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मध्य प्रदेश: “शिव-महा” सरकार के 15 अनिर्वाचित मंत्री

“अगर आपकी निष्ठा को अवसर निर्धारित करते हैं तो आपके चरित्र में कुछ ख़ामी है” : ट्रेंटन शेल्टन

एक पूर्व अमेरिकी फुटबॉलर की यह पंक्ति मध्य प्रदेश और अमूमन पूरे देश के राजनेताओं पर लागू होती है जो अपने ही घोषित आदर्शों को ताक पर रख सत्ता के पीछे दौड़ रहे हैं.

15 साल के वनवास के बाद राज्य में कांग्रेस सरकार आई थी लेकिन पार्टी के अंदर परस्पर अंतर्विरोध के चलते यह अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाई. ज्योतिरादित्य सिंधिया अपनी महत्वाकांक्षा के अनुसार पद न मिलने पर अपने समर्थकों सहित मार्च में भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो गए.

कहने को तो मध्य प्रदेश में चार क्षेत्र हैं: मालवा:निमाड़, बुंदेलखंड, ग्वालियर:चंबल, विंध्य लेकिन पूरे प्रदेश में कांग्रेस के तीन चेहरे थे: कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और ज्योतिरादित्य सिंधिया.

लेकिन इस तिकड़ी में ज्योतिरादित्य सिंधिया ने पार्टी का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया, जिसके बाद कमलनाथ सरकार अल्पमत में आ गई और फिर विधानसभा में बहुमत परीक्षण से पहले मुख्यमंत्री कमलनाथ ने इस्तीफ़ा दे दिया. कांग्रेस के अंदर आपस में टकराते हुए अहं इतना बढ़ गया कि 15 साल सत्ता से दूर रहने के बावजूद बनी यह सरकार 15 महीने भी एक नहीं रह सकी.

इसके बाद शुरू हुआ “शिव:महा राज”. शिवराज सिंह चौहान 'महाराज' के समर्थन से फिर से मुख्यमंत्री बने और सिंधिया ने इसके बदले खुद को राज्यसभा सांसद और अपने 14 विधायकों को मंत्री बनवा दिया, वो भी मनमाफिक मंत्रालयों के साथ. सामंतवाद का शव ढो रहे कुछ सहयोगी ज्योतिरादित्य सिंधिया को अब भी महाराज बुलाते हैं. ऐसा भी सुनने में आता है कि सिंधिया भी कई बार इसे सुनना पसंद करते हैं, जो अगर सत्य है तो चिंता की बात है.

अवसरवाद के मंत्री

शिवराज सिंह चौहान के 14 मंत्री कैबिनेट में तो हैं लेकिन विधायक नहीं है. यह कदाचित इतिहास में पहली बार होगा कि एक राज्य के मंत्रिमंडल में 42% से अधिक मंत्री विधानसभा के अनिर्वाचित सदस्य हैं.

मुनाफ़े के लिए राजनीतिक नेताओं को सभी मूल्यों की तिलांजलि देने से रोकने के लिए जो दल बदल कानून बनाया गया था, भारतीय जनता पार्टी उसे लगातार धता बताकर राज्यों में सत्ता परिवर्तन कर रही है. तकनीकी तौर पर यह भले ही गैर कानूनी न हो लेकिन किसी भी दृष्टि से यह एक ईमानदार, ध्येयपूर्ण राजनीति नहीं है जिसकी भाजपा पुरजोर दुहाई देती रही है.

सिंधिया खेमे से जो नेता मंत्री बने हैं वह सब पुराने कांग्रेसी हैं. ज्योतिरादित्य सिंधिया के लिए व्यक्तिगत वफ़ादारी या सत्ता पक्ष में रहने की आतुरता, दल बदलने का कारण इनमें से जो भी हो पर इतना साफ है कि वह अपने क्षेत्र की जनता की भलाई के लिए नहीं है. सत्ता पर दोबारा काबिज़ होने की लोलुपता के अलावा इन सभी पूर्व विधायकों में ऐसी कोई विशिष्ट योग्यता नहीं जिससे यह साबित हो सके कि भाजपा ने उन्हें उनकी किसी ख़ास काबिलियत के लिए कांग्रेस से लपक लिया.

