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#GhazipurBorder: क्यों वीएम सिंह को किसान बता रहे हैं धोखेबाज

27 जनवरी को राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के प्रमुख सरदार वीएम सिंह ने केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन से खुद को अलग करने की घोषणा कर दी.

26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर हुई घटना से खुद को आहत बताकर उन्होंने आंदोलन से अलग होने की घोषणा की. इस मौके पर मीडिया से सिंह ने कहा था, ‘‘इस रूप से आंदोलन नहीं चलेगा. हम यहां पर शहीद कराने, लोगों को पिटवाने, या देश को बदनाम करने नहीं आए थे. हम तो इसलिए आए थे ताकि धान का पूरा रेट मिले, गन्ने का दाम मिले, एमएसपी मिले.’’

वीएम सिंह अपने समर्थकों के साथ दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा गाजीपुर में बैठे हुए थे. हालांकि जो किसान संगठन और नेता लगातार इस मसले पर सरकार से बात कर रहे थे उसमें वीएम सिंह शामिल नहीं थे. आंदोलन के शुरुआती समय में ही संयुक्त किसान मोर्चा ने उनसे किनारा कर लिया था.

दरअसल जब गृहमंत्री अमित शाह ने प्रदर्शनकारी किसानों को बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड में आकर बैठने के बाद ही बात करने की शर्त रखी तो वीएम सिंह ना सिर्फ वहां जाने के लिए तैयार थे बल्कि अपने कुछ समर्थकों के साथ वहां पहुंच भी गए थे. तब उन पर आंदोलन को कमज़ोर करने का आरोप लगा था और संयुक्त किसान मोर्चा से उन्हें अलग कर दिया गया था.

सिंह के संयुक्त किसान मोर्चा से अलग करने की जानकारी न्यूजलॉन्ड्री को किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने दी थी. इसी दौरान सिंह को ऑल इंडिया किसान संघर्ष कमेटी (एआईकेएससीसी) से भी अलग कर दिया गया था. एआईकेएससीसी मेधा पाटकर और योगेंद्र यादव समेत देश के कई जाने माने सामाजिक कार्यकर्ताओं का संगठन है जो किसानों के मुद्दों पर आंदोलन करता रहता है.

सिंह के किसान आंदोलन के अलग होने से आंदोलन पर कितना फर्क पड़ा यह जानने के लिए गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने न्यूजलॉन्ड्री ने बात की.

‘सिंह ने किसानों को धोखा दिया’

27 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर भारी पुलिस फोर्स की तैनाती और राकेश टिकैत को हटाने की उत्तर प्रदेश पुलिस की कवायद के बाद वहां काफी नाटकीय स्थिति पैदा हो गई. किसान नेता राकेश टिकैत भावुक होकर धरने पर फिर से बैठ गए. तब तक कहा जा रहा था कि गाजीपुर बॉर्डर से बड़ी संख्या में किसान लौट गए हैं. लेकिन राकेश टिकैत की भावुक अपील के बाद वहां माहौल गर्म हो गया. रात को वहां का तापमान 10 डिग्री था. स्टेज के पास राकेश टिकैत ज़िंदाबाद के नारे गूंज रहे थे. स्टेज के पीछे पांच सौ मीटर की दूरी पर लखीमपुर खीरी और पीलीभीत से आए कई किसान लकड़ी जलाकर आग ताप रहे थे. यह इलाका वीएम सिंह का प्रभाव वाला इलाक़ा है. पीलीभीत के रहने वाले सिंह यहां से एक दफा विधायक भी रह चुके हैं. सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता मेनका गांधी के चचेरे भाई हैं. रिश्ते में वरुण गांधी के मामा लगते हैं.

यहां हमारी मुलाकात लखीमपुर खीरी के रहने वाले बुजुर्ग जगजीत सिंह से हुई. वीएम सिंह का नाम सुनते हुए वो बिफर पड़े, ‘‘वीएम सिंह कोई नेता नहीं है. उसने किसानों के लिए कुछ नहीं किया है. उसको 20 साल से मैं जानता हूं. उसके साथ अगर कुछ लोग गए भी हैं तो 10-20 लोग गए होंगे. उसके जाने से आंदोलन का ना कुछ बिगड़ा है और ना ही यहां रहकर वो कुछ बना रहा था.’’

हमने जगजीत सिंह से पूछा कि क्या वो किसी संगठन के सदस्य हैं तो उन्होंने बताया, ‘‘नहीं, हम यहां अपनी किसानी को बचाने के लिए आए हैं. वीएम सिंह ने आंदोलन से गद्दारी की है.’’

