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'सीपीआईएम यहां पहले ही जीत चुकी है': कन्नूर में केके शैलजा के साथ एक दिन
जब केरल के एक छोटे से शहर से केके शैलजा ने एक विज्ञान की शिक्षिका के रूप में शुरुआत की, तो उन्होंने शायद ही सोचा होगा कि एक दिन लोगों की टी-शर्ट पर उनका चेहरा छपा होगा.
शैलजा, जिन्हें लोग प्यार से 'शैलजा टीचर' कहते हैं, केरल की स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण मंत्री हैं. उनकी लोकप्रियता किसी भी राजनेता से अधिक है. पिछले दिसंबर में फाइनेंशियल टाइम्स ने उन्हें 2020 की सबसे प्रभावशाली महिलाओं में से एक के रूप में नामित किया था. केरल में कोविड महामारी के दौरान उनके काम के लिए उन्हें संयुक्त राष्ट्र द्वारा सम्मानित भी किया गया है.
पिछले कुछ दिनों से शैलजा टीचर कन्नूर जिले के मट्टननुर में सभाएं कर रही हैं और मतदाताओं से बातचीत कर रही हैं. वह आगामी विधानसभा चुनाव में मट्टननुर से मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआईएम) की प्रत्याशी हैं.
मट्टननुर केरल के 140 निर्वाचन क्षेत्रों में से एक है. यह पश्चिमी घाट की तलहटी पर स्थित है. निर्वाचन क्षेत्र का गठन 2008 में किया गया था, जो पेरवूर, कुथुपरम्बा और इक्किकुर के कुछ हिस्सों को मिलाकर बना था. अब तक मट्टननुर में 2011 और 2016 में दो विधानसभा चुनाव हुए हैं. सीपीआईएम के ईपी जयराजन, जो राज्य के उद्योग मंत्री भी हैं, दोनों बार यहां से चुनकर आए.
हालांकि 1987 के बाद यह पहली बार है जब जयराजन चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. कहा जा रहा है कि उन्हें सीपीआईएम का राज्य सचिव बनाया जा सकता है.
उनके स्थान पर केके शैलजा चुनाव लड़ रही हैं, जिन्हें अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा 'कोविड रॉकस्टार' और 'कोरोनवायरस विनाशक' बताया गया है. वह रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी के इलिक्कल अगस्टी के खिलाफ खड़ी हैं, जो कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट का हिस्सा हैं.
यह पूछने पर कि क्या वह रॉकस्टार जैसा महसूस करती हैं, बेहद मृदुभाषी शैलजा हंस देती हैं.
"नहीं, नहीं," वह कहती हैं, "मैंने सुना किसी ने मेरे बारे में ऐसा कहा, लेकिन यह बहुत व्यस्त समय है और यह पूरी तरह से टीमवर्क है."
राजनैतिक जीवन शैलजा के लिए नया नहीं है. उनकी नानी, जिन्होंने उन्हें सबसे अधिक प्रभावित किया, एक निष्ठावान कम्युनिस्ट थीं, जिन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान कम्युनिस्ट नेताओं को छिपाने में मदद की. केरल में जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ किसानों की लड़ाई में भाग लेने के लिए उसके चाचाओं को जेल में यातनाएं दी गई थीं.
एक छात्रा के रूप में शैलजा सीपीआईएम की छात्र शाखा स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (एसएफआई) और फिर युवा विंग डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ़ इंडिया (डीवाईएफआई) में शामिल हुई. 2004 में राजनीति में आने के लिए उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेने से पहले 23 वर्षों तक मट्टननुर में एक शिक्षिका के रूप में काम किया.
आज वह पिनराई विजयन के मंत्रिमंडल की दो महिला मंत्रियों में से एक हैं. पहली बार उन्होंने 2018 में राज्य में निपाह वायरस के प्रकोप के दौरान अपने काम के लिए राष्ट्रीय प्रसिद्धि अर्जित की. यहां तक कि उन पर एक फिल्म भी बनाई गई. पिछले साल उन्होंने कोविड के खिलाफ लड़ाई में अपने कुशल संचालन के लिए नाम कमाया. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने पिछली जुलाई में 'केरल से सीख' के बारे में लिखा जो शैलजा और उनकी टीम द्वारा वायरस से लड़ने के लिए बनाए गए केरल मॉडल पर आधारित था.