मंत्री बने 14 अनिर्वाचित नेताओं के संक्षिप्त परिचय निम्नलिखित हैं.

नाम : तुलसीराम सिलावट

विधानसभा : सांवेर

पद : जल संसाधन, मछुआ कल्याण तथा मत्स्य विकास मंत्री

क्रिमिनल केस : एक

संपत्ति : 8 करोड़

इंदौर की सात विधानसभा सीटों में से एक सांवेर विधानसभा है. यहां से चौथी बार तुलसी सिलावट विधायक बने है. 15 साल बाद प्रदेश में आई कमलनाथ सरकार में उन्हें स्वास्थ्य मंत्रालय दिया गया था. ज्योतिरादित्य सिंधिया गुट के सिलावट मालवा क्षेत्र में सिंधिया के करीबियों में से एक है. इस करीबी को समझने के लिए एक उदाहरण ही काफी है, सिंधिया के कांग्रेस से भाजपा में आने के बाद तुलसीराम सिलावट कांग्रेस के इस बागी गुट के वह पहले व्यक्ति थे जिन्हें मंत्री पद की शपथ अप्रैल में ही दिला दी गई.

सिलावट का महत्व शिवराज सिंह चौहान भी समझते हैं. इसलिए उन्होंने उपचुनावों को लेकर सांवेर विधानसभा मे कहा, “तुलसी भाई नहीं होते तो आज मैं फिर से मुख्यमंत्री नहीं बन पाता.” मंत्रीजी विवादित बयानों के लिए भी मीडिया में बने रहते है. हाल ही में उन्होंने विकास दुबे के एनकाउंटर पर बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को कलंक बोल दिया. हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि कांग्रेस उनके खिलाफ उपचुनावों को लेकर साजिश रच रही है.

नाम : गोविंद सिंह राजपूत

विधानसभा : सुरखी

पद : राजस्व एवं परिवहन मंत्री

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 3 करोड़

सागर जिले के इतिहास में पहली बार एक साथ तीन मंत्री बनाए गए है. इनमें से एक हैं गोविंद सिंह राजपूत. सिंधिया के बगावत के बाद इन्हें भी शिवराज सिंह चौहान की पहली कैबिनेट में मंत्री बनाया गया था. 2018 में तीसरी बार विधायक चुन कर विधानसभा पहुंचे राजपूत को कमलनाथ सरकार में राजस्व एवं परिवहन मंत्री बनाया गया था.

गोविंद सिंह कांग्रेस में संगठन के कई महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं. जैसे की मध्य प्रदेश युवक कांग्रेस के अध्यक्ष, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के सदस्य, प्रदेश कांग्रेस के महासचिव, विधायक दल के सचेतक समेत कई पदों पर रहे. बीजेपी में शामिल होने के बाद एक बार फिर से उन्हें राजस्व एवं परिवहन मंत्रालय जैसा अहम विभाग दिया गया है.

बीजेपी सरकार में वहीं मंत्रालय मिलने के बाद कांग्रेस ने बीजेपी पर निशाना साधते हुए कहा कि जयभान सिंह पवैया जो ज्योतिरादित्य सिंधिया के धुर विरोधी है उन्होंने सिंधिया को भूमाफिया कहा था और अब उनके ही करीबी को उस विभाग का मंत्री बना दिया गया है. तो क्या वह सिंधिया के खिलाफ कार्यवाही करेंगे? ग़ौरतलब हैं कि पूर्व मंत्री और कांग्रेस नेता गोविंद सिंह ने शिवराज सिंह चौहान से मांग की थी कि किसी भी सिंधिया समर्थक विधायक को राजस्व मंत्रालय ना दिया जाए.

