Newslaundry Hindi
संकटग्रस्त एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री के वर्कर्स नहीं झेल पायेंगे एक और लॉकडाउन
चमक-दमक से भरपूर मुंबई की एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में करीब एक लाख लोग दैनिक मजदूरी पर काम करते हैं. पिछले साल जब कोरोना वायरस से फैली वैश्विक महामारी के कारण यह इंडस्ट्री बंद हो गयी तो ये लोग रातों-रात काम से निकाल दिए गये. कोरोना संक्रमण की रोकथाम के लिए लगाये गए लॉकडाउन के जून, 2020 में खुलने पर ही ये इंडस्ट्री कुछ हद तक पटरी पर आना शुरू हुई. महाराष्ट्र सरकार ने फिल्मों और टेलीविज़न के लिए की जाने वाली शूटिंग की छूट तो दे दी पर ऑरिजिनल क्रू के केवल 33 प्रतिशत सदस्यों के साथ ही. टीवी और वेब सीरीज़ की शूटिंग ने तो तेजी पकड़ ली है पर अभी भी फिल्मों की शूटिंग का काम पहले की तुलना में बहुत कम है. ग्लैमर के साये में जीने और रोजी-रोटी कमाने वाले इन दिहाड़ी कामगारों के लिए इस सबका मतलब है, काम की कमी. अब जब कि मुंबई संक्रमणों की नयी लहर की गिरफ़्त में है. ऐसे में इन कामगारों की ज़िंदगियां और भी ज्यादा बदहाल होनी तय हैं.
पिछले हफ़्ते शहर में कोरोना वायरस से संक्रमण के कुल 63,000 नए मामले दर्ज किए गये जिस कारण महाराष्ट्र सरकार को थिएटरों, शॉपिंग मॉल्स, रेस्टोरेंट्स आदि को बंद करने और नाइट कर्फ्यू के साथ ही साप्ताहिक लॉकडाउन लगाने के कदम भी उठाने पड़ें. विजय बाथम को लॉकडाउन के और अधिक सख़्त होने के साथ ही उसकी अवधि भी बढ़ाये जाने की अफ़वाहें बेहद परेशान कर देती हैं. "अगर एक बार फिर से लॉकडाउन लग गया तो भी मैं मुंबई में ही रहूंगा, फिर चाहे जो भी हो. मेरे लिए परिवार के साथ बार-बार एक जगह से दूसरी जगह पर भटकाते रहना एक बेहद परेशानी भरा काम है." उन्होंने कहा.
विजय पिछले करीब 20 सालों से स्पॉट बॉय के तौर पर काम कर रहे हैं. विजय जिन दिनों भूल-भूलैया-2 के सेट पर काम कर रहे थें उसी दौरान फ़िल्म के मुख्य अभिनेता कार्तिक आर्यन कोरोना वायरस से संक्रमित हो गये और इस वजह से शूटिंग रोक दी गयी. विजय और दूसरे स्पॉट बॉयज़ के अलावा तकनीशियन और लाइटमैन जैसे कर्मचारी भी जिनको दिहाड़ी पर रखा जाता है, दूसरे प्रोजेक्ट्स में काम पाने के लिए हाथ-पैर मारने को मजबूर हो गयें. इसके बाद विजय को धर्मा प्रोडक्शन्स की एक फ़िल्म में काम मिला पर वहां भी अभिनेता विक्की कौशल के कोरोना पॉज़िटिव होने पर शूटिंग अचानक रोक दी गयी और विजय एक बार फिर से बेरोजगार हो गये.
फ़िल्म इंडस्ट्री का कामकाज खासकर इसलिए भी रुक गया है क्योंकि पिछले हफ़्ते करीब दर्जन भर अभिनेता और क्रू के सदस्य कोरोना वायरस पॉजिटिव हो गये. 04 अप्रैल को इस बात की पुष्टि हो गयी कि राम सेतु फ़िल्म के मुख्य अभिनेता अक्षय कुमार कोरोना संक्रमित हैं. इसके अगले ही दिन इस फ़िल्म के सेट पर काम करने वाले 45 जूनियर आर्टिस्ट भी कोरोना पॉज़िटिव निकल गये.
