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मेले में फंसे 200 से ज्यादा लोग और जानवर

“हमारी टीम में करीब 35 लोग हैं लेकिन पूरे मेला स्थल पर लगभग 200 लोग फंसे हुए हैं. मेरे छोटे-छोटे बच्चे है जिन्हें दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा है. साथ में जानवर भी हैं, उन्हें भी खाना नहीं खिला पा रहा हूं. हमारे जितने भी सहयोगी हैं सब निराश हो गए हैं. किसी के पास अब हिम्मत नहीं है, सबके परिवार भुखमरी की हालत में हैं. हम लोग दूसरे लोगों को सर्कस दिखा कर खुद का पेट भरते थे, दूसरों को हंसाते थे, लेकिन आज हमें देखने वाला कोई नहीं है.” यह बताते-बताते सिंहेश्वर मेला ग्राउंड में फंसे नटराज सर्कस के मैनेजर रामनरेश सिंह रो पड़े.

बिहार के मधेपुरा जिले में सिंहेश्वर के पास महाशिवरात्रि के अवसर पर लगने वाले विशाल मेले ने इस बार सैकड़ों परिवारों को भूखे मरने के लिए छोड़ दिया है. ये लोग मार्च से ही यहां फंसे हुए हैं. चूंकि यह मेला एक माह का होता था और इसे देखने के लिए न केवल बिहार के विभिन्न जिले के लोग आते थे बल्कि पड़ोसी राज्य और पड़ोसी देश नेपाल से भी लोग आते थे. लॉकडाउन के वजह से मेला तय समय से पहले खत्म हो गया और यहां बाहर से आये कलाकार और रंगकर्मी फंस गये है. ये संख्या करीब दो सौ लोगों की है जो अब भुखमरी के कगार पर हैं.

अन्य देशों के साथ जब भारत में कोरोना की मार शुरू हुई तो देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी लॉकडाउन का ऐलान किया. कोरोना का सटीक इलाज किसी देश के पास नहीं है लिहाजा फिलहाल इसका सबसे अच्छा इलाज बचाव है जो एक दूसरे के बीच शारीरिक दूरी कायम करने से ही संभव है. मेले में दुकान लगाने वाले फूल कुमार बताते हैं, “जीवन भर हम लोगों का काम है विभिन्न जगह जाकर मेला में दुकान लगा कर अपने परिवार का पेट पालना. लेकिन इस स्थिति ने मेरे और मेरे जैसे कई परिवारों को संकट में डाल दिया है. इससे अभी निकट में उबरने का कोई उम्मीद नहीं दिख रही.”

सिंहेश्वर मेला

उन्होंने आगे कहा कि पहले तो कोरोना के कारण लॉकडाउन में भूख से मर ही रहे थे लेकिन अब तो मौसम की भी मार शुरू हो गयी है. खुले आसमान के नीचे दुकानदार अपना कीमती सामान रखने को विवश हैं. पिछले दिन आये भयावह आंधी तूफ़ान से सारे शीशे के सामान फूट गये हैं, बिक्री के सामान, कॉस्मेटिक के महंगे सामान भीग चुके हैं. अब उनकी भरपाई भी नही हो सकती.

फुल कुमार के बगल में ही फूटे हुए शीशे के सामान सुखाने की कोशिश कर रहे मोहम्मद अली रह-रह कर अपने नष्ट सामानों को निहार रहे थे और खुद को कोस रहे थे. हमसे बात करते हुए उन्होंने बताया, “साहब ऐसी जिन्दगी भगवान दुश्मन को न दे. आज न खाने को राशन है न पीने को साफ पानी. स्थानीय न्यास समिति के मेहनत से हम लोगों को दो बार आपदा विभाग से कुछ राशन मिला है, लेकिन यह हम सबके लिए पर्याप्त नहीं है.” वो आगे कहते हैं, “हम लोग कहीं जा नहीं सकते, न कुछ खरीद सकते हैं. जो पैसे थे सब खत्म हो चुके हैं. इस बार ऐसे भी मेला बढ़िया नहीं हुआ. हर साल एक महीना से अधिक चलता था, इस बार करीब पन्द्रह दिन में ही समेटना पड़ा.”

सिंहश्वर मेले में फंसे लोग

दर्शन कुमार मेले में आए नटराज सर्कस में जोकर का काम करते हैं. उनसे बातचीत शुरू हुई तो कहने लगे, “हम लोग रोजाना कमाने खाने वाले लोग हैं. आज दो माह से बैठे हुए हैं. कहीं आ-जा नहीं सकते. बैठ के कितना खाएंगे. कहां से अनाज पानी जुटाएंगे. सरकार दो बार राशन दी है लेकिन वो भी कितना करेगी. कुछ सामान होता है जो बाहर से खरीदना ही होता है, लेकिन हाथ में पैसा ही नहीं बचा है तो कहां से खरीदें.” हमेशा अपने करतब से लोगों को हंसाने वाला जोकर दर्शन की मायूसी भरी बातें सुनकर दिल बैठ जाता है.

सिंहेश्वर मन्दिर न्यास समिति के पूर्व सदस्य सरोज कुमार कहते हैं, “मेला ग्राउंड में करीब 200 लोग फंसे हैं. ये लोग दूर-दराज से मेले में अपनी दुकान या अन्य सामान के साथ आए थे, लेकिन इसी बीच कोरोना के कारण पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया. ये बहुत ही बुरी स्थिति में हैं. जो लोग जा सकते थे, वो तो निकल गए लेकिन यहां अपने सामान, जानवर, झूला, दुकान आदि जो लोग फंस गए हैं, उनकी दशा बहुत खराब है.”

सरकारी सहायता के सवाल पर सरोज कहते हैं, “इन लोगों को जिला प्रशासन द्वारा आपदा राहत के तहत तीन बार पांच-पांच किलोग्राम सुखा राशन पैकेट उपलब्ध करवाया गया है, लेकिन वो पर्याप्त नहीं है. अधिकांश के छोटे-छोटे बच्चे हैं जिन्हें दूध तक नसीब नहीं हो पा रहा है. इनके साथ जानवर भी हैं उसके खाने के लिए भी चारा नहीं है.”सिंहश्वर मेले में इस वर्ष हुए नुकसान का आकलन करें तो लाखों का है. अभी लगातार मौसम की मार ने बाहर से आये व्यापारियों को भी लाखों का नुकसान पहुंचाया है.

सिंहश्वर मेले में फंसे लोग

बुधवार को आए आंधी-तूफान ने सामान के साथ चादर, बल्ली, बांस सबको उड़ा दिया. इससे वहां फंसे मेलार्थियों का काफी नुकसान हुआ है.”स्थानीय लोगों के मुताबिक प्रशासन और सरकार को इन लोगों के बारे में सोचना चाहिए. क्षेत्र के विधायक को भी कम से कम ध्यान देना चाहिए कि उनके क्षेत्र में हर वर्ष इन्हीं लोगों की मेहनत से उनका क्षेत्र गुलजार होता है. मेले से राजस्व की बात अगर करे तो वो लाखो में है. जिला प्रशासन ने इस वर्ष भी इस मेले का ठेका 30 लाख रुपए में जितेन्द्र कुमार सिंटू को दिया था. चूंकि एक बड़ी राशि जिला प्रशासन इस मेले से जुटाता है लिहाजा आज संकट में फंसे लोगों की सुध भी जिला प्रशासन को ही लेनी चाहिए.

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