Newslaundry Hindi
गैर प्रवासी कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं ने सरकार के खिलाफ फिर शुरू किया धरना
कश्मीर के गैर प्रवासी कश्मीरी पंडितों और हिंदुओ ने अपनी मांगों को लेकर 22 नवंबर से दोबारा श्रीनगर में धरना देना शुरू कर दिया है. इससे पहले सितम्बर माह में भी ये लोग 11 दिन तक धरने पर बैठे थे. तब प्रशासन ने मांग पूरी करने का लिखित आश्वासन देकर धरना खत्म करा दिया था. ये लोग कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के तत्वाधान में अध्यक्ष संजय टिक्कू और युवा कार्यकर्ता संदीप कौल के साथ श्रीनगर के हब्बा कदल स्थित गणेश मंदिर में उपवास पर बैठे हैं. बता दें कि ये वही लोग हैं जो 1990 में कश्मीर घाटी में हुए पलायन के बावजूद घर छोड़कर नहीं गए थे, बल्कि इन्होंने कश्मीर में ही रहना पसंद किया था.
समिति की ओर से एक प्रेस रिलीज भी जारी की गई है जिसमें रोजगार, सभी योग्य लोगों को निवास सहित सात वादों को पूरा करने की मांग की जा रही है. कश्मीरी पंडितों के मांग पत्र में कहा गया है कि कोर्ट के आदेश और केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिश के अनुसार, बेरोजगार कश्मीरी पंडितों को नौकरियां दी जाएं और यहां रह रहे 808 पंडित परिवारों को मासिक वित्तीय सहायता दी जाए. पदाधिकारियों का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन यहां रहने वाले हिंदुओं और कश्मीरी पंडितों के 808 परिवारों की अनदेखी कर रहा है. नए एलजी से मुलाकात के बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली है.
प्रेस रिलीज की शुरूआत में लिखा है कि केपीएसएस को इस बात का पुख्ता यकीन है कि नॉन माइग्रेंट कश्मीरी पंडित और हिंदू ‘भारतीय’ होने के कारण कश्मीर घाटी में रहने का मूल्य चुका रहे हैं. साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के नारे को भी याद दिलाते हुए लिखा है कि कश्मीर घाटी में रहने वाले लोगों के साथ ये न्याय नहीं हो रहा है.
घाटी में रह रहे इन लोगों का कहना है कि वे दशकों से ठगे जा रहे हैं. सारी पार्टियां उनके नाम पर सिर्फ राजनीति करती हैं. और अगस्त 2019 में राज्य का विशेष दर्जा धारा-370 और 35-A के हटने के बाद से हालात और खराब हो गए हैं. नौकरशाह मनमानी कर रहे हैं जिस कारण हालात अधिक बिगड़ गए हैं.
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने न्यूजलॉन्ड्री से बातचीत में कहा, “हमारी सरकार से जॉब, वित्तीय सुरक्षा आदि के बारे में कुछ डिमांड थीं जिसकी फाइल पिछले तीन साल से सचिवालय में अटकी हुई है. अब या तो नौकरशाहों पर इस फाइल को रिवील करने में कोई पॉलिटिकल दबाव आ रहा है, या उन्हें इसके बारे में कुछ समझ नहीं आ रहा है. 27 अगस्त को हम उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से भी मिले तो उन्होंने भरोसा दिलाया कि ये इतना बड़ा मसला नहीं है और मैं चीफ सेक्रेटरी साहब से कह कर इसे करा दूंगा. लेकिन हम जब सचिवालय गए तो वहां कुछ ऐसा नहीं मिला.”
टिक्कू ने आगे बताया, “इस पर हमने पहले 20 से 30 सितम्बर तक यहीं हड़ताल की थी उसके बाद यहां 30 को डिप्टी कमिश्नर और अन्य लोग आए. तब हमने यही कहा कि हम तीन साल से सिर्फ आश्वासन ही सुन रहे हैं, हमें लिखित में दो. इसके बाद उन्होंने हमें लिखित में दिया कि आपकी मांगे पहले ही सरकार के पास जा चुकी हैं. एलजी के एडवाइजर ने हमसे कहा कि आप हमें पांच दिन दीजिए. हम देखते हैं कि किस विभाग में फाइल कहां अटकी हुई है. उनसे बात करके आपके साथ फाइनल मीटिंग होगी. लेकिन वह फाइनल मीटिंग कभी नहीं हुई.”
