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भाजपा का धोखा: असम के 'सीएए शहीदों' के परिवारों की उम्मीद कांग्रेस गठबंधन पर टिकी
मौशूमि स्टैफ़ोर्ड पिछले 15 महीनों से अपने भाई को इंसाफ दिलाने की लड़ाई लड़ रही हैं. अब वह असम में 27 मार्च से 6 अप्रैल के बीच होने वाले विधानसभा चुनावों से जुड़ी राजनीतिक गतिविधियों पर अपना पूरा ध्यान लगाए हुए हैं. मौशूमि के लिए यह चुनाव निर्णायक होने वाले हैं.
12 दिसंबर 2019 को 17 वर्षीय सैम स्टैफ़ोर्ड नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए पुलिस की गोली से मारे गये. संसद में इससे एक दिन पहले पास हुआ यह कानून बांग्लादेश पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देता है. असम में हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गए क्योंकि इसे 1985 के असम समझौते का उल्लंघन माना गया, जिसमें केंद्र सरकार ने 24 मार्च 1971 के बाद राज्य में आए हुए सभी "अवैध प्रवासियों" को हटाने का वादा किया था.
हजारों और असमीया नागरिकों की तरह ही सैम ने भी, लतासिल मैदान में कानून के खिलाफ होने वाली रैली में हिस्सा लेने के लिए पुलिस कर्फ्यू को तोड़ा था. हाती गांव में स्थित अपने घर लौटते हुए, वहां से करीब 1 किलोमीटर दूर उन्हें चेहरे पर गोली मार दी गई. अपने हाईस्कूल के सालाना इम्तिहान से कुछ ही महीने पहले, सैम ने अस्पताल में दम तोड़ दिया.
तब से मौशूमि और उनके पति मोहम्मद सादिक अली न्याय के लिए लड़ रहे हैं. वे अपने भाई की मौत के लिए भारतीय जनता पार्टी की सरकार को जिम्मेदार मानते हैं और उनकी उम्मीद है कि आने वाले अप्रैल के महीने में यह सरकार सत्ता से बाहर हो जाएगी.
मौशुमी कहती हैं, "वह पुलिस की बर्बरता का शिकार हुआ था. उसे भाजपा सरकार ने मारा."
सीएए कानून के खिलाफ असम में होने वाले प्रदर्शनों के चरम पर, कथित तौर पर पुलिस की गोलियों से मारे गए कम से कम चार लोगों में से सैम एक हैं. दो साल बाद इन आने वाले चुनावों में सीएए एक बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है. कांग्रेस ने आठ दूसरे दलों के साथ गठबंधन किया है और उनके कथानक में, भाजपा के द्वारा सीएए कानून लाकर असम को दिया गया "धोखा" और प्रदर्शनों के "शहीदों" का न्याय पर हक, मुख्य भूमिका निभाता है. वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने अपने राजनीतिक संवाद में सीएए से दूरी बनाए रखी है.
वे परिवार जिन्होंने अपने प्रियजनों को प्रदर्शनों में खो दिया, उनके लिए यह चुनाव न्याय की उनकी लड़ाई में बड़ा महत्वपूर्ण है.
सैम स्टैफ़ोर्ड: "न्याय तभी जब सरकार नहीं रहेगी"
मौशूमि, सादिक और उनका 6 वर्षीय बेटा सैम के गुज़रने के बाद, मौशुमी के माता-पिता के पास आकर रहने लगे. दक्षिणी गुवाहाटी के हाती गांव में वे अपने साधारण से घर में रहते हैं. मौशूमि के पिता बीजू स्टैफ़ोर्ड एक ई रिक्शा चालक हैं और उनकी मां मामोनी स्टैफ़ोर्ड सैम की मृत्यु तक सरकार द्वारा चलाई गई एक बाल सुरक्षा सोसाइटी में काम करती थीं. लेकिन उसके जाने के बाद से वे कई मानसिक बीमारियों से जूझ रही हैं और पिछले साल मई में उन्हें एक गंभीर दिमागी स्ट्रोक भी आया था.