हालांकि वीएम सिंह के आंदोलन से अलग होने के बाद यहां लोगों की संख्या में कमी आई है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. जिस जगह पर हज़ारों लोग नज़र आते थे वहां लोगों की संख्या अब बेहद कम हो गई थी. इस सवाल के जवाब में शाहजहांपुर जिले से आए नरेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के बाद लोग यहां से चले गए थे. लेकिन आज जो कुछ भी हुआ उसके बाद लोग फिर से आने लगे हैं. अभी आप देखिए लोगों की संख्या बढ़ गई है. कल सुबह तक यहां हज़ारों लोग होंगे.’’

वीएम सिंह को लेकर नरेंद्र कहते हैं, ‘‘उनके जाने से ज़्यादा असर नहीं है, फ़िलहाल हमें पता चल गया है कि कौन-कौन अपने फायदे के लिए यहां बैठा था. हम मान रहे थे कि जब किसानों पर दिक्कत आएगी तो नेता लोग संभाल लेंगे, लेकिन हमें तब छोड़ा गया जब हमें उनकी ज़रूरत थी. जब कुछ शरारती तत्वों ने किसान आंदोलन को खराब करने की कोशिश की तो उन्होंने हमारा साथ छोड़ दिया. हम उनको नेता नहीं मानते.’’

लखीमपुर खीरी के रहने वाले हरिभगवान शर्मा भी वीएम सिंह के इस फैसले से नाराज़ दिखे. वे कहते हैं, ‘‘हमारे इलाके में उनका प्रभाव थोड़ा बहुत था, लेकिन जब उन्होंने ऐसी गद्दारी की तो लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है. बीते डेढ़ महीने से वो यही कह रहे थे कि मैं संयोजक था, पंजाब वाले मेरे बाद में आए. इनकी ऐसी ही हरकतों से इन्हें अलग कर दिया गया था. इन्हें किसी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता था. ये तो बस ऐसे ही आते थे. आते थे और थोड़ी देर बैठे और चले जाते थे. कभी यहां के स्टेज पर इन्हें चढ़ने नहीं दिया गया. इनके रवैये के कारण ऐसा हुआ था. वे पहले भी वापस जाने की बात किया करते थे. ये शुरू से आंदोलन को कमजोर ही कर रहे थे.’’

गाजीपुर बॉर्डर पर लोगों की संख्या कम होने के सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘26 जनवरी को काफी संख्या में किसान आए थे. अब किसानों के पास और भी काम है. हमें खेती भी करनी है. गन्ना भी काटना और और दोबारा से बोना भी है. गेहूं को भी पालना है. सभी किसान आकर यहां बैठ नहीं सकते न.’’

आगे कभी वीएम सिंह किसानों को कभी किसी आंदोलन के लिए बुलाते हैं तो क्या आप उनका समर्थन करेंगे इस सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘जी नहीं, बिलकुल नहीं करेंगे. वो सिख बिरादरी से भी अलग हो जाएंगे और किसान बिरादरी से भी. जो ऐसे आंदोलनों को छोड़कर जाता हैं उसे गद्दार कहा जाता है. वो हमारे किसान बिरादरी का गद्दार है जिसने ऐसे मौके पर जब चरम सीमा पर हमारा संघर्ष पहुंचा हुआ था वहां से छोड़कर चला गया.’’

पीलीभीत से आए रोहन सिंह भी इसी तरह की राय रखते हैं, ‘‘लाल किला पर जो कुछ हुआ उसमें हमारी क्या गलती थी. राकेश टिकैत तो लोगों को रोकने की कोशिश कर ही रहे थे, लेकिन उस रोज वीएम सिंह तो नज़र नहीं आए. जब भीड़ तय रास्ते से अलग निकली तो क्या सिंह ने रोकने की कोशिश की. नहीं. मुझे तो वो कहीं भी नहीं दिखे.’’

आंदोलन से अलग होने की घोषणा करते हुए वीएम सिंह ने राकेश टिकैत पर आरोप लगाया था. लेकिन 26 जनवरी को टिकैत दिल्ली की तरफ बढ़ने वाले प्रदर्शनकारियों को रोकने की हर कोशिश की थी. यहां तक की दिल्ली की तरफ जा रहे कई प्रदर्शनकारियों को उन्होंने डंडा भी मारा था.

Also Read: #GhazipurBorder: कैसे एक घंटे के अंदर बदल गई आंदोलन की सूरत

Also Read: राकेश टिकैत के आसुंओं ने किसान आंदोलन में फिर फूंकी जान

27 जनवरी को राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के प्रमुख सरदार वीएम सिंह ने केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन कृषि कानूनों के खिलाफ चल रहे आंदोलन से खुद को अलग करने की घोषणा कर दी.

