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किसान आंदोलन की महिलाएं: 'यह बच्चों के भविष्य की लड़ाई है इसलिए बिना नहाए भी रहना पड़ता है'
शाम के करीब पांच बज रहे हैं. सिंघु बार्डर पर दोपहर की तुलना में शोरगुल बढ़ चुका है. दीवार पर कलाकारों ने 'समझौताहीन संघर्ष करते किसानों को सलाम' लिख दिया है. एक गाड़ी पर कुछ नौजवान गाना बजाते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नारे लगाते हुए गुजरते हैं. मुख्य स्टेज से सौ मीटर आगे ट्रैक्टर के पीछे गोल चक्कर बनाकर कुछ महिलाएं छेमी से मटर निकालते और प्याज काटते नज़र आती हैं. यहां बैठी सभी महिलाएं किसान हैं और पंजाब के अलग-अलग जिलों से कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन में शामिल होने पहुंची हुई हैं.
बड़े से बर्तन में प्याज काट रही 60 वर्षीय बलविंदर कौर अमृतसर के झजनवाड़ी गांव से आई हुई हैं. अमृतसर से झजनवाड़ी की दूरी पूछने पर वह कहती हैं, 25 रुपया किराया लगता है उससे आप दूरी लगा लो. भले ही बलविंदर कौर को अपने गांव से अमृतसर शहर की दूरी का ख्याल न हो लेकिन केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में बनाए गए तीन कृषि कानूनों के बारे में वो किसी मंझे हुए नेता की तरह बात करती हैं.
कौर इन तीनों कृषि कानूनों को काला कानून बताते हुए कहती है, ‘‘जब तक इसे मोदी वापस नहीं लेगा तब तक हम यहां से जाएंगे नहीं. दिल्ली ने हमेशा से पंजाबियों को ठगा है, लेकिन इसबार हम नहीं ठगे जाएंगे. अबकी अपनी मांग मनवाकर जाएंगे, चाहे छह दिन लगे या छह महीने. वाहे गुरूजी की कृपा से यहां खाने की कमी तो नहीं होगी.’’
बात करते हुए ये महिलाएं अपने काम में जुटी रहती हैं. इसे यह ‘सेवा’ कहती हैं. बलविंदर कौर जब हमसे बात कर रही होती हैं तभी एक बुजुर्ग महिला नाराज़ होकर पंजाबी में हमें कुछ बताती हैं, जिसका अनुवाद वहां बैठी एक दूसरी महिला से हम कराते हैं. नाराज़ बुजुर्ग पीएम मोदी से खफा हैं और वो कहती हैं, ‘‘उससे जब हमने कानून मांगी ही नहीं तो बनाई क्यों? हमें नहीं चाहिए तो दे क्यों रहा है. बड़ा हमारा भलाई सोच रहा है. हमने उसे वोट दिया था, लेकिन उसने हमारे साथ सही नहीं किया. चुनाव में आता था तो कहता था, ये करूंगा, वो करूंगा. क्या किया?’’
इस बुजुर्ग महिला का नाम कृपाल कौर है. पंजाब के संगुर जिले से आई 70 वर्षीय कृपाल कौर 25 नवंबर को ही अपने जत्थे के लोगों के साथ दिल्ली के लिए निकली और तब से आंदोलन में ही हैं. आप बुजुर्ग हैं. ठंड दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. ऐसे में आप घर क्यों नहीं लौट जाती हैं. इस सवाल के जवाब में कृपाल एक बार फिर नाराज़ होकर कहती हैं, ‘‘कानून वापस कराए बगैर नहीं जाएंगे. हमारे वीरों पर सरकार पानी फेंकवाई है, लठ्ठ मारी है. अब तो तभी जाएंगे जब कानून वापस होगा.’’
यहां पहुंचीं ज्यादातर महिलाएं 25 नवंबर को ही अपने घर से चली हुई हैं. अपने दिनचर्या के बारे में बताते हुए बलविंदर कौर बताती हैं, ‘‘हम सुबह-सुबह उठते है. फ्रेस होते हैं. उसके बाद सेवा (लंगर बनाने के इंतज़ाम) में जुट जाते हैं. लंगर बनाने और लोगों को खिलाते हुए हम लोग भी लंगर खाकर दो-तीन घंटे के लिए मंच के सामने बैठने चले जाते हैं. जहां लोग आकर भाषण देते हैं. चार बजे के करीब हम दोबारा सेवा के काम में लौट आते हैं. सब्जी के लिए सामान तैयार करते हैं. मिलकर बनाते हैं. जो भी यहां आता हैं उन्हें खिलाते हैं फिर खाना खाकर अपने-अपने ट्रैक्टर में सो जाते है. यह सिलसिला बीते 12 दिनों से जारी है.’’
नहाने और वॉशरूम की परेशानी लेकिन….
सिंघु बॉर्डर पर वैसे तो तमाम इंतजाम अलग-अलग संगठनों द्वारा किया गया हैं. कहीं टूथपेस्ट बांटा जा रहा है तो कहीं साबुन. कोई कंबल बांट रहा है तो कोई मच्छर भगाने वाली दवाई. खाने के लिए तो कदम-कदम पर लंगर लगे हुए हैं. सेनेट्रीपैड भी यहां महिलाओं के बीच बांटा जा रहा है, लेकिन महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी नहाने और वॉशरूम जाने को लेकर हो रही है.