सादिक उबर और ओला कंपनियों के लिए एक ड्राइवर का काम करते थे लेकिन पिछले साल कार लोन का भुगतान न कर पाने के कारण उन्हें अपनी कार बेचनी पड़ी. वे कहते हैं कि सैम की मृत्यु के बाद परिवार की कई जिम्मेदारियों की वजह से उनके काम में कई अड़चनें आती थीं. जहां एक तरफ परिवार की आमदनी गिरी वही मामोनी के स्वास्थ्य पर होने वाला खर्चा 5 से 6 हजार रुपए प्रति माह बढ़ गया.
30 दिसंबर 2019 को परिवार ने हाती गांव पुलिस थाने में पुलिस पर ही हत्या का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज करवाई.
इससे कुछ ही पहले, असम के मानवाधिकार आयोग ने मीडिया की रिपोर्टों से सैम की मृत्यु का संज्ञान लिया था और एक जांच की मांग की थी. अब से यह परिवार कई सुनवाइयों में उपस्थित रह चुका है. मौशूमि और सादिक, असम कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रिपुण बोरा के द्वारा दाखिल की गई शिकायत के लिए भी आभारी हैं, बोरा ने दिसंबर 2019 में असम मानवाधिकार आयोग में शिकायत की थी.
सादिक ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "शुरू से भाजपा सरकार, हमारे केस को जितना हो सके उतना डलवाने के लिए चालबाजियां करती रही है. पुलिस ने गोलीबारी के किसी सबूत की मौजूदगी से इनकार कर दिया है, उल्टा उन्होंने सैम पर ही खुद रोगियों के झुंड का हिस्सा होने का आरोप लगाया है जिन्होंने उस दिन हिंसा की." उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि चश्मदीद गवाह और वीडियो सबूत पुलिस के इन आरोपों को गलत साबित करते हैं.
सैम के मामले की आखरी बार सुनवाई 15 फरवरी को हुई थी. सादिक कहते हैं, "हमें न्याय तभी मिलेगा जब मौजूदा सरकार नहीं रहेगी."
कांग्रेस पिछले 5 सालों से असम की सत्ता से बाहर है. उसका बड़ा गठबंधन जिसे महाजोट भी कहा जा रहा है, उसमें ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट या एआईयूडीएफ, सीपीआई, सीपीआई मार्क्सिस्ट, सीपीआई माले, आंचलिक गण मोर्चा और राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं.
कांग्रेस ने यह घोषणा की है कि अगर वह सत्ता में आई तो वह सीएए के खिलाफ हुए प्रदर्शनों में मारे गए लोगों के लिए एक भव्य स्मारक बनाएगी. हाल ही में एक रैली में, प्रियंका गांधी वाड्रा ने मुखर शब्दों में यह वादा किया कि महाजोट असम में नागरिकता संशोधन कानून को खारिज कर देने के लिए एक नया कानून लाएगा.
लेकिन राज्य में राजनीति सीएए के मुद्दे पर केंद्रित होते हुए भी स्टैफ़ोर्ड परिवार काफी विचलित है. मौशूमि और सादिक मानते हैं कि सैम के मामले में एक निष्पक्ष सुनवाई के लिए असम में गैर भाजपा सरकार का होना ज़रूरी है.
सादिक कहते हैं, "इसी वजह से हम कांग्रेस के नेतृत्व वाले गठबंधन पर भरोसा कर रहे हैं. उन्होंने केवल शहीदों के परिवारों को न्याय दिलाने का ही वादा नहीं किया उन्होंने हमें आर्थिक और नैतिक तौर पर समर्थन भी दिया है."
उन्होंने यह भी कहा कि कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने पिछले साल सितंबर में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को स्वयं के केस को तेजी से आगे बढ़ाने के लिए चिट्ठी लिखी थी.
पिछले 6 महीनों में असम में दो क्षेत्रीय दल उभरे हैं. पहला असम जातीय परिषद और दूसरा राइजर दल (जिसका हिंदी अर्थ होगा जनता पार्टी), दोनों क्रमशः ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन और कृषक मुक्ति संग्राम समिति आशीर्वाद से बने हैं. यह दोनों सामाजिक संगठन, सीएए कानून के खिलाफ हुए भारी प्रदर्शनों के पीछे के दो सबसे प्रमुख सामाजिक संगठन थे.
