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मीडिया वालों लोकतंत्र को प्रहसन में मत बदलो, कल तुम्हारी बारी है!
जिसकी आशंका थी वही हुआ. आज के सभी अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर पहली ख़बर दिल्ली के प्रमुख सचिव अंशु प्रकाश के साथ मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास पर हुई कथित मारपीट से भरा है. आज के अधिकतर अखबारों में यह ख़बर दब गई है कि 13 से 20 हजार करोड़ रुपए का नीरव मोदी द्वारा गबन कोई मायने रखता है!
लेकिन अखबारों में छपी खबरें और ‘भाजपानीत’ टीवी चैनलों पर दिखाई जा रही ख़बरों का मतलब निकालें, इसे कुछ इस तरह पढ़ा जा सकता हैः
“जब रात के बारह बजे प्रमुख सचिव अंशु प्रकाश अरविंद केजरीवाल के घर पहुंचे तो आम आदमी पार्टी के विधायकगण अरविंद केजरीवाल के आदेश और दिशानिर्देश में अंशु प्रकाश का नाम पूछा और अंशु प्रकाश सुनते ही उन्हें ताबड़तोड़ पीटने लगे! उस मारपीट से प्रमुख सचिव अंशु प्रकाश बेहोश हो गए और बेहोशी की हालत में ही उन्हें दीनदयाल अस्पताल पहुंचाया गया और हर सरकारी अस्पताल की बदतर हालात की तरह चूंकि वहां भी इलाज की कोई सुविधा नहीं थी इसलिए उनकी जिंदगी ख़तरे में पड़ गई और ख़तरे से जूझते हुए किसी तरह उन्हें एक प्राइवेट हस्पताल ले जाया गया जहां डॉक्टरों की काफी मेहनत के बाद वह होश में आए! और जब उन्हें सुबह होश आया तो वह पुलिस में शिकायत लिखाने पहुंचे.”
अब हकीकत को समझने की कोशिश करते हुए इसे डी-कोड कीजिएः यह सही है कि अंशु प्रकाश अरविंद केजरीवाल से मिलने देर रात में उनके आवास पर गए थे. यह भी सही हो सकता है कि केजरीवाल और उनके साथ के विधायकों ने अंशु प्रकाश से तीखी बातें की, लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि वह तीखी बातें किसको लेकर हो रही थी? केन्द्र सरकार के निर्देश पर दिल्ली को जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत अनाज इसलिए नहीं दिया जा रहा है क्योंकि लोगों के कार्ड, आधार से जोड़े नहीं गए हैं.
मुख्यमंत्री केजरीवाल और उनके साथ बैठे विधायकों का कहना था कि हम नहीं चाहते कि दिल्ली में कोई भी व्यक्ति भूख से मरे, इसलिए आप सुनिश्चित कीजिए कि दिल्ली के लोगों को जन वितरण प्रणाली से अनाज मिलने में कमी न हो.
पर मुख्य सचिव अंशु प्रकाश प्रधानसेवकजी के आधार कार्ड को सभी आधारभूत सुविधाओं से जोड़ने के आग्रह पर अड़े हुए थे जिसके चलते पूरे देश में लोगों को परेशानी हो रही है. जन वितरण प्रणाली (पीडीएस) से आधार को न जोड़े जाने के कारण झारखंड जैसे राज्यों से लगातार भूख से मरने की खबरें आती रहती हैं.
इस बात का अंदाजा लगाइए कि अगर एक भी आदमी दिल्ली में भूख से मर जाए तो इसके लिए किसे दोषी ठहराया जाना चाहिए! निश्चित रूप से अरविंद केजरीवाल को क्योंकि राज्य की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री चुना है. लेकिन जो पदाधिकारी इसमें अड़ंगा लगाए, उसके खिलाफ कौन कार्रवाई करेगा? मेरे कहने का यह मतलब कतई नहीं है कि उसके साथ दुर्व्यवहार हो, लेकिन कड़े शब्दों में या ऊंची आवाज में बात करना कोई गुनाह नहीं है. विशेषकर तब जब आप राजनीति में हों.
ऐसा भी नहीं है कि अरविंद केरजरीवाल की प्रतिभा पर किसी को शक है कि वह ऐसा नहीं कर सकते हैं या नहीं करवा सकते हैं! मैं पूरे यकीन के साथ कह सकता हूं कि उनमें असीम प्रतिभा है और बतौर मुख्यमंत्री यह सब करवाना उनके लिए बहुत ही आसान है.
उदाहरण के लिए ‘आप’ की अंदरूनी लड़ाई का ही उदाहरण दिया जा सकता है. जब प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, प्रोफेसर अजीत झा, प्रोफेसर आनन्द कुमार उनकी कार्यप्रणाली का मुखालफत कर रहे थे उस समय के राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अरविंद केजरीवाल की शह पर अरविंद के सामने ही कपिल मिश्रा ने योगेन्द्र यादव का कॉलर पकड़ लिया था और संस्थापक सदस्य शांति भूषण को घेर लिया था, उन्हें कुर्सी से उठने नहीं दिया जा रहा था.
इसी ‘प्रतिभा’ के एवज में कपिल मिश्रा को केजरीवाल ने मंत्री भी बनाया था. स्थानीय विधायक देवेन्दर महलावत ने अगर हस्तक्षेप नहीं किया होता तो पता नहीं उन लोगों के साथ क्या-क्या होता. लेकिन वहां प्रहसन का स्टेज तैयार था, पर्याप्त वक्त था और विरोधी खेमे में यह वहम था कि पार्टी को हमने तैयार किया है जो किसी विचारधारा पर आधारित है!
