Newslaundry Hindi
गुजरात: नाराज प्रवासी मजदूरों ने एबीपी के पत्रकार पर किया हमला
देश में कोरोना संक्रमित मरीजों का आंकड़ा एक लाख के पार पहुंच गया है जबकि 3000 से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं. सोमवार को पिछले 24 घंटे में ही रिकार्ड 5000 से ज्यादा नए कोरोना के मामले सामने आए हैं, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है. बढ़ते खतरे को देखते हुए सरकार ने देशव्यापी लॉकडाउन को एक बार फिर चौथे चरण में बढ़ाते हुए 31 मई तक करने का फैसला किया है.
लेकिन जैसे-जैसे ये लॉकडाउन बढ़ता जा रहा है, दूसरे राज्यों में फंसे प्रवासी मजदूरों का धैर्य भी जवाब देता जा रहा है. प्रवासी मजदूर अपने घरों को लौटने के लिए बेताब हैं, वे अपनी जान जोखिम में डालकर भी अपने घर पहुंचना चाहते हैं. इस जोखिम के कारण कई जगह सड़क दुर्घटनाओं में मजदूरों की मौतें हुई हैं. इसके बावजूद भी ये मजदूर लगातार सडकों पर हैं.
जगह-जगह हालात बेकाबू हो रहे हैं. मुम्बई, गुजरात के सूरत आदि जगहों से पहले ही ऐसी खबरें आ चुकी हैं. ऐसा ही एक मामला गुजरात के राजकोट ग्रामीण इलाके से आया है. जहां रविवार को प्रशासन द्वारा ट्रेनें कैंसल करने से नाराज प्रवासी मजदूरों की भीड़ ने हिंसक रूप ले लिया. भीड़ ने पत्रकार और पुलिस पर हमला बोल दिया. इस हमले में एबीपी अस्मिता चैनल के राजकोट संवाददाता हार्दिक जोशी पर लाठी डंडों से बुरी तरह हमला कर गम्भीर रूप से घायल कर दिया. हार्दिक को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा.
मजदूर इतने उग्र थे कि हार्दिक के लहूलुहान होकर गिर जाने के बाद भी उन पर गाली-गलौज करते हुए डंडे से वार करते रहे. हार्दिक के सर पर गहरी चोट आई है. साथ ही उनका कैमरा भी उग्र भीड़ ने छीन लिया था. जैसे- तैसे हार्दिक ने वहां से भागकर अपनी जान बचाई.
न्यूज़लॉन्ड्री ने गुजरात में एबीपी अस्मिता के संपादक रौनक पटेल से इस बारे में बात की. उन्होंने बताया, “दरअसल मुम्बई के बाद गुजरात में ही सबसे ज्यादा प्रवासी श्रमिक रहते हैं. ये मजदूर अधिकतर टेक्सटाइल उद्योग में काम करते हैं. राजकोट ग्रामीण में वेरावल शॉपर एक जगह है, जहां अधिकतर उत्तर भारतीय श्रमिक रहते हैं. सरकार ने इन मजदूरों की वापसी के लिए वहीं पर ट्रांजिट कैंप बनाया है. वहां से इन्हें बस आदि के जरिए रेलवे स्टेशन तक ले जाया जाता था और ये अपने राज्य वापस जाते हैं. 17 मई को भी लगभग 2000 मजदूर वहां पहुंच चुके थे. वहां पहुंचने पर उन्हें पता चला कि कोई ट्रेन कैंसल हो गई है. उन्होंने सड़क जाम कर दिया. फिर उग्र लोगों ने पत्थरबाजी शुरू कर दी.”
रौनक आगे बताते हैं, “इसी दौरान हमारे स्थानीय रिपोर्टर हार्दिक अपने गांव से राजकोट जा रहे थे. उसने वहां हंगामा होते देख उसे शूट करना शुरू कर दिया. इस पर नाराज लोगों ने उसे पकड़कर गाली गलौज करते हुए बुरी तरह पीटना शुरू कर दिया. आपने वीडियो में भी देखा होगा. हार्दिक अकेला उनके बीच फंस गया. कुछ पथराव पुलिस पर भी हुआ.”