नाम : इमरती देवी

विधानसभा : डबरा

पद : महिला एवं बाल विकास

क्रिमिनल केस : एक केस

संपत्ति : 2 करोड़

ग्वालियर जिले के डबरा विधानसभा से 2018 में तीसरी बार विधायक बनी इमरती देवी, सिंधिया की करीबी लोगों में से एक हैं. कमलनाथ सरकार में जो मंत्रालय उन्हें दिया गया था, वहीं मंत्रालय एक बार फिर से उन्हें दे दिया गया है. 12वीं तक पढ़ी इमरती देवी पहली बार मंत्री बनने के बाद उस समय चर्चा में आई थी, जब वह गणतंत्र दिवस के मौके पर भाषण नहीं पढ़ पाई. जिसके बाद जिले के कलेक्टर ने मंत्री का भाषण पढ़ा.

2005 से डबरा ब्लाक कांग्रेस की अध्यक्ष इमरती देवी पार्टी में कई पदों पर रहीं. वह अनुसूचित जाति से आती है, जिसका उपयोग कर भाजपा सामाजिक समीकरण साधने में लगी है. इमरती देवी अपने बयानों के कारण पहले भी चर्चा में रह चुकी हैं. 2015 में अपने कुत्ते के गुम जाने के बाद उन्होंने प्रेस कांन्फ्रेंस कर उसे ढूंढने की गुहार लगाई. उसके बाद कमलनाथ सरकार में मंत्री रहने के दौरान उन्होंने ग्वालियर दौरे पर विपक्ष को कुत्ता कह कर संबोधित किया था. इसी दौरान उनका डांस करते हुए एक वीडियो वायरल हुआ था. जिसकी वजह से बीजेपी ने उन पर निशाना साधा था.

नाम: हरदीप सिंह डंग

विधानसभा : सुवासरा

पद : नवीन एवं नवकरणीय ऊर्जा, पर्यावरण

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 68 लाख

हरदीप सिंह डंग सिंधिया के समर्थन में इस्तीफ़ा देने वाले पहले विधायक थे. कमलनाथ सरकार में मंत्री नहीं बनाए जाने के कारण डंग सरकार पर हमलावर थे और जैसे ही उन्हें मौका मिला, कांग्रेस छोड़कर सिधिंया के साथ बीजेपी में शामिल हो गए.

कमलनाथ सरकार पर संकट के बादल जिस समय गहरा रहे थे, उस समय हरदीप सिंह अचानक से मीडिया में अपने पत्र को लेकर चर्चा में आ गए थे. मार्च महीने में हरदीप सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष को संबोधित करते हुए अपना इस्तीफ़ा लिखा था, जो चर्चा का विषय रहा. हालांकि इस्तीफ़ा उन्होंने खुद अध्यक्ष को नहीं दिया था. उस पत्र में उन्होंने आरोप लगाया था कि वह ना तो कमलनाथ, सिधिंया और दिग्विजय गुट के है इसलिए उनका कोई भी काम नहीं होता और मंत्री उनकी नहीं सुनते है. इससे आहत होकर वह इस्तीफा दे रहे है.

हालांकि कांग्रेस पार्टी के लोग बताते हैं कि हरदीप सिंह डंग ने जो इस्तीफा दिया हैं वह इसीलिए कि उन्हें मंत्री नहीं बनाया गया. दूसरी बार विधायक चुने गए डंग मंदसौर जिले से आते है, जहां कि अन्य सात सीटों पर 2018 के चुनावों में भाजपा ने जीत हासिल की थी.

नाम: बिसाहूलाल सिंह

विधानसभा : अनूपपुर

पद : खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 5 करोड़

बिसाहूलाल मध्य प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में से एक थे. पूर्व मंत्री बिसाहूलाल 40 सालों से पार्टी में थे. भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने से पहले उन्होंने कहा था कि वे सच्चे कांग्रेसी हैं और वह कभी पार्टी नहीं छोड़ेंगे लेकिन सिधिंया के भाजपा में जाने के बाद वह भी उसी नाव में सवार हो गए.

