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दिल्ली दंगा: रिलीफ़ कैंप में जिंदगी, एक शख़्स की मौत
दिल्ली में दंगा बीते हफ्ते से ज्यादा हो चुका है. दंगे के दौरान घरों और दुकानों में आगज़नी की गई साथ में अमन-चैन को भी आग के हवाले कर दिया गया. दंगे के बाद मुस्तफाबाद के ईदगाह में रिलीफ कैंप बनाया गया है.
शिव विहार की गली नम्बर 12 में रहने वाले 40 वर्षीय आरिफ़ ख़ान के घर को दंगे के दौरान उपद्रवियों ने आग लगा दी थी. जैसे-तैसे वे अपने परिजनों को लेकर वहां से भागे और जिंदगी बचाई. दंगे का शोर तनिक थमने के बाद वे अपना घर देखने लौटे. उनके पिता यामीन ख़ान (56 वर्ष) आगज़नी में तबाह हो चुके घर को देखकर अवाक रह गए, इस सदमे को लिए वो वापस रिलीफ कैंप लौटे, जहां देर रात उनकी मौत हो गई.
न्यू मुस्तफाबाद के गली नम्बर सात में अपने बहन के घर रिश्तेदारों के साथ बैठे आरिफ़ ख़ान बताते हैं, “घर जलने से मन तो परेशान था ही लेकिन घर के सभी लोग सुरक्षित थे यही सुकून था. लेकिन अब वालिद साहब गुजर गए. उनकी उम्र ज़्यादा नहीं थी. जिस घर को बनाने के लिए उन्होंने बहुत मेहनत की थी उसी घर को तबाही की हालत में देख वे सदमे में आ गए.”
उत्तर-पूर्वी दिल्ली में 24 फरवरी को दंगा शुरू हो गया था. दंगे में सबसे ज़्यादा प्रभावित इलाका मुस्तफ़ाबाद का शिव विहार है. यहां सिलसिलेवार ढंग से आगजनी और हत्याओं को अंजाम दिया गया. कई दुकानों और घरों को भी आग के हवाले कर दिया गया. अभी तक सामने आए आंकड़ों के अनुसार दंगे में 53 लोगों की मौत हो चुकी है.
दिल्ली सरकार और वक़्फ़ बोर्ड द्वारा न्यू मुस्तफ़ाबाद के ईदगाह में बनाए गए रिलीफ़ कैंप में शिव विहार से विस्थापित हुए लोगों की संख्या ज़्यादा है. वक़्फ़ बोर्ड के ज़ोनल अधिकारी कलीम अहमद ख़ान की माने तो अभी यहां दंगा प्रभावित इलाक़े से आए एक हज़ार से ज़्यादा महिलाएं, पुरुष और बच्चे रह रहे हैं.
यामीन ख़ान भी ईदगाह में बने रिलीफ़ कैंप में ही रह रहे थे. यहीं बुधवार देर रात उनकी मौत हो गई. उनके बड़े बेटे आरिफ़ खान बताते हैं, “25 फरवरी को जब आसपास के घरों में उन्मादी भीड़ आग लगाने लगी. देर रात तक़रीबन नौ-साढ़े नौ के बीच हालात बेहद ख़राब हो गए. हम घर छोड़ना नहीं चाहते थे, ख़ासकर मेरे वालिद. लेकिन हालात बिगड़ते जा रहे थे तो हमने वहां से निकलना वाजिब समझा. वहां से निकलकर हम अपनी बहन के घर आ गए. जब ईदगाह में रिलीफ़ कैंप बना तो परिवार के कुछ लोग वहां रहने लगे. बहन का घर बहुत बड़ा नहीं है. वालिद साहब रिश्तेदारी में रहकर परेशान होते थे तो वे वहीं रहने लगे.”
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के इटावा के रहने वाले आरिफ़ आगे कहते हैं, "बुधवार 4 मार्च को जब माहौल बिल्कुल शांत हो गया था. लोग अपना घर देखने जाने लगे थे तो वालिद साहब भी वहां गए. घर में तबाही का मंज़र देखकर वो परेशान हो गए. घर के कुछ हिस्सों में आग लगा दी गई है. दुकान को लूट लिया है. वहां से लौटकर वो चुप साध गए. कुछ बोल ही नहीं रहे थे. हमने सोचा कुछ देर में ठीक हो जाएंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ. देर रात 12 से एक बजे के बीच उनको अटैक आया, इससे पहले कि अस्पताल ले जा पाते, उन्होंने दम तोड़ दिया."
