंढ़ने के लिए वहां से चले गए. एक महीने बाद जब शिव वो दिन याद करते हैं तो पछताते है कि वो वहां से क्यूं चले गए.

सविता का घऱ
गन्ने के खेत की ओर जाने वाला रास्ता

शिव, शांति और उनके दोनों बेटों ने तारा को ढूंढना जारी रखा. शाम 5 बजे तक वो उम्मीद खो चुके थे. जैसे-जैसे रात हो रही थी, परिजनों की घबराहट जा रही थी. उसके बाद उन्होनें फिर से उस खेत में जाने का निर्णय लिया.

संतोष और संजय अभी भी वहीं थे. इस बार जब उन्होंने शिव और शांति को अपनी ओर आते देखा तो वो भाग गए.

इससे उनका शक बढ़ गया और वो खेत में घुस गए. गन्ने के खेत में कुछ जगह साफ़ की गई थी और वहीं पर उन्हें अपनी बेटी की बॉडी और कपडे दिखे.

उन्होनें बताया, "मैं तुरंत चिल्लाया, हाय दादा, मेरी बिटिया को मार डाले, दौड़ो दादा रे दादा."

तारा की लाश वहीं पड़ी थी और उसका दुपट्टा उसके गले में लिपटा हुआ था. स्टील का वह लोटा जो वह अपने साथ लेकर गई थी उसकी चप्पलों के साथ वहीं पड़ा हुआ था. उसके पैर पुआल से बंधे हुए थे.

शिव ने बताया, "उसकी आंखों से खून निकल रहा था. उसकी जीभ बाहर निकली हुई थी और उससे भी खून निकल रहा था. उसने गला घोंटते वक्त काट लिया होगा." अपनी बेटी के साथ बिताए आखरी कुछ पलों को याद करते हुए शिव की आवाज़ रुंध गई.

एफआईआर और पोस्टमॉर्टम

उसी रात 11.42 बजे ईसानगर पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज की गई थी. शिव की शिकायत पर एफआईआर में संतोष यादव और संजय गौतम को आरोपी बनाया गया. उन पर आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया जो कि हत्या और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आता है.

15 अगस्त को दोपहर 2.30 बजे लखीमपुर खीरी के जिला अस्पताल में तीन डॉक्टरों के एक पैनल द्वारा तारा का पोस्टमॉर्टम कैमरे के सामने किया गया. न्यूज़लॉन्ड्री के पास पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की एक कॉपी भी है जिसमें बताया गया है कि तारा की पीठ, दाहिने घुटने और बाएं टखने में चोटें थीं. खून की नलियों के कट जाने के कारण उसके चेहरे के बाएं तरफ आंखों के नीचे निशान पड़ गया. उसके दिमाग, सांस लेने की नली और फेफड़े में भी खून जम गया था.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यौन हमले का भी इशारा किया गया है. तारा का पेट भी अंदर से दबाव के कारण सूज कर फूल गया था और उसका गुप्तांग भी खून से लथपथ था और नीचे की तरफ गहरा घाव था. उसका हाइमन फटा हुआ था और खून के थक्के जमे हुए थे. उसकी मौत सांस रुकने की वजह से हुई.

पोस्टमॉर्टम के बाद गैंगरेप के आरोपों को भी एफआईआर में शामिल किया गया. चूंकि तारा नाबालिग थी, इसलिए यौन पॉक्सो एक्ट के तहत भी आरोप लगाए गए. तारा की मौत के दो हफ्ते बाद, 29 अगस्त को, उत्तर प्रदेश पुलिस ने चार्जशीट फाइल की.

'मैंने भी अपना बच्चा खोया है'

तारा की हत्या के तीन दिन बाद, सुनील सिंह नाम के एक पुलिस अधिकारी ने उसके परिवार से मुलाकात की. शिव के अनुसार, अधिकारी ने कहा कि पुलिस ने संतोष और संजय का जुर्म कबूल करते हुए एक वीडियो बनाया है और उनमें से एक वीडियो में वो कह रहे हैं कि शिव को इस बात का एहसान मानना चाहिए कि उसे तारा की लाश मिल गई क्योंकि वो उसको ठिकाने लगाने का प्रयास कर रहे थे.

शिव ने खुद कभी वो वीडियो नहीं देखा और उसने दावा किया उसके बाद सुनील सिंह का ट्रांसफर भी हो गया.

जब तारा का बलात्कार हुआ और उसकी हत्या हुई तब सिंह ईसानगर के स्टेशन हाउस अधिकारी थे. उन्होनें न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वो वीडियो पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. उन्होनें कहा, "मैं सिर्फ इतना बता सकता हूं कि दोनों ने अपना जुर्म कबूल किया."

तारा की मौत के दो हफ्ते बाद सिंह का ट्रांसफर हो गया. अब वो लखीमपुर खीरी शहर के स्टेशन हाउस ऑफिसर हैं. उन्होनें कहा, "यह रूटीन ट्रांसफर है. यह मेरे लिए बेहतर पोस्टिंग है."