बलविंदर कौर बताती हैं, ‘‘आज उन्हें बिना नहाए रहना पड़ा क्योंकि यहां अंधेरे में ही नहा पाना मुमकिन है. दिन हो जाने पर नहाने में परेशानी होती है. आज मेरी नींद नहीं खुल पाई जिस कारण मैं नहा नहीं पाई. जहां तक नहीं वॉशरूम की बात उसकी भी तकलीफ हो रही है. हमने कपड़ों से घेरकर एक जगह बनाई हैं जहां हम वॉशरूम के लिए जाते हैं.''
बलविंदर हमें वो जगह भी दिखाती हैं. महिलाओं ने अपना अस्थायी वॉशरूम दिल्ली सोनीपत हाईवे के किनारे खाली पड़े एक प्लॉट में बनाया है.
इतनी परेशानी के बावजूद आप लोग इस ठंड में खुले आसमान के नीचे रहने को क्यों मजबूर हैं? इस सवाल के जवाब में बलविंदर कौर कहती हैं, ‘‘अगर आज हम कष्ट नहीं सहेंगे तो आने वाले समय में हमारे बच्चे मजदूर बन जाएंगे. हमारी जमीन चली जाएंगी. हमारे बच्चे मजदूर ना बन जाएं इसीलिए आज हम कष्ट सह रहे हैं.’’
बलविंदर कौर के परिवार में दो बेटे बहू और चार पोते हैं. उनका दूध का कारोबार है इसीलिए बच्चे नहीं आए, लेकिन बलविंदर कौर पहले दिन से ही आंदोलन में जुटी हुई हैं. बलविंदर के पास पांच किले जमीन है.
यहां मौजूद 40 वर्षीय मनजीत कौर पंजाब की पटियाला शहर की रहने वाली हैं. मनजीत का परिवार खेती पर ही निर्भर है. उनके पास तीन किले जमीन है. घर पर अपने पति और दो बच्चों को छोड़कर मनजीत आंदोलन में जुटी हुई हैं. वह कहती हैं, ‘‘25 तारीख को हम दिल्ली आए हैं, लेकिन उससे पहले दो महीने से अपने शहर में धरना दे रहे थे, प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन सरकार को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था.’’
कृपाल कौर और बलविंदर कौर की तरह मनजीत का भी कहना है, ‘‘जब तक सरकार यह तीनों काले कानून वापस नहीं ले लेती तब तक हम लौटने वाले नहीं हैं. हम मोदी को छोड़ेंगे नहीं. सरकार एक ऐसा कानून लेकर आई है जिससे आने वाले समय में हमारी जमीन अडानी-अंबानी के पास चली जाएंगी और हमारे ही बच्चे अपने ही खेतों में मजदूर बन जाएंगे. यह सब कुछ हम अपने जीते जी नहीं होने देंगे. यह सरकार एमएसपी को भी खत्म करना चाहती है ताकि ओने पौने दामों में हमारी उपज को कोई भी खरीद ले और उसे महंगे दरों पर आम लोगों को बेच दे.’’
जब न्यूजलॉन्ड्री ने मनजीत से पूछा कि आपको यह सब जानकारी कहां से मिलती हैं तो वो बताती हैं, ‘‘मैं सोशल मीडिया पर हूं. वहां जो हमारे नेता लिखते हैं, बोलते हैं, मैं उसे सुनती हूं. टीवी पर बोलते हैं, वहां सुनती हूं. मैं आंदोलन में भी लगातार शामिल रही हूं तो नेताओं को सुन ही रहे हैं.’’
52 वर्षीय परमजीत कौर और उनके पति पटियाला से इस किसान आंदोलन में शामिल होने आए हैं. दो किले में खेती करने वाली परमजीत इससे पहले दिल्ली गुरुद्वारे में दर्शन के लिए आई थीं. वो मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘‘आप देख रहे हैं इस हाईवे को हमने पंजाब बना दिया है. जिधर से गुजरिए कोई ना कोई आपको लंगर में खाने के लिए पूछ ही देगा. अगर मोदी सरकार नहीं मानी तो हम दिल्ली को भी पंजाब बनाकर जाएंगे. हम किसान हैं और अपना हक़ मांगने आए हैं. जब तक हक़ नहीं मिलता हम लौटकर जाने वाले नहीं हैं. जितना भी वक़्त लगे.’’
यहां महिलाओं के लिए इंतज़ाम के सवाल पर परमजीत कहती हैं, ‘‘जो बाकियों ने बताया वो तो परेशानी सबको है. पुरुष भी दिन में नहीं नहा पाते हैं. हम लोग भी अगर अंधेरे में नहीं नहा पाए तो ठीक नहीं तो उस रोज बिना नहाए रहना पड़ता है. एक जगह हमने घेरकर शौचालय का इंतज़ाम किया है, लेकिन वहां भी बदबू आती है. यह सब हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कर रहे हैं. हमें उन्हें जमीन से बेदखल नहीं होने देना है. जब हम किसान इस कानून के पक्ष में नहीं तो सरकार जबरदस्ती क्यों हमपर थोप रही है. कोई न कोई तो कारण है जो वो इसको वापस नहीं ले रहे हैं. लेकिन आप हमारी बात उन तक पहुंचा दीजिए की जब तक कानून वापस नहीं होगा तब तक हम लोग भी वापस नहीं होंगे.’’
