Newslaundry Hindi
उत्तराखंड आपदा: रिश्तेदारों का अंतहीन इंतज़ार और आपदा प्रबन्धन पर उठे सवाल
रविवार की आपदा के बाद जिस जगह ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट था वहां अब बुलडोज़र और जेसीबी मशीन गरज़ रही हैं. पुलिस वाले पत्रकारों को एक नियत लाइन से आगे जाने से रोक रहे हैं. ट्रक यहां रेत, बजरी और पत्थर लाकर गिरा रहे हैं. जल्दी से जल्दी पुल बनाया जाना है ताकि नदी पार के उस भू भाग को जोड़ा जा सके, जिससे पुल टूटने की वजह से संपर्क कट गया.
लेकिन जिस जगह ये निर्माण गतिविधि ज़ोरों पर है उसी जगह कई मज़दूर भी दबे हैं और उनके रिश्तेदारों की उम्मीद टूटने के साथ गुस्सा और हताशा बढ़ रही है. उनका आरोप है कि प्रशासन यहां लापता लोगों को खोजने में तत्पर नहीं है. यहां से करीब चार किलोमीटर दूर धौलीगंगा नदी पर बने तपोवन पावर प्रोजेक्ट पर आज भी सेना और आईटीबीपी के साथ आपदा प्रबंधन के जवान सुरंग में फंसे लोगों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऋषिगंगा प्रोजेक्ट पर ऐसी कोई बड़ी कोशिश होती नहीं दिखी.
कुशीनगर ज़िले से आये 60 साल के रामदौन इसी मिट्टी से अपने बेटे विजय के निकलने की आस में हैं जिस पर बुलडोज़र दौड़ रहे हैं. लेकिन मशीनें सड़क और पुल बनाने में व्यस्त हैं.
“हम इनके (रामदौन) साथ आये हैं. पूरी तैयारी के साथ. भैया (विजय कुमार) मिल जायें तो बहुत अच्छा वरना हम अंतिम संस्कार करके ही जायेंगे.” कुशीनगर के गोरखपुर मंडल से रामदौन के साथ आये मनोज खरवाल कहते हैं.
खरवाल कहते हैं कि कंपनी ने यहां इन लोगों को रहने के लिये कमरा दिया है और खाने की व्यवस्था की है लेकिन इससे अधिक कुछ नहीं. वह निराश हैं कि विजय को ढूंढने के लिये कुछ नहीं किया जा रहा. विजय कुमार, जो ऋषिगंगा प्रोजेक्ट में वेल्डर का काम करते थे, उनका नाम लापता लोगों की लिस्ट में है.
मंगलवार को इस जगह चार शव मिले थे लेकिन अपनों को ढूंढने आये लोग कहते हैं कि वह खोजी प्रयासों के कारण नहीं बल्कि सड़क और पुल निर्माण के दौरान इत्तिफाकन मिली कामयाबी है. उत्तराखंड के गैरसैंण से आये केदार सिंह अपने भतीजे को तो मोहन सिंह अपने भाई को साथ- साथ ढूंढते मिले.
“जिस कंपनी के लिये ये लोग काम कर रहे थे उस कंपनी की ओर से हमें कोई जवाब नहीं मिला. न उनका कोई फोन नंबर है और न कोई दस्तावेज़ वह हमें दे रहे हैं. बस हमें टाल रहे हैं. हमारे लोगों को ढूंढना तब शुरू किया जब लोगों ने यहां आकर शोर मचाया. कल यहां जो चार शव मिले वो इसलिये क्योंकि यहां पर रोड साफ की जा रही थी. रोड सफाई के दौरान वह बॉडीज़ निकली. हम घर क्या लेकर जायेंगे? यहां से मीडिया ख़बरें चला रहा है कि रेस्क्यू हो रहा है, ये हो रहा है… वह हो रहा है… पता नहीं कौन ऐसी ख़बरें चला रहा है. हम बहुत परेशान हैं.” केदार सिंह ने हमें बताया.
केदार सिंह और उनके साथियों ने कहा कि सरकार के सड़क व पुल निर्माण से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उनके लापता लोगों को भी खोजा जाये.
