Newslaundry Hindi
मानसून के विदाई में देरी : अच्छा या बुरा
दक्षिण-पश्चिमी मानसून की विदाई राजस्थान से होती है और इसके विदाई के शुरुआत की तारीख एक सितंबर है. लेकिन अब तक के उपलब्ध रिकॉर्ड में संभवत: यह पहली बार होगा कि एक महीने से भी ज्यादा की देरी हो चुकी है और दक्षिण पश्चिम मानसून की विदाई नहीं हो सकी है. इस मामले में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) का कहना है कि अभी तक वो संकेत नहीं मिल सके हैं जिनसे मानसून के विदाई की तैयारी के बारे में कुछ ठोस बताया जा सके. आईएमडी का ताजा अनुमान है कि संभवत: छह अक्तूबर के बाद ही मानसून के विदाई हो. मानसून जाते-जाते भी एक महीने का समय लेता है.
गुजरात, यूपी, बिहार समेत कई राज्यों में भारी वर्षा के पूर्वानुमान और फसलों के नुकसान की चिंताओं के बीच मौसम के जानकार यह स्वीकार तो करते हैं कि मानसून की विदाई की तारीख खिसक रही है और उसका विस्तार हो रहा है. हालांकि, मौसम वैज्ञानिक यह बात भी जोड़ते हैं कि अभी पूरी तरह से मानसून आगमन-प्रस्थान की तारीख में बदलाव हो चुका है, ऐसा पक्के तौर पर ऐलान नहीं किया जा सकता.
भारतीय मौसम विभाग के पूर्व महानिदेशक केजी रमेश ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा है कि एक दशक के आंकड़ों को देखें तो यह तय हो चुका है कि मानसून की विदाई सितंबर के पहले सप्ताह में होने के बजाए मध्य सितंबर के आस-पास हो रही है. मानसून के विस्तार की बात सही है. हालांकि, अभी ऐसे लंबे समय वाली सांख्यिकी में बदलाव ज्यादा नज़र नहीं आ रहे, जिससे पक्के तौर पर घोषणा की जा सके कि दक्षिण-पश्चिमी मानसून के विदाई की तारीख पूरी तरह बदल गई है. उन्होंने कहा कि मानसून के विस्तार पर चिंता करने के बजाए हमें खुश होना चाहिए क्योंकि यह भारत के लिए अच्छी बात है कि मानसून देर तक रुका है.
मौजूदा खरीफ फसलों की नुकसान खुशी की बात कैसे है? क्या मानसून की देरी मौजूदा खरीफ और रबी फसलों के चक्र को खराब कर सकती है? इन सवालों पर आईएमडी के सेवानिवृत्त अधिकारी केजी रमेश का कहना है कि जितनी बारिश हुई है उससे फसलों को नुकसान नहीं होना चाहिए. यदि नुकसान हो रहा है तो वह तात्कालिक है. खेतों से पानी जल्द ही बह जाएगा. रबी सीजन के लिए मिट्टी नमी को बचाकर रखेगी जिससे किसानों को अगली फसल के लिए भी फायदा होगा. जमीन के भीतर जो फली हैं जब तक कि मिट्टी में पानी ठहर न जाए तब तक उन्हें नुकसान नहीं होगा. उनके मुताबिक फसल नुकसान के आसार कम है.
कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि खेतों में खड़ी फसलों को नुकसान हो रहा है. इस वक्त किसानों को पानी चाहिए नहीं. यह कटाई का वक्त है. ऐसे में बारिश उन्हें हर हाल में चिंता में डाल देती है. लंबे समय तक मानसून का बने रहना खुशी की बात नहीं बल्कि एक गहरे चिंता का विषय है. इसके अलावा ऐसी कोई भी फसल की वेराइटी अभी तक हमारे पास नहीं है जो लंबे समय तक इसे झेल सके. उम्मीद है वैज्ञानिक इसे जरूर देखेंगे. कुछ दशक के आंकड़ों को देखें तो मानसून के आने और जाने दोनों की तारीख में बदलाव हुआ है. यह जलवायु परिवर्तन का विषय बन चुका है.
वहीं,अनियमित और अनियंत्रित बारिश की मौजूदा प्रवृत्ति पर केजी रमेश का कहना है कि यह पक्के तौर पर जलवायु परिवर्तन के लक्षण हैं. यह स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन में सीजन के दौरान वर्षा के दिन कम होंगे. पहले चार महीने (जून से सितंबर) में 70 से 80 दिन बारिश हो रही थी लेकिन अब 55 से 60 दिन में ही बारिश हो जाती है. बारिश के दिन घट रहे हैं. अब हमारे लिए चुनौती है भारी बारिश के बूंदों का संग्रह और संरक्षण. भारी वर्षा को भी कैसे संरक्षित कर लिया जाए, इसके लिए सोचना होगा. यह समाधान स्थानीय स्तर से ही निकलेंगे.