एडिटर के मुताबिक असल में उन मजदूरों में कुछ लोग ऐसे थे जो मजदूरों को भड़का रहे थे. जबकि कुछ ऐसे लोग भी थे जो उन्हें छुड़ा रहे थे. जैसे-तैसे हार्दिक ने पास के एक घर में भागकर अपनी जान बचाई. बाद में एबीपी अस्मिता का शहरी रिपोर्टर वहां पहुंचा और हार्दिक को अस्पताल में भर्ती करवाया. फिलहाल उसकी हालत खतरे से बाहर है और वो अपने घर जा चुका है. पुलिस ने वीडियो के आधार पर अभी तक 29 लोगों की गिरफ्तारी की है और अन्य लोगों की तलाश कर रही है.
ये प्रवासी मजदूर गुजरात में बार-बार सड़कों पर क्यों उतर रहे हैं? इस पर रौनक ने बताया, “जितना मैं जानता हूं, यहां ज्यादातर मजदूर बैचलर हैं. ये एक-एक कमरे में 5-6 लोग किराए पर रहते हैं. इनका ऐसा हिसाब रहता है कि आधे दिन में काम करते हैं और आधे रात में. लेकिन अब लॉकडाउन में सब काम बंद है तो 5-6 लोग एक ही रूम में इस गर्मी में मुश्किल रह पाते हैं. जैसे-जैसे लॉकडाउन बढ़ रहा है तो इनमें हर कोई चाह रहा है कि अपने घर जल्द से जल्द पहुंच जाए. इस कारण ये स्थिति उत्पन्न हो रही है. दूसरे सरकार भी माइग्रेंट लेबर को पूरी तरह भरोसा दिलाने में कहीं न कहीं नाकाम रही है. हालांकि उसने कोशिश की है, लेकिन मजदूरों के लिए यह नाकाफी है. अब बस हर कोई घर जाना चाहता है. बाकी कमियां हर तरफ से हर स्तर पर हुई हैं.”
हमने राजकोट ग्रामीण, जहां ये घटना घटी उसके एसपी बलराम मीणा से इस बारे में जानने के लिए कई बार फोन किया लेकिन उन्होंने हमारे फोन का कोई जवाब नहीं दिया.
देश में लॉकडाउन हुए 50 से ज्यादा दिनों का वक्त गुजर चुका है. इस दौरान शुरू से ही बेहद विकट परिस्थितियों में वापस अपने घरों को लौटते प्रवासी मजदूरों की बेहद मार्मिक और दिल दहला देने वाली तस्वीरें सामने आ चुकी हैं. कोई पैदल, साईकिल से तो कोई अन्य इंतजाम कर वापस घर लौट रहे हैं. लेकिन आज भी सरकारें, मजदूरों को वापस उनके घर भेजने का न तो कोई ठोस इंतजाम कर पाई है और न ही उनका यह भरोसे जीत पाई है. इसके चलते मजदूरों का मनोबल टूट रहा है और उनका कोपभाजन पत्रकार, पुलिस और डॉक्टर जैसे आवश्यक सुविधाओं से जुड़े लोग बन रहे हैं. जैसा की राजकोट में देखने को मिला.
Also Read
-
Another Election Show: Hurdles to the BJP’s south plan, opposition narratives
-
‘Not a family issue for me’: NCP’s Supriya Sule on battle for Pawar legacy, Baramati fight
-
‘Top 1 percent will be affected by wealth redistribution’: Economist and prof R Ramakumar
-
Presenting NewsAble: The Newslaundry website and app are now accessible
-
Never insulted the women in Jagan’s life: TDP gen secy on Andhra calculus, BJP alliance