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“आपका नाम चाहे परवेज हो या फिर प्रवीण ऐसी स्थिति में नुकसान दोनों का है”
“मेरे छोटे भाई के पैर में गोली के छर्रें लगे हुए थे. वो रो रहा था. हम सब मजबूर थे. उसको दर्द में तड़पते देखने के लिए. चाहकर भी हम उसे अस्पताल नहीं ले जा पा रहे थे. क्योंकि बाहर उपद्रवी भीड़ लाठी, डंडे और बंदूक के साथ लोगों को मारने पर उतारूं थी,” नूर-ए-इलाही में रहने वाली शगुफ़्ता एज़ाज का गला ये कहते हुए रुंधने लगा है.
वो आगे बताती हैं,“हम नहीं जानते ये कौन लोग हैं. ये जो भी हैं, न ये हिंदू है और न ही मुसलमान. ये सिर्फ उपद्रवी हैं. कोई हिंदू या मुसलमान ऐसा हो ही नहीं सकता. क्योंकि वो सबसे पहले एक इंसान होता है. मेरे मोहल्ले के हिंदू तो हमारे साथ खड़े हैं. हमारे साथ-साथ उनको भी धमकाया डराया जा रहा है.”
वो आगे कहती है कि इसमें पुलिस की भूमिका बहुत ही लचर है. कई बार स्थितियां को ऐसी भी बनी है कि मोहल्ले में पुलिस उपद्रवियों के साथ खड़ी थी. ऐसे वक्त में हम किसके ऊपर भरोसा करें? पूरे मोहल्ले के लोग एक साथ होकर खुद की सुरक्षा के लिए रात-रात भर निगरानी कर रहे हैं.”
मंगलवार की रात दिल्ली पुलिस ने इलाके में धारा 144 लगा दी है. दिल्ली पुलिस ने दंगाईयों को मौके पर देखते ही गोली मारने का आदेश भी जारी कर दियाहै. सामाचार एजेंसी एएनआई को पूर्वी दिल्ली के डीसीपी ने बताया कि इलाकों में पूरी तरह से पुलिस तैनात है. स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिशें जारी हैं.
लेकिन इलाके के लोग लगातार पुलिस पर सवाल खड़ा कर रहे हैं. उनका कहना है कि पुलिस ये सब इतने देर से क्यों कर रही है? यही काम तीन दिन पहलेसे क्यों नहीं हो सकता था?
जाफराबाद में रहने वाली नगमाबताती हैं, “हम सब लोग घर में कैद हो गए हैं. जाफराबाद और मौजपुर से शुरु हुई ये हिंसा धीरे-धीरे गोकलपुरी, यमुना विहार, नूर-ए-इलाही और भजनपुरा तक पहुंच गई. वो बताती हैं कि भीड़ नारे लगा रही थी कि “मोदीजी तुम लठ्ठ बजाओ हम तुम्हारे साथ हैं.”दोनों तरफ के लोग उग्र हो चुके थे. कोई किसी की बात सुनने को तैयार नहीं था. इलाके में डर का माहौल बना दिया गया है. जो हिंदू और मुसलमान दोनों के दिल में बैठ गया है. राजनीतिक लोगों ने इसमें सामन्य घरों के बच्चों को फंसा दिया है.
वो सामान्य लोगों का जिक्र करते हुए कहती हैं, “कई ऐसे लोग थे जिनका एंटी सीएए-प्रोटेस्ट से कोई संबंध नहीं था. वो न ही प्रोटेस्ट के समर्थन में थे और न ही विरोध में. लेकिन हिंसा भड़कने के बाद वहां मौजूद सीएए के समर्थक हिजाब या बुर्के में जा रही महिलाओं को रोक कर उनके साथ बदतमीजी कर रहे थे. कोई भी आदमी जिसकी दाढ़ी थी, उसे रोककर उसके साथ मारपीट कर रहे थे. कुल मिलाकर मामला अब सीएए के विरोध प्रदर्शन से अलग हिंदू और मुसलमान का हो गया है. शायद यही कपिल मिश्रा जैसे लोग चाहते थे. नगमा कहती हैं बच्चों के बोर्ड की परीक्षा है वो ऐसे माहौल में कैसे पढ़ेंगे? परीक्षा देने के लिएकैसे घरों से बाहर निकलेंगे?
क्या कर रही थी दिल्ली पुलिस?