'मैं खाना बनाऊं या नहीं यह सोचने की बात नहीं है'
20 मार्च की दोपहर को मट्टननुर में एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद शैलजा अपनी इनोवा कार में चढ़ीं. गहरे नीले और सफेद रंग की सूती साड़ी और सफेद मास्क पहने शैलजा अपने पति एन भास्करन के साथ संकरी गलियों से होते हुए दोपहर के भोजन के लिए एक रिश्तेदार के घर पहुंचीं. भास्करन, जो मट्टननुर नगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं, अपने डीवाईएफआई के दिनों में शैलजा से मिले थे.
रिश्तेदार के घर पहुंचकर शैलजा ने मास्क उतारकर गहरी सांस ली और पंखे के सामने एक प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठ गईं. इस बीच टीचर अम्मा की एक झलक पाने के लिए गांव के लोग रूम में जमा थे. कुछ ने सफेद टी-शर्ट पहनी थी जिस पर शैलजा का चेहरा छपा था, और बच्चे सीपीआईएम के रंग वाले लाल गुब्बारे लिए थे. युवा लड़कियों ने उसके साथ सेल्फी लेने का अनुरोध किया. वह तुरंत मान गईं और उनके फोन कैमरों के सामने मुस्कुराते हुए खड़ी हो गईं.
शैलजा के पास ही उनके तीन सशस्त्र अंगरक्षकों में से एक शाहजहां खड़े हैं. तीनों अंगरक्षक बारी-बारी से उनकी सुरक्षा में तैनात रहते हैं. सादे कपड़ों में शाह जहां शैलजा के कार्यक्रम का विवरण रखते हैं, मीडिया के साथ बातचीत करते हैं, और शैलजा और उनसे मिलने आने वालों के बीच संपर्क का काम करते हैं. वह इन बातों का भी ध्यान रखते हैं कि शैलजा को जरूरी चीज़ें मिलती रहें, जैसे कि पानी.
"हम पांच सालों से इन के साथ हैं," शाहजहां न्यूज़लॉन्ड्री से कहते हैं. "हम तीन हैं और बारी-बारी से इनकी सुरक्षा में तैनात रहते हैं. हम में से हर एक इनके साथ एक हफ्ते तक रहता है. इनके लिए काम करना मां के लिए काम करने जैसा है. वह हमेशा मुझे बेटे के तरह मानती हैं."
शैलजा वर्तमान में मट्टननुर के एक गांव पजहस्सी में अपने परिवार के घर में रहती हैं. उनका दिन आमतौर पर सुबह 7.30 बजे शुरू होता है. "लोग उनसे मिलने आते हैं," शाह जहां ने बताया. “वह उन्हें शुभकामनाएं देते हैं और कभी-कभार किसी मदद के लिए भी उनके पास आते हैं. तो वह अपने चुनाव प्रचार पर निकलने से पहले उनसे मिलती है."
आमतौर पर रात 9.30 बजे तक शैलजा घर वापस आ जाती हैं. इसके बाद वह टीम की बैठकों में हिस्सा लेती हैं जो रात 12.30 बजे तक चलती है. इस प्रकार वह मंत्री पद के कर्तव्यों और चुनाव प्रचार में समन्वय बनाती हैं.
हम शाहजहां के साथ बातचीत ही कर रहे थे कि शैलजा अपना भोजन समाप्त कर अपने पति के साथ पड़ोस के घर चली गईं. वहां दोनों मीडिया से बात करने के लिए एक सोफे पर बैठ गए.
बातचीत के दौरान मातृभूमि के पत्रकार रॉबिन राजू ने भास्करन से पूछा, "शैलजा एक मंत्री हैं, लेकिन क्या वह घर पर खाना अच्छा बनाती है?"
शैलजा ने तुरंत पलट कर कहा, “मैं खाना बनाती हूं या नहीं यह इस चुनाव का विषय नहीं है. या है?"
जब राजू ने इस से बचते हुए अपने अगले सवाल पर बढ़ने की कोशिश की तो शैलजा ने उन्हें रोका. “बात मत बदलिए. आप सभी एक महिला से पूछना चाहते हैं कि क्या वह खाना बनाती है. हमारे घर में हर कोई खाना बनाता है. अगर मुझे रसोई में धकेल दिया गया होता तो मैं यहां नहीं होती."