उनकी जगह ईसानगर आए हरिओम श्रीवास्तव कहते हैं कि वो इस मामले में कुछ कह नहीं सकते लेकिन उन्होनें इस बात की पुष्टि की कि चार्जशीट फाइल कर दी गई है. इस मामले के जांच अधिकारी अरविन्द वर्मा से बात नहीं हो पाई.

तारा के माता-पिता हमें उस खेत में ले गए जहां वह मिली थी. उस दिन के बाद वो उस जगह पर पहली बार आए थे. यह खेत शिव के घर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर है. संजय सिर्फ दो घर दूर रहता है और संतोष मुश्किल से कुछ सौ मीटर दूर यादवों की टोली में.

सरपंच सुंदर लाल के अनुसार गांव में लगभग 100 यादव, 700 गौतम और 110 पंडित वोटर हैं. "गौतम नीची जाति के हैं, लेकिन वे अन्य जातियों से ज्यादा संख्या में हैं," वो कहते हैं. संजय के घर पर, उनके माता-पिता अकेले उदास पड़े हुए थे. संजय अपने माता-पिता और चार भाई-बहनों के साथ यहां रहता था.

अपनी बेटी के कपड़े दिखाती शांति
संजय गौतम के माता-पिता

जिस दिन तारा की मौत हुई उस सुबह संजय, अपने पिता और कुछ साथियों के साथ पास के गांव में मजदूरी के काम के लिए दूसरे गांव गए हुए थे. उसके पिता बताते हैं कि वो दोपहर के आसपास वापस लौट आए थे. उन्होनें बताया, "मेरी तबीयत ठीक नहीं थी तो मैं दवा लेने चला गया. हमारे पास जानवर हैं तो मैंने संजय को बोला कि वो उनके लिए खेत से घास ले आए."

लगभग उसी समय के आसपास तारा लापता हुई थी. संजय के पिता ने बताया, "संजय घटना के समय मेरे साथ नहीं था. केवल भगवान को पता है कि उस आधे घंटे के दौरान क्या हुआ था जब मेरा बेटा मेरे साथ नहीं खेत में था."

उसके परिवार वालों ने बताया कि संजय को उसी शाम गिरफ्तार कर लिया गया. जब तारा की मौत की खबर मिली तब संजय की मां घर पर ही थीं. वो बताती हैं, "मैं उनके घर गई और तारा का भाई मेरे पास दौड़ता हुआ आया. वो बहुत रो रहा था तो मैंने उसे गले लगा लिया. हमारे उनके परिवार के साथ अच्छे संबंध रहे हैं."

अन्य गांव वालों की तरह संजय की मां भी खेत गईं और तारा की लाश को देखा. उन्होनें बताया कि तब तक उनका बेटा वापस आ गया और वो भी उनके साथ खेत गया.

उन्होनें बताया, "वो पुलिस से भागने की कोशिश नहीं कर रहा था. वो मेरे साथ खेत गया और हमनें वहां तारा की लाश देखी. सब रो रहे थे, मैं भी उस बच्ची के लिए बहुत रोइ. मैं तो मेरे बेटे की गिरफ़्तारी से ज्यादा तारा के लिए रोइ थी. लेकिन आज मुझे वही दर्द महसूस हो रहा है जो तारा के परिवार को हो रहा है. मैंने भी अपना बच्चा खो दिया."

उसके बाद से गांव वालों ने संजय के परिवार से दूरी बना ली है. संजय के पिता बताते हैं, "अब हमसे कोई बात नहीं करता."

जब संजय के परिजनों से पूछा गया कि क्या उनके बेटे ने तारा का बलात्कार कर के उसे मारा है तो वो चुप हो गए.

संजय की मां कहती हैं, "अगर मेरे बेटे ने यह सब किया है तो उसको सज़ा मिलनी चाहिए. अगर नहीं किया है तो उसे छोड़ दिया जाए." यह कहते-कहते वो रोने लगीं.

'उसका व्यव्हार बहुत अच्छा था'

संजय के घर से लगभग 500 मीटर की दूरी पर ही संतोष यादव का घर है. वह अपने माता-पिता, तीन भाइयों, अपनी पत्नी और एक वर्षीय बच्चे के साथ रहता है. उसकी दो बहनें अपने पति के साथ कहीं और रहती हैं. संतोष ने हाल ही में विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की थी और वो जल्द ही चीनी मिल में काम शुरू करने वाला था. उसके परिवार के अनुसार, उसने सेना और उत्तर प्रदेश पुलिस में भी आवेदन किया था.

संतोष के भाई राजू यादव को लगता है कि उसका भाई निर्दोष है. राजू कहता है, "वो पूरे दिन खेत में था. वो दोपहर 1.30 बजे वापस आया था और फिर 5 बजे खेत पर ही चला गया था. अगर उसने कुछ किया होता तो वो वापस क्यूं जाता?" राजू ने बताया कि पुलिस संतोष को उसके घर से रात 10 बजे ले गई.

संतोष यादव का परिवार

राजू ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि अगर संतोष ने अपना जुर्म कबूल किया है तो तो उसे सबके सामने गोली मार देनी चाहिए. उसने यह भी कहा कि वो यह बात वो उसकी बीवी से भी लिखवा कर दे देगा लेकिन हमें पता है कि वो निर्दोष है.