“तब मैं 15 नवंबर को फिर उनके पास गया और कहा कि अगर 21 नवंबर तक हमारे पास रोडमैप नहीं आया तो हम फिर फास्ट अनटू डेथ करेंगे. इसके बाद जब नहीं आया तो हमने दोबारा 22 नवंबर से हड़ताल शुरू कर दी है. आज नौ दिन हो चुके लेकिन सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. इस बार जब तक इम्पलीमेंट ऑर्डर नहीं आ जाते तब तक हम नहीं उठेंगे. क्योंकि सरकार की कोई भी योजना जमीन पर लागू नहीं होती. हालांकि डिप्टी कमीश्नर शाहिद चौधरी ने हमारे साथ पूरी कोशिश की लेकिन ऊपर से कुछ नहीं हो पाया.” टिक्कू ने कहा.
टिक्कू अंत में कहते हैं, “हम यहां कश्मीरी पंडित और हिंदू 808 परिवार हैं तो इन्हे 808 पोस्ट रिजर्व रखनी हैं, लेकिन हम कह रहे हैं कि 500 सीट ही दे दी जाएं. तीन साल से इंतजार में बहुत पोस्ट ग्रेजुएट बच्चों की उम्र निकल रही है. क्योंकि अब कोविड-19 और धारा 370 हटने के बाद हालात और खराब हो गए हैं. पिछले साल पांच अगस्त को सरकार ने धारा 370 के तहत मिले विशेष दर्जे को खत्म किया लेकिन उससे कश्मीरी पंडितों की दशा में अब तक कोई बदलाव नहीं आया है. पहले तो अगर किसी को कोई तकलीफ होती थी, तो वह राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों के पास जा सकता था लेकिन आज यहां पूरी तरह सियासी खालीपन है और जनता के प्रतिनिधि भी डरे हुए हैं. केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद नौकरशाहों का बोलबाला हो गया है और वे अपने को कुछ समझने लगे हैं, अब वे किसी की नहीं सुनते. क्योंकि उन्हें पता है कि दिल्ली में मोदी या अमित शाह से तो मिल नहीं सकते. इसका फायदा उठा रहे हैं. अब जिस तरह से हमारी कोई बात नहीं सुन रहा तो हमें तो ये महसूस होता है कि अब हमने यहां रुककर गलती की. क्योंकि कोई भी पार्टी हो कश्मीरी पंडितों पर सब राजनीति करने लगे हुए हैं. संविधान में जो जीने का अधिकार है, इस हिसाब से तो हमें वह भी नहीं मिल रहा है. विस्थापितों की बात तो फिर भी कोई कर रहा है, लेकिन जो उस मुश्किल वक्त में भी यहीं रहा उसकी बात कोई नहीं कर रहा है.”
हमने कश्मीर के डिप्टी कमिश्नर शाहिद चौधरी से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि, "इनकी मांगें सरकार को प्राप्त हो चुकीं हैं और माननीय के एडवाइजर की अध्यक्षता में इस बारे में मीटिंग भी हो चुकी है. बाकि मामला संबंधित विभाग के विचाराधीन है."
यह मामला रिलीफ एंड रिहेबिलेशन (राहत और पुनर्वास) विभाग के अंतर्गत आता है. इस विभाग के सचिव आईएएस सिमरनदीप सिंह से हमने इस बारे में बात करने के लिए फोन किया तो उनका फोन स्विच ऑफ था. इस पर हमने उन्हें अपने सवाल व्हाटसएप पर भेज दिए. बाद में हमारे फिर से याद दिलाने पर आईएएस सिमरनदीप ने हमें व्हाटसएप पर जवाब दिया, “मैंने पिछली बार ही अपना स्टैंड बता दिया था. माइग्रेंट और नॉन माइग्रेंट सभी की भर्तियां जम्मू कश्मीर एसएसबी के तहत मेरिट के आधार पर होती हैं. मेरिट के अलावा बाकि कोई दूसरा तरीका नहीं है.”
जब हमने पूछा कि उनकी मुख्य चिंता यह है कि चीजें जमीन पर सही से लागू नहीं हो रहीं हैं. तो आईएएस सिमरनदीप ने जवाब में लिखा, “ये लागू हुईं हैं. आज या कल में विज्ञापन आ जाएगा. 16 नॉन माइग्रेंट भी मेरिट में पास हुए हैं.”
