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मोदी राज 2.0 में क्या स्टार्टअप सफल हो पाएंगे?

बेशक़ नरेंद्र मोदी सरकार डिजिटल इंडिया के औसत परिणाम न स्वीकारे, अर्थव्यवस्था में आई मंदी न माने, रोज़गार के आंकड़ें न बताए. पर सच्चाई ये है कि इन तमाम पैरामीटर्स पर सरकार अगर ख़ुद को विफल न माने तो सफल भी नहीं रही है. कुछ ऐसा ही हाल इसकी सबसे महत्वाकांक्षी योजना ‘स्टार्टअप इंडिया’ का हुआ है. जो स्टार्टअप न रहकर ‘शटअप इंडिया’ बनने की कगार पर है. एक औसत के हिसाब से 10 में से 9 स्टार्टअप बंद हो रहे हैं. अब एनडीए 2.0 है. तो क्या उम्मीद की जा सकती है कि इस योजना का कुछ बेहतर हो पाएगा? इस पर बात करने से पहले आइये देखें कि ये योजना क्या थी?

स्टार्टअप क्या होता है

किसी नए व्यापारिक विचार के औद्योगिक सृजन को हम स्टार्टअप कहते हैं. निवेश की भाषा में कहें तो वो बिज़नस आईडिया जिसको स्केल उप (यानी बढे स्तर पर) किया जाया जा सके ताकि उसमें निवेशक अपनी रूचि दिखाएं और निवेश करें. ज़ोमैटो, बाय्जुस, फ्लिप्कार्ट, ओयो रूम्स, उबर इट्स, ओला कैब्स, या उबर कैब्स सब इसी श्रेणी में आते हैं जो एक विचार से शुरू हुए और स्केलअप होते गए.

ये सारे स्टार्टअप यूनिकॉर्न हो गए हैं यानी इनका बाज़ार मूल्य एक बिलियन डॉलर से ऊपर हो गया है. ज़ाहिर है इनमें लाखों लाख नौकरियों का सृजन हुआ है. ये बात अलग है कि किस प्रकार की नौकरियां उत्पन्न हुई, पर हुई तो हैं. इसलिए सरकार इस ओर ध्यान देने की बात कहती रही है. आपको इससे जुड़ा एक एक दिलचस्प क़िस्सा बताते हैं. जब उबर इंडिया में टैक्सी सर्विसेज शुरू करने जा रही थी, तो उसके अधिकारियों ने प्रधानमंत्री से मुलाकात कर अपने बिज़नस प्लान के बारे में सिर्फ़ इतना ही कहा कि इससे कई लोगों को रोज़गार मिलेगा. बताते हैं कि उबर के अधिकारियों से फिर कोई प्रश्न नहीं पूछा गया. अब ये अतिशयोक्ति हो सकती है पर बात का मर्म है कि स्टार्टअप रोज़गार देने का सबसे ज़बर्दस्त स्रोत हो सकते हैं. सरकार के लिए संजीवनी बूटी थे पर अफ़सोस ये है कि ऐसा नहीं हो पाया.

क्या है स्टार्टअप इंडिया कैंपेन

जनवरी 2016 में भारत सरकार ने बड़े ज़ोर शोर से स्टार्टअप इंडिया कैंपेन की शुरुआत की थी. इसके तहत सरकार ने नव उद्यमियों को कई तरह से सहूलियतें दीं. जैसे तीन साल का टैक्स ने भरने की छूट, 2500 करोड़ रूपये स्टार्टअप के लिए संवर्धन के लिए और 500 करोड़ विभन्न स्टार्टअप्स को क्रेडिट(उधार) देने के लिए मुकरर्र किये थे. इसके बाद देश में कई शहरों में सरकारी और निजी इन्कुबेशन सेंटर खुले जहाँ स्टार्टअप्स को विभिन्न सुविधाएं मुहैया करने का वादा किया था.