क्या संतोष का तारा के परिवार से कोई संबंध है? इस सवाल के जवाब में राजू ने कहा, "हम उन लोगों से दूर रहते हैं. वो लोग खतरनाक हैं."

संतोष का विवाह 2018 में हुआ था. उसकी पत्नी कहती हैं कि वो ऐसा कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसका मानना है कि वो लड़कियों एवं औरतों से बहुत शर्माता है.

वो कहती हैं, "वो तो लड़कियों और औरतों से इतना शर्माता है कि अगर कोई लड़की या औरत उससे मदद भी मांगे तो वो नहीं करता. उसका व्यव्हार बहुत अच्छा है."

संतोष की मां ने भी उसका बचाव करते हुए कहा, "आप गांव में किसी से भी उसके बारे में पूछ सकते हैं."

संतोष और संजय के परिजनों का दावा है कि उन दोनों को उनके उनके घरों से गिरफ्तार किया गया लेकिन पुलिस केस डायरी अलग ही कहानी बयान कर रही है. पुलिस के अनुसार 15 अगस्त को पुलिस ने उन्हें लखीमपुर रोड पर मौसेपुर तिराहा के पास से पकड़ा जब वो वहां से भागने के लिए किसी साधन का इंतजार कर रहे थे.

न्यूज़लॉन्ड्री ने ईसानगर के पूर्व एसएचओ सुनील सिंह से जब इस बारे में पूछा तो उन्होनें कहा, "घटना के बाद आरोपियों ने भागने की कोशिश की. हमें उन्हें मेन रोड पर पकड़ा. उन्हें घर से गिरफ्तार नहीं किया गया था." केस डायरी में दोनों आरोपियों के बयान भी दर्ज हैं.

उसमें संतोष का बयान है, "मैं बेवक़ूफ़ था. मैंने गलती की है. मुझे माफ़ कर दो."

संजय ने अपने बयान में दावा किया है, "मैंने यह सब संतोष यादव के बहकावे में आकर किया है. मुझे माफ़ कर दो."

शौचालय की चाह में

तारा के घर में शौचालय नहीं था यह इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का केंद्र बिंदु है. शांति कहती हैं कि कुछ हफ्ते पहले ही संतोष ने गांवालों को धमकी दी थी कि अगर किसी ने उसके खेत में शौच किया तो वो बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेगा.

"उसने कहा कि अगर किसी ने उसके खेत में शौच किया तो वो उसे मारेगा," शांति ने कहा. लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उनकी बेटी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. वो कहती हैं, "यह धमकी सिर्फ हमारे लिए नहीं थी, सबके लिए थी. उसकी धमकी के बावजूद लोग वहां शौच के लिए जाते थे. अभी भी लोग जाते हैं. फिर मेरी बेटी को क्यूं मारा?"

तारा की चाची सीता ने बताया कि सरपंच ने पिछले साल, केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत, तारा के परिवार के लिए एक शौचालय की मंजूरी दे दी थी. उन्होनें बताया, "हमें 12000 रुपये की पहली किस्त मिल गई थी. फिर दूसरी किस्त मिलने में देरी हो गई." चूंकि शौचालय में सीट नहीं लग पाई थी इसलिए उसका इस्तेमाल नहीं हो रहा था.

इस बाबत जब हमनें और पूछताछ की तो वहां तनाव कुछ बढ़ गया. तारा के कुछ पुरुष रिश्तेदारों ने हमसे कहा कि हम शौचालय की बजाय अपराध पर ध्यान दें. यह साफ़ है कि वो सरकारी योजना की आलोचना नहीं करना चाह रहे थे.

तारा की हत्या के बाद महिलाएं शौच के लिए खेतों में जाने से डर रही हैं इसलिए परिवार के लोगों ने पैसा इक्कठा करके शौचालय में सीट लगवाई. अब शौचालय इस्तेमाल के लिए तैयार है.

तारा की मौत के बाद बना शौचालय

'एक गरीब की बच्ची की हत्या हुई है'

न्यूज़लॉन्ड्री ने जब शिव से पूछा कि तारा बड़े होकर क्या बनना चाहती थी, तो उन्होनें जवाब दिया, "एक गरीब आदमी सपने नहीं देख सकता और ना ही उसके बच्चे सपने देख सकते हैं."

उन्होनें बताया कि तारा का दाखिला एक स्थानीय सरकारी स्कूल में करवाया था लेकिन बाद में छुड़वा दिया. किस कक्षा में उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गई, यह पूछने पर शिव ने कहा, "उसने इतनी पढ़ाई कर ली थी कि वो अपने दस्तखत कर सके."

एक पिता के रूप में शिव को अपने परिवार के पालन पोषण और अपनी बेटी की पढ़ाई के बीच में से किसी एक को चुनना था. "गांव में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. हम सभी काम पर चले जाते हैं. ऐसे में उन्हें दूर के स्कूल में कौन ले जाएगा?"

गांव में तारा की मौत और संतोष एवं संजय की गिरफ़्तारी के बाद तनाव का माहौल है. शिव ने दावा किया कि संतोष के भाई राजू ने उन्हें धमकी दी है कि वो राजू के रिहा होने के बाद उसे और उसके परिवार को "देख लेगा".