कश्मीर के गैर प्रवासी कश्मीरी पंडितों और हिंदुओ ने अपनी मांगों को लेकर 22 नवंबर से दोबारा श्रीनगर में धरना देना शुरू कर दिया है. इससे पहले सितम्बर माह में भी ये लोग 11 दिन तक धरने पर बैठे थे. तब प्रशासन ने मांग पूरी करने का लिखित आश्वासन देकर धरना खत्म करा दिया था. ये लोग कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति (केपीएसएस) के तत्वाधान में अध्यक्ष संजय टिक्कू और युवा कार्यकर्ता संदीप कौल के साथ श्रीनगर के हब्बा कदल स्थित गणेश मंदिर में उपवास पर बैठे हैं. बता दें कि ये वही लोग हैं जो 1990 में कश्मीर घाटी में हुए पलायन के बावजूद घर छोड़कर नहीं गए थे, बल्कि इन्होंने कश्मीर में ही रहना पसंद किया था.
समिति की ओर से एक प्रेस रिलीज भी जारी की गई है जिसमें रोजगार, सभी योग्य लोगों को निवास सहित सात वादों को पूरा करने की मांग की जा रही है. कश्मीरी पंडितों के मांग पत्र में कहा गया है कि कोर्ट के आदेश और केंद्रीय गृह मंत्रालय की सिफारिश के अनुसार, बेरोजगार कश्मीरी पंडितों को नौकरियां दी जाएं और यहां रह रहे 808 पंडित परिवारों को मासिक वित्तीय सहायता दी जाए. पदाधिकारियों का आरोप है कि स्थानीय प्रशासन यहां रहने वाले हिंदुओं और कश्मीरी पंडितों के 808 परिवारों की अनदेखी कर रहा है. नए एलजी से मुलाकात के बाद भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली है.
प्रेस रिलीज की शुरूआत में लिखा है कि केपीएसएस को इस बात का पुख्ता यकीन है कि नॉन माइग्रेंट कश्मीरी पंडित और हिंदू ‘भारतीय’ होने के कारण कश्मीर घाटी में रहने का मूल्य चुका रहे हैं. साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सबका साथ सबका विकास सबका विश्वास के नारे को भी याद दिलाते हुए लिखा है कि कश्मीर घाटी में रहने वाले लोगों के साथ ये न्याय नहीं हो रहा है.
घाटी में रह रहे इन लोगों का कहना है कि वे दशकों से ठगे जा रहे हैं. सारी पार्टियां उनके नाम पर सिर्फ राजनीति करती हैं. और अगस्त 2019 में राज्य का विशेष दर्जा धारा-370 और 35-A के हटने के बाद से हालात और खराब हो गए हैं. नौकरशाह मनमानी कर रहे हैं जिस कारण हालात अधिक बिगड़ गए हैं.
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने न्यूजलॉन्ड्री से बातचीत में कहा, “हमारी सरकार से जॉब, वित्तीय सुरक्षा आदि के बारे में कुछ डिमांड थीं जिसकी फाइल पिछले तीन साल से सचिवालय में अटकी हुई है. अब या तो नौकरशाहों पर इस फाइल को रिवील करने में कोई पॉलिटिकल दबाव आ रहा है, या उन्हें इसके बारे में कुछ समझ नहीं आ रहा है. 27 अगस्त को हम उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से भी मिले तो उन्होंने भरोसा दिलाया कि ये इतना बड़ा मसला नहीं है और मैं चीफ सेक्रेटरी साहब से कह कर इसे करा दूंगा. लेकिन हम जब सचिवालय गए तो वहां कुछ ऐसा नहीं मिला.”
टिक्कू ने आगे बताया, “इस पर हमने पहले 20 से 30 सितम्बर तक यहीं हड़ताल की थी उसके बाद यहां 30 को डिप्टी कमिश्नर और अन्य लोग आए. तब हमने यही कहा कि हम तीन साल से सिर्फ आश्वासन ही सुन रहे हैं, हमें लिखित में दो. इसके बाद उन्होंने हमें लिखित में दिया कि आपकी मांगे पहले ही सरकार के पास जा चुकी हैं. एलजी के एडवाइजर ने हमसे कहा कि आप हमें पांच दिन दीजिए. हम देखते हैं कि किस विभाग में फाइल कहां अटकी हुई है. उनसे बात करके आपके साथ फाइनल मीटिंग होगी. लेकिन वह फाइनल मीटिंग कभी नहीं हुई.”