बिसाहूलाल पहले विधायक थे, जिन्होंने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की मौजूदगी में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की. इससे पहले वह पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह की कैबिनेट में तीन अहम मंत्रालय संभाल चुके थे, तो उन्हें उम्मीद थी की 15 साल का सत्ता वियोग काट कर वापस लौटी कांग्रेस सरकार में वह एक बार फिर से मंत्री बनेंगे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं, जिसके बाद से वह नाराज़ चल रहे थे. हालांकि शिवराज सिंह चौहान ने कैबिनेट विस्तार के बाद उन्हें खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्रालय दिया है.

इस बीच कांग्रेस ने खाद्य मंत्रालय दिए जाने के बाद शिवराज सिंह पर निशाना साधते हुए कहा कि, मुख्यमंत्री ने ही बिसाहूलाल पर अपना फ़र्ज़ी बीपीएल राशन कार्ड बनवाकर गरीबों को दिया जाने वाला राशन खुद लेने का आरोप लगाया था, अब उन्हें ही खाद्य मंत्री बना दिया, ऐसा क्यों?

नाम : राज्यवर्धन सिंह दत्तीगांव

विधानसभा : बदनावर

पद : औघोगिक नीति एवं निवेस प्रोत्साहन

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 9 करोड़

राज्यवर्धन सिंह धार जिले के बदनावर विधानसभा सीट से तीसरी बार विधायक चुने गए है. दत्तीगांव के शाही परिवार से होने के कारण लोग उन्हें दत्तीगांव के राव साहब कह कर पुकारते है. दिल्ली के सेंट स्टीफ़न कालेज से बीए करने के बाद उन्होने देश के सबसे बड़े मीडिया संस्थान आईआईएमसी से एडवरटाइजिंग एंड पब्लिक रिलेशन की पढ़ाई की.

राजनीति में इनके आने का कारण भी दिलचस्प बताया जाता है. जनसत्ता की खबर के मुताबिक उनके पिता जो माधवराव सिंधिया के करीबी थे, उन्हें कांग्रेस ने टिकट देने से मना कर दिया था. जिसके बाद राज्यवर्धन ने अपनी मार्केटिंग की नौकरी छोड़कर राजनीति में कदम रखा. निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद वह बाद में कांग्रेस में आ गए. इस दौरान उनकी ज्योतिरादित्य सिंधिया से दोस्ती गहरी होती गई.

उनकी पढ़ाई के कारण ही पहली बार मंत्री बने राज्यवर्धन को शिवराज सिंह चौहान ने औघोगिक नीति एवं निवेश प्रोत्साहन जैसा अहम विभाग सौंपा है.

नाम : प्रद्युमन सिंह तोमर

विधानसभा : ग्वालियर

पद : ऊर्जा मंत्री

क्रिमिनल केस : 20 केस

संपत्ति : 2 करोड़

ग्वालियर जिले के ग्वालियर विधानसभा से विधायक प्रद्युमन सिंह कमलनाथ सरकार में खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री थे. सिंधिया के गृह जिले से विधायक सिंह अपने अनोखे अंदाज के लिए जाने जाते है. उन्होंने शपथ ग्रहण समारोह में नंगे पांव शपथ लिया था. इससे पहले वह कमलनाथ सरकार में मंत्री रहते हुए फावड़ा उठाकर नाले की सफाई करने लगे थे.

2008 में पहली बार विधायक चुने गए प्रद्युमन सिंह प्रदेश युवक कांग्रेस के अनेक पदों पर रहे, साथ ही ग्वालियर जिले में भी कई पदों पर रहे. 2018 में दोबारा विधायक बनने के बाद कमलनाथ सरकार में मंत्री बने. बीजेपी में शामिल होने के बाद शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल में उन्हें ऊर्जा मंत्री बनाया गया है.