26 अक्टूबर को जब न्यूज़लॉन्ड्री ने तारा के एक भाई से बात की तो उसने बताया कि यादवों और गौतमों में ना के बराबर बातचीत होती है.

उसने बताया, "हम अलग-अलग जातियों से हैं. ना हमारे बीच दोस्ती है और ना ही दुश्मनी." तारा की मौत के बाद हालात बद से बदतर हो गए हैं, अब उसके समुदाय से किसी के लिए भी बिना यादवों की गलियां खाए निकलना मुश्किल हो गया है.

वो कहता है, "जिस दुकान से हम सामान खरीदते हैं वो यादवों के घर के पास है. जब भी हम उस रास्ते से निकल रहे होते हैं तो संतोष की मां पूछने लगती है कि दुश्मन उनकी तरफ क्यों आ रहे हैं." संजय के परिवार के संबंध में उसने बताया कि वो बिल्कुल शांत हो गए हैं.

लखीमपुर खीरी के जिला मजिस्ट्रेट शैलेन्द्र कुमार सिंह ने 20 अक्टूबर को जारी एक आदेश में कहा कि “संतोष यादव और उसके दोस्त संजय गौतम ने गन्ने के खेत में तारा का सामूहिक बलात्कार किया और फिर उसके दुपट्टे से उसका गला घोंट दिया जिससे उसकी मौत हो गई."

लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह का पत्र

संतोष ने जमानत के लिए आवेदन किया था. उन्होंने कहा, "अगर उसे जमानत दी गई, तो वह भविष्य में भी ऐसे अपराध करता रहेगा, जिससे इलाके की शांति भंग होगी. इसलिए मेरा मानना है कि संतोष यादव के खिलाफ 1980 के राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए. खीरी के डीएम के रूप में, मेरी राय में सबसे बेहतर रास्ता यही है."

शैलेंद्र ने संतोष के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 3 और उप-धारा 2 के तहत मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं. प्रशासन ने मुआवजे के रूप में तारा के परिवार को 8.25 लाख रुपये भी दिए.

जब हम 23 सितंबर को शिव से मिले, तो उनका परिवार एक और मौत का शोक मना रहा था. उनकी पोती की जन्म के कुछ घंटे बाद ही मौत हो गई थी.

वो कहते हैं, "कम से कम यही बच जाती तो मेरे पास कुछ तो होता. मैं यही मान लेता कि भगवान ने मेरी बेटी को इस बच्ची के रूप में वापस भेज दिया है. लेकिन अब तो सब ख़त्म हो गया. अब सिर्फ भगवान ही हमारी मदद कर सकता है. एक गरीब की बच्ची को मार डाला गया."

यह कहते कहते वो फूट-फूट कर रोने लगते हैं. "एक गरीब की बच्ची को मार डाला गया."

पहचान छुपाने के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं.

उस दिन तारा को घर से जाते हुए किसी ने नहीं देखा.

लखीमपुर खीरी के ईसानगर के एक गांव में एक कमरे के कच्चे घर में रहने वाला तारा और उसका पूरा परिवार, जिसमें दो बड़े भाई भी हैं, शौच करने घर से कुछ दूर खेत में जाते हैं क्योंकि उनके घर में शौचालय भी नहीं है.

14 अगस्त को दोपहर के दो बजे जब तारा शौच के लिए बाहर गई तो उसकी मां शांति, जो आमतौर पर उसके साथ जाती थी, नहीं गई क्योंकि उस दिन उसे कुछ सुस्ती महसूस हो रही थी और इस वजह से वो घर पर ही आराम करने के लिए रुक गई.

शांति ने याद करते हुए कहा, "लेकिन उसने दुपट्टा लिया था, वह इसे नहीं भूली."

तारा, गांव की अन्य लड़कियों की तरह, घर से थोड़ी दूर जाने के लिए भी अपने दुपट्टे को ले जाना नहीं भूलती थी और उससे अपने ऊपरी हिस्से को ढक लेती थी. यहां हर लड़की को छोटी उम्र से ही बता दिया जाता है कि उसका दुपट्टा ही उसका रक्षक है और उसे उस दुपट्टे से खुद को ढकना चाहिए. इसलिए कोई भी लड़की अपने दुपट्टे को लेना नहीं भूलती.

दुपट्टा लेने के बावजूद तारा का अपने घर से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर बलात्कार हुआ और उसी दुपट्टे से, जो उसकी सुरक्षा के लिए था, उसका गाला घोंट कर उसकी हत्या कर दी गई.

संतोष यादव और संजय गौतम नाम के दो लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया है. संतोष उस खेत का मालिक है जहां तारा की लाश मिली. तारा की मौत से कुछ हफ्ते पहले ही उसने गांव वालों को अपने खेत में शौच करने के खिलाफ चेताया था. तारा दलित परिवार की बेटी थी. संजय भी उसी जाति का है जबकि संतोष यादव है जो उत्तर प्रदेश में अन्य पिछड़े वर्ग में आते हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री ने 23 सितंबर को तारा के परिवार से मुलाकात की ताकि यह पता लगाया जा सके कि उस दिन क्या हुआ था.

