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टिकरी बॉर्डर: हरियाणा सरकार ने इंटरनेट के साथ-साथ बिजली, पानी और गैस पर भी लगाई रोक

शाम के सात बज रहे हैं. पंजाब से आए चार किसान अपने टेंट में रोटी पका रहे हैं. चारों तरफ अंधेरा है. हाथ में मोबाइल से लाइट जलाकर रोटी पलटते हुए भटिंडा के रहने वाले जसमिन्दर सिंह कहते हैं, 'देख रहे हो भाई जी, 26 के बाद से बिजली भी काट दी है. पर हम तो किसान हैं, रातभर अंधेरे में खेतों में पानी देने की आदत है. देखते हैं ये सरकार हमें किस हद तक परेशान करती है, उसे पता नहीं कि हम इन काले कानूनों को वापस कराए बगैर नहीं जाएंगे."

26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पर जो कुछ हुआ उसके बाद से हरियाणा सरकार किसानों को परेशान करने की हर कोशिश करती नजर आ रही है. किसानों के दावे के मुताबिक पहले यहां की बिजली काट दी गई, फिर पानी पर रोक लगा दी, गैस भरने वाले को साफ शब्दों में मना कर दिया गया कि हमें गैस न दे. अब इंटरनेट पर रोक लगा दी गई है.

लाइट कट होने के बाद टिकरी बॉर्डर पर छाया अंधेरा

इंटरनेट नहीं होने से परेशान किसान आंदोलन के दौरान अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए बनाई गई सोशल मीडिया टीम से जुड़े अनूप सिंह कहते हैं, "मीडिया का एक बड़ा हिस्सा हमारी खबरें तो दिखाता नहीं इसलिए हमने अपना एक पूरा सिस्टम बना लिया था. किसान आंदोलन से जुड़ी जानकारी हम गांव-गांव तक पहुंचा रहे थे. हालांकि अब परेशानी हो रही है. इंटरनेट चल नहीं रहा है. हम तो दिल्ली वाले इलाके में जाकर भेज भी दें लेकिन हरियाणा में तो किसी भी जिले में नहीं चल रहा है. सरकार सोचती है कि ऐसा करके वो आंदोलन को रोक देगी, मुझे लगता है आंदोलन इससे और बढ़ेगा."

इंटरनेट बन्द होने से सबसे ज़्यादा परेशानी युवाओं को हो रही है. पंजाब के मुक्तसर जिले से आए 32 वर्षीय रंजीत सिंह बताते हैं, "टीवी पर दिखाया जा रहा है कि किसानों पर हमले हो रहे हैं. पुलिस गिरफ्तार कर रही है. एफआईआर दर्ज हो रहा है. इससे घर वाले डरे हुए हैं. इंटरनेट नहीं होने के कारण हम उन्हें आंदोलन की सही तस्वीर नहीं दिखा पा रहे हैं. वीडियो कॉल करके ही हम उन्हें असली तस्वीर दिखा सकते हैं."

हरियाणा आंदोलन में था और रहेगा

एक तरफ जहां हरियाणा सरकार किसान आंदोलन में आए लोगों को ज़रूरी सुविधाएं न देकर आंदोलन को कमजोर करने को कोशिश कर रही है दूसरी तरफ टिकरी बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा है. 26 जनवरी की घटना के बाद खबर ये उड़ी कि हरियाणा के किसान लौट रहे हैं लेकिन इसके विपरीत 29 जनवरी को करीब 2 हज़ार ट्रैक्टर के साथ दलाल खाप के लोगों ने तिरंगा रैली निकालकर यह बताने की कोशिश की कि हरियाणा आंदोलन से अलग नहीं हुआ है.

