Khabar Baazi
पार्थ एम.एन और जेफ जोसेफ को मिला प्रेम भाटिया पत्रकारिता पुरस्कार
फ्रीलांस पत्रकार पार्थ एम. एन. और जेफ जोसेफ पॉल को पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए प्रेम भाटिया पुरस्कार मिला है. पार्थ को राजनीतिक पत्रकारिता और जेफ को पर्यावरणीय पत्रकारिकता की श्रेणी में ये पुरस्कार मिला है.
पार्थ को हेट क्राइम्स और हाशिये पर खड़े समुदायों पर उनके काम के लिए सम्मानित किया गया. वहीं, पॉल को पर्यावरण के क्षेत्र में उनके काम के लिए सम्मानित किया गया. इसके अलावा ज्यूरी ने ‘द क्विंट’ की फातिमा खान का सांप्रदायिक घटनाओं पर उनके वीडियो रिपोर्ट्स के लिए विशेष उल्लेख किया.
दिल्ली में आयोजित इस कार्यक्रम में, भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने मीडिया और न्यायपालिका के बीच समानताओं और असमानताओं पर बात की.
इस दौरान उन्होंने कहा, “एक स्वस्थ लोकतंत्र को ऐसे समाचार माध्यम की ज़रूरत होती है जो प्रतिभागियों के बीच विचारों का प्रभावी आदान-प्रदान सुनिश्चित करे. यह तब और प्रभावी होता है जब प्रतिभागी अनेक दृष्टिकोणों को परखकर मुद्दों का आदर्श पहलू या समाधान खोजते हैं. चर्चा में विचार स्पष्ट रूप से रखे जाने चाहिए और दर्शकों में यह क्षमता होनी चाहिए कि वे एक-दूसरे के दृष्टिकोण को सुनें, समझें और उस पर संवाद करें. हमें ऐसी भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो सम्मानजनक हो, अपमानजनक नहीं.”
पूर्व सीजेआई ने कहा कि “हमारे संस्थान अक्सर एक मंच साझा नहीं करते. हालांकि हमारा उद्देश्य एक ही है यानि आम नागरिक की सेवा में प्रहरी संस्थान के रूप में कार्य करना. मूल रूप से हम दोनों सत्य के खोजी हैं, भले ही हमारे रास्ते अलग हों.”
उन्होंने कहा, “भारत की स्वतंत्रता के 75 साल बाद सवाल यह नहीं है कि क्या हमारे पास विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है. सवाल यह है कि क्या यह स्वतंत्रता अधिक समावेशी और अधिक सशक्त हुई है. क्या इसने अपना दायरा बढ़ाकर नई आवाज़ों, गहरी असहमति और व्यापक विमर्श को शामिल किया है? क्या इसने मौजूदा समय की मांगों का सार्थक उत्तर दिया है?”
प्रेम भाटिया पत्रकारिता पुरस्कार और व्याख्यान 1955 में द ट्रिब्यून के वरिष्ठ संपादक प्रेम भाटिया की स्मृति में प्रेम भाटिया मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा शुरू किए गए थे. पिछले साल, ट्रस्ट ने अपनी कोष राशि एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया को सौंप दी थी.
भ्रामक और गलत सूचनाओं के इस दौर में आपको ऐसी खबरों की ज़रूरत है जो तथ्यपरक और भरोसेमंद हों. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करें और हमारी भरोसेमंद पत्रकारिता का आनंद लें.
Also Read
-
Few questions on Gaza, fewer on media access: Inside Indian media’s Israel junket
-
After Bihar’s SIR clean-up, some voters have dots as names. Will they press the EVM button too?
-
Trump’s Tariff: Why this isn’t India’s '1991 moment'
-
द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को गिरफ्तारी से अंतरिम राहत
-
India is historical, Bharat is mythical: Aatish Taseer