कांग्रेस के द्वारा गठबंधन का हिस्सा बनने के लिए बार-बार बुलाए जाने के बावजूद भी, एजेपी और आरडी दोनों ही गठबंधन से दूरी बनाए हुए हैं. इतना ही नहीं उन्होंने अपना चुनावी सफर अलग रास्ते से तय करने के लिए एक दूसरे से हाथ मिला लिया है.
एजेपी का सदस्य होने के नाते सादिक को इससे कुछ हताशा हुई है. उनका और मौशुमी का मानना है कि इस कदम से बहुत से चुनाव क्षेत्रों में, भाजपा के विरोध में पड़ने वाला वोट बंट जाएगा. वे कहते हैं, "मैं भी क्षेत्रवाद की वकालत करता हूं. लेकिन भाजपा जैसे विशाल संगठन को हराने के लिए आपको पर्याप्त संसाधन और संगठन चाहिए, जो अभी केवल कांग्रेस से ही मिल सकता है. इसीलिए, इस बार सबको उनके गठबंधन के अंदर आना चाहिए."
दीपांजल दास: "हमारे बलिदान व्यर्थ नहीं जाएंगे"
इस महाजोट से कई और परिवारों को भी उम्मीद मिली है, जिन्होंने अपने किसी प्रियजन को प्रदर्शनों के दौरान खोया था. गुवाहाटी से 50 किलोमीटर दक्षिण की ओर चयगांव में, दास परिवार के 3 बच्चों में से सबसे छोटे बच्चे की जान भी उसी दिन गुवाहाटी के राजगढ़ में गई जिस दिन सैम की मृत्यु हुई.
17 वर्षीय दीपांजल दास ने जब अपनी जान गवाई तो वह प्रदर्शन का हिस्सा नहीं थे. वह सैनिक वेलफेयर बोर्ड की कैंटीन में एक बावर्ची का काम करते थे और 12 दिसंबर 2019 की शाम को घर लौट रहे थे. दीपांजल को कथित तौर पर पेट में गोली लगी. उन्हें गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहां पर वह गंभीर चोटों की वजह से नहीं बचे.
उनकी मां कविता दास ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि कांग्रेस पार्टी और खास तौर पर उसके चयगांव के विधायक रकीबुद्दीन अहमद, उनके बेटे की मृत्यु के बाद से परिवार के लिए एक सहारा बने हैं.
कविता कहती हैं, “हम सीएए का विरोध करते हैं और अपने बेटे के लिए न्याय चाहते हैं जिसकी मौत आंदोलन के दौरान हुई. आने वाले चुनावों में, हम कांग्रेस से उम्मीद लगाए हैं कि वो भाजपा को सत्ता से हटा देगी”
कविता का कांग्रेस में भरोसा, दल द्वारा पिछले 15 महीने में मिले सहारे और मदद से पक्का हुआ. दो लाख रुपये की राशि के अलावा, पार्टी ने उनके पति को उनका साइकिल रिक्शा से बदलकर एक इ-रिक्शा भी दिया.
अपने घर से करीब 15 मीटर दूर, गांव की मुख्य सड़क से लगी एक जगह की तरफ इशारा करते हुए वे कहती हैं, “इससे अलग, हमारे लोकल विधायक यहां पर मेरे बेटे की याद में एक बच्चों का पार्क भी बनवा रहे हैं. उन्होंने एक स्मारक को भी आंशिक रूप से आर्थिक समर्थन दिया. उन्होंने मेरे पक्के घर के लिए भी थोड़ा आर्थिक मदद की, जिसका निर्माण कार्य अभी चालू है.”
रकीमुद्दीन के नेतृत्व में कांग्रेस का एक प्रतिनिधिमंडल हाल ही में उन्हें न्याय मिलने का भरोसा दिलाकर गया. इससे कविता प्रभावित हुईं, और उन्होंने पार्टी के सीएए विरोधी घर-घर जाने के आंदोलन से प्रभावित होकर एक पारंम्परिक असमिया कपड़े गमोसा पर हस्ताक्षर किये.