यामीन ख़ान के दो बेटे और तीन बेटियां हैं. सबकी शादी हो चुकी है. उनके बेटे इधर-उधर मज़दूरी करके गुज़र-बसर कर रहे हैं. वहीं यामीन घर के नीचे एक चाय की दुकान चलाते थे. घर लौटने के सवाल पर आरिफ़ कहते हैं, "अब जबतक सबकुछ बिल्कुल शांत नहीं हो जाता हम घर नहीं लौटेंगे."
मानसिक आघात से जूझते लोग
शुक्रवार की दोपहर रिलीफ़ कैंप में काफ़ी हलचल थी. आसपास के लोग यहां नमाज़ अदा करने पहुंचे थे.
भीड़-भाड़ में ही दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया हालात का जायज़ा लेने पहुंचे. सिसोदिया ने वहां मौज़ूद अधिकारियों को लोगों की सुविधा का ख़याल रखने का निर्देश दिया. बीते दिन हुई बारिश के बाद कैंप में रह रहे लोगों की परेशान तस्वीरें सामने आई थी, इसलिए ही सिसोदिया अधिकारियों को निर्देश दे रहे थे.
रिलीफ़ कैंप में एक जगह कुछ बच्चे काग़ज़ पर पक्षियों और फूलों की तस्वीर बनाकर उसे रंग भरते नज़र आए.
डॉक्टर अरमान, जो मुस्तफ़ाबाद में प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं, अपनी टीम के साथ लोगों का इलाज़ करने में लगे हुए दिखे.
डॉक्टर अरमान न्यूज़लॉन्ड्री से बात करते हुए बताते हैं, "हमारे यहां ज़्यादातर लोग बुख़ार और सिर दर्द जैसे मामलों को लेकर आ रहे हैं. लेकिन यहां सबसे ज़्यादा परेशानी लोगों की मेंटल हेल्थ को लेकर है. घरों को जलते या दंगाइयों की भीड़ को हिंसक रूप में देखने के बाद वो सारा खौफनाक दृश्य इनके ज़ेहन में चस्पा पड़ा है. लोग मानसिक रूप से परेशान है. किसी के घर को आग लगा दी गई है तो किसी का घर लूट लिया गया है. लोग हमसे अपनी परेशानी बताने से पहले रोने लगते है. ऐसे में बेहद ज़रूरी है कि सरकार यहां मेंटल हेल्थ को समझने वाले डॉक्टरों का इतज़ाम करे."
डॉक्टर अरमान यामीन ख़ान की मौत पर कहते हैं, "देखिए उनको मानसिक परेशानी ही थी. अगर यहां डॉक्टर मौजूद होते तो शायद उनको बचाया जा सकता था. अटैक नहीं आता लेकिन डॉक्टर की मौजूदगी न होने की वजह से उनकी मौत हो गई. यहां ज़्यादातर बुज़ुर्ग और महिलाएं मानसिक परेशानी से गुजर रहे हैं."
एक अरसे तक देश सेवा की है, अब ख़ुद रिलीफ़ कैंप में हूं.
यहां जितने चहेरे है उतनी कहानियां हैं. लोग अपने-अपने घरों को लौटने की बाबत परेशान हैं. और अपनी आंखों से ख़ौफ़नाक मंज़र देखने के बाद उनके भीतर असुरक्षा की भावना घर कर गई है.
सालों तक केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) में नौकरी करने वाले 73 वर्षीय ग़ुलाम मोहम्मद अपने बेटे इमरान ख़ान के साथ रिलीफ़ कैंप में बैठे हुए मिले. थोड़ी देर पहले हुई बारिश के कारण ठंड बढ़ गई है. वे कम्बल में खुद को लपेटे हुए कहते हैं,“यहां रहते हुए बेहद अफ़सोस हो रहा है. जिस देश की सेवा करते हुए पूरी उम्र निकल गई उस देश में बेघरों की तरह रहना पड़ रहा है."
यूपी के कन्नौज के रहने वाले ग़ुलाम मोहम्मद रिटायर होने के बाद अपने बेटे, बहु और पत्नी के साथ शिव विहार के गली नम्बर 11 में किराये पर रह रहे थे. उनका बेटा इमरान सिलाई का काम करता है.
ग़ुलाम मोहम्मद बताते हैं, "24 फरवरी को जब दंगे शुरू हो गए, हमने अपने बेटे और बहू को वहां से हटा दिया. मकान मालिक ने भी अपने बच्चों को बाहर कहीं भेज दिया. घर पर हम चार लोग थे. मकान मालिक और उनकी पत्नी, मैं और मेरी पत्नी. 25 फरवरी की सुबह-सुबह हमारे घर के सामने एक दुकान में कुछ लोग आए. जो हेलमेट पहने हुए थे. दुकान में आग लगा दी. उसके बाद हम लोग भी डर गए. मकान मालिक ने कहा कि अब निकलना पड़ेगा."
