Newslaundry Hindi
अमरोहा महापंचायत: "हम भाजपा को वोट देने का खामियाजा भुगत रहे हैं"
सात फरवरी को उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में स्थित मुकरी गांव के गन्ने के खेतों में हज़ारों लोग सफ़ेद टोपियां पहने जमा हुए. भूरी सदरियां, सफ़ेद धोती और चमड़े के जूते पहने जाट किसान जिले भर से इस गांव में नरेंद्र मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में हो रही महापंचायत में शरीक हुए. महापंचायत का आयोजन चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल ने किया था.
मुकरी गांव अजीत सिंह के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जन्मभूमि नूरपुर से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर है. अजीत सिंह के पुत्र, पार्टी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी महापंचायत का प्रमुख आकर्षण थे.
रालोद के हरे झंडे लगे ट्रैक्टरों और गाड़ियों में सफर करके करीब 5,000 लोगों ने महापंचायत में शिरकत की.
इस समय उत्तर प्रदेश में दो तरह की महापंचायतें हो रही हैं. एक तो वह जो शुद्ध रूप से तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध हैं, और दूसरी जो राजनैतिक हैं और आंदोलन के ज़रिये भारतीय जनता पार्टी की सरकार के विरुद्ध हवा बनाने के लिए हो रही हैं. अमरोहा की महापंचायत दूसरे किस्म की थी.
इन सभाओं में होने वाली बयानबाजियों से इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इनका क्या मकसद है. मुख्य रूप से जाट-संचालित इस अभियान में अब यह कोशिश हो रही है कि अन्य जातियों और समुदायों को भी किसान आंदोलन में सम्मिलित किया जाए. यह कोशिश विशेष रूप से मुसलमानों पर केंद्रित है, जिनकी भागीदारी इस समारोह में बढ़ा-चढ़ा कर बताई गई.
दूसरा, यह किसानों के आत्मसम्मान को सम्बोधित कर रहा है जिसे 'खालिस्तानी' और 'देशद्रोही' कहे जाने से ठेस पहुंची है. साथ ही स्थानीय गन्ना किसानों के सरकार के प्रति रोष को भी 2022 के चुनावों में भुनाने की कोशिश हो रही है.
"मुझे हिन्दू या मुसलमान नहीं, किसान कहिए," रालोद के एक नेता ने कहा. "यह किसान के रूप में हमारी संयुक्त पहचान के बारे में है." मंच पर नेताजी के पीछे तीन बुज़ुर्ग बैठे थे. एक सिख, एक जाट और एक मुसलमान, जो क्रमशः केसरिया, सफ़ेद और हरी पगड़ी पहने हुए थे.
जहां पंजाब में किसानों का विरोध मुख्य रूप से कृषि कानूनों के वापस लेने की मांग को लेकर है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह पूरी तरह राजनैतिक रंग ले चुका है. बागपत और मुज़फ्फरनगर की महापंचायतों के विपरीत अमरोहा में टिकैत बधुओं के भारतीय किसान यूनियन की कोई भागीदारी नहीं रही. यह पूरी तरह रालोद का कार्यक्रम था, जिसमें पार्टी के उत्तराधिकारी प्रमुख रूप से सम्मिलित थे. समारोह दल के पारम्परिक वोट जाट किसानों पर केंद्रित था.
42 वर्षीय जयंत का सभा में भव्य स्वागत हुआ और उनके तमाम समर्थकों ने मंच को घेर लिया.
"भाजपा के पास अनेकों तरीके हैं. कभी सोशल मीडिया पर तो कभी जाति और धर्म के आधार पर वो हमें बांटने की कोशिश करते हैं. लेकिन आप उनकी इन कोशिशों को सफल मत होने देना," जयंत ने अपने भाषण में कहा. जयंत के सम्बोधन से पहले उनके स्वागत में एक लोकगीत भी प्रस्तुत किया गया.
अमरोहा महापंचायत में किसानों का मूड भाजपा के विरुद्ध तो था, लेकिन केवल कृषि कानूनों के कारण नहीं. "मैं यहां समझने आया हूं कि यह आंदोलन है क्या," करहला गांव से आए 62 साल के गन्ना किसान दुर्जन सिंह ने कहा. "लोग यहां नेताओं को सुनने आए हैं. मैं एक सामान्य गांव वाला हूं जो अपना विचार बनाने का प्रयास कर रहा हूं."
लेकिन दुर्जन सिंह पूरी तरह निष्पक्ष भी नहीं हैं. योगी सरकार में गन्ने की स्थिर कीमतें, समर्थन मूल्य से कम पर गेंहूं की खरीद और चीनी मिलों द्वारा देरी से भुगतान किए जाने के कारण वह आशंकित हैं कि केंद्र के कृषि कानून 'किसानों का घाटा कर सकते हैं'.
थोड़ी सी बातचीत में ही यहां किसान खुलकर भाजपा के खिलाफ बोलने लगते हैं. उनका गुस्सा अक्सर अपशब्दों का रूप ले लेता है.