शैलजा ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया कि एक महिला के रूप में उनके परिवार ने कभी उनसे भेदभाव नहीं किया या उनपर घर के काम-काज का बोझ नहीं लादा. यह सिर्फ मीडिया ही था जिसने उनसे बार-बार 'महिला राजनीतिज्ञ' होने के अनुभवों के बारे में पूछा.
उन्होंने यह भी माना कि यह प्रश्न थोड़ा-बहुत उपयुक्त भी है. "अच्छा है यदि यह सवाल किया जाए क्योंकि तब मैं समाज के पाखंड के बारे में बात कर सकती हूं," उन्होंने कहा. “भले ही मैं कभी दबाव में नहीं थी, लेकिन काम करने वाली ज्यादातर महिलाओं को अपने घर के काम और अपने राजनीतिक जीवन को संतुलित करना पड़ता है. वे वास्तव में पीड़ित हैं."
भास्करन ने कहा कि अब समय आ गया है जब केरल के पुरुषों को अपनी सोच बदलनी पड़ेगी, और पेशेवर क्षेत्रों में महिलाओं का समर्थन करना होगा. उन्होंने बताया कि पिछले विधानसभा चुनाव में 140 निर्वाचित विधायकों में से केवल आठ महिलाएं थीं- विधानसभा का केवल 5.7 प्रतिशत. सभी आठ महिलाएं वाम लोकतांत्रिक मोर्चा से थीं.
मट्टननुर यात्रा के दौरान हमें ऐसा लग रहा था जैसे इस निर्वाचन क्षेत्र में केवल एक ही चुनावी उम्मीदवार हो. सड़कों के किनारे दीवारों पर, पेड़ों पर और बड़े बिलबोर्ड्स पर सब जगह सिर्फ शैलजा के पोस्टर लगे थे.
"यहां टीचर अम्मा के लिए कोई प्रतिस्पर्धा नहीं है," मट्टननुर में सड़क के किनारे एक भोजनालय में काम करने वाली श्रीजा श्रीजीत ने कहा, "यहां तक कि जो लोग आमतौर पर यूडीएफ को वोट देते हैं, वह भी इस बार एलडीएफ के लिए मतदान करेंगे क्योंकि यहां शैलजा टीचर चुनाव लड़ रही हैं."
65 वर्षीय गोविंदन को देखकर तो ऐसा ही लगता है. उन्होंने अपने दोस्तों को आश्वासन दिया है हालांकि वह आमतौर पर कांग्रेस के लिए वोट करते हैं, लेकिन इस बार उनका वोट शैलजा टीचर को मिलेगा.
कन्नूर में राजनैतिक हत्याएं
फिर भी, मट्टननुर में हर कोई शैलजा को लेकर उतना उत्साहित नहीं है. जहां शैलजा ने भोजन किया था वहां से सात किलोमीटर दूर हम सीपी मुहम्मद से मिले, जिन्होंने 2018 में यह प्रण लिया था कि वह सीपीआईएम को 'कभी भी वोट नहीं देंगे'.
मुहम्मद ने बताया कि 12 फरवरी, 2018 की देर रात उनके बेटे एसपी शुहैब के एक्सीडेंट की खबर उन्हें जगाया. गल्फ़ में रहने वाल युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता शुहैब तीन साल में पहली बार छुट्टी पर घर आए थे. उन्हें चार दिनों में वापस लौटना था.
अगली सुबह जाकर मुहम्मद को पता चला कि शुहैब अब नहीं रहे. आरोप है कि उन पर कुछ लोगों ने बम से हमला किया और फिर तलवार से उनकी हत्या कर दी. "उनके शरीर पर धारदार हथियार से कई वार किए गए थे," उनके पिता ने कहा. मुहम्मद ने कहा कि उन्होंने अपने बेटे का क्षत-विक्षत शव देखने से मना कर दिया था और पोस्टमार्टम के उपरांत टांके लगाने के बाद ही उन्होंने उसे देखा था.
ख़बरों के अनुसार शुहैब को सीपीआईएम कार्यकर्ताओं के एक समूह ने मार दिया था. ऐसी हिंसा यहां असामान्य नहीं है. साल 2000 से 2016 के बीच, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और सीपीआईएम के बीच वर्चस्व की लड़ाई में कन्नूर में कम से कम 69 राजनैतिक हत्याएं हुईं. न्यूज़मिनट के अनुसार शुहैब की हत्या केरल में 2016 में पिनराई विजयन के मुख्यमंत्री बनने के बाद से 21 वीं राजनैतिक मृत्यु है.