सुभाष विहार के इलाके में रहने वाले ज़फर कहते हैं कि वो सबसे बड़ा जिम्मेदार पुलिस प्रशासन को मानते हैं. उनका कहना है कि इतना सब कुछ नुकसान हो जाने के बाद पुलिस एक्शन में आई है. ऐसा क्यों हुआ? ये सब पहले क्यों नहीं हो सकता था? जब बीते दो दिनों से हालात बदतर हो चुके थे. लोगों की दुकानें जलायी जा रही थीं. घरों मे पेट्रोल बम फेंके जा रहे थे. लोग खुद की सुरक्षा खुद से करने को मजबूर थे. तब जवानों की ये टुकड़ी क्यों नहीं भेजी गई? प्रशासन किस चीज का इंतजार कर रहा था. क्या प्रशासन खुद ऐसा चाहता था कि दंगे हो?
शिव विहार में रहने वाले राजन मंगलवार के दिन का मंजर बताते हैं, “एक अजीब तरह का डर है जो मन में बस गया है. हालात बहुत बुरे हैं. घर में खाने का सामान नहीं है. मां बीमार रहती हैं. इस बीच कभी बीमार हो जाए तो अस्पताल भी नहीं ले जा सकते हैं. भरी-पूरी भीड़ आचानक से देश में रहना है तो जय श्री राम कहना होगा, देश के गद्दारों को गोली मारों सालों को, ऐसे नारे लगाते हुए आती है और आचानक से नाम पूछने लगती है. नाम उनके मन मुताबिक न होने पर किसी के भी घर में पेट्रोल की बोतलें फेंक देते हैं. किसी की भी दुकान जला देते हैं.
राजन इस हालात पर अपनी चिंता जाहिर करते हैं कि अभी तो फोर्स है, धारा 144 है इसलिए माहौल थोड़ा शांत है. लेकिन फोर्स कब तक रहेगी? लोगों के मन में जो जहर भर गया है, उसका क्या इलाज है? कैसे उम्मीद की जाए कि फोर्स के जाते ही सब कुछ दोबारा शुरू नहीं हो जाएगा?
कौन कर रहा है हिंसा हिंदू या मुसलमान ?
भजनपुरा में रहने वाले प्रवीण कहते हैं कि आपका नाम चाहे परवेज हो या फिर प्रवीण, ऐसी स्थिति में हिंसा के शिकार दोनों ही होंगे. ये दंगा न हिंदुओं का है और न ही मुसलमानों का ये दंगा सिर्फ दंगाईयों का है. कपिल मिश्रा जैसे दंगाईयों का जो हिंसा भड़का कर धीरे से उससे अलग हो जाते हैं. प्रवीण कहते हैं कि 24-25 साल के अपने जीवन में वो कभी भी इतने दहशत के माहौल में नहीं रहे हैं.
वो बताते हैं कि सोमवार की सुबह वो ऑफिस जाने के लिए करीब दो बजे अपने घर से बाहर निकले. माहौल खराब था इसलिए उन्हें कोई साधन नहीं मिला. वो पैदल ही घर से थोड़ी दूरी पर मौजूद पुश्ता रोड की ओर आगे बढ़ने लगे. इसी बीच आचानक से पत्थरबाजी करती उग्र भीड़ डंडे और रॉड के साथ उनकी ओर आगे बढ़ने लगी. ये देखते ही वो एक दुकान में घुस गए. थोड़ी देर बाद मामला जब शांत हुआ तो वो बाहर निकले और वापस अपने घर की ओर जाने लगे. उन्हें माहौल खराब होने का अंदाजा तो था लेकिन इस कदर खराब है इससे वो अनजान थे.
इस बीच लगातार ऑफिस से उन्हें फोन आ रहा था. माहौल खराब है ऐसा बॉस को बताने के लिए उन्होंने उस जगह की फोटो ली और आगे बढ़ गए. तभी भीड़ से एक लड़के ने आवाज़ दी उस काले जैकेट वाले को पकड़ो. प्रवीण ने उस दिन काली जैकेट पहनी हुई थी. उन्हें रोककर उनका नाम पूछा गया. फोन से फोटो डिलीट कराई गई. भीड़ ने उनका कॉलर पकड़ा तभी उनका जनेऊ (हिंदू धर्म में लोग पहनते हैं) उनके हाथों में आ गया. ये देखते ही भीड़ ने कहा, “मारो हिंदू है.” लेकिन बहुत मिन्नतों और फोन से सबकुछ डिलीट करने के बाद भीड़ ने उन्हें वहां से जाने दिया. ऐसा ही कई मुसलमानों के साथ भी हुआ. भीड़ ने ऐसा सुनते ही कि मुसलमान है कहा- “मुसलमान है मारो.”