ऐसा नहीं है कि सिंघु बॉर्डर पर वॉशरूम का इंतज़ाम नहीं है लेकिन जितनी संख्या में वहां लोग मौजूद है उस हिसाब यह नाकाफी से भी कम है. वहीं दिल्ली सरकार द्वारा यहां सैकड़ों की संख्या में वॉशरूम जरूर भिजवाया गया है, लेकिन वह मुख्य प्रदर्शन स्थल से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली की तरफ है. जहां पहुंचने के लिए महिलाओं को दो बैरिकेड पार करना होगा. वहीं यहां सोनीपत की तरफ 10 किलोमीटर से ज़्यादा दूर तक आंदोलनकारियों के ट्रैक्टर हैं और लगभग हर जत्थे के साथ महिलाएं आई हैं.
बिहार चुनाव के नतीजे के वक़्त टेलीविजन मीडिया ने बार-बार कहा कि महिलाओं के बीच पीएम मोदी की लोकप्रियता अब भी बरकरार है. जब हमने इन महिलाओं से प्रधानमंत्री मोदी को लेकर सवाल किया तो मनजीत कौर कहती हैं, ‘‘मैंने तो कभी बीजेपी को वोट दिया नहीं और इस कानून को लेकर जो हमें संघर्ष करना पड़ा है उसके बाद तो कभी ना दूंगी.’’
कुछ ऐसा ही कहना हैं परमजीत कौर का. वह कहती हैं, ‘‘ये लोग हमारे लोगों के साथ ऐसा कर रहे हैं और हम इन्हें वोट देंगे. कभी नहीं.’’
आपको बता दें कि पंजाब में आजतक कभी बीजेपी अकेले सरकार नहीं बना पाई है. वहां अकाली दल के साथ ही बीजेपी सरकार का हिस्सा रही है. इस कृषि कानूनों के कारण अकाली दल और बीजेपी का सालों पुराना गठबंधन टूट गया है. मोदी सरकार से हरसिमत कौर बतौर मंत्री इस्तीफा दे चुकी है.
खट्टर सरकार ने हमारे साथ बहुत गलत किया…
महिलाओं को यहां पहुंचने के बाद कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इन्हें इससे ज्यादा दुःख हरियाणा सरकार के रवैये से हुआ है.
कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे ज्यादा प्रदर्शन पंजाब और हरियाणा के किसान कर रहे हैं. इन किसानों को देश के बाकी हिस्सों के किसानों का भी समर्थन मिल रहा है.
जब सितंबर में कानून आया तब से पंजाब के किसान अलग-अलग तरह से इस कानून की मुखालफत कर रहे हैं, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. थक-हारकर किसान 25-26 नवंबर को 'दिल्ली चलो' यात्रा पर निकल गए. पंजाब की सरकार ने इस यात्रा को एक तरह से समर्थन किया और पंजाब में कहीं भी किसानों को दिल्ली आने से रोका नहीं गया. यहां तक की पंजाब की कांग्रेस सरकार ने कई जगहों पर किसानों के लिए लंगर का इंतजाम तक किया था. लेकिन जैसे ही किसान हरियाणा में प्रवेश किए उन्हें किसी भी हाल में रोकने की कोशिश हरियाणा सरकार और पुलिस करते दिखी.
हरियाणा सरकार ने कहीं सड़कों पर बड़े-बड़े पत्थर रखवा दिए तो कहीं गड्ढा खोदवा दिया गया ताकि किसानों का जत्था आगे ना बढ़ सके. लेकिन किसान इन बैरिकेड को तोड़ते हुए आगे बढ़ते रहे. ऐसे में किसानों पर कई जगहों पर लाठीचार्ज और वॉटर कैनन के इस्तेमाल की तस्वीरें भी सामने आईं. कई किसान नेताओं पर एफ़आईआर भी दर्ज किए गए हैं.
यहां मौजूद महिलाएं बताती हैं कि हरियाणा सरकार ने हमारे साथ बहुत जुल्म किया. हमारे वीरों को ना सिर्फ मारा गया बल्कि सुबह-सुबह ठंड के मौसम में उनके ऊपर पानी फेंका गया. इस दौरान हमारे कई वीर घायल हो गए, लेकिन हमने जिद्द की थी कि दिल्ली पहुंचेंगे तो दिल्ली पहुंचे. खट्टर सरकार ने ठीक नहीं किया.
मनजीत कौर कहती हैं, ‘‘इस कानून से परेशानी तो देशभर के किसानों को होगी, सिर्फ पंजाब वालों को तो नहीं होगी न? अगर भंडारण की छूट मिल जाएगी तो इसका असर सिर्फ किसानों पर नहीं होगा बल्कि खरीदारों पर भी होगा. हरियाणा के किसान भी खूब हिस्सा ले रहे हैं, बावजूद खट्टर सरकार ने यह झूठ फैलाया कि इस आंदोलन में सिर्फ पंजाब के किसान हैं. हमें दिल्ली आने से रोकने के लिए सरकार हर तरह से दमखम लगा ली.’’