बता दें कि 2019 में हुए निकाय चुनावों के दौरान नगरीय प्रशासन मंत्री जब समीक्षा बैठक रहे थे, तब उन्होंने कहा था, हम यह चुनाव हार जाएंगे, क्योंकि प्रदेश में सड़कों की हालत बहुत खराब है, जिसके बाद बीजेपी ने कमलनाथ सरकार पर निशाना भी साधा था.

नाम : डाॅ. प्रभुराम चौधरी

विधानसभा : सांची

पद : लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 8 करोड़

रायसेन जिले के सांची विधानसभा सीट के पूर्व विधायक डॉक्टर प्रभुराम चौधरी लंबे समय से कांग्रेस के सदस्य हैं. तीन बार के विधायक डॉ. चौधरी पहली बार 1985 में दूसरी बार 2008 और तीसरी बार 2018 में विधायक बने. हाल ही में गिरी कमलनाथ सरकार में वह स्कूल शिक्षा मंत्री के स्वतंत्र प्रभार को संभाले हुए थे. 1989 से 2008 के बीच कांग्रेस के संगठन में विभिन्न पदों पर रह चुके हैं, जिसमें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अनुसूचित जाति और जनजाति प्रभाग के संयोजक और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य जैसे पद शामिल हैं.

डॉ चौधरी 1982 में संसदीय सचिव 91 मध्य प्रदेश कांग्रेस कार्य कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य 1996 में संयुक्त सचिव और 1998 में महामंत्री बने. वह सेंट्रल कोऑपरेटिव बैंक रायसेन के सदस्य और 2004 में जिला पंचायत रायसेन के सदस्य भी रह चुके हैं

इतने वर्षों की राजनीति में इक्का दुक्का मीडिया में चल रहे विवाद के अलावा डॉ प्रभुराम चौधरी किसी भी तरह के आरोपों और विवादों से मुक्त रहे हैं.

नाम : महेंद्र सिंह सिसोदिया

विधानसभा : बमोरी

पद: पंचायत और ग्रामीण विकास

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 5 करोड़

गुना के रहने वाले महेंद्र सिंह सिसोदिया 2013 में पहली बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे. उस समय में विधानसभा की प्रश्न और संदर्भ समिति तथा आचरण समिति के सदस्य थे.

महेंद्र सिंह सिसोदिया पक्के सिंधिया समर्थक हैं और इस बात को कहने से वह जरा सा भी शर्माते नहीं. इसी साल जनवरी में कमलनाथ सरकार से मतभेद होने पर सिसोदिया ने बयान दिया था कि, "हां मैं ज्योतिरादित्य सिंधिया का चमचा हूं और जीवन पर्यंत रहूंगा. इस बात का मुझे गर्व है."

कमलनाथ सरकार में वह श्रम मंत्री थे मंत्री बनने के बाद उन्होंने गुना में कोई उद्योग ना लगवा पाने की बात पर खेद भी प्रकट किया था.

नाम : ऐदल सिंह कंसाना

विधानसभा : सुमाओली

पद: लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी

क्रिमिनल केस : एक केस

संपत्ति : 83 लाख

मध्य प्रदेश के नए लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री ऐदल सिंह कंसाना पुराने राजनैतिक खिलाड़ी हैं. 1993, 1998 में बहुजन समाज पार्टी के विधायक थे और 2003 में पार्टी के विधानसभा उम्मीदवार थे. 2008 में कांग्रेस में आने के बाद वह 2008 से 13 तक कांग्रेस के विधायक रहे. 2018 में फिर से कांग्रेस से जीते लेकिन मंत्री ना बनाए जाने के कारण उनके समर्थकों ने हाईवे पर चक्का जाम किया और टायर जलाए थे. जनवरी 2019 में वो फिर से खबरों में आए क्योंकि एक वायरल वीडियो में वह रेत माफियाओं की पंचायत को टिप देते हुए नजर आ रहे थे. वीडियो के अंदर विधायक रेत माफियाओं को डंपर से रेत निकालने के बाद ट्रकों के बजाय ट्रैक्टर और ट्रॉली से रेत भेजने की सलाह दे रहे थे.