वर्षा के कृषि पर प्रभाव को लेकर बिहार के पूर्णिया में श्रीनगर प्रखंड के किसान चिन्मय एन सिंह डाउन टू अर्थ से बताते है कि उनके मछली पालन वाले तालाब लबालब हैं. वर्षा के कारण उन्हें आउटलेट बनाकर तालाब का पानी बाहर निकालना पड़ा है. अभी तक की बारिश में फसलों को नुकसान नहीं हुआ है हालांकि, अब भारी वर्षा हुई तो काफी नुकसान उठाना पड़ सकता है. जमीनी हालत यह है कि मध्य प्रदेश में सोयाबीन की फसलों के खराब होने के कारण किसान परेशान हैं. हाल ही में बारिश रोकने के लिए मध्य प्रदेश में एक परंपरा के तहत मेढक-मेढकी का तलाक भी कराया गया.
वहीं, आईएमडी के मुताबिक मानसून के विदाई की शुरुआत होने के तीन संकेत हैं. जब तक यह संकेत न दिखें तब तक दक्षिण-पश्चिम मानसून की विदाई को लेकर कुछ नहीं कहा जा सकता. अभी तक यह संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं. पहला संकेत है कि बारिश रुक जाए. लेकिन अब भी निम्न दबाव क्षेत्र बन रहे हैं और अगले एक हफ्ते तक बारिश होने का पूर्वानुमान बना हुआ है. दूसरा संकेत है कि बारिश को रोकने वाले एंटी साइक्लोन तैयार हों. यह भी नहीं बन रहे हैं. तीसरा संकेत है कि नमी घट जाए.
यह तीनों संकेत काम नहीं कर रहे हैं. इस मानसून के आने और जाने में हवा भी अहम है. मानसून की विदाई के लिए इस वक्त पश्चिमी हवा की जरूरत है. जबकि हवा अब भी पूर्वी ही है.
स्काईमेट के महेश पलावत का कहना है कि 15 अक्तूबर तक मानसून भारत से पूरी तरह विदा हो जाता है. वहीं, दक्षिण-पश्चिम मानसून अक्तूबर के पहले सप्ताह में भी विदा हो यह संशय है क्योंकि अगले ही हफ्ते राजस्थान में वर्षा का पूर्वानुमान है. ऐसे में वर्षा बंद हो और पूर्वी हवा की जगह पश्चिमी हवा बना ले, तभी बात बनेगी.
भारतीय मौसम विभाग के करीब दस वर्ष के आंकड़ों की पड़ताल यह बताती है कि न सिर्फ दक्षिण-पश्चिम मानसून अपनी तय तारीख से औसत आठ- दस दिन आगे खिसक गया है. बल्कि प्री मानसून और सीजनल वर्षा में भी कमी हो रही है.
2019 में प्री मानसून (मार्च से मई) के दौरान सामान्य 131.5 मिलीमीटर की तुलना में कुल 99 मिलीमीटर वर्षा ही हुई है. 25 फीसदी की गिरावट रही. 2012 के बाद इतनी बड़ी गिरावट हुई है. 2012 में 31 फीसदी कम वर्षा हुई थी. 2012 में सामान्य 131.5 एमएम की तुलना में 90.5 एमएम वर्षा रिकॉर्ड की गई थी.
मानसून सीजन (जून से 27 सितंबर) भी इस वर्ष काफी उथल-पुथल वाला रहा. जून में वर्षा बेहद कम हुई जबकि जुलाई के मध्य से वर्षा हुई. इसके बाद ही बुवाई शुरु की गई. इस वर्ष 26 सितंबर तक देश में सामान्य (859.9) से 6 फीसदी ज्यादा (910.2) वर्षा दर्ज की गई है. वहीं, चार अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों में उत्तर-पश्चिम में -8 फीसदी कम पूर्व और पूर्वोत्तर राज्यों में -16 फीसदी कम वर्षा हुई है. जबकि मध्य भारत में 25 फीसदी ज्यादा और दक्षिणी प्रायद्वीप में 16 फीसदी ज्यादा वर्षा हुई है. ध्यान रहे इस बार मानसून का आगमन भी एक जून के बजाए एक हफ्ते की देरी से हुआ था.
यह है बीते दस वर्ष के दक्षिण-पश्चिम मानसून विदाई की तारीख:
2011 – 23 सितंबर
2012 – 24 सितंबर
2013 – 9 सिंतबर
2014 – 23 सितंबर
2015- 4 सितंबर
2016- 15 सितंबर
2017- 27 सितंबर
2018- 29 सितंबर
2019 – ? (अक्तूबर संभावित)
सभी आंकड़ों का स्रोत : आईएमडी
(यह लेख डाउन टू अर्थ पत्रिका की अनुमति से प्रकाशित)
Also Read
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
In Baramati, Ajit and Sunetra’s ‘double engine growth’ vs sympathy for saheb and Supriya
-
A massive ‘sex abuse’ case hits a general election, but primetime doesn’t see it as news
-
Mandate 2024, Ep 2: BJP’s ‘parivaarvaad’ paradox, and the dynasties holding its fort
-
‘He used to turn us away’: Fear and loathing in Prajwal Revanna’s hometown