पास के ही शेरपुर में रहने वाली अंजली कहती हैं मैं बचपन से जिस दुकान से सामान लाती रही हूं, उस दुकान को भी जला दिया गया है. उग्र भीड़ ने दुकान को सिर्फ इसलिए आग के हवाले कर दिया क्योंकि वो दुकान एक मुसलमान की थी. शेरपुर से लेकर भजनपुरा तक की ऐसे ही लगभग सारी दुकानें जला दी गई हैं. अंजलि पुलिस और प्रशासन के रवैये से बहुत नाखुश और दुखी हैं. वो बताती है कि पुलिस दंगाईयों के साथ कुछ भी नहीं कर रही थी. बल्कि उनके साथ खड़े होकर देख आग लगाते देख रही थी. दंगाईयों ने भजनपुरा की मज़ार में भी आग लगा दी.
वो आगे बताती हैं कि भीड़ जय श्री राम के नारे के साथ जब गलियों में घुस रही थी तो कुछ लोग घर के अंदर से ही उनके साथ नारे लगा रहे थे. अंजलि कहती हैं कि ये सब उन्हें मानसिक रुप से बहुत परेशान कर रहा है. उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि ये सब कब खत्म होगा. देश के गृहमंत्री क्या कर रहे थे? दिल्ली के सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी है.
कपिल मिश्रा पर क्यों लग रहा है आरोप ?
22 फरवरी, शनिवार की रात को जाफराबाद में कुछ महिलाएं सीएए के खिलाफ सड़क के किनारे से उठकर प्रदर्शन करने सड़कों पर आ गईं. अगले दिन रविवार इस पर इलाके के कई लोगों ने आपत्ति जताई. धीरे-धीरे यमुनापार के पूरे इलाके में ऐसा ही लोग इकट्ठा होने लगे.
इसी बीच बीजेपी नेता कपिल मिश्रा जाफराबाद से सटे मौजपुर इलाके में सीएए समर्थकों के साथ पहुंच गए. वहां से कपिल मिश्रा ने एक विडियो में, जिसे उन्होंने खुद ट्वीट किया, कहते हुए नजर आते हैं, “ये चाहते है कि दिल्ली में आग लगी रहे. इसलिए इन्होंने ये रास्ते बंद कर दिए हैं. ये दंगे जैसा माहौल बना रहे हैं. हमारी तरफ से एक भी पत्थर नहीं चलाया गया है. डीसीपी साहब हमारे सामने खड़े हैं. आप सबके बिहाफ पर मैं ये बात कह रहा हूं कि ट्रंप के जाने तक तो हम जा रहे है लेकिन उसके बाद हम आपको भी नहीं सुनेंगे, अगर रास्ते खाली नहीं हुए. ठीक है? ट्रंप के जाने तक आप जाफराबाद और चांदबाग खाली करवा दीजिए, ऐसी आपसे विनती है. उसके बाद हमें लौटकर आना पड़ेगा. भारत माता की जय. वंदे मातरम्.”
रविवार शाम से ही पथराव की खबरें आनी शुरू हुई. इसके बाद बहुत सारे विडियो सोशल मीडिया पर तैरने लगे जिनसे अंदाजा लगाना मुश्किल हो गया कि आखिर हिंसा कौन कर रहा है? धीरे-धारे स्थिति काबू से बाहर हो गई. लोग झुंड में डंडे और रॉड लेकर घूमने लगे. थोड़ी देर बाद आगजनी की खबरें आनी शुरु हुई. फिर गोलियां चलने की खबरें आई. इसके बाद माहौल खराब होता चला गया. हिंसा तब अपने चरम पर पहुंच गई जब इसने हिंदू-मुसलमान का रुप ले लिया. लोगों को नाम पूछकर कलावा, टीका, टोपी, दाढ़ी और लिंग देखकर मारा जाने लगा.
‘जय श्री राम’, ‘भारत माता की जय’ और ‘अल्लाह हू अकबर’ के नारों के बीच लोगों को मारने-पीटने के कई विडियो वायरल हुए हैं.
इस दौरान कई मीडियाकर्मियों को भी पीटा गया. इसमें कई लोगों के गंभीर रुप से घायल होने की खबरें भी आई. कुछ पुलिसकर्मी भी घायल हुए. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हिंसा में अब तक कुल 20 लोगों की जान जा चुकी है. इनमें से एक गोकलपुरी थाने के हेड कॉन्स्टेबल शहीद रतन लाल हैं. मामला बहुत ज्यादा बिगड़ता देख मंगलवार की रात दिल्ली पुलिस ने इलाके में धारा 144 लगा ही है. दिल्ली पुलिस ने दंगाईयों को मौके पर देखते ही गोली मारने का आदेश भी जारी कर दिया था. सामाचार एजेंसी एएनआई को पूर्वी दिल्ली के डीसीपी ने बाताया कि इलाकों में पूरी तरह से पुलिस तैनात है. स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिशें जारी हैं.
(इस रिपोर्ट में लोगों की सुरक्षा का ख्याल रखते हुए उनकी सहमति से उनके नाम नाम बदल दिए गएहैं.)
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