इस तरह की विवादों का ऐदल सिंह कंसाना से चोली दामन का साथ बना रहता है. 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस की पूर्व जिला अध्यक्ष मीना सिंह ने उन पर टिकट से अपना नाम वापस लेने के लिए धमकाने का आरोप लगाया था. मीना सिंह के अनुसार कंसाना ने उन्हें टिकट से नाम वापस लेने के लिए धमकाया और यह कहा अगर वह ऐसा नहीं करेंगी तो उन्हें और उनके परिवार को जान से मार दिया जाएगा. कंसाना ने इस बात का उस समय खंडन किया था और कहा था कि वह मीना सिंह की थी जो अपशब्द और भद्दी भाषा का प्रयोग कर रही थी.

2013 के विधानसभा चुनाव में ऐदल कंसाना के भतीजे भूरा कंसाना की बूथ कैपचरिंग की कोशिश करते हुए सुरक्षाकर्मी की गोली से मौत हो गई थी.

उनके दोनों बेटे भी खबरों में बने रहते हैं. राहुल सिंह को फरवरी 2019 में आगरा-मुंबई हाईवे के छौंदा टोल प्लाजा पर हमला करने और तोड़-फोड़ करके हत्या करने के आरोप में धारा 307 के अंतर्गत नामजद किया गया था. केस दर्ज होने के कुछ ही समय के अंदर मुरैना के तत्कालीन एसपी रियाज इक़बाल का ट्रांसफर कर दिया गया था.

उनके दूसरे बेटे बंकू कंसाना पर अक्टूबर 2019 में राजस्थान पुलिस के दो सिपाहियों को अवैध खनन से जुड़े विवाद में बंधक बनाकर बुरी तरह पीटने और जान से मारने की कोशिश करने का मुकदमा दर्ज हुआ था.

नाम : बृजेंद्र सिंह यादव

विधानसभा : मुंगावली

पद: लोक स्वास्थ्य एवं यांत्रिकी (राज्यमंत्री)

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 2 करोड़

बृजेंद्र सिंह यादव भी लोक स्वास्थ्य और यांत्रिकी के ही राज्य मंत्री हैं. वे पहली बार मंत्री बने हैं और एक तरह से देखा जाए तो यह उनकी पहली विधानसभा ही है.

बृजेंद्र सिंह यादव एक ही साल में अपनी विधानसभा सीट दो बार जीते. फरवरी 2018 के विधानसभा उपचुनाव में वह मुंगावली से जीते और उसके बाद दिसंबर में पूरे राज्य में हुए विधानसभा चुनाव में फिर से वहां पर विजयी रहे.

मई 2018 में पानी की उपलब्धता न होने की शिकायत लेकर आए ग्रामीणों से गाली गलौज करने के कारण वह सुर्खियों में आए थे. जब वह कांग्रेस में थे तो ऐसा बताया जाता है कि अपने चुनाव क्षेत्र में सांसद के पी यादव के साथ उनका थोड़ा मन मुटाव चलता था. यह दोनों आपस में रिश्तेदार भी हैं.

नाम : गिर्राज दंड़ौतिया

विधानसभा : दिमनी

पद : किसान कल्याण एवं कृषि विकास (राज्यमंत्री)

क्रिमिनल केस : 5 केस

संपत्ति :1 करोड़

गिर्राज धनोतिया मुरैना जिले के दिल्ली से विधायक हैं और सिंधिया के खास माने जाते हैं. वह कोई आम सिंधिया समर्थक नहीं, ऐसा हम इसलिए कह रहे है क्योंकि अक्टूबर 2019 में यह पता चलने पर कि सिंधिया उनके घर आने वाले हैं उन्होंने पास के चुंगी नाके से अपने घर तक की सड़क रातों-रात बनवा कर तैयार करा दी. इस सड़क को बनाने के लिए कोई टेंडर या ठेकेदार से भी संपर्क नहीं किया गया.