“हम जानते हैं कि यह सीमावर्ती इलाका है और ज़मीन संपर्क बहाल करना ज़रूरी है और पुल और सड़क ज़रूर बने लेकिन हमारे अपनों को भी ढूंढा जाये.” मोहन सिंह ने कहा.
उधर धौलीगंगा पर एनटीपीसी के प्रोजेक्ट पर बुधवार को हताश परिवार वालों ने नारेबाज़ी भी की. यहां सुरंग में फंसे लोगों को निकालने की कोशिश रविवार से ही हो रही है लेकिन अब तक कोई कामयाबी न मिल पाने के कारण आपदा प्रबंधन की क्षमता पर भी प्रश्न चिन्ह लग रहा है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने यह समझने के लिये कि राहत कार्य में कामयाबी क्यों नहीं मिल रही है, राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन (एनडीआरएफ) के निदेशक एस एन प्रधान से कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया. एनडीआरएफ के डीआईजी एम के यादव ने कहा कि ग्राउंड पर जो लोग काम कर रहे हैं वह इस बारे में बताने के लिये बेहतर स्थिति में होंगे.
उधर सेना के एक अधिकारी ने तपोवन में कहा कि सुरंग में लगातार मलबा आने से राहत कार्य में दिक्कत हो रही है और इस बात की कोशिश हो रही है कि स्लश को सुरंग में जाने से रोका जाये ताकि फंसे लोगों तक पहुंचा जा सके. गुरुवार को धौलीगंगा का जलस्तर बढ़ने से कुछ देर के लिये राहत कार्य रोकना भी पड़ा.
महत्वपूर्ण है कि उत्तराखंड में आई आपदा में कुल 200 से अधिक लोग लापता हैं. इनमें से कई स्थानीय और प्रवासी मज़दूर हैं. उत्तराखंड के अलावा यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और नेपाल के लोग हैं. मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि सरकार ने खोज अभियान को सिर्फ तपोवन स्थित एनटीपीसी के प्लांट तक सीमित रखा है जबकि उसे ऋषिगंगा और धौलीगंगा के बहाव के साथ पूरे रिवर बेसिन में खोज करनी चाहिये.
हालांकि भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) जिसके 450 जवान अलग-अलग जगह राहत और बचाव कार्य में लगे हैं- की डीआईजी अपर्णा कुमार कहती हैं कि यह कहना गलत है कि किसी एक जगह तक सर्च ऑपरेशन सीमित किया गया है.
कुमार के मुताबिक “आईटीबीपी, एनडीआरएफ औऱ राज्य की राहत एजेंसी एसडीआरएफ ये सभी नदी के ऊपर और नीचे दोनों और खोज कर रहे हैं. ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि लोग कहां हो सकते हैं. कल (बुधवार को) हमारे जवानों ने गौचर (ऋषिगंगा से करीब 100 किलोमीटर दूर) से एक लाश निकाली है. यह इतना बड़ा इलाका है कि सब जगह खोजकर्मी आप देख नहीं सकते और वह हर जगह जेसीबी मशीन लेकर नहीं जायेंगे. कहीं एक-दो जवान रस्सी लेकर भी जा रहे हैं और लापता लोगों को ढूंढ रहे हैं. अगर एक छोटी सी जगह (तपोवन) में वह इकट्टठा हुये हैं तो यह नहीं कह सकते कि वह सिर्फ वहीं हैं. वह वहां दिख रहे हैं क्योंकि वहां लोगों के ज़िन्दा होने की सबसे अधिक संभावना है”
वहीं उत्तराखंड के ताजा हालात पर पीआईबी उत्तराखंड ने ट्वीट कर जानकारी दी है. कहा गया है कि 204 लापता में से अभी तक 35 शव बरामद किए गए हैं. जिसमें से 10 शवों की शिनाख्त की गई है.