दलाल खाप से जुड़े प्रदीप दलाल, यूट्यूबर हैं. इस आंदोलन में खुद भी हिस्सा ले रहे हैं और साथ ही आंदोलन की खबरें लोगों तक पहुंचा रहे हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ''ये कोरी अफवाह था कि हरियाणा आंदोलन से अलग हो गया है. राकेश टिकैत जी के आंसू से तो हरियाणा में इतना असर पड़ा है कि हर रोज हज़ारों की संख्या में ट्रैक्टर यहां आ रहे हैं. सरकार डर से इंटरनेट बंद की हुई है ताकि लोगों तो टिकैत साहब की वीडियो न पहुंचे. हरियाणा पीछे तब तक नहीं हटेगा जब तक कानून वापस नहीं होता. आपने मिस कर दिया. इस तिरंगा रैली में सबसे पहले एक दस साल की लड़की ट्रैक्टर चलाकर गई है."

यहीं हमें एक आवाज़ सुनाई पड़ती है. हरी सब्जी ले लो, ताजी सब्जी ले लो. देखने पर पता चलता है कि हरियाणा के रोहतक जिले से कुछ नौजवान हर दूसरे दिन ऐसे ही ट्रैक्टर में हरी सब्जियां भरकर यहां रह रहे किसानों के लिए लेकर आते हैं. कुछ लोग है जो किसानों के लिए दही, दूध और लस्सी लाते हैं.

यहां सब्जी लेने की घोषणा कर रहे दीपक अहलावत कहते हैं, "हम लोग अहलावत खाफ से जुड़े हुए हैं. रोहतक जिले में हमारा गांव है. गांव वाले अपनी हैसियत से मदद करते हैं. उसी से हरी सब्जी खरीदकर हम किसान भाइयों के लिए लेकर आते हैं. यह सिलसिला किसानों के आने के साथ ही शुरू हुआ और तब तक चलेगा जब तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं हो जाते."

पानी और गैस की सप्लाई देने वाले को मिल रही है धमकी

टिकरी बॉर्डर से रोहतक जाने वाले बाईपास पर 17 किलोमीटर से ज़्यादा पर किसानों का आंदोलन चल रहा है. हम किसानों की संख्या को देखने के लिए इस रास्ते पर निकल जाते हैं. करीब 12 किलोमोटर चलने पर बहादुरगढ़ के पास स्ट्रीट लाइट 236 के नीचे हमारी मुलाकात दलवीर सिंह राठी से हुई. बुजुर्ग राठी हरियाणा के हिसार जिले के रहने वाले हैं.

दलवीर सिंह राठी

आंदोलन के शुरुआत में ही हिस्सा बन चुके राठी बताते हैं, "सिर्फ इंटरनेट ही नहीं रोका गया बल्कि पानी और गैस तो रोक दिया गया. जो लोग हमें पानी दे रहे थे उन्हें धमकी दी जा रही है कि अगर पानी दिया तो तुम्हारा कनेक्शन काट देंगे. यहीं धमकी गैस वाले को भी दी जा रही है. उससे भी हमें गैस नहीं देने की बात कही गई है. यहां रात में बिजली नहीं रहती है. आंदोलन करने आने वालों को पुलिस धमकी दे रही है लेकिन लोग आ रहे हैं. 26 जनवरी की परेड में शामिल होने आए लोग जब लौट रहे थे तो आप लोगों ने (मीडिया) ने बताया कि आंदोलन खत्म हो गया. किधर खत्म हुआ आंदोलन."

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और बहादुरगढ में ही रहने वाले किशन जून की माने तो आंदोलनकारी किसानों को सरकार अब तंग करना चाहती है. इसीलिए ज़रूरी चीजों की सप्लाई रोक दी गई. हालांकि आंदोलन को जितना मैं देख समझ रहा हूं, आंदोलन इतनी आसानी से खत्म नहीं होगा. सरकार को समझना चाहिए.

प्रोफेसर किशन जून

यहां हमें जो भी मिलता है 26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ उसकी आलोचना करते नज़र आता है. साथ में इस सब के लिए पुलिस को जिम्मेदार बताता है.

