Newslaundry Hindi
यस बैंक की विफलता के 6 अदृश्य प्रभाव
अर्थशास्त्र में कुछ प्रत्यक्ष प्रभाव होते है और कुछ अदृश्य प्रभाव होते हैं. बहुधा अदृश्य प्रभाव कहीं ज्यादा खतरनाक असर डालते हैं बनिस्बत प्रत्यक्ष प्रभावों के.
जैसे यस बैंक के मामले को ही देखते हैं. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने यस बैंक से पैसे निकालने की मात्रा पर प्रतिबंध लगा दिया है. 50,000 रुपये से ज्यादा निकालने पर ये रोक लगी है.
इसका प्रत्यक्ष प्रभाव यह है कि अगर किसी खाताधारक के इस बैंक में 50,000 रुपये से ज्यादा जमा है तो भी वह वर्तमान में इससे ज्यादा पैसे नहीं निकाल सकता. जो लोग यस बैंक से चैक इश्यू करते हैं उन्हें भी इस समस्या का सामना करना पड़ रहा है. और जो यस बैंक खाते से अपनी ईएमआई भरते हैं, वे भी कुछऐसी ही परेशानी झेल रहे हैं. आरबीआई ने बैंक के बोर्ड को इससे अलग कर दिया है और अपने एक प्रशासक के जरिए बैंक को बचाने और आगे बढ़ाने के लिए जो कुछ कर सकता है, उसकी कोशिश कर रहा है. स्टेट बैंक ऑफ इंडिया इसमें निवेश करने के लिए आगे आया है. एक हद तक इस नुकसान का सामाजीकरण किया जा रहा है. यस बैंक की विफलता के ये दृश्य प्रभाव हैं.
हालांकि, इस प्रतिबंध के अदृश्य प्रभाव भी हैं.बिंदुवार इसे आगे देखते हैं कि ये अदृश्य प्रभाव क्या हैं?
1. रिजर्व बैंक द्वारा, यस बैंक से पैसे निकालने की सीमा तय करने के बाद लोगों के दिमाग में यह धारणा बन गई है कि निजी बैंक असुरक्षित हैं. यह एक तथ्य है कि यस बैंक की तरह बहुत से सार्वजनिक बैंक भी संकट से गुजरे हैं, लेकिन तब भी पैसे निकालने की सीमा जैसा कोई नियम वहां लागू नहीं किया गया.इसने एक भ्रम पैदा किया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सुरक्षित हैं.
2.जब यस बैंक से जमा निकासी पर लगी रोक हटेगी, तो लोग तेजी से इस बैंक से अपनी जमा राशि निकालना शुरू करेंगे और दूसरे बैंक की ओर रुखकरेंगे. शुरुआती कुछ दिनों में अगर बैंक ग्राहकों को जमा निकासी के बारे में संतुष्ट कर लेता है तो फिर इसमें धीरे-धीरे कमी आएगी. इसलिए यह जरूरी है कि पैसा निकालने वाले ग्राहकों को संतुष्ट करने के लिए यस बैंक पहले से ही आरबीआई के साथ मिलकर एक पुख्ता योजना तैयार कर ले.
यस बैंक के प्रबंधक प्रशांत कुमार का कहना है कि बैंक में जमा निकासी पर लगे प्रतिबंध के इस हफ्ते हटने की संभावना है. लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि जमा निकासी की सीमा प्राथमिकता से तय क्यों की गई थी? और अगर प्रतिबंध के इतने कम समय में हटने की संभावना है तो इसे प्राथमिकतासे लगाने की क्या जरूरत थी?
देश यह भी जानना चाहता है कि एक बैंक जिसका लोन डूबने की दर 31 मार्च, 2019 तक सिर्फ 3.2 प्रतिशत थी, एक साल बाद ही उस बैंक की यह हालत कैसे हुई. साफतौर पर, बैंक ने गलतजानकारियां दी और इसमें ऑडिटर की मिलीभगत थी. यहां यह बताना भी जरूरी है कि इस मामले में रिजर्व बैंक भी आंखेमूंदकर सोता रहा.
3.आने वाले समय में इसका यह असर यह होगा कि लोग अपनी बचत निजी बैंक से सार्वजनिक बैंक में जमा करने लगेंगे. असल में इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. अक्टूबर से दिसम्बर 2019 के बीच, जैसे ही यस बैंक की बदहाली की ख़बरतेजी से फैली,लोगों ने निजीबैंकों के मुकाबले बड़ी संख्या में सारवजनिक बैंकों का रुख करना शुरू कर दिया.
इस दौरान निजी बैंक में जमा 46,658 करोड़ रुपये के मुकाबले सार्वजनिक बैंकों मे 1.65 लाख करोड़ जमा हुए. यह बदलाव पिछले कुछ वर्षों में देखने में आया है. 2015-2016 से 2018-2020 के दौरान निजी बैंक की जमा 18.60 लाख करोड़ थी, जबकि इसी दौरान सार्वजनिक क्षेत्रके बैंकों में कुल जमा राशि 14.90 लाख करोड़ थी जो कि निजी बैंक के 4/5 हिस्से के बराबर है.