“तब मैं 15 नवंबर को फिर उनके पास गया और कहा कि अगर 21 नवंबर तक हमारे पास रोडमैप नहीं आया तो हम फिर फास्ट अनटू डेथ करेंगे. इसके बाद जब नहीं आया तो हमने दोबारा 22 नवंबर से हड़ताल शुरू कर दी है. आज नौ दिन हो चुके लेकिन सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है. इस बार जब तक इम्पलीमेंट ऑर्डर नहीं आ जाते तब तक हम नहीं उठेंगे. क्योंकि सरकार की कोई भी योजना जमीन पर लागू नहीं होती. हालांकि डिप्टी कमीश्नर शाहिद चौधरी ने हमारे साथ पूरी कोशिश की लेकिन ऊपर से कुछ नहीं हो पाया.” टिक्कू ने कहा.
टिक्कू अंत में कहते हैं, “हम यहां कश्मीरी पंडित और हिंदू 808 परिवार हैं तो इन्हे 808 पोस्ट रिजर्व रखनी हैं, लेकिन हम कह रहे हैं कि 500 सीट ही दे दी जाएं. तीन साल से इंतजार में बहुत पोस्ट ग्रेजुएट बच्चों की उम्र निकल रही है. क्योंकि अब कोविड-19 और धारा 370 हटने के बाद हालात और खराब हो गए हैं. पिछले साल पांच अगस्त को सरकार ने धारा 370 के तहत मिले विशेष दर्जे को खत्म किया लेकिन उससे कश्मीरी पंडितों की दशा में अब तक कोई बदलाव नहीं आया है. पहले तो अगर किसी को कोई तकलीफ होती थी, तो वह राजनीतिक पार्टियों के नुमाइंदों के पास जा सकता था लेकिन आज यहां पूरी तरह सियासी खालीपन है और जनता के प्रतिनिधि भी डरे हुए हैं. केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद नौकरशाहों का बोलबाला हो गया है और वे अपने को कुछ समझने लगे हैं, अब वे किसी की नहीं सुनते. क्योंकि उन्हें पता है कि दिल्ली में मोदी या अमित शाह से तो मिल नहीं सकते. इसका फायदा उठा रहे हैं. अब जिस तरह से हमारी कोई बात नहीं सुन रहा तो हमें तो ये महसूस होता है कि अब हमने यहां रुककर गलती की. क्योंकि कोई भी पार्टी हो कश्मीरी पंडितों पर सब राजनीति करने लगे हुए हैं. संविधान में जो जीने का अधिकार है, इस हिसाब से तो हमें वह भी नहीं मिल रहा है. विस्थापितों की बात तो फिर भी कोई कर रहा है, लेकिन जो उस मुश्किल वक्त में भी यहीं रहा उसकी बात कोई नहीं कर रहा है.”
हमने कश्मीर के डिप्टी कमिश्नर शाहिद चौधरी से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि, "इनकी मांगें सरकार को प्राप्त हो चुकीं हैं और माननीय के एडवाइजर की अध्यक्षता में इस बारे में मीटिंग भी हो चुकी है. बाकि मामला संबंधित विभाग के विचाराधीन है."
यह मामला रिलीफ एंड रिहेबिलेशन (राहत और पुनर्वास) विभाग के अंतर्गत आता है. इस विभाग के सचिव आईएएस सिमरनदीप सिंह से हमने इस बारे में बात करने के लिए फोन किया तो उनका फोन स्विच ऑफ था. इस पर हमने उन्हें अपने सवाल व्हाटसएप पर भेज दिए. बाद में हमारे फिर से याद दिलाने पर आईएएस सिमरनदीप ने हमें व्हाटसएप पर जवाब दिया, “मैंने पिछली बार ही अपना स्टैंड बता दिया था. माइग्रेंट और नॉन माइग्रेंट सभी की भर्तियां जम्मू कश्मीर एसएसबी के तहत मेरिट के आधार पर होती हैं. मेरिट के अलावा बाकि कोई दूसरा तरीका नहीं है.”
जब हमने पूछा कि उनकी मुख्य चिंता यह है कि चीजें जमीन पर सही से लागू नहीं हो रहीं हैं. तो आईएएस सिमरनदीप ने जवाब में लिखा, “ये लागू हुईं हैं. आज या कल में विज्ञापन आ जाएगा. 16 नॉन माइग्रेंट भी मेरिट में पास हुए हैं.”
Also Read
-
Hafta X South Central: Highs & lows of media in 2025, influencers in news, Arnab’s ‘turnaround’
-
TV Newsance 2025 rewind | BTS bloopers, favourite snippets and Roenka awards prep
-
Is India’s environment minister lying about the new definition of the Aravallis?
-
How we broke the voter roll story before it became a national conversation
-
Tata Harrier and Tata Safari 1.5 Petrol: A bold stroke but will it work?