26 जनवरी को ट्रैक्टर परेड के दौरान लाल किले पर हुई घटना से खुद को आहत बताकर उन्होंने आंदोलन से अलग होने की घोषणा की. इस मौके पर मीडिया से सिंह ने कहा था, ‘‘इस रूप से आंदोलन नहीं चलेगा. हम यहां पर शहीद कराने, लोगों को पिटवाने, या देश को बदनाम करने नहीं आए थे. हम तो इसलिए आए थे ताकि धान का पूरा रेट मिले, गन्ने का दाम मिले, एमएसपी मिले.’’

वीएम सिंह अपने समर्थकों के साथ दिल्ली-उत्तर प्रदेश की सीमा गाजीपुर में बैठे हुए थे. हालांकि जो किसान संगठन और नेता लगातार इस मसले पर सरकार से बात कर रहे थे उसमें वीएम सिंह शामिल नहीं थे. आंदोलन के शुरुआती समय में ही संयुक्त किसान मोर्चा ने उनसे किनारा कर लिया था.

दरअसल जब गृहमंत्री अमित शाह ने प्रदर्शनकारी किसानों को बुराड़ी के निरंकारी ग्राउंड में आकर बैठने के बाद ही बात करने की शर्त रखी तो वीएम सिंह ना सिर्फ वहां जाने के लिए तैयार थे बल्कि अपने कुछ समर्थकों के साथ वहां पहुंच भी गए थे. तब उन पर आंदोलन को कमज़ोर करने का आरोप लगा था और संयुक्त किसान मोर्चा से उन्हें अलग कर दिया गया था.

सिंह के संयुक्त किसान मोर्चा से अलग करने की जानकारी न्यूजलॉन्ड्री को किसान नेता बलवीर सिंह राजेवाल ने दी थी. इसी दौरान सिंह को ऑल इंडिया किसान संघर्ष कमेटी (एआईकेएससीसी) से भी अलग कर दिया गया था. एआईकेएससीसी मेधा पाटकर और योगेंद्र यादव समेत देश के कई जाने माने सामाजिक कार्यकर्ताओं का संगठन है जो किसानों के मुद्दों पर आंदोलन करता रहता है.

सिंह के किसान आंदोलन के अलग होने से आंदोलन पर कितना फर्क पड़ा यह जानने के लिए गाजीपुर बॉर्डर पर मौजूद किसानों ने न्यूजलॉन्ड्री ने बात की.

‘सिंह ने किसानों को धोखा दिया’

27 जनवरी को गाजीपुर बॉर्डर पर भारी पुलिस फोर्स की तैनाती और राकेश टिकैत को हटाने की उत्तर प्रदेश पुलिस की कवायद के बाद वहां काफी नाटकीय स्थिति पैदा हो गई. किसान नेता राकेश टिकैत भावुक होकर धरने पर फिर से बैठ गए. तब तक कहा जा रहा था कि गाजीपुर बॉर्डर से बड़ी संख्या में किसान लौट गए हैं. लेकिन राकेश टिकैत की भावुक अपील के बाद वहां माहौल गर्म हो गया. रात को वहां का तापमान 10 डिग्री था. स्टेज के पास राकेश टिकैत ज़िंदाबाद के नारे गूंज रहे थे. स्टेज के पीछे पांच सौ मीटर की दूरी पर लखीमपुर खीरी और पीलीभीत से आए कई किसान लकड़ी जलाकर आग ताप रहे थे. यह इलाका वीएम सिंह का प्रभाव वाला इलाक़ा है. पीलीभीत के रहने वाले सिंह यहां से एक दफा विधायक भी रह चुके हैं. सिंह पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता मेनका गांधी के चचेरे भाई हैं. रिश्ते में वरुण गांधी के मामा लगते हैं.

यहां हमारी मुलाकात लखीमपुर खीरी के रहने वाले बुजुर्ग जगजीत सिंह से हुई. वीएम सिंह का नाम सुनते हुए वो बिफर पड़े, ‘‘वीएम सिंह कोई नेता नहीं है. उसने किसानों के लिए कुछ नहीं किया है. उसको 20 साल से मैं जानता हूं. उसके साथ अगर कुछ लोग गए भी हैं तो 10-20 लोग गए होंगे. उसके जाने से आंदोलन का ना कुछ बिगड़ा है और ना ही यहां रहकर वो कुछ बना रहा था.’’

हमने जगजीत सिंह से पूछा कि क्या वो किसी संगठन के सदस्य हैं तो उन्होंने बताया, ‘‘नहीं, हम यहां अपनी किसानी को बचाने के लिए आए हैं. वीएम सिंह ने आंदोलन से गद्दारी की है.’’