4. आने वाले महीनों में सार्वजनिक बैंकों मेंनिजी बैंक के मुकाबले ज्यादा नकदी पहुंचेगी. यह यस बैंक की विफलता का एक और अदृश्य प्रभाव होगा. यहां और अदृश्य प्रभाव भी नजर आएंगे. पहला और मुख्य प्रभाव यह होगा कि निजी बैंक अपने ग्राहकों को प्रभावित करने के लिए अधिक ब्याज का ऑफर देंगे. इसका मतलब है कि वे अपने लोन लेने वाले ग्राहकों से अधिक दर पर ब्याज वसूल करेंगे.
5. पिछले कुछ वर्षों में, निजी बैंकों ने अपने सार्वजनिक बैंको के मुकाबले बहुत अधिक ऋण वसूली भी की है. 2015-2016 और 2017-2018 के बीच निजी बैंकों ने सार्वजनिक बैंको के 9.93 लाख करोड़ के ऋण के मुकाबले 17.87 लाख करोड़ रुपये का ऋण दिया.सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा दिए गए ऋण में निजी बैंकों का लगभग 55 प्रतिशत हिस्सा है.
मजे की बात यह है कि सिर्फ 2019-20 (अप्रैल-दिसम्बर) में हीनिजी बैंकों ने 2.29 लाख करोड़ रुपये काऋण दिया.जबकि इस दौरान सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने कुल मिलाकर 25,530 करोड़ रुपये ऋण दिया.यहां प्रमुख बात यह है कि हाल के दिनों में, निजी बैंकों ने बड़े पैमाने पर ऋण दिया हैं.
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक बैड लोन के दबाव में अनिच्छुक ऋणदाता बने रहे जिनका बैड लोनमार्च 2018 तक 8.95 लाख करोड़ रुपये और मार्च 2019 तक 7.89 लाख करोड़ रुपये था.
इस समय इसका मतलब यह है कि या तो बैंकों के ऋणदेने की यही दर बनी रहेगी या फिर इसमें और कमी आएगी. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकनया ऋणदेने के कतई मूड में नहीं हैं, नतीजतन उनके पास जमा राशि लगातार बढ़ेगी, लेकिन वे इसे लोन के रूप में नहीं देंगे. यह अदृश्य प्रभाव के कारण पैदा होने वाला एकऔर अदृश्य प्रभाव होगा.
6. सितम्बर 2019 में जब पंजाब एंड महाराष्ट्र (पीएमसी) बैंक में इसी तरह की पाबंदी लगाई गई थी तो लोगों ने खूब हंगामा किया था,विशेष रूप से उन लोगों ने जिन्होंने बैंक में अपनी बचत का एक बड़ा हिस्साजमा कर रखा था.
उस समय पीएमसी की जमा राशि यस बैंक की सितंबर 2019 में जमा राशि का लगभग 4 प्रतिशत था. लेकिन यस बैंक के मामले में पीएमसी की तुलना में बहुत कम हंगामा हुआ है. क्यों? इसका जवाब शायद यह है कि पीएमसी बैंक मुम्बई से संचालित बैंक है जो मुख्यत: सिख समुदाय को सेवाएं देता है.इसलिए, प्रभावित लोग तेजी से इकट्ठा होकर वहां पहुंच गए.साथ ही जिन गुरुद्वारों का पीएमसी में पैसा था, वे भी इससे जुड़ गए.
यस बैंक के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता. यह पूरे देश में संचालित होता है, इसका मतलब है कि अगर लोग उसके खिलाफ हंगामा करना चाहें तो भी उन्हें संगठित करना आसान नहीं है.यस बैंक से जुड़े लोग उच्च मध्यम वर्ग और मध्यम वर्ग के लोग हैं.यह बैंक कारपोरेट वेतन खातों के प्रति विशेष रूप से उदार था और सेविंग खातों पर अधिक ब्याज देता था.यह भी संभव है कि लोगों के यस बैंक के अलावा भी कई बैंक खाते हों, और बैंक प्र निकासी प्रतिबंध के बावजूद बहुतों का पैसाफंसा नहीं है.
व्हाट्सएप यूनिवर्सिटीके कॉलेज में यह बात भी वायरल हो रही है कि यस बैंक ने 2014से पहले ही अपने ऋण का एक बड़ा हिस्सा चुका दिया था. जो सच नहीं है. मार्च 2014 में,बैंक की कुल अग्रिम 55,633 करोड़ रुपये थी. जो मार्च 2019 में बढ़कर 2,41,500 करोड़ हो गई. यानि कि बैंक के लोन खाते में सारी बढोत्तरी मार्च 2014 के बाद हुई.
निष्कर्ष,वर्तमान मेंहर कोई यस बैंक के प्रतिबंध के प्रत्यक्ष प्रभावों की बात कर रहा है हालांकि,अदृश्य प्रभाव आने वाले दिनों में ज्यादा प्रभाव डालेंगे इसलिए जरूरी है कि इस पर भी समय रहते बात की जाय.
Also Read
-
If manifestos worked, Bihar would’ve been Scandinavia with litti chokha
-
South Central 49: EC’s push for SIR, high courts on sexual assault cases
-
NDA’s ‘jungle raj’ candidate? Interview with Bihar strongman Anant Singh
-
TV Newsance 319: Bihar dramebaazi and Yamuna PR wash
-
Argument over seats to hate campaign: The story behind the Mumbai Press Club row