अब तक बातचीत बेनतीजा
27 नवंबर को किसान दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर पहुंच गए और रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया. उसी दिन टिकरी बॉर्डर पर भी किसानों ने आवाजाही को रोक दिया. उसके अगले दिन 28 नवंबर को दिल्ली-गाजियाबाद को जोड़ने वाले एनएच 9 के एक लेन को गाजीपुर के पास ब्लॉक कर दिया.
जो सरकार किसानों को किसी भी तरह दिल्ली में आने नहीं देना चाहती थी उसने आनन-फानन में दिल्ली के बुराड़ी स्थित निरंकारी ग्राउंड में किसानों को जमा होने की इजाजत दे दी. हालांकि किसानों ने यहां जाने से साफ़ इंकार कर दिया. इसके बाद सरकार की तरफ से 3 दिसंबर को बात करने का आश्वासन दिया गया. किसानों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए सरकार एक नवंबर को किसान नेताओं के साथ बैठक की थी. जिसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल शामिल रहे. लेकिन यह बैठक बेनतीजा रही है. उसके बाद दो और बैठके हुईं जो बेनतीजा ही रही हैं.
अगली बैठक 9 नवंबर तय थी, लेकिन उसके पहले आठ दिसंबर को किसान नेताओं ने भारत बंद का आह्वान किया. जिसका असर भी पड़ा और केंद्रीय गृहमंत्री ने अचानक से किसान नेताओं को मिलने के लिए बुला लिया. हालांकि उस बैठक में भी कुछ नहीं निकला. अमित शाह के साथ हुई बैठक बेनतीजा रही, लेकिन उसके तुरंत बाद खबर आई कि 9 नवंबर को मंत्रियों की किसान नेताओं के साथ बैठक रद्द हो गई है.
बुधवार भारत सरकार की तरफ से किसानों द्वारा उठाए गए सवालों पर प्रस्ताव भेजा है. यह प्रस्ताव कृषि कल्याण मंत्रालय के ज्वाइंट सेकेट्री विवेक अग्रवाल द्वारा किसान यूनियन के 40 नेताओं को भेजा गया. इसमें किसानों द्वारा उठाए गए कई आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की गई है. मसलन ज़्यादातर महिला किसानों ने जिस चिंता की तरफ ध्यान दिलाया कि उनकी जमीन छिन जाएगी और उनके बच्चे मज़दूर बन जाएगे. इसी शंका के जवाब में सरकार ने बताया है, ‘‘कृषि करार अधिनियम के अंतर्गत कृषि भूमि करार बिक्री, लीज तथा मॉर्गेज पर किसी प्रकार का करार नहीं हो सकता है. यह प्रावधान है कि किसान की भूमि पर किसी प्रकार की सरंचना का निर्माण नहीं किया जा सकता और यदि निर्माण किया जाता है तो उस करार की अवधि समाप्त होने पर फसल खरदीकर हटाएगा. यदि संरचना नहीं हटाई जाती तो उसकी मलिकियत किसान की होगी.’’
सरकार के प्रस्ताव आने के बाद योगेंद्र यादव ने ट्वीट करके बताया, ‘‘सरकार का प्रस्ताव मिला. वही प्रोपेगंडा, वही संशोधन के सुझाव. खोदा पहाड़ निकली चुहिया! किसान संगठनों ने एक स्वर से इन प्रस्तावों को खारिज किया.’’
किसान नेताओं ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके सरकार के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसान नेताओं ने कानून वापस नहीं होने तक आंदोलन को और मज़बूत और तेज करने की बात करते हुए बताया, ‘‘हम 12 दिसंबर को दिल्ली-जयपुर राजमार्ग रोकेंगे. 14 दिसंबर को देशभर में धरना-प्रदर्शन किया जाएगा. इसके साथ ही रिलायंस के सामानों का बहिष्कार भी किया जाएगा और सरकार के मंत्रियों का घेराव करेंगे.’’
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने प्रेस रिलीज जारी करके बताया, ‘‘किसानों की समस्या को हल करने के प्रति मोदी सरकार का रवैया गैर गम्भीर व हेकड़ी भरा है. सभी किसान संगठनों ने नए के रूप में दिये गये इस पुराने प्रस्ताव को नकार दिया. एआईकेएससीसी व सभी किसान संगठनों ने तीन खेती के कानून व बिजली बिल 2020 को रद्द करने की मांग दोहराई है. वहीं किसानों का विरोध जारी रहेगा. दिल्ली में किसानों की संख्या बढ़ेगी, सभी राज्यों में जिला स्तर पर धरने शुरू होंगे. मोदी सरकार की नीतियों का खुलासा करने के लिए ‘सरकारी की असली मजबूरी अडानी, अंबानी, जमाखोरी’ अभियान चलाएगी.’’
इसी बीच विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति से मिलकर तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की है.