जो लोग आए थे वे बीजेपी आरएसएस के थे

सिंघु बॉर्डर की तरफ ही 28 जनवरी की दोपहर सैकड़ों की संख्या में खुद को स्थानीय निवासी होने का दावा करने वाले कुछ लोग टिकरी बॉर्डर के स्टेज के पास पहुंच गए और आंदोलन को खत्म करने का नारा लगाने लगे. इनकी संख्या कम थी इसलिए कोई अनहोनी नहीं हुई और पुलिस ने लौटा दिया. हालांकि इस घटना के बाद यहां एक डर का माहौल है.

सिंघु पर कथित स्थानीय लोगों द्वारा प्रदर्शनकरी किसानों पर हमले और पुलिस की उपस्थिति में उन्हें मारने के बाद लोगों की चिंता और बढ़ गई है. हालांकि किसानों को लगता है कि ये स्थानीय लोग नहीं बल्कि सरकार के लोग है. आरएसएस और बीजेपी के लोग है.

दलाल खाप के प्रदीप दलाल टिकरी पर प्रदर्शन कर आंदोलन हटाने के लिए आए स्थानीय लोगों को लेकर पूछे गए सवाल पर न्यूजलांड्री से बात करते हुए कहते हैं, "उसमें लोकल आदमी तो एक भी नहीं था. दिल्ली देहात है, यहां के चार-पांच गांव का एक सरपंच होता है. वो सरपंच उसी दिन स्टेज से बताया कि पूरा गांव किसानों के साथ है. किसी को कोई परेशानी नहीं है. बस सरकार लोगों को लड़ाना चाहती है इसीलिए अपना आदमी भेजकर यह सब करा रही है. सिंघु पर भी स्थानीय लोग नहीं थे. सब बीजेपी और आरएसएस के लोग थे."

टिकरी बॉर्डर पर खाना बनाते किसान

पंजाब के सगरूर जिले से आए बुजुर्ग किसान दलजीत सिंह इस आंदोलन में शुरू से जुड़े हुए हैं. स्थानीय लोगों से गुज़रिश करते हुए वे कहते हैं, "हमें यकीन है कि स्थानीय लोग हमसे नाराज़ नहीं हैं. वो हमारे आंदोलन में आते हैं. कुछ खाते हैं और लोगों को भी खिलाते हैं. वो हमारे साथ हैं लेकिन यह ज़रूर है कि हमारे आंदोलन से कई लोगों का काम प्रभावित हुआ है. हम उनसे हाथ जोड़कर माफी मांगते हैं. वे हमारी परेशानी समझे. हम खुशी में इतनी ठंड के बावजूद यहां नहीं आए हैं. सरकार हमपर काले कानून लाद रही है उसे हटवाने आए हैं."

बाकी लोग तो दावे करते हैं कि प्रदर्शनकारी किसानों को हटाने की कोशिश स्थानीय लोग नहीं बीजेपी और आरएसएस के समर्थक कर रहे हैं लेकिन प्रोफेसर किशन जून इसका सबूत दिखाते हैं. हरिभूमि अखबार की इस कटिंग पर जो कुछ लिखा हुआ है उसका लब्बोलुआब है कि बहादुरगढ़ में बीजेपी नेताओं ने आंदोलन हटाने के लिए महापंचायत का आयोजन किया था जिसे ग्रामीणों के विरोध के बाद रोक दिया गया.

इस पूरी घटना की जानकारी देते हुए किशन जून बताते हैं, "29 जनवरी की सुबह बीजेपी के सतपाल राठी और कर्मवीर राठी गांव लोआमाजरा में किसानों को हटाने के लिए महापंचायत कर रहे थे. इसकी जानकारी हमें मिली तो हमने गांव के सरपंच और दलाल खाप के लोगो को बोल दिया. उनकी मीटिंग में पहले तो लोग ही नहीं आए.फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं को लाकर संख्या बढ़ाई गई तभी सरपंच ने पहुंचकर बिना उसकी इजाजत के गांव में मीटिंग करने पर नाराजगी दर्ज कराई. मीटिंग के वक़्त एसडीएम भी मौजूद थे. यह सब चल रहा था तभी दलाल खाप के लोग पहुंच गए. उनका पहुंचना था कि ये तमाम लोग वहां से भाग गए. उस मीटिंग में गांव के कुछ ही लोग थे जो उनके समर्थक थे."