ग़ुलाम मोहम्मद आगे कहते हैं, "वहां से निकलकर हम चमन पार्क गए. दो दिन वहीं पर रुके. फिर पता चला कि ईदगाह में रिलीफ कैंप बना है तो हम यहां आ गए. मेरे कमरे में आग तो नहीं लगाई लेकिन सबकुछ लूट लिया है. मेरे बेटे की बाइक को आग के हवाले कर दिया गया है."
अपनी जली हुई मोटरसाइकिल की तस्वीर दिखाते हुए इमरान कहते हैं, "आज मैं अपना कमरा देखने गया था. पड़ोसी कह रहे थे कि जो हुआ बेहद ग़लत हुआ तुम लोग अब लौट आओ. वैसे भी मुझे नहीं लगता कि दंगे में हमारे पड़ोसियों का कोई हाथ था. लोग बाहर से आए थे. सबने हेलमेट लगा रखा था."
पड़ोसी वापस बुला रहे हैं
रिलीफ कैंप में रह रहे लोग अपने घर देखने जा रहे हैं तो पड़ोसी उनसे लौटने को कह रहे हैं. लेकिन लोग अभी लौटना नहीं चाहते उन्हें डर है कि होली के दिन हुड़दंग में फिर से कुछ गड़बड़ हो सकती है. असमाजिक तत्व होली का फायदा उठाकर उन्हें परेशान कर सकते हैं.
शिव विहार के गली नम्बर 12 में रहने वाली बानो ईदगाह के रिलीफ कैंप में रह रही हैं. वो कहती हैं, "हम अपने घर डर के मारे नहीं जा रहे हैं. हमेशा दहशत लगी हुई है. मैं आज घर गई थी. सारे घर में आग लगा दिया है. हमारा दूध का कारोबार था. तेरह भैंसें थीं वो खुलकर चली गई हैं. जब मैं घर देखने गई थी तो मेरे पड़ोसी मुझसे बातचीत किए. मैं वहां से राजी-खुशी आई हूं. पड़ोसियों ने कहा कि तुम अपने घर चले आओ तुम्हें कोई कुछ नहीं कहेगा. हम होली के बाद अपने घर जाएंगे. हम जैसे पहले रह रहे थे वैसे ही फिर मिलजुलकर रहेंगे. ना हम लड़ाई चाहते हैं और ना ही हमारे पड़ोसियों ने हमें मारा-पीटा."
राजधानी स्कूल दंगे में आरोपों के घेरे में है. ऐसा आरोप लग रहा है कि इसकी छत से पत्थरबाजी की घटना हुई है. 27 वर्षीय राहुल सोलंकी की हत्या इसी स्कूल के बराबर में की गई थी. उन्हें गोली मारी गई थी. शुक्रवार को राहुल की मां स्कूल के आगे धरने पर बैठ गईं थीं. उनकी मांग है कि इस स्कूल की मान्यता रद्द हो और राहुल की हत्या की सीबीआई जांच हो. राहुल की बहन जिनकी शादी छह महीने बाद होनी है वह भी अपनी मां के साथ धरने पर बैठी हुई हैं.
राजधानी स्कूल भले विवादों में है लेकिन यहीं पर छठी क्लास में पढ़ने वाली सबा बताती हैं, "घटना के दिन मेरी दोस्त आयुषी को जब पता चला कि यह सब हो गया है तो उसने फोन किया. वो महालक्ष्मी क्लब में रहती है. हम कई दिनों से मिले नहीं लेकिन हमारी रोजाना बातचीत होती है. आज मेरा पेपर था लेकिन मैं पेपर देने नहीं जा पाई."
शुक्रवार देर शाम दिल्ली में जबरदस्त बारिश हुई. रिलीफ कैंप में लोग बारिश से परेशान दिखे. एक तरफ जहां कोरोना वायरस से बचाव के लिए भीड़ से दूर रहने की सलाह दी जा रही है ऐसे में यहां हज़ारों लोग एक जगह रह रहे हैं. हालांकि यहां कोरोना वायरस से बचाव को लेकर कई पोस्टर लगाए गए हैं, लोगों को जानकारी दी जा रही है.
मुस्तफाबाद के ही रहने वाले रिजवान कहते हैं, "सरकार मुआवजा अगर जल्दी दे दे तो हमें दोबारा से अपनी जिंदगी शुरू करने में सहूलियत हो. यहां बैठकर दिन काटना बहुत खराब लगता है."
रिलीफ कैंप में रह रहे लोगों को अभी तक दिल्ली सरकार द्वारा घोषित मुआवजा मिल नहीं पाया है.
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