शाम के करीब पांच बज रहे हैं. सिंघु बार्डर पर दोपहर की तुलना में शोरगुल बढ़ चुका है. दीवार पर कलाकारों ने 'समझौताहीन संघर्ष करते किसानों को सलाम' लिख दिया है. एक गाड़ी पर कुछ नौजवान गाना बजाते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ नारे लगाते हुए गुजरते हैं. मुख्य स्टेज से सौ मीटर आगे ट्रैक्टर के पीछे गोल चक्कर बनाकर कुछ महिलाएं छेमी से मटर निकालते और प्याज काटते नज़र आती हैं. यहां बैठी सभी महिलाएं किसान हैं और पंजाब के अलग-अलग जिलों से कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन में शामिल होने पहुंची हुई हैं.
बड़े से बर्तन में प्याज काट रही 60 वर्षीय बलविंदर कौर अमृतसर के झजनवाड़ी गांव से आई हुई हैं. अमृतसर से झजनवाड़ी की दूरी पूछने पर वह कहती हैं, 25 रुपया किराया लगता है उससे आप दूरी लगा लो. भले ही बलविंदर कौर को अपने गांव से अमृतसर शहर की दूरी का ख्याल न हो लेकिन केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में बनाए गए तीन कृषि कानूनों के बारे में वो किसी मंझे हुए नेता की तरह बात करती हैं.
कौर इन तीनों कृषि कानूनों को काला कानून बताते हुए कहती है, ‘‘जब तक इसे मोदी वापस नहीं लेगा तब तक हम यहां से जाएंगे नहीं. दिल्ली ने हमेशा से पंजाबियों को ठगा है, लेकिन इसबार हम नहीं ठगे जाएंगे. अबकी अपनी मांग मनवाकर जाएंगे, चाहे छह दिन लगे या छह महीने. वाहे गुरूजी की कृपा से यहां खाने की कमी तो नहीं होगी.’’
बात करते हुए ये महिलाएं अपने काम में जुटी रहती हैं. इसे यह ‘सेवा’ कहती हैं. बलविंदर कौर जब हमसे बात कर रही होती हैं तभी एक बुजुर्ग महिला नाराज़ होकर पंजाबी में हमें कुछ बताती हैं, जिसका अनुवाद वहां बैठी एक दूसरी महिला से हम कराते हैं. नाराज़ बुजुर्ग पीएम मोदी से खफा हैं और वो कहती हैं, ‘‘उससे जब हमने कानून मांगी ही नहीं तो बनाई क्यों? हमें नहीं चाहिए तो दे क्यों रहा है. बड़ा हमारा भलाई सोच रहा है. हमने उसे वोट दिया था, लेकिन उसने हमारे साथ सही नहीं किया. चुनाव में आता था तो कहता था, ये करूंगा, वो करूंगा. क्या किया?’’
इस बुजुर्ग महिला का नाम कृपाल कौर है. पंजाब के संगुर जिले से आई 70 वर्षीय कृपाल कौर 25 नवंबर को ही अपने जत्थे के लोगों के साथ दिल्ली के लिए निकली और तब से आंदोलन में ही हैं. आप बुजुर्ग हैं. ठंड दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है. ऐसे में आप घर क्यों नहीं लौट जाती हैं. इस सवाल के जवाब में कृपाल एक बार फिर नाराज़ होकर कहती हैं, ‘‘कानून वापस कराए बगैर नहीं जाएंगे. हमारे वीरों पर सरकार पानी फेंकवाई है, लठ्ठ मारी है. अब तो तभी जाएंगे जब कानून वापस होगा.’’
यहां पहुंचीं ज्यादातर महिलाएं 25 नवंबर को ही अपने घर से चली हुई हैं. अपने दिनचर्या के बारे में बताते हुए बलविंदर कौर बताती हैं, ‘‘हम सुबह-सुबह उठते है. फ्रेस होते हैं. उसके बाद सेवा (लंगर बनाने के इंतज़ाम) में जुट जाते हैं. लंगर बनाने और लोगों को खिलाते हुए हम लोग भी लंगर खाकर दो-तीन घंटे के लिए मंच के सामने बैठने चले जाते हैं. जहां लोग आकर भाषण देते हैं. चार बजे के करीब हम दोबारा सेवा के काम में लौट आते हैं. सब्जी के लिए सामान तैयार करते हैं. मिलकर बनाते हैं. जो भी यहां आता हैं उन्हें खिलाते हैं फिर खाना खाकर अपने-अपने ट्रैक्टर में सो जाते है. यह सिलसिला बीते 12 दिनों से जारी है.’’
नहाने और वॉशरूम की परेशानी लेकिन….
सिंघु बॉर्डर पर वैसे तो तमाम इंतजाम अलग-अलग संगठनों द्वारा किया गया हैं. कहीं टूथपेस्ट बांटा जा रहा है तो कहीं साबुन. कोई कंबल बांट रहा है तो कोई मच्छर भगाने वाली दवाई. खाने के लिए तो कदम-कदम पर लंगर लगे हुए हैं. सेनेट्रीपैड भी यहां महिलाओं के बीच बांटा जा रहा है, लेकिन महिलाओं को सबसे ज्यादा परेशानी नहाने और वॉशरूम जाने को लेकर हो रही है.