तारा की खोज

तारा के पिता शिव कहते हैं, "अगर हमारे घर में समय से शौचालय बन गया होता तो शायद तारा की मौत ना होती."

55 वर्षीय शिवा एक छोटे किसान हैं और कभी-कभार मजदूरी का काम भी करते हैं. तारा उनकी सबसे छोटी संतान थी, उनके एक बेटे 18 और दूसरे 28 साल के हैं.

शिव कहते हैं कि 14 अगस्त को एक घंटे बाद हमें यह एहसास हुआ कि तारा घर वापस नहीं आई है. उसके पिता ने उसको ढूंढ़ना शुरू किया और बकरियां चरा रहे कुछ लोगों से भी तारा के बारे में पूछा. उन लोगों ने शिव को बताया कि उन्होनें तारा को खेत की तरफ जाते देखा था.

वह खेत शिव के पड़ोसी संतोष यादव का है जहां संतोष गन्ना उगाते हैं. शिव ने खेत में पहुंचकर देखा तो संतोष को वहां बैठा पाया. शिव ने कहा, "मैंने दूर से ही उससे पूछा कि क्या उसने मेरी बेटी को देखा है. संतोष ने वहीं से हाथ के इशारे से कहा कि वो यहां नहीं है."

शिव ने संतोष के खेत में दूसरे पड़ोसी संजय गौतम को भी वहां देखा. तारा के पिता ने कहा, "मैंने संजय को संतोष से कहते सुना कि कौन है? जिस पर संतोष ने कहा कि शिव है. उसके बाद संजय ने उससे यह भी पूछा कि क्या वो गया जिस पर संतोष ने कहा हां."

शिव ने यह पूरी बातचीत दूर से ही सुनी और यह बिल्कुल स्वाभाविक लगी. उसके बाद वो अपनी बेटी को ढूंढ़ने के लिए वहां से चले गए. एक महीने बाद जब शिव वो दिन याद करते हैं तो पछताते है कि वो वहां से क्यूं चले गए.

सविता का घऱ
गन्ने के खेत की ओर जाने वाला रास्ता

शिव, शांति और उनके दोनों बेटों ने तारा को ढूंढना जारी रखा. शाम 5 बजे तक वो उम्मीद खो चुके थे. जैसे-जैसे रात हो रही थी, परिजनों की घबराहट जा रही थी. उसके बाद उन्होनें फिर से उस खेत में जाने का निर्णय लिया.

संतोष और संजय अभी भी वहीं थे. इस बार जब उन्होंने शिव और शांति को अपनी ओर आते देखा तो वो भाग गए.

इससे उनका शक बढ़ गया और वो खेत में घुस गए. गन्ने के खेत में कुछ जगह साफ़ की गई थी और वहीं पर उन्हें अपनी बेटी की बॉडी और कपडे दिखे.

उन्होनें बताया, "मैं तुरंत चिल्लाया, हाय दादा, मेरी बिटिया को मार डाले, दौड़ो दादा रे दादा."

तारा की लाश वहीं पड़ी थी और उसका दुपट्टा उसके गले में लिपटा हुआ था. स्टील का वह लोटा जो वह अपने साथ लेकर गई थी उसकी चप्पलों के साथ वहीं पड़ा हुआ था. उसके पैर पुआल से बंधे हुए थे.

शिव ने बताया, "उसकी आंखों से खून निकल रहा था. उसकी जीभ बाहर निकली हुई थी और उससे भी खून निकल रहा था. उसने गला घोंटते वक्त काट लिया होगा." अपनी बेटी के साथ बिताए आखरी कुछ पलों को याद करते हुए शिव की आवाज़ रुंध गई.

एफआईआर और पोस्टमॉर्टम

उसी रात 11.42 बजे ईसानगर पुलिस स्टेशन में एक एफआईआर दर्ज की गई थी. शिव की शिकायत पर एफआईआर में संतोष यादव और संजय गौतम को आरोपी बनाया गया. उन पर आईपीसी की धारा 302 और 201 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया जो कि हत्या और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत आता है.

15 अगस्त को दोपहर 2.30 बजे लखीमपुर खीरी के जिला अस्पताल में तीन डॉक्टरों के एक पैनल द्वारा तारा का पोस्टमॉर्टम कैमरे के सामने किया गया. न्यूज़लॉन्ड्री के पास पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की एक कॉपी भी है जिसमें बताया गया है कि तारा की पीठ, दाहिने घुटने और बाएं टखने में चोटें थीं. खून की नलियों के कट जाने के कारण उसके चेहरे के बाएं तरफ आंखों के नीचे निशान पड़ गया. उसके दिमाग, सांस लेने की नली और फेफड़े में भी खून जम गया था.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में यौन हमले का भी इशारा किया गया है. तारा का पेट भी अंदर से दबाव के कारण सूज कर फूल गया था और उसका गुप्तांग भी खून से लथपथ था और नीचे की तरफ गहरा घाव था. उसका हाइमन फटा हुआ था और खून के थक्के जमे हुए थे. उसकी मौत सांस रुकने की वजह से हुई.