उन्होंने कहा, “हम मानते हैं कि अगर कांग्रेस नई सरकार बनाती है तो हमारे बलिदान व्यर्थ नहीं जायेंगे.”
लेकिन दास परिवार के लिए कांग्रेस का समर्थन एक नया अनुभव है. कविता बताती हैं कि 5 साल पहले विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा गठबंधन को वोट दिया था, लेकिन भाजपा और असम सरकार से कोई भी उनसे दीपांजल की मृत्यु के बाद मिलने नहीं आया.
उन्होंने बताया, "हमने जिससे सरकार का समर्थन किया उसी ने मेरे बेटे को इस दुनिया से रुखसत कर दिया. वही जिसे हम ने नकार दिया था वही हमारी हिम्मत का ज़रिया बना."
अगर सैम का मामला बहुत धीमी गति से चला है, तो दीपांजल को न्याय दिलाने की लड़ाई तो अभी शुरू भी नहीं हुई. गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में न तो उसका नाम लिखा था और न ही उसे गोली लगने के घाव का कोई जिक्र था. कविता कहती हैं कि इस वजह से परिवार अभी तक उस का मृत्यु प्रमाण पत्र भी नहीं ले पाया है, जो उनकी तरफ से पुलिस में शिकायत दर्ज कराने की राह में सबसे बड़ी अड़चन है.
कविता इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि दीपांजल को स्थानीय लोग ही अस्पताल ले गए थे, जिनमें से कई ने अपनी आंखों से उसे गोली लगते हुए देखा. कविता कहती हैं, "यह बात उसके शरीर पर मौजूद निशानों से भी स्पष्ट थी."
वे आगे बताती हैं, "यह सरकार की अपने अपराध को छुपाने के लिए एक चाल है. उन्होंने अस्पताल के अधिकारियों पर रिपोर्ट (पोस्टमार्टम) में गड़बड़ करने का दबाव डाला होगा. उन्होंने वहां के (पलटन बाजार) स्थानीय पुलिस स्टेशन के इंचार्ज को भी घटना के एक हफ्ते बाद बदल दिया."
पलटन बाजार पुलिस स्टेशन में 13 दिसंबर 2019 को दीपांजल की मृत्यु का स्वत: संज्ञान लेकर एक शिकायत दर्ज की थी. सब इंस्पेक्टर प्रणब वैश्य जांच अधिकारी थे और 1 मार्च को सोनापुर के एडिशनल कमिश्नर आबोतानी डोले को मामला सौंपे जाने से पहले, प्रणब ने अपनी शुरुआती रिपोर्ट दाखिल कर दी थी.
डोले ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि मामले कि अभी जांच चल रही है और वह उस पर कोई टिप्पणी नहीं कर सकते.
ईश्वर नायक: "भाजपा को दिए समर्थन का पछतावा है"
चयगांव से करीब 150 किलोमीटर दूर उदलगुड़ी जिले के मजूली चाय बागान में ईश्वर नायक का परिवार रहता है. ईश्वर के पिता निराकर नायक घर में ईश्वर के भाइयों गौतम और परमेश्वर के साथ रहते हैं. इनकी मां मालती नायक की 2018 में कैंसर की बीमारी से मृत्यु हो गई थी.
24 वर्षीय ईश्वर नायक, दिसंबर 2019 में गुवाहाटी में एक कमरा साझे में किराए पर लेकर रह रहे थे और एक कपड़े की दुकान में काम करते थे. 12 दिसंबर को शाम के करीब 6:00 बजे वह अपने दोस्त के साथ कुछ काम के लिए निकले हुए थे जब उनका सामना शहर के डाउनटाउन इलाके में सीएए विरोधी प्रदर्शन से हुआ. उनके दोस्त का कहना है कि पुलिस "भीड़ का पीछा करते हुए आई" और ईश्वर को गोली लग गई. 2 दिन बाद उसकी मृत्यु हो गई.