क्या हालात हैं

भारत सरकार के डिपार्टमेंट फॉर प्रमोशन ऑफ़ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड(डीपीआईआईटी) के मुताबिक़ देश में इस वक़्त 18711 स्टार्टअप हैं और 2018 में निवेशकों ने कुल 4.2 बिलियन डॉलर स्टार्टअप्स में लगाया था.  पर बावजूद इसके, ज़्यादातर स्टार्टअप्स सीड फंडिंग के लिए तरस रहे हैं या फिर वेंचर कैपिटलिस्ट इनकी तरफ़ देख नहीं रहे हैं. हालात ये हैं कि इन्वेस्टर्स मीट प्रोग्राम में स्टार्ट अप के उद्यमी खाली हाथ वापस आ रहे हैं और जिन नौकरियों के सृजन की इनसे उम्मीद थी वो वो अब टूटती प्रतीत हो रही है.

स्टार्टअप शटअप क्यों बन गया

इसके पीछे कई कारण हैं. एक तो ये कि निवेशकों को ज़्यादातर स्टार्टअप्स बड़े स्तर पर जाने के लायक नहीं लगते. दूसरा ये कि हर कोई ऑनलाइन पोर्टल को ही स्टार्टअप समझ रहा है. तीसरा कारण है सरकार की कुछ नीतियां जो स्टार्टअप उद्यमियों को परेशान करने वाली रही हैं. आइये, अब इनको विस्तार से समझते हैं.

इस कैंपेन को लगभग तीन साल ही गुज़रे थे कि फ़रवरी 2016 में ट्विटर पर #शटडाउनइंडिया कैंपेन चल गया. कई स्टार्टउप उद्यमियों से बात की गई तो पता चला कि जब पड़ताल की तो मालूम हुआ कि वित्त मंत्रालय का द्वारा शुरू किया गया एंजेल (फ़रिश्ता) टैक्स डेमन (राक्षस) टैक्स से कम नहीं है. जिसके तहत किसी भी स्टार्ट को अगर उनके बाज़ार मूल्यांकन से ज़्यादा निवेश प्राप्त हो जाता है तो उतनी राशी 30% टैक्स के दायरे में आ जाती है. मिसाल के तौर पर ट्रेवल खाना कंपनी का हाल देख लीजिये. इस कंपनी के बैंक खातों में से इनकम टैक्स अधिकारियों ने पैसे निकाल लिए थे.

इसके पीछे इस सरकार को दोष देने से ज़्यादा नौकरशाही की पुरानी मानसिकता है जो साबित न होने तक किसी को दोषी मानती है. नौकरशाही यही समझती आई है कि अगर कोई व्यापार शुरू कर रहा है तो वो कानून की पतली गलियों से निकलकर अकूत धन कमाएगा. इसलिए वो संवर्धन से ज़्यादा नियंत्रण पर ज़ोर देती है और बेचारे स्टार्ट अप इससे बोखला गए हैं.

स्टार्टअप माने ऑनलाइन पोर्टल

ये एक संक्रमण रोग की तरह फैला है. जिसे देखिये वो ये सोच रहा है कि हर व्यापार ऑनलाइन हो जाएगा. चुनाचें, हर क्षेत्र में कुकुरमुत्ते की भांति ऑनलाइन पोर्टल खुल गए हैं. इसके चलते निवेशक उनमें रूचि नहीं ले रहे हैं. यहां अन्वेषण की ज़रूरत है. ऑनलाइन बिज़नस सिर्फ़ एक माध्यम है, नव विचार नहीं. ज़्यादातर नव उद्यमी वितरण की प्रकिया को स्टार्टअप मानकर ग़लती कर रहे हैं.

वहीं कुछ ऐसे भी हैं जो वाकई इसकी आत्मा को समझ पाए हैं. मिसाल के तौर पर जयपुर में इंडीबड्स नाम से स्टार्टअप है जो डेकोरेटिव और मेडिसिनल इंडोर प्लांट्स का बेहद छोटा लेकिन दिलचस्प वेंचर है. इसके प्रोडक्ट्स ऑनलाइन भी उपलब्ध हैं और ऑफ़लाइन भी. सरकार को ऐसे स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने की ज़रूरत है.