बलविंदर कौर बताती हैं, ‘‘आज उन्हें बिना नहाए रहना पड़ा क्योंकि यहां अंधेरे में ही नहा पाना मुमकिन है. दिन हो जाने पर नहाने में परेशानी होती है. आज मेरी नींद नहीं खुल पाई जिस कारण मैं नहा नहीं पाई. जहां तक नहीं वॉशरूम की बात उसकी भी तकलीफ हो रही है. हमने कपड़ों से घेरकर एक जगह बनाई हैं जहां हम वॉशरूम के लिए जाते हैं.''
बलविंदर हमें वो जगह भी दिखाती हैं. महिलाओं ने अपना अस्थायी वॉशरूम दिल्ली सोनीपत हाईवे के किनारे खाली पड़े एक प्लॉट में बनाया है.
इतनी परेशानी के बावजूद आप लोग इस ठंड में खुले आसमान के नीचे रहने को क्यों मजबूर हैं? इस सवाल के जवाब में बलविंदर कौर कहती हैं, ‘‘अगर आज हम कष्ट नहीं सहेंगे तो आने वाले समय में हमारे बच्चे मजदूर बन जाएंगे. हमारी जमीन चली जाएंगी. हमारे बच्चे मजदूर ना बन जाएं इसीलिए आज हम कष्ट सह रहे हैं.’’
बलविंदर कौर के परिवार में दो बेटे बहू और चार पोते हैं. उनका दूध का कारोबार है इसीलिए बच्चे नहीं आए, लेकिन बलविंदर कौर पहले दिन से ही आंदोलन में जुटी हुई हैं. बलविंदर के पास पांच किले जमीन है.
यहां मौजूद 40 वर्षीय मनजीत कौर पंजाब की पटियाला शहर की रहने वाली हैं. मनजीत का परिवार खेती पर ही निर्भर है. उनके पास तीन किले जमीन है. घर पर अपने पति और दो बच्चों को छोड़कर मनजीत आंदोलन में जुटी हुई हैं. वह कहती हैं, ‘‘25 तारीख को हम दिल्ली आए हैं, लेकिन उससे पहले दो महीने से अपने शहर में धरना दे रहे थे, प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन सरकार को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा था.’’
कृपाल कौर और बलविंदर कौर की तरह मनजीत का भी कहना है, ‘‘जब तक सरकार यह तीनों काले कानून वापस नहीं ले लेती तब तक हम लौटने वाले नहीं हैं. हम मोदी को छोड़ेंगे नहीं. सरकार एक ऐसा कानून लेकर आई है जिससे आने वाले समय में हमारी जमीन अडानी-अंबानी के पास चली जाएंगी और हमारे ही बच्चे अपने ही खेतों में मजदूर बन जाएंगे. यह सब कुछ हम अपने जीते जी नहीं होने देंगे. यह सरकार एमएसपी को भी खत्म करना चाहती है ताकि ओने पौने दामों में हमारी उपज को कोई भी खरीद ले और उसे महंगे दरों पर आम लोगों को बेच दे.’’
जब न्यूजलॉन्ड्री ने मनजीत से पूछा कि आपको यह सब जानकारी कहां से मिलती हैं तो वो बताती हैं, ‘‘मैं सोशल मीडिया पर हूं. वहां जो हमारे नेता लिखते हैं, बोलते हैं, मैं उसे सुनती हूं. टीवी पर बोलते हैं, वहां सुनती हूं. मैं आंदोलन में भी लगातार शामिल रही हूं तो नेताओं को सुन ही रहे हैं.’’
52 वर्षीय परमजीत कौर और उनके पति पटियाला से इस किसान आंदोलन में शामिल होने आए हैं. दो किले में खेती करने वाली परमजीत इससे पहले दिल्ली गुरुद्वारे में दर्शन के लिए आई थीं. वो मुस्कुराते हुए कहती हैं, ‘‘आप देख रहे हैं इस हाईवे को हमने पंजाब बना दिया है. जिधर से गुजरिए कोई ना कोई आपको लंगर में खाने के लिए पूछ ही देगा. अगर मोदी सरकार नहीं मानी तो हम दिल्ली को भी पंजाब बनाकर जाएंगे. हम किसान हैं और अपना हक़ मांगने आए हैं. जब तक हक़ नहीं मिलता हम लौटकर जाने वाले नहीं हैं. जितना भी वक़्त लगे.’’
यहां महिलाओं के लिए इंतज़ाम के सवाल पर परमजीत कहती हैं, ‘‘जो बाकियों ने बताया वो तो परेशानी सबको है. पुरुष भी दिन में नहीं नहा पाते हैं. हम लोग भी अगर अंधेरे में नहीं नहा पाए तो ठीक नहीं तो उस रोज बिना नहाए रहना पड़ता है. एक जगह हमने घेरकर शौचालय का इंतज़ाम किया है, लेकिन वहां भी बदबू आती है. यह सब हम अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए कर रहे हैं. हमें उन्हें जमीन से बेदखल नहीं होने देना है. जब हम किसान इस कानून के पक्ष में नहीं तो सरकार जबरदस्ती क्यों हमपर थोप रही है. कोई न कोई तो कारण है जो वो इसको वापस नहीं ले रहे हैं. लेकिन आप हमारी बात उन तक पहुंचा दीजिए की जब तक कानून वापस नहीं होगा तब तक हम लोग भी वापस नहीं होंगे.’’