किशन जून खुद भी बहादुरगढ़ के ही रहने वाले हैं. वे बीते दो महीने से भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर पर लगने वाले तरनतारन जिले से आए किसानों के साथ ही रहते हैं. उनकी जो जरूरत होती है उसे पूरा करते हैं.

दलाल खाप

अब शाम का वक़्त होने लगा. बहादुरगढ़ से लौटते हुए रास्ते में ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर नज़र आते हैं. जगह-जगह लोगों के स्वागत में पोस्टर लिए लोग खड़े नजर आते हैं. प्रदर्शनकारी किसान अंधेरे में रहने को मजबूर हैं क्योंकि सरकार ने बिजली काट दी है. पंजाब से आए किसानों की माने तो वे खुद को इन तमाम परेशानियों के लिए तैयार करके आए हैं.

प्रदर्शनकारी किसानों के घर वालों को चिंता हो रही है क्योंकि इंटरनेट नहीं होने के कारण वे किसान आंदोलन की वास्तविक स्थिति से अपने इलाके के लोगों को अवगत नहीं करा पा रहे हैं. टीवी देखकर घर वालों की चिंता बढ़ गई है. घर वाले चिंतित हैं लेकिन किसानों की माने तो वे वापस तब ही जाएंगे जब सरकार उनकी बात मान लेगी.

सुरक्षा के इंतजाम करती पुलिस

सरकार किसानों की बात सुनने की बजाय टिकरी बॉर्डर के पास सुरक्षा को मजबूत करते हुए सड़कों पर कीलें ठुकवा रही है. किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा की तरह यहां मज़बूत बॉर्डर बनाया जा रहा है. हज़ारों सुरक्षाकर्मी तैनात हैं. लेकिन कोई अंजान इसे देखे तो वह इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा ही मानेगा.

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शाम के सात बज रहे हैं. पंजाब से आए चार किसान अपने टेंट में रोटी पका रहे हैं. चारों तरफ अंधेरा है. हाथ में मोबाइल से लाइट जलाकर रोटी पलटते हुए भटिंडा के रहने वाले जसमिन्दर सिंह कहते हैं, 'देख रहे हो भाई जी, 26 के बाद से बिजली भी काट दी है. पर हम तो किसान हैं, रातभर अंधेरे में खेतों में पानी देने की आदत है. देखते हैं ये सरकार हमें किस हद तक परेशान करती है, उसे पता नहीं कि हम इन काले कानूनों को वापस कराए बगैर नहीं जाएंगे."

26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली के दौरान लाल किले पर जो कुछ हुआ उसके बाद से हरियाणा सरकार किसानों को परेशान करने की हर कोशिश करती नजर आ रही है. किसानों के दावे के मुताबिक पहले यहां की बिजली काट दी गई, फिर पानी पर रोक लगा दी, गैस भरने वाले को साफ शब्दों में मना कर दिया गया कि हमें गैस न दे. अब इंटरनेट पर रोक लगा दी गई है.

लाइट कट होने के बाद टिकरी बॉर्डर पर छाया अंधेरा

इंटरनेट नहीं होने से परेशान किसान आंदोलन के दौरान अपनी बात लोगों तक पहुंचाने के लिए बनाई गई सोशल मीडिया टीम से जुड़े अनूप सिंह कहते हैं, "मीडिया का एक बड़ा हिस्सा हमारी खबरें तो दिखाता नहीं इसलिए हमने अपना एक पूरा सिस्टम बना लिया था. किसान आंदोलन से जुड़ी जानकारी हम गांव-गांव तक पहुंचा रहे थे. हालांकि अब परेशानी हो रही है. इंटरनेट चल नहीं रहा है. हम तो दिल्ली वाले इलाके में जाकर भेज भी दें लेकिन हरियाणा में तो किसी भी जिले में नहीं चल रहा है. सरकार सोचती है कि ऐसा करके वो आंदोलन को रोक देगी, मुझे लगता है आंदोलन इससे और बढ़ेगा."