31 साल के राजवीर सिंह, जो अमरोहा के जाजरु गांव से हैं, कहते हैं कि युवाओं ने केंद्र और राज्य में भाजपा को वोट देकर गलती कर दी. "एक बार गलती हो गई, दोबारा नहीं करेंगे," राजवीर कहते हैं.
फरीदपुर गांव के 55 वर्षीय भेर सिंह बिश्नोई कहते हैं कि वह महापंचायत में इसलिए आए क्योंकि उनसे साथी किसानों की दुर्दशा देखी नहीं गई. "हमने बैंक और कोऑपरेटिव सोसाइटी से गन्ना उगाने के लिए कर्ज़ लिया था. साल भर के बाद हमने फसल मिलों को बेच दी. वो हमें 10 रुपए आज देते हैं, 10 रुपए अगले महीने," बिश्नोई खीझते हुए बताते हैं.
"किसान पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. मैंने 2017 में भाजपा का समर्थन किया था. लेकिन अब मैं पुनर्विचार कर रहा हूं क्योंकि इन्होंने हमें बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया है और देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है," बिश्नोई ने कहा.
अमरोहा में भाजपा के प्रति आक्रोश जाट किसानों को रालोद की तरफ धकेल रहा है. किसान चौधरी चरण सिंह और प्रधानमंत्री रहते हुए किसानों के प्रति उनके कामों को याद कर रहे हैं.
"2017 में यहां यह सोच थी कि 'दिल्ली में मोदी, यूपी में योगी'," सिहारी गांव के 55 वर्षीय छोटे सिंह ने कहा. "लेकिन अब हम भुगत रहे हैं. मैंने हमेशा रालोद को वोट दिया है, लेकिन 2017 में पहली बार भाजपा को वोट दिया."
छोटे के पड़ोसी 80 वर्षीय ओम पाल सिंह, याद करते हैं कि जब चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय थे तब जनसंघ भाजपा के राजनैतिक पूर्वज का चुनाव चिन्ह 'लैंप' था. "चौधरी जी कहते थे कि जिस दिन लैंप वाले सत्ता में आ जाएंगे, किसान ख़त्म हो जाएगा. वह बिल्कुल सही कहते थे," ओम पाल ने कहा.
सात फरवरी को उत्तर प्रदेश के अमरोहा जिले में स्थित मुकरी गांव के गन्ने के खेतों में हज़ारों लोग सफ़ेद टोपियां पहने जमा हुए. भूरी सदरियां, सफ़ेद धोती और चमड़े के जूते पहने जाट किसान जिले भर से इस गांव में नरेंद्र मोदी सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में हो रही महापंचायत में शरीक हुए. महापंचायत का आयोजन चौधरी अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोक दल ने किया था.
मुकरी गांव अजीत सिंह के पिता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जन्मभूमि नूरपुर से सिर्फ 30 किलोमीटर दूर है. अजीत सिंह के पुत्र, पार्टी उपाध्यक्ष जयंत चौधरी महापंचायत का प्रमुख आकर्षण थे.
रालोद के हरे झंडे लगे ट्रैक्टरों और गाड़ियों में सफर करके करीब 5,000 लोगों ने महापंचायत में शिरकत की.
इस समय उत्तर प्रदेश में दो तरह की महापंचायतें हो रही हैं. एक तो वह जो शुद्ध रूप से तीन कृषि कानूनों के विरुद्ध हैं, और दूसरी जो राजनैतिक हैं और आंदोलन के ज़रिये भारतीय जनता पार्टी की सरकार के विरुद्ध हवा बनाने के लिए हो रही हैं. अमरोहा की महापंचायत दूसरे किस्म की थी.
इन सभाओं में होने वाली बयानबाजियों से इसका अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि इनका क्या मकसद है. मुख्य रूप से जाट-संचालित इस अभियान में अब यह कोशिश हो रही है कि अन्य जातियों और समुदायों को भी किसान आंदोलन में सम्मिलित किया जाए. यह कोशिश विशेष रूप से मुसलमानों पर केंद्रित है, जिनकी भागीदारी इस समारोह में बढ़ा-चढ़ा कर बताई गई.
दूसरा, यह किसानों के आत्मसम्मान को सम्बोधित कर रहा है जिसे 'खालिस्तानी' और 'देशद्रोही' कहे जाने से ठेस पहुंची है. साथ ही स्थानीय गन्ना किसानों के सरकार के प्रति रोष को भी 2022 के चुनावों में भुनाने की कोशिश हो रही है.
"मुझे हिन्दू या मुसलमान नहीं, किसान कहिए," रालोद के एक नेता ने कहा. "यह किसान के रूप में हमारी संयुक्त पहचान के बारे में है." मंच पर नेताजी के पीछे तीन बुज़ुर्ग बैठे थे. एक सिख, एक जाट और एक मुसलमान, जो क्रमशः केसरिया, सफ़ेद और हरी पगड़ी पहने हुए थे.
