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प्लास्टिक पेनों से उत्पन्न 91 फीसदी कचरा नहीं होता रिसाइकल

हर साल 160 से 240 करोड़ प्लास्टिक पेन बाजार में आते हैं. जिनकी वजह से जो प्लास्टिक वेस्ट उत्पन्न होता है उसमे से 91 फीसदी रिसाइकल नहीं होता. जिसकी सबसे बड़ी वजह इस कचरे पर ध्यान नहीं दिया जाना और पेन निर्मातों की कचरे के संबंध में जवाबदेही को तय नहीं किया जाना है.

शिकायतकर्ता अवनि मिश्रा ने अपनी अर्जी में बताया था कि देश में आज भी प्लास्टिक पेनों से होने वाले कचरे के प्रबंधन के लिए विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) को पूरी तरह लागू नहीं किया गया है.

यह जानकारी सीपीसीबी द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के समक्ष दायर रिपोर्ट में दी गई है. जोकि प्लास्टिक पेनों से होने वाले कचरे के मामले में तैयार की गई है. जिसके कारण पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है. सीपीसीबी ने जानकारी दी है कि उसने ईपीआर के तहत 92 ब्रांड मालिकों और 4 उत्पादकों को पंजीकृत करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है. जिनके अंतर्गत प्रति वर्ष 4.5 लाख टन ईपीआर का लक्ष्य रखा है. भारत ही नहीं दुनिया भर में बड़े पैमाने पर प्लास्टिक से बने पेनों का इस्तेमाल किया जाता है. जिन्हें प्रयोग के बाद फेंक दिया जाता है. पर इससे जो कचरा उत्पन्न होता है. वो अन्य प्लास्टिक उत्पादों की तरह ही पर्यावरण के लिए हानिकारक होता है.

सांकेतिक चित्र

सीपीसीबी ने प्लास्टिक वेस्ट पर जारी 2018 -19 की अपनी वार्षिक रिपोर्ट में बताया था कि उस वर्ष देश में 33,60,048 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ था. जिस तरह से आज यूज एंड थ्रो कलचर चल रहा है उसमें प्लास्टिक कचरे को बढ़ने में प्लास्टिक पेनों का योगदान काफी ज्यादा है. लेकिन इसका जिक्र बहुत कम जगहों पर होता है. टॉक्सिक लिंक द्वारा जारी एक स्टडी 'सिंगल यूज प्लास्टिक-द लास्ट स्ट्रॉ' के अनुसार केवल एक महीने में केरल के ही स्कूल स्टूडेंट्स करीब 1.5 करोड़ पेन को फेंक देते हैं.

गौरतलब है कि अवनि मिश्रा ने यह मामला एनजीटी में उठाया था. जिसमें प्लास्टिक पेनों से होने वाले प्रदूषण और उसके कचरे के प्रबंधन के लिए पेन निर्मातों की जवाबदेही तय करने की मांग रखी गई थी. इससे होने वाले कचरे को रोकने के लिए उन्होने पेनों के उपयोग के बाद निर्माताओं द्वारा उसे वापस ख़रीदे जाने की मांग रखी थी. जिससे उनका उचित प्रकार से निपटान किया जा सके. इस मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एक आदेश जारी किया था जिसमें सीपीसीबी को इस मामले पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी थी.

क्या होता है विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर)

देश में प्लास्टिक कचरे की समस्या अत्यंत गंभीर है. इसलिए उसके उचित प्रबंधन के लिए प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (पीडब्लूएम), 2018 के तहत निर्मातों की जिम्मेवारी तय करने की योजना तैयार की गई थी. जिसे विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) के नाम से जाना जाता है. सीपीसीबी के अनुसार वर्तमान में विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) को लागू करने के लिए के लिए एक नेशनल फ्रेमवर्क पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के समक्ष विचाराधीन है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने ईपीआर के तहत कवर की जाने वाली वस्तुओं को स्पष्ट किये जाने के बारे में भी मंत्रालय से बातचीत की है.

सांकेतिक चित्र

गौरतलब है कि प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2018 के अनुसार, प्रयोग किये गए बहु-स्तरीय प्लास्टिक पाउच और पैकेजिंग प्लास्टिक के संग्रहण की प्राथमिक ज़िम्मेदारी उत्पादकों, आयातकों और ब्रांड मालिकों की होती है, जो बाज़ार में उत्पादों को पेश करते हैं. प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम (पीडब्लूएम), 2018 के नियम 6(1) के अनुसार प्लास्टिक संबंधी कचरे को छांटने, इकट्ठा करने, भंडारण, परिवहन, प्रसंस्करण और निपटान की जिम्मेवारी स्थानीय निकायों की होती है. जिसे वो स्वयं या किसी अन्य एजेंसी की मदद से कर सकती हैं.

इस नियम में बहु-स्तरीय प्लास्टिक पाउच और पैकेजिंग प्लास्टिक को तो ईपीआर के अंतर्गत रखा गया है पर प्लास्टिक पेन और अन्य प्लास्टिक उत्पादों को कवर नहीं किया गया है. जिस वजह से इसके निर्माता अपनी जिम्मेवारी से बच जाते हैं.

( डाउन टू अर्थ से साभार )

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