ईश्वर के परिवार ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया कि 2016 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने भाजपा को वोट दिया था इस उम्मीद से कि कुछ परिवर्तन आएगा. अब परमेश्वर कहते हैं कि जब भी उन्हें भाजपा का चुनाव चिन्ह कमल दिखाई देता है तो उनका पारा आसमान पर पहुंच जाता है.
कहते हैं, "जब भी मुझे भाजपा का चुनाव चिन्ह दिखाई देता है तो मेरे भाई का चेहरा मेरी आंखों के आगे आ जाता है. मुझे भाजपा को पहले दिए गए समर्थन का पछतावा है."
ईश्वर के पिता और भाइयों को उनका मृत्यु प्रमाण पत्र जनवरी 2020 में मिला. उसके अगले महीने परमेश्वर ने गुवाहाटी में डेप्युटी कमिश्नर के दफ्तर में अपना बयान रिकॉर्ड किया. तब से यह मामला आगे नहीं बढ़ा है.
वे बताते हैं, "कोविड से पैदा हुए हालातों ने हमारी योजना गड़बड़ कर दी. हम चुनाव खत्म होने के बाद एफआईआर दर्ज करवाएंगे."
इस दौरान परमेश्वर गौतम और निराकार असम में नई सरकार का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. परमेश्वर कहते हैं कि परिवार उदलगुड़ी विधानसभा क्षेत्र में रिहान डाइमरी का समर्थन करेगा, जो कांग्रेस गठबंधन के दल बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट के एक वरिष्ठ नेता हैं. उनके अनुसार, ईश्वर की मृत्यु के बाद परिवार को नकद मुआवजा मिला और डाइमरी में उनके घर से 50 मीटर दूर गोधूलि बाजार में एक स्मारक बनवाने में भी उनकी मदद की.
लेकिन परमेश्वर भाजपा से केवल सीएए या अपने भाई की मृत्यु की वजह से ही गुस्सा नहीं हैं. वह कहते हैं कि पार्टी की "विभाजक" राजनीति भी एक बड़ा कारण है. "उन्होंने लोगों को संप्रदायिक तौर पर आपस में बांटने की कोशिश की है. सीएए इसका स्पष्ट उदाहरण है."
न्यूजलॉन्ड्री ने जितने भी परिवारों से बात की, उन्होंने कांग्रेस और बाकी विपक्षी दलों से मिली सहायता और सरकार के ठंडे रवैये का उल्लेख किया, इन दलों में दोनों नए क्षेत्रीय दल भी शामिल हैं. विपक्ष के गठबंधन के प्रचार का असर दिखाई देता है. चुनाव से पूर्व किए जाने वाले सर्वे यह दिखाते हैं कि विपक्ष की संभावित सीटें धीरे-धीरे बढ़ रही हैं, और भाजपा गठबंधन से सीटों का अंतर कम होता जा रहा है.
और यह अनुमान तब के हैं जब बोडो पीपल्स फ्रंट विपक्ष के गठबंधन का हिस्सा नहीं बना था. वह दल जो करीब 10 विधानसभा क्षेत्रों में परिणाम अपने गठबंधन की तरफ झुका सकता है.
अब्दुल अलीम: "इंसानियत नहीं बची है"
निचले असम के बारपेटा जिले के होलोंगबाड़ी गांव में लाल मामूद अली रहते हैं. जिनका 23 वर्षीय बेटा अब्दुल अलीम, 12 दिसंबर 2019 को मारा गया जब कथित तौर पर पुलिस ने गुवाहाटी के लालुंगगांव में सीएए विरोधी प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दी थीं.
मामूद ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "मुझे 100 फ़ीसदी भरोसा है कि अगर एक गठबंधन की सरकार कांग्रेस के नेतृत्व में सत्ता में आती है तो मामला फास्ट ट्रैक हो जाएगा और न्याय तेजी से मिलेगा. शहीदों को मर्यादा मिलेगी, सम्मान मिलेगा."