पोस्टमॉर्टम के बाद गैंगरेप के आरोपों को भी एफआईआर में शामिल किया गया. चूंकि तारा नाबालिग थी, इसलिए यौन पॉक्सो एक्ट के तहत भी आरोप लगाए गए. तारा की मौत के दो हफ्ते बाद, 29 अगस्त को, उत्तर प्रदेश पुलिस ने चार्जशीट फाइल की.

'मैंने भी अपना बच्चा खोया है'

तारा की हत्या के तीन दिन बाद, सुनील सिंह नाम के एक पुलिस अधिकारी ने उसके परिवार से मुलाकात की. शिव के अनुसार, अधिकारी ने कहा कि पुलिस ने संतोष और संजय का जुर्म कबूल करते हुए एक वीडियो बनाया है और उनमें से एक वीडियो में वो कह रहे हैं कि शिव को इस बात का एहसान मानना चाहिए कि उसे तारा की लाश मिल गई क्योंकि वो उसको ठिकाने लगाने का प्रयास कर रहे थे.

शिव ने खुद कभी वो वीडियो नहीं देखा और उसने दावा किया उसके बाद सुनील सिंह का ट्रांसफर भी हो गया.

जब तारा का बलात्कार हुआ और उसकी हत्या हुई तब सिंह ईसानगर के स्टेशन हाउस अधिकारी थे. उन्होनें न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि वो वीडियो पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते. उन्होनें कहा, "मैं सिर्फ इतना बता सकता हूं कि दोनों ने अपना जुर्म कबूल किया."

तारा की मौत के दो हफ्ते बाद सिंह का ट्रांसफर हो गया. अब वो लखीमपुर खीरी शहर के स्टेशन हाउस ऑफिसर हैं. उन्होनें कहा, "यह रूटीन ट्रांसफर है. यह मेरे लिए बेहतर पोस्टिंग है."

उनकी जगह ईसानगर आए हरिओम श्रीवास्तव कहते हैं कि वो इस मामले में कुछ कह नहीं सकते लेकिन उन्होनें इस बात की पुष्टि की कि चार्जशीट फाइल कर दी गई है. इस मामले के जांच अधिकारी अरविन्द वर्मा से बात नहीं हो पाई.

तारा के माता-पिता हमें उस खेत में ले गए जहां वह मिली थी. उस दिन के बाद वो उस जगह पर पहली बार आए थे. यह खेत शिव के घर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर है. संजय सिर्फ दो घर दूर रहता है और संतोष मुश्किल से कुछ सौ मीटर दूर यादवों की टोली में.

सरपंच सुंदर लाल के अनुसार गांव में लगभग 100 यादव, 700 गौतम और 110 पंडित वोटर हैं. "गौतम नीची जाति के हैं, लेकिन वे अन्य जातियों से ज्यादा संख्या में हैं," वो कहते हैं. संजय के घर पर, उनके माता-पिता अकेले उदास पड़े हुए थे. संजय अपने माता-पिता और चार भाई-बहनों के साथ यहां रहता था.

अपनी बेटी के कपड़े दिखाती शांति
संजय गौतम के माता-पिता

जिस दिन तारा की मौत हुई उस सुबह संजय, अपने पिता और कुछ साथियों के साथ पास के गांव में मजदूरी के काम के लिए दूसरे गांव गए हुए थे. उसके पिता बताते हैं कि वो दोपहर के आसपास वापस लौट आए थे. उन्होनें बताया, "मेरी तबीयत ठीक नहीं थी तो मैं दवा लेने चला गया. हमारे पास जानवर हैं तो मैंने संजय को बोला कि वो उनके लिए खेत से घास ले आए."

लगभग उसी समय के आसपास तारा लापता हुई थी. संजय के पिता ने बताया, "संजय घटना के समय मेरे साथ नहीं था. केवल भगवान को पता है कि उस आधे घंटे के दौरान क्या हुआ था जब मेरा बेटा मेरे साथ नहीं खेत में था."

उसके परिवार वालों ने बताया कि संजय को उसी शाम गिरफ्तार कर लिया गया. जब तारा की मौत की खबर मिली तब संजय की मां घर पर ही थीं. वो बताती हैं, "मैं उनके घर गई और तारा का भाई मेरे पास दौड़ता हुआ आया. वो बहुत रो रहा था तो मैंने उसे गले लगा लिया. हमारे उनके परिवार के साथ अच्छे संबंध रहे हैं."

अन्य गांव वालों की तरह संजय की मां भी खेत गईं और तारा की लाश को देखा. उन्होनें बताया कि तब तक उनका बेटा वापस आ गया और वो भी उनके साथ खेत गया.

उन्होनें बताया, "वो पुलिस से भागने की कोशिश नहीं कर रहा था. वो मेरे साथ खेत गया और हमनें वहां तारा की लाश देखी. सब रो रहे थे, मैं भी उस बच्ची के लिए बहुत रोइ. मैं तो मेरे बेटे की गिरफ़्तारी से ज्यादा तारा के लिए रोइ थी. लेकिन आज मुझे वही दर्द महसूस हो रहा है जो तारा के परिवार को हो रहा है. मैंने भी अपना बच्चा खो दिया."

उसके बाद से गांव वालों ने संजय के परिवार से दूरी बना ली है. संजय के पिता बताते हैं, "अब हमसे कोई बात नहीं करता."