स्टार्टअप्स में पहले मास हायरिंग फिर मास फायरिंग  

स्टार्टअप्स अपनी ओर टैलेंट नहीं खींच पा रहे हैं जिस वजह से वो निवेशकों को नहीं भा रहे. आख़िर, प्रतिभाशाली टीम और लीडर ही किसी व्यापार को उंचाईयों पर ले जाते हैं. मुंबई की कंपनी एस्पायरिंग माइंडस जो प्लेसमेंट का सर्वे करती है के मुताबिक़ देश भर में हर इंजीनियरिंग पास करके नौकरी करने वालों में से सिर्फ़ 10% लोग ही स्टार्ट में नौकरी करना चाह रहे हैं.

फ़्लिपकार्ट और स्नेपडील जैसी कंपनियों ने आईटी और बैंकिंग सेक्टर के पेशेवर मोटी वेतनमान पर उठा लिए और जब ये कंपनियां मुश्किल में आईं तो कर्मचारियों को निकाल बाहर किया. कुछ इसी प्रकार शिपिंग सेक्टर की स्टार्ट अप कंपनी कोगोपोर्ट ने हाल ही में किया है. उसने देश में थर्ड पार्टी रोल के अपने हज़ारों कर्मचारियों को नौकरी से निकाल दिया है. इससे युवा में आशंका का माहौल पैदा हो रहा है और वो लोग स्टार्ट ज्वाइन करने से कतरा रहे हैं.

भारतीय जनमानस की मानसिकता में सर्वप्रथम सरकारी नौकरी या फिर बड़े निजी संस्थान ही हैं क्यूंकि यही उसे सामाजिक प्रतिष्ठा और आर्थिक संपन्नता प्रदान करते हैं. स्टार्टअप उन्हे कुछ नया करने की चुनौती तो देते हैं पर प्रतिभाशाली युवा चुनौती के साथ-साथ सुरक्षा को भी तरजीह देता है.

विज़न डॉक्यूमेंट 2024

इन सभी समस्यायों से दो चार होते हुए सरकार ने कुछ ही दिन पहले  नया विज़न डॉक्यूमेंट पेश किया है. डीपीआईआईटी ने स्टार्टअप प्रकिया के शुरू होने में लगने वाले महीने भर के समय को कुछ घंटों में सीमित करने का प्रस्ताव दिया है और साथ ही रेगुलैट्री ज़रूरतों को घटाने की बात कही है. साथ ही स्टार्ट अप से जुड़े जीएसटी और इनकम टैक्स स्लैब्स में बदलाव करने का सुझाव दिया है. डीपीआईआईटी 2024 स्टार्टअप फण्ड को 10,000 करोड़ करने और देश भर में 500 नए इनक्यूबेटर सेंटर और 100 अन्वेषण (इन्नोवेशन) ज़ोन बनाने का लक्ष्य लेकर चल रही है ताकि निवेश का इकोसिस्टम बन सके. उस मानसिकता के बदलने की है जिसमें हिंदुस्तान ने छोटे और मंझोलें व्यापारियों को वो दर्ज़ा नहीं दिया जिसके वो हक़दार थे.

और सबसे बड़ी बात समस्या प्लानिंग की नहीं बल्कि क्रियांवन की है. जैसी चाहे प्लानिंग कर लीजिये, अगर क्रियांवन सही नहीं तो फिर सब बेकार है.  मशहूर बिज़नस मैन, भूतपूर्व सीईऔ लैरी बोस्सिडी और मैनेजमेंट गुरु राम चरण ने अपनी क़िताब ‘एक्ज़ीक्यूशन’ में कहा है कि कंपनियों के सीईओ अपना समय सिर्फ़ प्लानिंग में लगाते हैं, एक्ज़ीक्यूशन में नहीं. वो सोचते हैं कि ये काम उनके मातहतों का है और यहीं वो लोग मात खा जाते हैं.’

क्या पीएम नरेंद्र मोदी, एनडीए 2.0 के मत्रियों और अफ़सरों ने क्रियांवन का पाठ पढ़ाने में सफल होंगे. हमें स्टार्टअप्स के सफल होने की दर को हर हाल में बढ़ाना ही होगा. इस इकोसिस्टम को बचाना ही होगा.