आज से करीब एक साल पहले की बात है जब विजय शहर से बाहर एक शूटिंग में काम कर रहे थे. उसी दौरान सेट पर लॉकडाउन की ख़बर ने खलबली मचा दी. शूटिंग रद्द कर दी गयी और वो मुंबई लौट आये. जून में जब प्रवासियों के लिए स्पेशल ट्रेनें चलने लगीं तब कहीं जाकर वो उत्तरप्रदेश में लखनऊ के नजदीक स्थित अपने गांव के लिए निकल पाये.
उन्होंने शिकायत करते हुए कहा, "पूरा साल ही बेकार था. कोई काम ही नहीं था."
शायद उन्हें लगने लगा है कि उन्हें दोबारा एक लंबा वक्त बिना किसी काम के गुजारना पड़ेगा. जिस टीम के साथ विजय काम कर रहे हैं उसने उन्हें बताया है कि कम से कम अगले 10 दिनों तक ऐसा कोई भी प्रोजेक्ट नहीं है जहां उन लोगों को काम मिल सके.
स्थिति इतनी भयावह है कि 5,00,000 सदस्यों वाली कर्मचारी यूनियन, फेडरेशन ऑफ वैस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉयीज़ ने पिछले हफ़्ते मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी है कि वो एक बार फिर से लॉकडाउन की घोषणा न करें.
"बिना काम और बिना तनख़्वाह के बदहाल जिंदगियों और बिना खाने के भूख से तड़पते परिवारों और तरह-तरह की कमियों को झेलते बच्चों के साथ एक पूरा साल गुजर गया. लोगों की दशा बेहद खराब और दयनीय थी. उन्हें अपनी गरीबी और भूख से अकेले ही बिना किसी सरकारी मदद के लड़ाई लड़नी पड़ी." यूनियन ने अपनी चिट्ठी में लिखा है.
हाल ही में फ़िल्म निर्माता हंसल मेहता ने इंडस्ट्री में दैनिक मजदूरी के हिसाब से काम करने वाले कलाकारों और दूसरे कामगारों के लिए आवाज उठाई है.
अनिश्चितताओं के भंवर जाल में फंसी ज़िंदगियां
मड आइलैंड के एक बंग्ले में लगे किसी डेली सोप के सेट पर क्रू मेंबर्स द्वारा चिल्ला-चिल्लाकर दी जाने वाली हिदायतों, तकनीशियनों द्वारा प्रोडक्शन से जुड़े साजो-सामान के यहां-वहां लाने ले जाने, अंदर घुसने के रास्ते पर अभिनेताओं की बड़ी-बड़ी सफेद वैनिटी वैनों की कतारों से खूब चहल-पहल का माहौल है.
इस सबसे दूर 53 साल के सत्तार शेख़ एक काम चलाऊ और खुली छत वाले रसोईघर में स्टोव के पास खड़े हैं. करीब दो दशकों तक टीवी धारावाहिकों और फ़िल्मों के सेट पर काम कर चुके शेख़ बताते हैं कि उनके पेशे में यह निश्चित ही नहीं है कि उन्हें किस तरह के काम करने होंगे. बतौर एक स्पॉट बॉय जिसे आमतौर पर ‘‘स्पॉट दादा’’ कहकर पुकारा जाता है, उन्हें रोजाना के 700-1000 रुपये के हिसाब से सेट पर कोई भी काम करने को दे दिया जाता है.
"पिछले साल जब काम पूरी तरह बंद पड़ गया तो ज़िंदगी ऐसी लगने लगी जैसे बिना पेट्रोल की कार, पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी. लेकिन ये दोबारा हुआ तो कार का ऐसा ब्रेक डाउन होगा कि उसकी मरम्मत कराने का भी कोई फायदा नहीं होगा." उन्होंने कहा.
यह पूछे जाने पर कि इंडस्ट्री के जो लोग उन्हें काम पर रखते हैं क्या उनसे उन्हे कोई मदद नहीं मिलती? उन्होंने जवाब दिया, "स्पॉट बॉय को कोई याद नहीं रखता." थोड़ा-सा हंसकर उन्होंने आगे कहा, "वो पूरे दिन तुम्हे दादा कहकर ही तुमसे बात करेंगे पर जैसे ही शूटिंग खत्म होगी वो अपनी चमचमाती कारों की खिड़कियों के शीशे चढ़ाकर अजनबियों की तरह निकल जायेंगे."