जब संजय के परिजनों से पूछा गया कि क्या उनके बेटे ने तारा का बलात्कार कर के उसे मारा है तो वो चुप हो गए.

संजय की मां कहती हैं, "अगर मेरे बेटे ने यह सब किया है तो उसको सज़ा मिलनी चाहिए. अगर नहीं किया है तो उसे छोड़ दिया जाए." यह कहते-कहते वो रोने लगीं.

'उसका व्यव्हार बहुत अच्छा था'

संजय के घर से लगभग 500 मीटर की दूरी पर ही संतोष यादव का घर है. वह अपने माता-पिता, तीन भाइयों, अपनी पत्नी और एक वर्षीय बच्चे के साथ रहता है. उसकी दो बहनें अपने पति के साथ कहीं और रहती हैं. संतोष ने हाल ही में विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल की थी और वो जल्द ही चीनी मिल में काम शुरू करने वाला था. उसके परिवार के अनुसार, उसने सेना और उत्तर प्रदेश पुलिस में भी आवेदन किया था.

संतोष के भाई राजू यादव को लगता है कि उसका भाई निर्दोष है. राजू कहता है, "वो पूरे दिन खेत में था. वो दोपहर 1.30 बजे वापस आया था और फिर 5 बजे खेत पर ही चला गया था. अगर उसने कुछ किया होता तो वो वापस क्यूं जाता?" राजू ने बताया कि पुलिस संतोष को उसके घर से रात 10 बजे ले गई.

संतोष यादव का परिवार

राजू ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा कि अगर संतोष ने अपना जुर्म कबूल किया है तो तो उसे सबके सामने गोली मार देनी चाहिए. उसने यह भी कहा कि वो यह बात वो उसकी बीवी से भी लिखवा कर दे देगा लेकिन हमें पता है कि वो निर्दोष है.

क्या संतोष का तारा के परिवार से कोई संबंध है? इस सवाल के जवाब में राजू ने कहा, "हम उन लोगों से दूर रहते हैं. वो लोग खतरनाक हैं."

संतोष का विवाह 2018 में हुआ था. उसकी पत्नी कहती हैं कि वो ऐसा कुछ नहीं कर सकता क्योंकि उसका मानना है कि वो लड़कियों एवं औरतों से बहुत शर्माता है.

वो कहती हैं, "वो तो लड़कियों और औरतों से इतना शर्माता है कि अगर कोई लड़की या औरत उससे मदद भी मांगे तो वो नहीं करता. उसका व्यव्हार बहुत अच्छा है."

संतोष की मां ने भी उसका बचाव करते हुए कहा, "आप गांव में किसी से भी उसके बारे में पूछ सकते हैं."

संतोष और संजय के परिजनों का दावा है कि उन दोनों को उनके उनके घरों से गिरफ्तार किया गया लेकिन पुलिस केस डायरी अलग ही कहानी बयान कर रही है. पुलिस के अनुसार 15 अगस्त को पुलिस ने उन्हें लखीमपुर रोड पर मौसेपुर तिराहा के पास से पकड़ा जब वो वहां से भागने के लिए किसी साधन का इंतजार कर रहे थे.

न्यूज़लॉन्ड्री ने ईसानगर के पूर्व एसएचओ सुनील सिंह से जब इस बारे में पूछा तो उन्होनें कहा, "घटना के बाद आरोपियों ने भागने की कोशिश की. हमें उन्हें मेन रोड पर पकड़ा. उन्हें घर से गिरफ्तार नहीं किया गया था." केस डायरी में दोनों आरोपियों के बयान भी दर्ज हैं.

उसमें संतोष का बयान है, "मैं बेवक़ूफ़ था. मैंने गलती की है. मुझे माफ़ कर दो."

संजय ने अपने बयान में दावा किया है, "मैंने यह सब संतोष यादव के बहकावे में आकर किया है. मुझे माफ़ कर दो."

शौचालय की चाह में

तारा के घर में शौचालय नहीं था यह इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना का केंद्र बिंदु है. शांति कहती हैं कि कुछ हफ्ते पहले ही संतोष ने गांवालों को धमकी दी थी कि अगर किसी ने उसके खेत में शौच किया तो वो बिलकुल बर्दाश्त नहीं करेगा.

"उसने कहा कि अगर किसी ने उसके खेत में शौच किया तो वो उसे मारेगा," शांति ने कहा. लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि उनकी बेटी को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. वो कहती हैं, "यह धमकी सिर्फ हमारे लिए नहीं थी, सबके लिए थी. उसकी धमकी के बावजूद लोग वहां शौच के लिए जाते थे. अभी भी लोग जाते हैं. फिर मेरी बेटी को क्यूं मारा?"

तारा की चाची सीता ने बताया कि सरपंच ने पिछले साल, केंद्र सरकार के स्वच्छ भारत मिशन के तहत, तारा के परिवार के लिए एक शौचालय की मंजूरी दे दी थी. उन्होनें बताया, "हमें 12000 रुपये की पहली किस्त मिल गई थी. फिर दूसरी किस्त मिलने में देरी हो गई." चूंकि शौचालय में सीट नहीं लग पाई थी इसलिए उसका इस्तेमाल नहीं हो रहा था.