जहां पंजाब में किसानों का विरोध मुख्य रूप से कृषि कानूनों के वापस लेने की मांग को लेकर है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में यह पूरी तरह राजनैतिक रंग ले चुका है. बागपत और मुज़फ्फरनगर की महापंचायतों के विपरीत अमरोहा में टिकैत बधुओं के भारतीय किसान यूनियन की कोई भागीदारी नहीं रही. यह पूरी तरह रालोद का कार्यक्रम था, जिसमें पार्टी के उत्तराधिकारी प्रमुख रूप से सम्मिलित थे. समारोह दल के पारम्परिक वोट जाट किसानों पर केंद्रित था.
42 वर्षीय जयंत का सभा में भव्य स्वागत हुआ और उनके तमाम समर्थकों ने मंच को घेर लिया.
"भाजपा के पास अनेकों तरीके हैं. कभी सोशल मीडिया पर तो कभी जाति और धर्म के आधार पर वो हमें बांटने की कोशिश करते हैं. लेकिन आप उनकी इन कोशिशों को सफल मत होने देना," जयंत ने अपने भाषण में कहा. जयंत के सम्बोधन से पहले उनके स्वागत में एक लोकगीत भी प्रस्तुत किया गया.
अमरोहा महापंचायत में किसानों का मूड भाजपा के विरुद्ध तो था, लेकिन केवल कृषि कानूनों के कारण नहीं. "मैं यहां समझने आया हूं कि यह आंदोलन है क्या," करहला गांव से आए 62 साल के गन्ना किसान दुर्जन सिंह ने कहा. "लोग यहां नेताओं को सुनने आए हैं. मैं एक सामान्य गांव वाला हूं जो अपना विचार बनाने का प्रयास कर रहा हूं."
लेकिन दुर्जन सिंह पूरी तरह निष्पक्ष भी नहीं हैं. योगी सरकार में गन्ने की स्थिर कीमतें, समर्थन मूल्य से कम पर गेंहूं की खरीद और चीनी मिलों द्वारा देरी से भुगतान किए जाने के कारण वह आशंकित हैं कि केंद्र के कृषि कानून 'किसानों का घाटा कर सकते हैं'.
थोड़ी सी बातचीत में ही यहां किसान खुलकर भाजपा के खिलाफ बोलने लगते हैं. उनका गुस्सा अक्सर अपशब्दों का रूप ले लेता है.
31 साल के राजवीर सिंह, जो अमरोहा के जाजरु गांव से हैं, कहते हैं कि युवाओं ने केंद्र और राज्य में भाजपा को वोट देकर गलती कर दी. "एक बार गलती हो गई, दोबारा नहीं करेंगे," राजवीर कहते हैं.
फरीदपुर गांव के 55 वर्षीय भेर सिंह बिश्नोई कहते हैं कि वह महापंचायत में इसलिए आए क्योंकि उनसे साथी किसानों की दुर्दशा देखी नहीं गई. "हमने बैंक और कोऑपरेटिव सोसाइटी से गन्ना उगाने के लिए कर्ज़ लिया था. साल भर के बाद हमने फसल मिलों को बेच दी. वो हमें 10 रुपए आज देते हैं, 10 रुपए अगले महीने," बिश्नोई खीझते हुए बताते हैं.
"किसान पूरी तरह बर्बाद हो चुके हैं. मैंने 2017 में भाजपा का समर्थन किया था. लेकिन अब मैं पुनर्विचार कर रहा हूं क्योंकि इन्होंने हमें बर्बादी की कगार पर ला खड़ा किया है और देश की अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया है," बिश्नोई ने कहा.
अमरोहा में भाजपा के प्रति आक्रोश जाट किसानों को रालोद की तरफ धकेल रहा है. किसान चौधरी चरण सिंह और प्रधानमंत्री रहते हुए किसानों के प्रति उनके कामों को याद कर रहे हैं.
"2017 में यहां यह सोच थी कि 'दिल्ली में मोदी, यूपी में योगी'," सिहारी गांव के 55 वर्षीय छोटे सिंह ने कहा. "लेकिन अब हम भुगत रहे हैं. मैंने हमेशा रालोद को वोट दिया है, लेकिन 2017 में पहली बार भाजपा को वोट दिया."
छोटे के पड़ोसी 80 वर्षीय ओम पाल सिंह, याद करते हैं कि जब चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय थे तब जनसंघ भाजपा के राजनैतिक पूर्वज का चुनाव चिन्ह 'लैंप' था. "चौधरी जी कहते थे कि जिस दिन लैंप वाले सत्ता में आ जाएंगे, किसान ख़त्म हो जाएगा. वह बिल्कुल सही कहते थे," ओम पाल ने कहा.
Also Read
-
DU polls: Student politics vs student concerns?
-
Gurugram’s Smart City illusion: Gleaming outside, broken within
-
Margins shrunk, farmers forced to switch: Trump tariffs sinking Odisha’s shrimp industry
-
Fresh spotlight on Karnataka CID case as Rahul Gandhi flags missing ‘voter fraud’ details
-
ABC suspends Jimmy Kimmel show after TV host’s remarks on Charlie Kirk killing