हालांकि सिनेमा एम्प्लॉयीज यूनियन के अध्यक्ष बीएन तिवारी ने बताया, "लॉकडाउन के दौरान फ़िल्म और टीवी से जुड़े कई मशहूर लोगों ने उन्हें रोजाना की तनख़्वाह पर काम करने वालों के लिए लगभग 45 करोड़ रुपये इकट्ठा करने में मदद की थी. इन लोगों के हालात बहुत बदतर थे. कई लोग अपने-अपने गांव चले गये और बहुत-से लोग तो अब तक लौटकर नहीं आये.
उन्होंने अफ़सोस जाहिर करते हुए कहा, "न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने इन कर्मचारियों की रुपये-पैसे से कोई भी मदद की जबकि उनकी यूनियन ने इसके लिए कई बार सरकार को कहा था."
नींद के बिना कटती रातें
सन 1988 से स्पॉट बॉय का काम करने वाले 44 साल के समशेर ख़ान का कहना है, "उन्होंने तब से लेकर अब तक इतने सालों में कभी भी लॉकडाउन जैसा मुश्किल दौर नहीं देखा है. बहुत सारी परेशानियां थीं. उन दिनों के बारे में सोचते हुए कई बार तो दिमाग ही काम करना बंद कर देता है."
समशेर ने पिछले साल जून में मुंबई से उत्तर प्रदेश के लिए बस ली फिर वहां से झारखंड होते हुए बिहार में स्थित अपने गांव पहुंचे और इस साल जनवरी तक वहीं रुके रहें. उन्हें दोबारा काम मिलने में थोड़ा वक्त लगा. अब जब उन्होंने दोबारा उसी सेट पर नियमित तौर पर काम करना शुरू कर दिया है जिस पर सत्तार भी काम कर रहे हैं तो एक बार फिर से एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री पर अनिश्चितता की तलवार लटकने लगी है.
19 साल का नौजवान सलमान ख़ान जो कि एक वैनिटी वैन के हैल्पर के तौर पर काम करता है, पिछले साल पूरे लॉकडाउन के दौरान दिल्ली में अपने घर भी नहीं जा पाया था. उसने फ़िल्म सिटी, गोरेगांव में एक किराए के कमरे में ही ठहरने का फैसला किया लेकिन उसका ये फैसला उसे बहुत महंगा पड़ा और उसकी बचत के सारे पैसे, लगभग 90,000 रूपये खर्च हो गये.
ऐसे में तो वो एक और लॉकडाउन झेलने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं. उन्होंने कहा, "ऐसा हुआ तो इस बार सब कुछ ख़त्म हो जाएगा."
इंडस्ट्री में इसी तरह के रोजाना की तनख़्वाह पर काम करने के लिए आने वाले चांद जैसे नए लोगों के लिए हालात और भी कठिन हैं.
32 साल के चांद सफेद कपड़ों के ढेर के बीच एक टीवी शूट के लाइटिंग सेटअप को तैयार करने के लिए बैठे हुए हैं और हर कपड़े के टुकड़े पर उसके माप के हिसाब से नंबर डाल रहे हैं. हमसे बातचीत के दौरान उन्होंने उन दिनों को याद किया जब लॉकडाउन के कारण स्कूल वैन के ड्राइवर की नौकरी छूटने के बाद वो इस इंडस्ट्री में अपने लिए काम ढूंढ रहे थें.
"जून से लेकर अक्टूबर तक मुझे 10 दिनों में से केवल दो ही दिन काम मिल पाता था." उन्होंने बताया.
उन्होंने आगे कहा, "पिछले कुछ महीनों से उन्हें महीने में करीब 15 दिन काम मिलने लगा है. लेकिन अब मैं पहले की तरह रातों को सो नहीं पाता. इसका कारण ये है कि वो लगातार इसी चिंता में डूबे रहते हैं कि कहीं फिर से शहर में लॉकडाउन न लग जाए और इसके साथ ही एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री भी बंद न हो जाए.