लेकिन 19 तारीख की देर रात की घटना को आप देखें तो पाएगें कि अंशु प्रकाश रात के 11.54 मिनट कुछ सेकेंड में पहुंचते हैं और 12.01 और कुछ सेकेंड पर बाहर आ जाते हैं (इस पूरे घटनाक्रम का प्रसून के अलावा किसी ने जिक्र नहीं किया है अपनी रिपोर्ट में).
फिर भी, क्या यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर छह मिनट से भी कम समय में आखिर कैसे हो सकता है कि किसी विषय पर बात शुरू किए बिना ही उन्हें पीटा जाने लगा? (और जिनकी इतनी पिटाई हुईः अंशु प्रकाश के एक्सप्रेस में छपे बयान के अनुसार अमानतुल्लाह खान ने इतना घूंसा मारा, इतने थप्पड़ मारे कि इनका चश्मा नीचे गिर गया और उसे उठाने में भी उसे दिक्कत हुई! मैं सदमे में था, उसके बाद मैं अपनी ऑफिशियल कार में बैठकर मुख्यमंत्री आवास से भाग गया.)
लेकिन मुख्यमंत्री के आवास पर लगे सीसीटीवी के फूटेज को देखें तो आपको पता चलता है कि अंशु प्रकाश बिना किसी घबराहट या हड़बड़ी के मुख्यमंत्री आवास से बाहर निकलते हैं, अंशु प्रकाश ना भाग रहे हैं और ना ही वह तेजी से चल रहे हैं, बल्कि सामान्य गति से चल रहे हैं जिनके पीछे-पीछे एक विधायक भी आ रहा है. विधायक के हाव भाव देखने से लगता है वह मुख्य सचिव को मनाने की कोशिश कर रहे हैं.
जैसा कि अंशु प्रकाश बताते हैं कि वह कार में बैठकर भाग गए, कार उनके निकलने के बाद बाहर आती है. यह हो सकता है कि अंशु प्रकाश वहां का माहौल देखकर जल्द से जल्द बाहर निकलना चाह रहे थे और दूसरा यह भी हो सकता है कि जो डिमांड मुख्यमंत्री समेत विधायकगण कर रहे थे उसे मानने की इजाजत उनके पास नहीं थी. इसलिए अगर वह गाड़ी के लिए रूक जाते तो उनलोगों से बातचीत करनी पड़ती जिनसे वह बात नहीं करना चाहते थे. इसलिए उनके निकलने के बाद गाड़ी पीछे पीछे आई.
अब आगे क्या होना चाहिए था? राज्य के चीफ सेक्रेटरी के साथ राज्य के मुख्यमंत्री की शह पर विधायकों ने दुर्व्यवहार किया तो सबसे पहले अंशु प्रकाश जी को उस पुलिस थाने जाकर शिकायत दर्ज करानी चाहिए थी जो राज्य सरकार के अधीन नहीं, बल्कि केन्द्र सरकार के अधीन आता है. लेकिन वह पुलिस थाने न जाकर पूर्व नौकरशाह और दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल के घर गए, वहां तफ्शील से बातचीत करने के बाद अपने आवास पर पहुंचे और फिर अगले दिन सुबह नौ घंटे के बाद शिकायत दर्ज कराने पुलिस थाने पहुंचे!
क्या अंशु प्रकाश जी को इस बात का डर था कि दिल्ली पुलिस इतनी खतरनाक है कि रात के बारह या एक बजे थाने जाना खतरे से खाली नहीं है, या फिर उनको तब तक ऊपर से दिशा निर्देश नहीं मिला था?
जो लोग मान रहे हैं कि अंशु प्रकाश बहुत ही ‘अपराइट’ ब्यूरोक्रेट रहे हैं, उनमें से ज्यादातर वही ‘अपराइट ब्यूरोक्रेट’ रहे हैं जिन्होंने अपने-अपने आकाओं के सामने कभी मुंह नहीं खोला था, जिनकी घिग्घी बंध जाती थी, जिन्दगी में एक भी ऐसा काम नहीं किया है जिससे किसी गरीब-मजलूम या बेसहारा की जिन्दगी में कोई परिवर्तन आया हो!
हां, हम उन ‘अपब्राइट’ ब्यूरोक्रेट के बारे में कह सकते हैं कि उनमें से कुछ लकीर के फकीर रहे हैं, लेकिन वे अंगुली पर गिनने भर हैं!
कहने का मतलब यह कि इन सबके लिए बार-बार अरविंद केजरीवाल की सरकार को ही क्यों चुना जाता है? क्योंकि सारा मीडिया हाउस यहां है, सभी चैनलों के मालिक को यहां से अच्छी तरह नियत्रंण किया जा सकता है, यही वह राज्य है जो पूर्ण राज्य नहीं है, जहां के नौकरशाहों से लेकर पुलिस तक कहीं सरकार का कंट्रोल नहीं है.
चुनी हुई सरकार केजरीवाल की है लेकिन सत्ता का बड़ा हिस्सा उपराज्यपाल अनिल बैजल के हाथ में है जो खुद केन्द्र सरकार के मुखापेक्षी है. प्रधानसेवकजी के दावे के अनुसार 19 राज्यों पर भाजपा या उनके सहयोगियों का कब्जा है और जहां कब्जा नहीं है- भौगोलिक रूप से ममता बनर्जी या सिद्दरमैया जैसे लोग जहां लाख चाहने के बावजूद इस तरह की कार्यवाही के लिए उपयुक्त नहीं है, इसलिए सबसे मुफीद अरविंद केजरीवाल ही हैं जिनके खिलाफ मीडिया, ब्यूरोक्रेट, पुलिस और तंत्र- सबको खड़ा किया जा सकता है, जिससे छोटा मोदी का दाग छूटे नहीं तो कम से कम छुपाया जा सके.
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