अपनी मृत्यु से पहले अब्दुल गुवाहाटी में एक दवा और हार्डवेयर की दुकान में काम करते थे. 12 दिसंबर को सुबह 9:30 बजे उन्होंने अपने मालिक के कहने के अनुसार दुकान बंद कर दी क्योंकि पूरे शहर में कर्फ्यू लगाया जा रहा था. उस दिन सुबह उन्होंने अपने पिता से बात की थी और बताया था कि वह अगले दिन गांव आने की योजना बना रहे हैं.
अब्दुल करीब 1 किलोमीटर दूर अपने घर पैदल जा रहे थे जब उन्होंने कटाकीपारा में प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा हुजूम देखा.
सुरक्षा बल तेजी से भीड़ पर टूट पड़े और गोलियां चलानी शुरू कर दीं. एक गोली कथित तौर पर अब्दुल के सर में आकर लगी. चश्मदीदों ने मामूद को बताया कि संभवतः अब्दुल वहीं पर गुजर गया था, लेकिन उसे गुवाहाटी मेडिकल कॉलेज ले जाया गया जहां पर तीन दिन बाद उसे मृत घोषित कर दिया गया था.
अब्दुल की मृत्यु के बाद, मामूद के भाई एकब्बर ने 24 दिसंबर को परिवार की तरफ से गुवाहाटी के गरचुक पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई, जिसके थाना क्षेत्र में यह कथित गोलीबारी हुई थी. मामूद बताते हैं कि मृत्यु प्रमाण पत्र हासिल करना एक बहुत मुश्किल काम था. जब एक बार दर्ज हो गया तो उन्हें गुवाहाटी में एडिशनल डिप्टी कमिश्नर के द्वारा एक बार बयान दर्ज करने के लिए बुलाया गया. यह एक साल पहले की बात है और तब से इस मामले में उन्हें कोई जानकारी नहीं मिली है.
मामूद यह दलील देते हैं कि, यह मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल और उनके शक्तिशाली सहकर्मी हेमंत बिसवा शर्मा की बदमाशी की वजह से हुआ है.
वे कहते हैं, "भाजपा सरकार को सत्ता का नशा चढ़ गया है. उन्होंने मामले को रोक दिया है. सरकार बेशर्म है और उसमें कोई इंसानियत नहीं बची है."
गरचुक पुलिस थाने से अब्दुल की मौत के जांच अधिकारी अभिजीत गोगोई ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि एक प्राथमिक रिपोर्ट, एक साल पहले ही एडिशनल पुलिस कमिश्नर हिमांग्शु दास के पास दाखिल कर दी गई थी, जो अब इस मामले के जांच अधिकारी हैं. तब से ही मामला पुलिस क्राइम ब्रांच के डिप्टी कमिश्नर के अंतर्गत है और जांच चल रही है. दास ने मामले पर कोई भी टिप्पणी करने से इंकार कर दिया और देरी की भी कोई वजह नहीं बताई.
मामूद बताते हैं कि इस दौरान उन्हें कांग्रेस और उनके साथ गठबंधन में शामिल एआईयूडीएफ से आर्थिक सहायता मिली. होलोंगबाड़ी गांव भाबानीपुर चुनाव क्षेत्र में पड़ता है जहां के विधायक अबुल कलाम आजाद एआईयूडीएफ से हैं.
मामूद के लिए अब मिशन यह है कि जो सीएए के खिलाफ है जीत उसी की हो, हालांकि उन्होंने यह नहीं स्पष्ट किया कि वह वोट किसे देंगे.
वह कहते हैं, "सीएए के जरिए भाजपा सरकार और बांग्लादेशियों को असम में, जो पहले से ही इस बोझ से दबा है, लाना चाहती है. हम इसका समर्थन कभी नहीं कर सकते."
मामूद ने यह भी बताया कि वह अब गैर भाजपा सरकार लाने के लिए प्रचार कर रहे हैं और उन्होंने तय किया है कि अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से करीब 200 वोट इसके लिए डलवाएंगे. "सीएए और भाजपा के खिलाफ लड़ाई में यह मेरा योगदान होगा."
आशा भरी आवाज में वे कहते हैं, "सीएए विरोधी शहीदों की मृत्यु व्यर्थ नहीं जाएगी. जनता घमंडी भाजपा सरकार को एक करारा जवाब देगी."
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