'एक्स्ट्राज़' की छंटनी
पिछले साल जब महाराष्ट्र सरकार ने दोबारा शूटिंग करने की इजाज़त दी तो इसके साथ ही निर्माताओं पर अपने क्रू के सदस्यों की संख्या को कम कर उसे जितना हो सके उतना छोटा करने की शर्त भी लाद दी. जूनियर आर्टिस्ट के तौर पर काम करने वाले या जिन्हें आमतौर पर 'एक्सट्राज़' कहा जाता है, की रोजी-रोटी के सहारे पर ये शर्त एक बहुत बड़ी चोट थी.
"नए नियम-कायदों के कारण लेखक ऐसी स्क्रिप्ट्स तैयार कर रहे हैं जिससे कम से कम जूनियर आर्टिस्ट्स की जरूरत पड़े." ये कहना है 52 साल के रइस काज़ी का जो 15 जूनियर आर्टिस्ट्स की एक टीम चलाते हैं.
उनका अंदाज़ा है कि मुंबई, जूनियर आर्टिस्ट्स एसोसिएशन के करीब 1400 सदस्यों में से कम से कम 500 सदस्यों ने पिछले साल से अब तक एक बेहतर जिंदगी की तलाश में इंडस्ट्री छोड़ दी है और सदस्यता के लिए दी जाने वाली शुरुआती फ़ीस के बदले अपने सदस्यता कार्ड भी दूसरों के नाम ट्रांसफर कर दिये हैं.
महिला कलाकार संघ की एक सदस्य लक्ष्मी गोस्वामी कहती हैं, "महिला जूनियर आर्टिस्ट्स के लिए अलग-अलग तरह की कई जटिल समस्याएं मौजूद हैं. इनमें से कुछ महिलाएं विधवा हैं, तो कुछ एकल माएं हैं. उनके बचत के पैसे ख़त्म हो चुके हैं. पिछले साल उन्होंने बहुत सारी मुसीबतें झेली और उनके पास कोई सहारा नहीं था."
जिन लोगों के पास इस वक़्त काम है वो भी एक अलग ही तरह के मुश्किल दौर से गुजर रहे हैं. हेयर और मेकअप आर्टिस्ट्स को हर वक़्त पीपीई किट पहननी पड़ती है. अब चूंकि अभिनेताओं के लिए शूट्स के दौरान मास्क पहनना जरूरी नहीं है तो ऐसे में हेयर या मेकअप आर्टिस्ट्स को दोहरी सतर्कता बरतनी पड़ती है.
"इसके भीतर ऐसा लगता है जैसे कि मैं पिघल रहा हूं. पसीने वगैरह से फेस शील्ड पर भाप जम जाती है और बचाव के लिए पहने गए दस्तानों को पहनने के कारण मेकअप ब्रश अक़्सर हमारे हाथों से फिसलता रहता है." एक मेकअप आर्टिस्ट ने नाम न बताने की शर्त पर पीपीई किट की ओर इशारा करते हुए कहा.
उन्होंने आगे बताया कि वैसे तो वो ये काम पिछले करीब 10 सालों से कर रहे हैं पर अभी तक इस वैश्विक आपदा से आए बदलावों के हिसाब से खुद को ढालना सीख ही रहे हैं.
22 साल के एक दूसरे हेयर स्टाइलिस्ट, गुलफ़ाम अली ने शिकायती लहज़े में कहा, "मुझे लगता है कि लॉकडाउन के कारण मैं इस इंडस्ट्री में पांच साल पीछे चला गया हूं. हमारा खर्च हमारी कमाई से ज्यादा हो गया है."
Also Read
-
India’s real war with Pak is about an idea. It can’t let trolls drive the narrative
-
How Faisal Malik became Panchayat’s Prahlad Cha
-
Explained: Did Maharashtra’s voter additions trigger ECI checks?
-
‘Oruvanukku Oruthi’: Why this discourse around Rithanya's suicide must be called out
-
Hafta letters: ‘Normalised’ issues, tourism in EU, ideas for letters