गिर्राज पर 5 आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं और जून 2019 में भाजपा नेता सुरेंद्र नाथ सिंह के खून बहाने के विवादास्पद बयान के बाद उसका जवाब देते हुए उन्होंने "बीजेपी नेता यदि खून बहाएंगे तो हम गर्दन काट कर लाएंगे" जैसा शर्मनाक बयान सदन के पटल पर दिया था.

नाम : सुरेश धाकड़

विधानसभा : पोहरी

पद : लोक निर्माण विभाग (राज्यमंत्री)

क्रिमिनल केस : 1 केस

संपत्ति : 1 करोड़

शिवपुरी जिले के पोहरी विधानसभा से पहली बार विधायक चुने गए सुरेश धाकड़ कमलनाथ सरकार में सिर्फ विधायक थे, लेकिन सिंधिया के भाजपा में आते ही इन्हें लोक निर्माण विभाग का राज्यमंत्री बना दिया गया.

धाकड़ को भाजपा ने वरिष्ठ नेता और पूर्व नेता प्रतिपक्ष, गोपाल भार्गव के साथ लोक निर्माण मंत्रालय दिया गया है. उपचुनावों की तैयारियों को लेकर राज्य के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा ने धाकड़ के क्षेत्र में रैली को संबोधित करते हुए कहा कि सुरेश धाकड़ पैसे लेकर भाजपा में नहीं आए है उन्होंने कांग्रेस में उपेक्षित किए गए ज्योतिरादित्य सिंधिया का साथ दिया और बीजेपी में आए.

नाम : ओपीएस भदौरिया

विधानसभा : मेहगांव

पद : नगरीय विकास एवं आवास (राज्यमंत्री)

क्रिमिनल केस : कोई केस नहीं

संपत्ति : 1 करोड़

कई और सिंधिया समर्थकों की तरह ओ पी एस भदौरिया भी पहली बार 2018 में विधायक बने. भिड़ जिले की मेहगांव सीट से निर्वाचित हुए थे.

कांग्रेस के सवा साल के कार्यकाल में भदोरिया पर बिना स्वीकृति लिए हैंडपंप, खनन और सीसी रोड निर्माण कराकर 1 करोड़ 81 लाख 90 हजार का घोटाला करने का आरोप लगा. यह आरोप युवा क्षत्रिय महासभा के प्रदेश अध्यक्ष अशोक सिंह भदोरिया ने लगाया था.

भदौरिया पूर्ण रूप से सिंधिया के वफादार हैं और यह कहते हैं कि पार्टी में नहीं उनकी निष्ठा "महाराज" में है.

प्रतिपल बदलते समीकरण

जहां ऊपर लिखे गए मंत्रीगण सिंधिया के साथ मार्च में ही कांग्रेस को छोड़ गए थे प्रद्युम्न सिंह लोधी ने यह कदम उन मंत्रियों के 2 जुलाई को हुए शपथ ग्रहण के 10 दिन बाद उठाया.

कमलनाथ सरकार के गिरने पर प्रद्युम्न सिंह लोधी ने बहुत दुख और खेद प्रकट किया था लेकिन अब वह भाजपा में हैं. कांग्रेस छोड़ने से पहले वह भाजपा की वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती से उनके घर पर मिले. बड़ा मलहरा वही सीट है जहां से 2003 में उमा भारती जीतकर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं थी.