इंटरनेट बन्द होने से सबसे ज़्यादा परेशानी युवाओं को हो रही है. पंजाब के मुक्तसर जिले से आए 32 वर्षीय रंजीत सिंह बताते हैं, "टीवी पर दिखाया जा रहा है कि किसानों पर हमले हो रहे हैं. पुलिस गिरफ्तार कर रही है. एफआईआर दर्ज हो रहा है. इससे घर वाले डरे हुए हैं. इंटरनेट नहीं होने के कारण हम उन्हें आंदोलन की सही तस्वीर नहीं दिखा पा रहे हैं. वीडियो कॉल करके ही हम उन्हें असली तस्वीर दिखा सकते हैं."

हरियाणा आंदोलन में था और रहेगा

एक तरफ जहां हरियाणा सरकार किसान आंदोलन में आए लोगों को ज़रूरी सुविधाएं न देकर आंदोलन को कमजोर करने को कोशिश कर रही है दूसरी तरफ टिकरी बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा बढ़ता ही जा रहा है. 26 जनवरी की घटना के बाद खबर ये उड़ी कि हरियाणा के किसान लौट रहे हैं लेकिन इसके विपरीत 29 जनवरी को करीब 2 हज़ार ट्रैक्टर के साथ दलाल खाप के लोगों ने तिरंगा रैली निकालकर यह बताने की कोशिश की कि हरियाणा आंदोलन से अलग नहीं हुआ है.

दलाल खाप से जुड़े प्रदीप दलाल, यूट्यूबर हैं. इस आंदोलन में खुद भी हिस्सा ले रहे हैं और साथ ही आंदोलन की खबरें लोगों तक पहुंचा रहे हैं. न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ''ये कोरी अफवाह था कि हरियाणा आंदोलन से अलग हो गया है. राकेश टिकैत जी के आंसू से तो हरियाणा में इतना असर पड़ा है कि हर रोज हज़ारों की संख्या में ट्रैक्टर यहां आ रहे हैं. सरकार डर से इंटरनेट बंद की हुई है ताकि लोगों तो टिकैत साहब की वीडियो न पहुंचे. हरियाणा पीछे तब तक नहीं हटेगा जब तक कानून वापस नहीं होता. आपने मिस कर दिया. इस तिरंगा रैली में सबसे पहले एक दस साल की लड़की ट्रैक्टर चलाकर गई है."

यहीं हमें एक आवाज़ सुनाई पड़ती है. हरी सब्जी ले लो, ताजी सब्जी ले लो. देखने पर पता चलता है कि हरियाणा के रोहतक जिले से कुछ नौजवान हर दूसरे दिन ऐसे ही ट्रैक्टर में हरी सब्जियां भरकर यहां रह रहे किसानों के लिए लेकर आते हैं. कुछ लोग है जो किसानों के लिए दही, दूध और लस्सी लाते हैं.

यहां सब्जी लेने की घोषणा कर रहे दीपक अहलावत कहते हैं, "हम लोग अहलावत खाफ से जुड़े हुए हैं. रोहतक जिले में हमारा गांव है. गांव वाले अपनी हैसियत से मदद करते हैं. उसी से हरी सब्जी खरीदकर हम किसान भाइयों के लिए लेकर आते हैं. यह सिलसिला किसानों के आने के साथ ही शुरू हुआ और तब तक चलेगा जब तक तीनों कृषि कानून वापस नहीं हो जाते."

पानी और गैस की सप्लाई देने वाले को मिल रही है धमकी

टिकरी बॉर्डर से रोहतक जाने वाले बाईपास पर 17 किलोमीटर से ज़्यादा पर किसानों का आंदोलन चल रहा है. हम किसानों की संख्या को देखने के लिए इस रास्ते पर निकल जाते हैं. करीब 12 किलोमोटर चलने पर बहादुरगढ़ के पास स्ट्रीट लाइट 236 के नीचे हमारी मुलाकात दलवीर सिंह राठी से हुई. बुजुर्ग राठी हरियाणा के हिसार जिले के रहने वाले हैं.