ऐसा नहीं है कि सिंघु बॉर्डर पर वॉशरूम का इंतज़ाम नहीं है लेकिन जितनी संख्या में वहां लोग मौजूद है उस हिसाब यह नाकाफी से भी कम है. वहीं दिल्ली सरकार द्वारा यहां सैकड़ों की संख्या में वॉशरूम जरूर भिजवाया गया है, लेकिन वह मुख्य प्रदर्शन स्थल से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली की तरफ है. जहां पहुंचने के लिए महिलाओं को दो बैरिकेड पार करना होगा. वहीं यहां सोनीपत की तरफ 10 किलोमीटर से ज़्यादा दूर तक आंदोलनकारियों के ट्रैक्टर हैं और लगभग हर जत्थे के साथ महिलाएं आई हैं.
बिहार चुनाव के नतीजे के वक़्त टेलीविजन मीडिया ने बार-बार कहा कि महिलाओं के बीच पीएम मोदी की लोकप्रियता अब भी बरकरार है. जब हमने इन महिलाओं से प्रधानमंत्री मोदी को लेकर सवाल किया तो मनजीत कौर कहती हैं, ‘‘मैंने तो कभी बीजेपी को वोट दिया नहीं और इस कानून को लेकर जो हमें संघर्ष करना पड़ा है उसके बाद तो कभी ना दूंगी.’’
कुछ ऐसा ही कहना हैं परमजीत कौर का. वह कहती हैं, ‘‘ये लोग हमारे लोगों के साथ ऐसा कर रहे हैं और हम इन्हें वोट देंगे. कभी नहीं.’’
आपको बता दें कि पंजाब में आजतक कभी बीजेपी अकेले सरकार नहीं बना पाई है. वहां अकाली दल के साथ ही बीजेपी सरकार का हिस्सा रही है. इस कृषि कानूनों के कारण अकाली दल और बीजेपी का सालों पुराना गठबंधन टूट गया है. मोदी सरकार से हरसिमत कौर बतौर मंत्री इस्तीफा दे चुकी है.
खट्टर सरकार ने हमारे साथ बहुत गलत किया…
महिलाओं को यहां पहुंचने के बाद कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है, लेकिन इन्हें इससे ज्यादा दुःख हरियाणा सरकार के रवैये से हुआ है.
कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे ज्यादा प्रदर्शन पंजाब और हरियाणा के किसान कर रहे हैं. इन किसानों को देश के बाकी हिस्सों के किसानों का भी समर्थन मिल रहा है.
जब सितंबर में कानून आया तब से पंजाब के किसान अलग-अलग तरह से इस कानून की मुखालफत कर रहे हैं, लेकिन सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. थक-हारकर किसान 25-26 नवंबर को 'दिल्ली चलो' यात्रा पर निकल गए. पंजाब की सरकार ने इस यात्रा को एक तरह से समर्थन किया और पंजाब में कहीं भी किसानों को दिल्ली आने से रोका नहीं गया. यहां तक की पंजाब की कांग्रेस सरकार ने कई जगहों पर किसानों के लिए लंगर का इंतजाम तक किया था. लेकिन जैसे ही किसान हरियाणा में प्रवेश किए उन्हें किसी भी हाल में रोकने की कोशिश हरियाणा सरकार और पुलिस करते दिखी.
हरियाणा सरकार ने कहीं सड़कों पर बड़े-बड़े पत्थर रखवा दिए तो कहीं गड्ढा खोदवा दिया गया ताकि किसानों का जत्था आगे ना बढ़ सके. लेकिन किसान इन बैरिकेड को तोड़ते हुए आगे बढ़ते रहे. ऐसे में किसानों पर कई जगहों पर लाठीचार्ज और वॉटर कैनन के इस्तेमाल की तस्वीरें भी सामने आईं. कई किसान नेताओं पर एफ़आईआर भी दर्ज किए गए हैं.
यहां मौजूद महिलाएं बताती हैं कि हरियाणा सरकार ने हमारे साथ बहुत जुल्म किया. हमारे वीरों को ना सिर्फ मारा गया बल्कि सुबह-सुबह ठंड के मौसम में उनके ऊपर पानी फेंका गया. इस दौरान हमारे कई वीर घायल हो गए, लेकिन हमने जिद्द की थी कि दिल्ली पहुंचेंगे तो दिल्ली पहुंचे. खट्टर सरकार ने ठीक नहीं किया.
मनजीत कौर कहती हैं, ‘‘इस कानून से परेशानी तो देशभर के किसानों को होगी, सिर्फ पंजाब वालों को तो नहीं होगी न? अगर भंडारण की छूट मिल जाएगी तो इसका असर सिर्फ किसानों पर नहीं होगा बल्कि खरीदारों पर भी होगा. हरियाणा के किसान भी खूब हिस्सा ले रहे हैं, बावजूद खट्टर सरकार ने यह झूठ फैलाया कि इस आंदोलन में सिर्फ पंजाब के किसान हैं. हमें दिल्ली आने से रोकने के लिए सरकार हर तरह से दमखम लगा ली.’’