शुहैब के मामले में शुरू-शुरू में एलडीएफ सरकार ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं की भूमिका से इंकार कर दिया. लेकिन आगे चलकर सीपीआईएम ने हत्या के आरोपी चार कार्यकर्ताओं को निलंबित कर दिया. मामले में वर्तमान में 17 आरोपी हैं, और सभी सीपीआईएम कार्यकर्ता हैं. कांग्रेस ने शुहैब के परिवार को मदद दी और मामले की सीबीआई जांच की मांग की. इस अनुरोध को 2019 में केरल उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया.
नतीजतन, मुहम्मद कहते हैं कि वह सीपीआईएम को कभी भी वोट नहीं देंगे.
"पार्टी (सीपीआईएम) का एक भी व्यक्ति हमसे मिलने नहीं गया," उन्होंने कहा. "उनका अपने कार्यकर्ताओं को निलंबित करना यह दर्शाता है कि वे मानते हैं कि मेरे बेटे की मौत में उनकी पार्टी की भूमिका थी. फिर भी, वह कभी नहीं आए.”
जब न्यूज़लॉन्ड्री ने शैलजा से पूछा कि क्या वह शुहैब के परिवार से मिलेंगी, तो उन्होंने सवाल से बचने का प्रयास किया. "हम किसी परिवार के खिलाफ नहीं हैं," उन्होंने कहा. “कोई भी हत्या दुखद है. उस समय की स्थिति ऐसी ही थी." उन्होंने कहा कि कन्नूर में शुहैब की मौत एकमात्र ऐसा मामला नहीं है और सीपीआईएम 'सभी राजनैतिक हत्याओं' की निंदा करती है.
मुहम्मद ने कहा, "सीपीआईएम थोड़ी भी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर सकती. यदि आप उनके खिलाफ खुलकर बोलते हैं, तो वे आपको मार देंगे या आपके हाथ-पैर काट कर सड़ने के लिए छोड़ देंगे. आपको रास्ते से हटाने के लिए जो कुछ भी करना पड़े, वह करेंगे. केके शैलजा एक बेहतरीन महिला हो सकती हैं. उन्होंने कोविड के दौरान बहुत अच्छा काम किया होगा. लेकिन मैंने अपने बेटे को खोया है और उनके पार्टी कार्यकर्ताओं ने ही उसे मार डाला. मेरे लिए बस यही मायने रखता है.”
मुहम्मद अब अपने बेटे के नाम पर कपड़ों की दुकान चलाते हैं, जिसे उन्होंने चार महीने पहले स्थापित किया था. "अब मुझे अपना जीवन फिर से शुरू करना है," उन्होंने कहा, "वरना मैं भी इस राजनैतिक उठापटक में खो जाऊंगा."
निष्कर्ष
लेकिन शुहैब के मामले ने मट्टननुर के मतदाताओं को अपनी राजनैतिक निष्ठाओं पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित नहीं किया है. सीपी मुहम्मद की दुकान से कुछ ही दूर, एक स्थानीय चाय की दुकान पर चार लोगों ने न्यूज़लॉन्ड्री से ऐसा ही कहा. उनमें से तीन सीपीआईएम के वफादार थे; चौथा कांग्रेस के लिए वोट करता है.
"शैलजा टीचर हमारी हैं," 62 वर्षीय मूसेकुट्टी ने कहा. "मट्टननुर विधानसभा सीपीआईएम की है, यह तथ्य नहीं बदलेगा.”
चाय की दुकान के मालिक, 65 वर्षीय एस श्रीधरन ने बताया कि जब शुहैब की हत्या हुई थी तो कुछ विरोध-प्रदर्शन हुए थे लेकिन सबकुछ जल्दी ही भुला दिया गया. उन्होंने कहा, "सड़क से उतर कर उस ब्रिज पर जाएं जहां सभी राजनैतिक पोस्टर और झंडे लगे हैं. आपको एक भी आरएसपी का झंडा नहीं दिखेगा. सीपीआईएम यहां पहले ही जीत चुकी है.”
फोटो आदित्य वारियर, ध्यानेश वैष्णव के इनपुट्स के साथ
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