इस बाबत जब हमनें और पूछताछ की तो वहां तनाव कुछ बढ़ गया. तारा के कुछ पुरुष रिश्तेदारों ने हमसे कहा कि हम शौचालय की बजाय अपराध पर ध्यान दें. यह साफ़ है कि वो सरकारी योजना की आलोचना नहीं करना चाह रहे थे.

तारा की हत्या के बाद महिलाएं शौच के लिए खेतों में जाने से डर रही हैं इसलिए परिवार के लोगों ने पैसा इक्कठा करके शौचालय में सीट लगवाई. अब शौचालय इस्तेमाल के लिए तैयार है.

तारा की मौत के बाद बना शौचालय

'एक गरीब की बच्ची की हत्या हुई है'

न्यूज़लॉन्ड्री ने जब शिव से पूछा कि तारा बड़े होकर क्या बनना चाहती थी, तो उन्होनें जवाब दिया, "एक गरीब आदमी सपने नहीं देख सकता और ना ही उसके बच्चे सपने देख सकते हैं."

उन्होनें बताया कि तारा का दाखिला एक स्थानीय सरकारी स्कूल में करवाया था लेकिन बाद में छुड़वा दिया. किस कक्षा में उसकी पढ़ाई छुड़वा दी गई, यह पूछने पर शिव ने कहा, "उसने इतनी पढ़ाई कर ली थी कि वो अपने दस्तखत कर सके."

एक पिता के रूप में शिव को अपने परिवार के पालन पोषण और अपनी बेटी की पढ़ाई के बीच में से किसी एक को चुनना था. "गांव में लड़कियां सुरक्षित नहीं हैं. हम सभी काम पर चले जाते हैं. ऐसे में उन्हें दूर के स्कूल में कौन ले जाएगा?"

गांव में तारा की मौत और संतोष एवं संजय की गिरफ़्तारी के बाद तनाव का माहौल है. शिव ने दावा किया कि संतोष के भाई राजू ने उन्हें धमकी दी है कि वो राजू के रिहा होने के बाद उसे और उसके परिवार को "देख लेगा".

26 अक्टूबर को जब न्यूज़लॉन्ड्री ने तारा के एक भाई से बात की तो उसने बताया कि यादवों और गौतमों में ना के बराबर बातचीत होती है.

उसने बताया, "हम अलग-अलग जातियों से हैं. ना हमारे बीच दोस्ती है और ना ही दुश्मनी." तारा की मौत के बाद हालात बद से बदतर हो गए हैं, अब उसके समुदाय से किसी के लिए भी बिना यादवों की गलियां खाए निकलना मुश्किल हो गया है.

वो कहता है, "जिस दुकान से हम सामान खरीदते हैं वो यादवों के घर के पास है. जब भी हम उस रास्ते से निकल रहे होते हैं तो संतोष की मां पूछने लगती है कि दुश्मन उनकी तरफ क्यों आ रहे हैं." संजय के परिवार के संबंध में उसने बताया कि वो बिल्कुल शांत हो गए हैं.

लखीमपुर खीरी के जिला मजिस्ट्रेट शैलेन्द्र कुमार सिंह ने 20 अक्टूबर को जारी एक आदेश में कहा कि “संतोष यादव और उसके दोस्त संजय गौतम ने गन्ने के खेत में तारा का सामूहिक बलात्कार किया और फिर उसके दुपट्टे से उसका गला घोंट दिया जिससे उसकी मौत हो गई."

लखीमपुर खीरी के जिलाधिकारी शैलेंद्र कुमार सिंह का पत्र

संतोष ने जमानत के लिए आवेदन किया था. उन्होंने कहा, "अगर उसे जमानत दी गई, तो वह भविष्य में भी ऐसे अपराध करता रहेगा, जिससे इलाके की शांति भंग होगी. इसलिए मेरा मानना है कि संतोष यादव के खिलाफ 1980 के राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया जाना चाहिए. खीरी के डीएम के रूप में, मेरी राय में सबसे बेहतर रास्ता यही है."

शैलेंद्र ने संतोष के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की धारा 3 और उप-धारा 2 के तहत मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए हैं. प्रशासन ने मुआवजे के रूप में तारा के परिवार को 8.25 लाख रुपये भी दिए.

जब हम 23 सितंबर को शिव से मिले, तो उनका परिवार एक और मौत का शोक मना रहा था. उनकी पोती की जन्म के कुछ घंटे बाद ही मौत हो गई थी.

वो कहते हैं, "कम से कम यही बच जाती तो मेरे पास कुछ तो होता. मैं यही मान लेता कि भगवान ने मेरी बेटी को इस बच्ची के रूप में वापस भेज दिया है. लेकिन अब तो सब ख़त्म हो गया. अब सिर्फ भगवान ही हमारी मदद कर सकता है. एक गरीब की बच्ची को मार डाला गया."

यह कहते कहते वो फूट-फूट कर रोने लगते हैं. "एक गरीब की बच्ची को मार डाला गया."

पहचान छुपाने के लिए कुछ नाम बदल दिए गए हैं.