हालांकि प्रद्युम्न कोई मंत्रालय नहीं संभाल रहे लेकिन विधायकी छोड़ने और कांग्रेस से इस्तीफा देने के 6 घंटे के अंदर अंदर प्रद्युम्न सिंह लोधी को नागरिक आपूर्ति निगम का अध्यक्ष बना दिया गया. यह भी सुनिश्चित किया गया है कि उनका दर्जा एक कैबिनेट मंत्री का रहेगा.

शिवराज सिंह चौहान के इस मंत्रिमंडल विस्तार में एक और किरदार हैं निर्दलीय विधायक प्रदीप जायसवाल. जायसवाल कमलनाथ सरकार में खनिज मंत्री रहे और अब शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद भी उन्हें खनिज निगम का अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. उनके लिए भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा सुनिश्चित किया गया है.

राज्यसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के पक्ष में मतदान करने के बाद से ही अटकलें लगाई जा रही थी कि उन्हें भी कोई अच्छा पद मिलने की संभावना है.

सरकार जनता की या नेताओं की?

इस देश में दलबदल कानून इसलिए लाया गया था जिससे नेता अपनी इच्छा के अनुसार हर दिन पार्टियां ना बदल सकें जैसा कि गयाराम ने 1967 में किया था. उन्होंने 9 घंटे के भीतर तीन बार अपना दल बदला था, जिसकी वजह से कांग्रेस नेता राव बीरेंद्र सिंह ने उन्हें "आया राम गया राम" कहकर संबोधित किया था. जो अब दलबदलू नेताओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है.

पर ठिठोली से परे, अगर एक राज्य की कैबिनेट लगभग 42% ऐसे मंत्रियों से भरी हो जो अभी तक निर्वाचित ही नहीं हुए तो क्या वह सरकार जनता की कही जा सकती है?

यहां बात किसी दल के विरोध की नहीं बल्कि नीतिगत है. अपवाद स्वरूप कभी-कभी एक-दो मंत्री ऐसे होते हैं जो उस समय निर्वाचित नहीं हुए परंतु 15 मंत्रियों का दूसरी पार्टी से इस्तीफ़ा देकर प्रतिपक्ष में शामिल होना और संख्या बढ़ने के बाद मंत्री बन जाना एक विशुद्ध लेन-देन प्रतीत होता है.

इस बढ़ते हुए अवसरवादी रवैया को राजनैतिक मजबूरी कह कर टाल देना अपने सर को शुतुरमुर्ग के समान रेत में ठूंस लेने जैसा है.

कोविड-19 महामारी ने हमारे देश की लचर व्यवस्था को पूरी तरह से जनता के सामने उजागर कर दिया है. ऐसे समय में हमें योग्य और निष्ठावान प्रशासकों की आवश्यकता है. यह बात बहुत आदर्शवादी लग सकती है लेकिन निष्ठावान होने का यह मतलब नहीं कि वह अपनी उन्नति के बारे में न सोचें. परंतु किसी समाज का उत्थान तभी होता है जब प्रशासकों, राजनेताओं, प्रशासन और जनता के बीच कुछ सामाजिक और कार्यकारी मूल्य पूरी तरह से स्वीकृति में हों.

जो विधायक साल भर पहले पानी पी-पीकर भारतीय जनता पार्टी को कोस रहे थे, उसे देश की अस्मिता और भारत के सहिष्णु विचार का दुश्मन बता रहे थे, वे ही आज भाजपा की सरकार में निर्वाचित मंत्री हैं. यह केवल जनादेश का ही नहीं भाजपा के ज़मीनी कार्यकर्ता जो उससे सालों से जुड़ा रहा है उसका भी अपमान है. योग्यता निर्धारित मंत्री चुनना तो दूर की बात है यह तो जनता के द्वारा पार्टी के चुने हुए भी प्रतिनिधि नहीं हैं.

क्या यह मंत्री गण अपने समर्थकों के अलावा आम जनता का भी प्रतिनिधित्व करेंगे? हमारे मत में तो नहीं आपकी आप जानें.

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