अब तक बातचीत बेनतीजा
27 नवंबर को किसान दिल्ली-हरियाणा के सिंघु बॉर्डर पर पहुंच गए और रास्ता पूरी तरह से बंद कर दिया. उसी दिन टिकरी बॉर्डर पर भी किसानों ने आवाजाही को रोक दिया. उसके अगले दिन 28 नवंबर को दिल्ली-गाजियाबाद को जोड़ने वाले एनएच 9 के एक लेन को गाजीपुर के पास ब्लॉक कर दिया.
जो सरकार किसानों को किसी भी तरह दिल्ली में आने नहीं देना चाहती थी उसने आनन-फानन में दिल्ली के बुराड़ी स्थित निरंकारी ग्राउंड में किसानों को जमा होने की इजाजत दे दी. हालांकि किसानों ने यहां जाने से साफ़ इंकार कर दिया. इसके बाद सरकार की तरफ से 3 दिसंबर को बात करने का आश्वासन दिया गया. किसानों के बढ़ते आक्रोश को देखते हुए सरकार एक नवंबर को किसान नेताओं के साथ बैठक की थी. जिसमें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर और पीयूष गोयल शामिल रहे. लेकिन यह बैठक बेनतीजा रही है. उसके बाद दो और बैठके हुईं जो बेनतीजा ही रही हैं.
अगली बैठक 9 नवंबर तय थी, लेकिन उसके पहले आठ दिसंबर को किसान नेताओं ने भारत बंद का आह्वान किया. जिसका असर भी पड़ा और केंद्रीय गृहमंत्री ने अचानक से किसान नेताओं को मिलने के लिए बुला लिया. हालांकि उस बैठक में भी कुछ नहीं निकला. अमित शाह के साथ हुई बैठक बेनतीजा रही, लेकिन उसके तुरंत बाद खबर आई कि 9 नवंबर को मंत्रियों की किसान नेताओं के साथ बैठक रद्द हो गई है.
बुधवार भारत सरकार की तरफ से किसानों द्वारा उठाए गए सवालों पर प्रस्ताव भेजा है. यह प्रस्ताव कृषि कल्याण मंत्रालय के ज्वाइंट सेकेट्री विवेक अग्रवाल द्वारा किसान यूनियन के 40 नेताओं को भेजा गया. इसमें किसानों द्वारा उठाए गए कई आशंकाओं को दूर करने की कोशिश की गई है. मसलन ज़्यादातर महिला किसानों ने जिस चिंता की तरफ ध्यान दिलाया कि उनकी जमीन छिन जाएगी और उनके बच्चे मज़दूर बन जाएगे. इसी शंका के जवाब में सरकार ने बताया है, ‘‘कृषि करार अधिनियम के अंतर्गत कृषि भूमि करार बिक्री, लीज तथा मॉर्गेज पर किसी प्रकार का करार नहीं हो सकता है. यह प्रावधान है कि किसान की भूमि पर किसी प्रकार की सरंचना का निर्माण नहीं किया जा सकता और यदि निर्माण किया जाता है तो उस करार की अवधि समाप्त होने पर फसल खरदीकर हटाएगा. यदि संरचना नहीं हटाई जाती तो उसकी मलिकियत किसान की होगी.’’
सरकार के प्रस्ताव आने के बाद योगेंद्र यादव ने ट्वीट करके बताया, ‘‘सरकार का प्रस्ताव मिला. वही प्रोपेगंडा, वही संशोधन के सुझाव. खोदा पहाड़ निकली चुहिया! किसान संगठनों ने एक स्वर से इन प्रस्तावों को खारिज किया.’’
किसान नेताओं ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस करके सरकार के प्रस्ताव को ख़ारिज कर दिया. प्रेस कॉन्फ्रेंस में किसान नेताओं ने कानून वापस नहीं होने तक आंदोलन को और मज़बूत और तेज करने की बात करते हुए बताया, ‘‘हम 12 दिसंबर को दिल्ली-जयपुर राजमार्ग रोकेंगे. 14 दिसंबर को देशभर में धरना-प्रदर्शन किया जाएगा. इसके साथ ही रिलायंस के सामानों का बहिष्कार भी किया जाएगा और सरकार के मंत्रियों का घेराव करेंगे.’’
अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने प्रेस रिलीज जारी करके बताया, ‘‘किसानों की समस्या को हल करने के प्रति मोदी सरकार का रवैया गैर गम्भीर व हेकड़ी भरा है. सभी किसान संगठनों ने नए के रूप में दिये गये इस पुराने प्रस्ताव को नकार दिया. एआईकेएससीसी व सभी किसान संगठनों ने तीन खेती के कानून व बिजली बिल 2020 को रद्द करने की मांग दोहराई है. वहीं किसानों का विरोध जारी रहेगा. दिल्ली में किसानों की संख्या बढ़ेगी, सभी राज्यों में जिला स्तर पर धरने शुरू होंगे. मोदी सरकार की नीतियों का खुलासा करने के लिए ‘सरकारी की असली मजबूरी अडानी, अंबानी, जमाखोरी’ अभियान चलाएगी.’’
इसी बीच विपक्षी दलों के नेताओं ने राष्ट्रपति से मिलकर तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग की है.
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