रविवार की आपदा के बाद जिस जगह ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट था वहां अब बुलडोज़र और जेसीबी मशीन गरज़ रही हैं. पुलिस वाले पत्रकारों को एक नियत लाइन से आगे जाने से रोक रहे हैं. ट्रक यहां रेत, बजरी और पत्थर लाकर गिरा रहे हैं. जल्दी से जल्दी पुल बनाया जाना है ताकि नदी पार के उस भू भाग को जोड़ा जा सके, जिससे पुल टूटने की वजह से संपर्क कट गया.
लेकिन जिस जगह ये निर्माण गतिविधि ज़ोरों पर है उसी जगह कई मज़दूर भी दबे हैं और उनके रिश्तेदारों की उम्मीद टूटने के साथ गुस्सा और हताशा बढ़ रही है. उनका आरोप है कि प्रशासन यहां लापता लोगों को खोजने में तत्पर नहीं है. यहां से करीब चार किलोमीटर दूर धौलीगंगा नदी पर बने तपोवन पावर प्रोजेक्ट पर आज भी सेना और आईटीबीपी के साथ आपदा प्रबंधन के जवान सुरंग में फंसे लोगों को निकालने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन ऋषिगंगा प्रोजेक्ट पर ऐसी कोई बड़ी कोशिश होती नहीं दिखी.
कुशीनगर ज़िले से आये 60 साल के रामदौन इसी मिट्टी से अपने बेटे विजय के निकलने की आस में हैं जिस पर बुलडोज़र दौड़ रहे हैं. लेकिन मशीनें सड़क और पुल बनाने में व्यस्त हैं.
“हम इनके (रामदौन) साथ आये हैं. पूरी तैयारी के साथ. भैया (विजय कुमार) मिल जायें तो बहुत अच्छा वरना हम अंतिम संस्कार करके ही जायेंगे.” कुशीनगर के गोरखपुर मंडल से रामदौन के साथ आये मनोज खरवाल कहते हैं.
खरवाल कहते हैं कि कंपनी ने यहां इन लोगों को रहने के लिये कमरा दिया है और खाने की व्यवस्था की है लेकिन इससे अधिक कुछ नहीं. वह निराश हैं कि विजय को ढूंढने के लिये कुछ नहीं किया जा रहा. विजय कुमार, जो ऋषिगंगा प्रोजेक्ट में वेल्डर का काम करते थे, उनका नाम लापता लोगों की लिस्ट में है.
मंगलवार को इस जगह चार शव मिले थे लेकिन अपनों को ढूंढने आये लोग कहते हैं कि वह खोजी प्रयासों के कारण नहीं बल्कि सड़क और पुल निर्माण के दौरान इत्तिफाकन मिली कामयाबी है. उत्तराखंड के गैरसैंण से आये केदार सिंह अपने भतीजे को तो मोहन सिंह अपने भाई को साथ- साथ ढूंढते मिले.
“जिस कंपनी के लिये ये लोग काम कर रहे थे उस कंपनी की ओर से हमें कोई जवाब नहीं मिला. न उनका कोई फोन नंबर है और न कोई दस्तावेज़ वह हमें दे रहे हैं. बस हमें टाल रहे हैं. हमारे लोगों को ढूंढना तब शुरू किया जब लोगों ने यहां आकर शोर मचाया. कल यहां जो चार शव मिले वो इसलिये क्योंकि यहां पर रोड साफ की जा रही थी. रोड सफाई के दौरान वह बॉडीज़ निकली. हम घर क्या लेकर जायेंगे? यहां से मीडिया ख़बरें चला रहा है कि रेस्क्यू हो रहा है, ये हो रहा है… वह हो रहा है… पता नहीं कौन ऐसी ख़बरें चला रहा है. हम बहुत परेशान हैं.” केदार सिंह ने हमें बताया.
केदार सिंह और उनके साथियों ने कहा कि सरकार के सड़क व पुल निर्माण से उन्हें कोई दिक्कत नहीं है लेकिन उनके लापता लोगों को भी खोजा जाये.
“हम जानते हैं कि यह सीमावर्ती इलाका है और ज़मीन संपर्क बहाल करना ज़रूरी है और पुल और सड़क ज़रूर बने लेकिन हमारे अपनों को भी ढूंढा जाये.” मोहन सिंह ने कहा.