हालांकि वीएम सिंह के आंदोलन से अलग होने के बाद यहां लोगों की संख्या में कमी आई है. इससे इनकार नहीं किया जा सकता. जिस जगह पर हज़ारों लोग नज़र आते थे वहां लोगों की संख्या अब बेहद कम हो गई थी. इस सवाल के जवाब में शाहजहांपुर जिले से आए नरेंद्र सिंह कहते हैं, ‘‘26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड के बाद लोग यहां से चले गए थे. लेकिन आज जो कुछ भी हुआ उसके बाद लोग फिर से आने लगे हैं. अभी आप देखिए लोगों की संख्या बढ़ गई है. कल सुबह तक यहां हज़ारों लोग होंगे.’’

वीएम सिंह को लेकर नरेंद्र कहते हैं, ‘‘उनके जाने से ज़्यादा असर नहीं है, फ़िलहाल हमें पता चल गया है कि कौन-कौन अपने फायदे के लिए यहां बैठा था. हम मान रहे थे कि जब किसानों पर दिक्कत आएगी तो नेता लोग संभाल लेंगे, लेकिन हमें तब छोड़ा गया जब हमें उनकी ज़रूरत थी. जब कुछ शरारती तत्वों ने किसान आंदोलन को खराब करने की कोशिश की तो उन्होंने हमारा साथ छोड़ दिया. हम उनको नेता नहीं मानते.’’

लखीमपुर खीरी के रहने वाले हरिभगवान शर्मा भी वीएम सिंह के इस फैसले से नाराज़ दिखे. वे कहते हैं, ‘‘हमारे इलाके में उनका प्रभाव थोड़ा बहुत था, लेकिन जब उन्होंने ऐसी गद्दारी की तो लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया है. बीते डेढ़ महीने से वो यही कह रहे थे कि मैं संयोजक था, पंजाब वाले मेरे बाद में आए. इनकी ऐसी ही हरकतों से इन्हें अलग कर दिया गया था. इन्हें किसी मीटिंग में नहीं बुलाया जाता था. ये तो बस ऐसे ही आते थे. आते थे और थोड़ी देर बैठे और चले जाते थे. कभी यहां के स्टेज पर इन्हें चढ़ने नहीं दिया गया. इनके रवैये के कारण ऐसा हुआ था. वे पहले भी वापस जाने की बात किया करते थे. ये शुरू से आंदोलन को कमजोर ही कर रहे थे.’’

गाजीपुर बॉर्डर पर लोगों की संख्या कम होने के सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘26 जनवरी को काफी संख्या में किसान आए थे. अब किसानों के पास और भी काम है. हमें खेती भी करनी है. गन्ना भी काटना और और दोबारा से बोना भी है. गेहूं को भी पालना है. सभी किसान आकर यहां बैठ नहीं सकते न.’’

आगे कभी वीएम सिंह किसानों को कभी किसी आंदोलन के लिए बुलाते हैं तो क्या आप उनका समर्थन करेंगे इस सवाल पर शर्मा कहते हैं, ‘‘जी नहीं, बिलकुल नहीं करेंगे. वो सिख बिरादरी से भी अलग हो जाएंगे और किसान बिरादरी से भी. जो ऐसे आंदोलनों को छोड़कर जाता हैं उसे गद्दार कहा जाता है. वो हमारे किसान बिरादरी का गद्दार है जिसने ऐसे मौके पर जब चरम सीमा पर हमारा संघर्ष पहुंचा हुआ था वहां से छोड़कर चला गया.’’

पीलीभीत से आए रोहन सिंह भी इसी तरह की राय रखते हैं, ‘‘लाल किला पर जो कुछ हुआ उसमें हमारी क्या गलती थी. राकेश टिकैत तो लोगों को रोकने की कोशिश कर ही रहे थे, लेकिन उस रोज वीएम सिंह तो नज़र नहीं आए. जब भीड़ तय रास्ते से अलग निकली तो क्या सिंह ने रोकने की कोशिश की. नहीं. मुझे तो वो कहीं भी नहीं दिखे.’’

आंदोलन से अलग होने की घोषणा करते हुए वीएम सिंह ने राकेश टिकैत पर आरोप लगाया था. लेकिन 26 जनवरी को टिकैत दिल्ली की तरफ बढ़ने वाले प्रदर्शनकारियों को रोकने की हर कोशिश की थी. यहां तक की दिल्ली की तरफ जा रहे कई प्रदर्शनकारियों को उन्होंने डंडा भी मारा था.

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