दलवीर सिंह राठी

आंदोलन के शुरुआत में ही हिस्सा बन चुके राठी बताते हैं, "सिर्फ इंटरनेट ही नहीं रोका गया बल्कि पानी और गैस तो रोक दिया गया. जो लोग हमें पानी दे रहे थे उन्हें धमकी दी जा रही है कि अगर पानी दिया तो तुम्हारा कनेक्शन काट देंगे. यहीं धमकी गैस वाले को भी दी जा रही है. उससे भी हमें गैस नहीं देने की बात कही गई है. यहां रात में बिजली नहीं रहती है. आंदोलन करने आने वालों को पुलिस धमकी दे रही है लेकिन लोग आ रहे हैं. 26 जनवरी की परेड में शामिल होने आए लोग जब लौट रहे थे तो आप लोगों ने (मीडिया) ने बताया कि आंदोलन खत्म हो गया. किधर खत्म हुआ आंदोलन."

दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर और बहादुरगढ में ही रहने वाले किशन जून की माने तो आंदोलनकारी किसानों को सरकार अब तंग करना चाहती है. इसीलिए ज़रूरी चीजों की सप्लाई रोक दी गई. हालांकि आंदोलन को जितना मैं देख समझ रहा हूं, आंदोलन इतनी आसानी से खत्म नहीं होगा. सरकार को समझना चाहिए.

प्रोफेसर किशन जून

यहां हमें जो भी मिलता है 26 जनवरी को लाल किले पर जो कुछ हुआ उसकी आलोचना करते नज़र आता है. साथ में इस सब के लिए पुलिस को जिम्मेदार बताता है.

जो लोग आए थे वे बीजेपी आरएसएस के थे

सिंघु बॉर्डर की तरफ ही 28 जनवरी की दोपहर सैकड़ों की संख्या में खुद को स्थानीय निवासी होने का दावा करने वाले कुछ लोग टिकरी बॉर्डर के स्टेज के पास पहुंच गए और आंदोलन को खत्म करने का नारा लगाने लगे. इनकी संख्या कम थी इसलिए कोई अनहोनी नहीं हुई और पुलिस ने लौटा दिया. हालांकि इस घटना के बाद यहां एक डर का माहौल है.

सिंघु पर कथित स्थानीय लोगों द्वारा प्रदर्शनकरी किसानों पर हमले और पुलिस की उपस्थिति में उन्हें मारने के बाद लोगों की चिंता और बढ़ गई है. हालांकि किसानों को लगता है कि ये स्थानीय लोग नहीं बल्कि सरकार के लोग है. आरएसएस और बीजेपी के लोग है.

दलाल खाप के प्रदीप दलाल टिकरी पर प्रदर्शन कर आंदोलन हटाने के लिए आए स्थानीय लोगों को लेकर पूछे गए सवाल पर न्यूजलांड्री से बात करते हुए कहते हैं, "उसमें लोकल आदमी तो एक भी नहीं था. दिल्ली देहात है, यहां के चार-पांच गांव का एक सरपंच होता है. वो सरपंच उसी दिन स्टेज से बताया कि पूरा गांव किसानों के साथ है. किसी को कोई परेशानी नहीं है. बस सरकार लोगों को लड़ाना चाहती है इसीलिए अपना आदमी भेजकर यह सब करा रही है. सिंघु पर भी स्थानीय लोग नहीं थे. सब बीजेपी और आरएसएस के लोग थे."

टिकरी बॉर्डर पर खाना बनाते किसान

पंजाब के सगरूर जिले से आए बुजुर्ग किसान दलजीत सिंह इस आंदोलन में शुरू से जुड़े हुए हैं. स्थानीय लोगों से गुज़रिश करते हुए वे कहते हैं, "हमें यकीन है कि स्थानीय लोग हमसे नाराज़ नहीं हैं. वो हमारे आंदोलन में आते हैं. कुछ खाते हैं और लोगों को भी खिलाते हैं. वो हमारे साथ हैं लेकिन यह ज़रूर है कि हमारे आंदोलन से कई लोगों का काम प्रभावित हुआ है. हम उनसे हाथ जोड़कर माफी मांगते हैं. वे हमारी परेशानी समझे. हम खुशी में इतनी ठंड के बावजूद यहां नहीं आए हैं. सरकार हमपर काले कानून लाद रही है उसे हटवाने आए हैं."