उधर धौलीगंगा पर एनटीपीसी के प्रोजेक्ट पर बुधवार को हताश परिवार वालों ने नारेबाज़ी भी की. यहां सुरंग में फंसे लोगों को निकालने की कोशिश रविवार से ही हो रही है लेकिन अब तक कोई कामयाबी न मिल पाने के कारण आपदा प्रबंधन की क्षमता पर भी प्रश्न चिन्ह लग रहा है.
न्यूज़लॉन्ड्री ने यह समझने के लिये कि राहत कार्य में कामयाबी क्यों नहीं मिल रही है, राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन (एनडीआरएफ) के निदेशक एस एन प्रधान से कई बार बात करने की कोशिश की लेकिन उनसे कोई संपर्क नहीं हो पाया. एनडीआरएफ के डीआईजी एम के यादव ने कहा कि ग्राउंड पर जो लोग काम कर रहे हैं वह इस बारे में बताने के लिये बेहतर स्थिति में होंगे.
उधर सेना के एक अधिकारी ने तपोवन में कहा कि सुरंग में लगातार मलबा आने से राहत कार्य में दिक्कत हो रही है और इस बात की कोशिश हो रही है कि स्लश को सुरंग में जाने से रोका जाये ताकि फंसे लोगों तक पहुंचा जा सके. गुरुवार को धौलीगंगा का जलस्तर बढ़ने से कुछ देर के लिये राहत कार्य रोकना भी पड़ा.
महत्वपूर्ण है कि उत्तराखंड में आई आपदा में कुल 200 से अधिक लोग लापता हैं. इनमें से कई स्थानीय और प्रवासी मज़दूर हैं. उत्तराखंड के अलावा यूपी, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पंजाब, जम्मू-कश्मीर और नेपाल के लोग हैं. मौके पर मौजूद लोगों का कहना है कि सरकार ने खोज अभियान को सिर्फ तपोवन स्थित एनटीपीसी के प्लांट तक सीमित रखा है जबकि उसे ऋषिगंगा और धौलीगंगा के बहाव के साथ पूरे रिवर बेसिन में खोज करनी चाहिये.
हालांकि भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) जिसके 450 जवान अलग-अलग जगह राहत और बचाव कार्य में लगे हैं- की डीआईजी अपर्णा कुमार कहती हैं कि यह कहना गलत है कि किसी एक जगह तक सर्च ऑपरेशन सीमित किया गया है.
कुमार के मुताबिक “आईटीबीपी, एनडीआरएफ औऱ राज्य की राहत एजेंसी एसडीआरएफ ये सभी नदी के ऊपर और नीचे दोनों और खोज कर रहे हैं. ये पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि लोग कहां हो सकते हैं. कल (बुधवार को) हमारे जवानों ने गौचर (ऋषिगंगा से करीब 100 किलोमीटर दूर) से एक लाश निकाली है. यह इतना बड़ा इलाका है कि सब जगह खोजकर्मी आप देख नहीं सकते और वह हर जगह जेसीबी मशीन लेकर नहीं जायेंगे. कहीं एक-दो जवान रस्सी लेकर भी जा रहे हैं और लापता लोगों को ढूंढ रहे हैं. अगर एक छोटी सी जगह (तपोवन) में वह इकट्टठा हुये हैं तो यह नहीं कह सकते कि वह सिर्फ वहीं हैं. वह वहां दिख रहे हैं क्योंकि वहां लोगों के ज़िन्दा होने की सबसे अधिक संभावना है”
वहीं उत्तराखंड के ताजा हालात पर पीआईबी उत्तराखंड ने ट्वीट कर जानकारी दी है. कहा गया है कि 204 लापता में से अभी तक 35 शव बरामद किए गए हैं. जिसमें से 10 शवों की शिनाख्त की गई है.
Also Read
-
TV Newsance 305: Sudhir wants unity, Anjana talks jobs – what’s going on in Godi land?
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
How Faisal Malik became Panchayat’s Prahlad Cha
-
Explained: Did Maharashtra’s voter additions trigger ECI checks?
-
‘Oruvanukku Oruthi’: Why this discourse around Rithanya's suicide must be called out