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एनएल चर्चा 28: आप-एलजी विवाद, खरीफ की कीमत, मॉब लिंचिंग व अन्य
दिल्ली में तीन साल से चल रहे आप और एलजी के अधिकारों के विवाद पर आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, बच्चा चोरी के अफवाह पर देश भर में हो रही मॉब लिंचिंग की घटनाएं, भारत में महिलाओं की असुरक्षा को लेकर आया थॉमसन रॉयटर्स का सर्वेक्षण, असम में चल रहे एनआरसी का सर्वेक्षण और खरीफ की फसल पर बढ़ाया गया न्यूनतम समर्थन मूल्य व अन्य मुद्दे इस हफ्ते न्यूज़लॉन्ड्री चर्चा के मुख्य विषय रहे.
एनडीटीवी की वरिष्ठ पत्रकार नग़मा सहर और स्वतंत्र पत्रकार मनीषा भल्ला इस बार की चर्चा के विशिष्ट अतिथि थे. उनके साथ पैनल में मौजूद थे न्यूज़लॉन्ड्री संवाददाता अमित भारद्वाज. न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने चर्चा का संचालन किया.
आप और एलजी के बीच छिड़े अधिकारों के टकराव पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिया गया फैसला चर्चा में मुख्य चर्चा का विषय बना. नग़मा ने कहा, “अब सबसे बड़ी चुनौती अरविंद केजरीवाल के सामने है क्योंकि गेंद एक तरह से उनके पाले है. क्या अब वे काम करेंगे, क्योंकि उनकी एक छवि काम से दूर भागने की भी है. मेरा मानना है कि ये बातें पहले से संविधान में थी, सुप्रीम कोर्ट ने अब उनकी व्याख्या की है. हर पक्ष अपने-अपने हिसाब से इसकी व्याख्या कर रहा है. पर अब उनके लिए कोई बहाना बना पाना मुश्किल होगा.”
हालांकि नग़मा अभी भी स्थितियां सामान्य हो जाने को लेकर बहुत आश्वस्त नहीं है. वे कहती हैं, “अगर कोई अड़ंगा लगाना चाहे तो अभी भी यह संभव है. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने आपत्ति और असहमति जताने का अधिकार तो दिया ही है.”
अतुल ने इस मामले के राजनीतिक पक्ष और धरातल पर होने वाले बदलाव को समझाने की कोशिश की. वो कहते हैं, “कोर्ट का आदेश सही दिशा में बढ़ाया गया क़दम है. लेकिन इस मसले का जो राजनीतिक पक्ष है उसे समझना होगा. एलजी के पीछे जिन अदृश्य शक्तियों के होने की बात कही जा रही थी उनका इसमें क्या नफा-नुकसान हुआ. एक सरकार जो पांच साल के लिए चुनी जाती है, उसके तीन साल क़ानूनी खींचतान और अड़ंगेबाजी में निकल गए. कायदे से अब काम करने के लिए डेढ़ साल रह गए हैं. तो उन अदृश्य शक्तियों का मकसद तो इस प्रक्रिया में सफल हो गया जो किसी न किसी तरह से दिल्ली सरकार को पंगु बनाने या कोई काम नहीं करने देने की नीयत से काम कर रहे थे. और किसी कोर्ट में उन अदृश्य शक्तियों की कोई जवाबदेही बनती नहीं है. तो इस पैसले के बाद भी चिंता की बात हर हाल में अरविंद केजरीवाल के लिए ही है.”
अमित ने इस मामले पर काफी अध्ययन किया और 500 पन्नों के आदेश को लगभग पूरा पढ़ा. उनका निष्कर्ष कुछ यूं था- “सबसे बड़ी बदलाव इस फैसले से यह आया है कि पहले किसी भी तरह के निर्णय से पहले एलजी से परमीशन लेना होता था. कोर्ट ने इसे खत्म कर दिया है. अब सरकार को कोई परमीशन नहीं लेना है. आतिशी मारलेना की नियुक्ति, सीसीटीवी कैमरे की टेंडरिंग या सिग्नेचर ब्रिज का निर्माण हो यह सब कुछ इसी बहाने से कैंसल किया गया था कि एलजी से परमीशन नहीं ली गई. मारलेना के बारे में पीएमओ से जो लेटर जारी हुआ था उसमें कहा गया था कि नियुक्ति एलजी की अनुमति से नहीं हुई है. अब परमीशन का क्लॉज़ ही खत्म हो गया है.”
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दिल्ली में लंबे समय से जारी टकराव को रोकने की दिशा में सही क़दम बताते हुए मनीषा भल्ला कहती हैं, “एक मुद्दत से जो टकराव की स्थिति बनी हुई थी उसमें एक हद तक कमी तो आएगी इस फैसले से, मसलन केजरीवाल की जो सबसे महत्वाकांक्षी योजना है घर-घर तक राशन पहुंचाने की वह शायद अब पास हो गई है.”
अतुल ने इस फैसले को एसआर बोम्मई बनाम भारतीय गणराज्य केस में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के समकक्ष माना है.
पत्रकारों की राय, क्या देखा, पढ़ा और सुना जाए-
मनीषा भल्ला
2. उत्तराखंड में किस तरह से अफवाहों के जरिए फिरकापरस्ती और हिंसा को रचा और अंजाम दिया जा रहा है.
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