बाकी लोग तो दावे करते हैं कि प्रदर्शनकारी किसानों को हटाने की कोशिश स्थानीय लोग नहीं बीजेपी और आरएसएस के समर्थक कर रहे हैं लेकिन प्रोफेसर किशन जून इसका सबूत दिखाते हैं. हरिभूमि अखबार की इस कटिंग पर जो कुछ लिखा हुआ है उसका लब्बोलुआब है कि बहादुरगढ़ में बीजेपी नेताओं ने आंदोलन हटाने के लिए महापंचायत का आयोजन किया था जिसे ग्रामीणों के विरोध के बाद रोक दिया गया.

इस पूरी घटना की जानकारी देते हुए किशन जून बताते हैं, "29 जनवरी की सुबह बीजेपी के सतपाल राठी और कर्मवीर राठी गांव लोआमाजरा में किसानों को हटाने के लिए महापंचायत कर रहे थे. इसकी जानकारी हमें मिली तो हमने गांव के सरपंच और दलाल खाप के लोगो को बोल दिया. उनकी मीटिंग में पहले तो लोग ही नहीं आए.फैक्ट्री में काम करने वाली महिलाओं को लाकर संख्या बढ़ाई गई तभी सरपंच ने पहुंचकर बिना उसकी इजाजत के गांव में मीटिंग करने पर नाराजगी दर्ज कराई. मीटिंग के वक़्त एसडीएम भी मौजूद थे. यह सब चल रहा था तभी दलाल खाप के लोग पहुंच गए. उनका पहुंचना था कि ये तमाम लोग वहां से भाग गए. उस मीटिंग में गांव के कुछ ही लोग थे जो उनके समर्थक थे."

किशन जून खुद भी बहादुरगढ़ के ही रहने वाले हैं. वे बीते दो महीने से भारत-पाकिस्तान के बॉर्डर पर लगने वाले तरनतारन जिले से आए किसानों के साथ ही रहते हैं. उनकी जो जरूरत होती है उसे पूरा करते हैं.

दलाल खाप

अब शाम का वक़्त होने लगा. बहादुरगढ़ से लौटते हुए रास्ते में ट्रैक्टर ही ट्रैक्टर नज़र आते हैं. जगह-जगह लोगों के स्वागत में पोस्टर लिए लोग खड़े नजर आते हैं. प्रदर्शनकारी किसान अंधेरे में रहने को मजबूर हैं क्योंकि सरकार ने बिजली काट दी है. पंजाब से आए किसानों की माने तो वे खुद को इन तमाम परेशानियों के लिए तैयार करके आए हैं.

प्रदर्शनकारी किसानों के घर वालों को चिंता हो रही है क्योंकि इंटरनेट नहीं होने के कारण वे किसान आंदोलन की वास्तविक स्थिति से अपने इलाके के लोगों को अवगत नहीं करा पा रहे हैं. टीवी देखकर घर वालों की चिंता बढ़ गई है. घर वाले चिंतित हैं लेकिन किसानों की माने तो वे वापस तब ही जाएंगे जब सरकार उनकी बात मान लेगी.

सुरक्षा के इंतजाम करती पुलिस

सरकार किसानों की बात सुनने की बजाय टिकरी बॉर्डर के पास सुरक्षा को मजबूत करते हुए सड़कों पर कीलें ठुकवा रही है. किसी अंतरराष्ट्रीय सीमा की तरह यहां मज़बूत बॉर्डर बनाया जा रहा है. हज़ारों सुरक्षाकर्मी तैनात हैं. लेकिन कोई अंजान इसे देखे तो वह इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा ही मानेगा.

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