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गाजीपुर मुर्गामंडी: लॉकडाउन ने तोड़ी कमर, संपत्ति बेचकर उधारी चुकाने की नौबत
एनएच-24 से लगी गाजियाबाद-दिल्ली की सीमा पर स्थित गाजीपुर मांस मंडी की यात्रा में हमारा सामना एक दिलचस्प वाकए से हुआ. मुख्य सड़क के दोनों ओर आढ़तियों की दुकानों के बीच से जब हम गुजर रहे थे, तब अपनी दुकानों पर खाली बैठे कई दुकानदार लपक कर हमारी तरफ बढ़े. हमें ग्राहक समझ वो हाथ से बुलाकर पूछते थे, ‘क्या लोगे भाईसाब!’
यह कोरोना की मार है, जिस गाजीपुर मंडी में ग्राहक एक दूसरे पर चढ़े रहते थे, लेकिन दुकानदारों के पास किसी से बात करने की फुरसत नहीं थी उस थोक मंडी में आज दुकानदार ग्राहकों की बाट जोहते हैं, फुटकर दुकानदारों की तरह ग्राहकों को आवाज और इशारे देकर बुलाते, बाकी समय खाली बैठे रहते हैं.
कोरोना वायरस ने भारत सहित पूरी दुनिया के न सिर्फ स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाया है बल्कि उसे जबरदस्त आर्थिक चोट भी दी है. कोरोना संक्रमण से बचने के लिए हुए लॉकडाउन ने बाजारों की रौनक छीन ली, छोटे-मोटे अधिकतर व्यापार और उद्योग तबाह हो गए. इससे बड़ी संख्या में लोगों की नौकरियां भी गईं.
कोरोना संक्रमण से सर्वाधिक प्रभावित होने वाले उद्योगों में पोल्ट्री उद्योग भी शामिल है. इसकी मार से देश की सबसे बड़ी पोल्ट्री मंडियों में शुमार पूर्वी दिल्ली के गाजीपुर स्थित पोल्ट्री मंडी जो मुर्गा मंडी के नाम से भी प्रचलित है, बच नहीं पाई. कोरोना ने यूपी बॉर्डर पर स्थित 88 आढ़तियों वाली मुर्गा और 252 आढ़तियों वाली मछली मंडी की बिल्कुल कमर तोड़ कर रख दी है. इस मंडी में कारोबार लगभग चौपट हो गया है. मंडी से ग्राहक नदारद हैं. यहां काम करने वाले आढ़तियों की माने तो फिलहाल गाजीपुर मंडी में चिकेन का व्यापार कोरोना से पहले के मुकाबले 80 प्रतिशत तक घट गया है. नतीजतन यहां काम करने वाला मजदूर तबका भी बड़े पैमाने पर बेरोजगार हुआ है.
यहां व्यापार करने फ्रेंड पोल्ट्री मार्केट के मालिक अबरार अहमद कारोबार का हाल और परेशानियों के बारे में बताते हुए कहते हैं, “परेशानी ही परेशानी है. पहले रोज 5000 से 6000 किलो बेचते थे. अब यह 2000-2500 तक गिर गया है. पहले जो हरियाणा, पंजाब से माल मंगाते थे, वह बड़ी गाड़ी में मंगाते थे. अब छोटी में मंगाना पड़ रहा है. पहले 8 आदमी यहां काम करते थे अब सिर्फ 3 रह गए हैं.”
गाजीपुर मांस मंडी का व्यापार गिरने की बड़ी वजह लॉकडाउन के बाद से देश भर के होटल और रेस्टोरेंट का बंद होना है. इसके अलावा शादी-विवाह में लोगों की सीमित संख्या का प्रोटोकॉल भी है. गाजीपुर मंडी से सप्लाई होने वाले कुल मांस व्यापार का लगभग 50 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं होटलों, रेस्तराओं और शादी-विवाह समारोहों में इस्तेमाल होता था.
गाजीपुर मांस मंडी का व्यापार बुरी तरह लड़खड़ाने के पीछे कोरोना से जुड़ी अफवाहों की भी बड़ी भूमिका रही. दरअसल जब देश में कोरोना के संक्रमण की खबरें आनी शुरू हुई, तो लगे हाथ लोगों में इस तरह की बातें भी फैलीं कि यह वायरस अंडा, चिकन, मटन और मछली खाने से फैलता है. इस चक्कर में बड़ी संख्या में लोगों ने मांसाहारी खाने से दूरी बना ली. इस वजह से मंडी में काम मंदा पड़ गया. ऐसी भी घटनाएं देखने को मिली जब बीमारी केडर से पॉल्ट्री फॉर्म के मालिकों ने अपना चिकेन मुफ्त में दुकानदारों को बांट दिया.
अनलॉक की प्रक्रिया शुरू होने के बाद भी मंडी में हालात कुछ खास नहीं सुधरे हैं. एक तरफ व्यापारियों को छोटे दुकानदारों को दिया उधार पैसे डूबने का डर सता रहा है तो वहीं कुछ व्यापारी ऐसे भी हैं जो बैंक आदि की देनदारियों को चुकाने की लिये अपनी संपत्तियों को ही बेच रहे हैं. सप्लाई चेन बिल्कुल टूट चुकी है.इससे सरकार का भी नुकसान हुआ है. उसे मंडी से प्रतिमाह मिलने वाले राजस्व में 60 प्रतिशत से ज्यादा की कमी आई है.
जब हम गाजीपुर स्थित इस मंडी के पास पहुंचे तो सबसे पहले हमारा सामना उस “कूड़े के पहाड़” से हुआ जिसके बनने में दिल्ली वालों का बड़ा योगदान है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल को अगस्त, 2018 में जबरदस्त फटकार लगाते हुए कहा था क्यों न इसे (कूड़े को) उपराज्यपाल के आवास के बाहर फेंक दिया जाए?.
लेकिन 2 साल बाद भी वहां हालात जस के तस हैं. इसी मानव निर्मित पहाड़ से लगभग सटी हुई है गाजीपुर कीमछली मण्डी. दूसरी ओर अंडा और मुर्गा मण्डी है. जबकि हाइवे (एनएच 24) के दूसरी तरफ फल और सब्जी मण्डी है.
अंडा और मुर्गा मण्डी
लगभग दोपहर 12 बजे के आस-पास हम ‘अंडा और मुर्गा मण्डी’ गेट से अंदर घुसे तो हमारा पाला जबरदस्त बदबू से पड़ा. कूड़े के ढेर और अंडा और मुर्गा मण्डी के ऊपर मंडरा रही चीलें अपना शिकार तलाश रही थीं. बाईं तरफ एक मंडी चेकपोस्ट जरूर था लेकिन हमसे किसी ने कुछ पूछने या गाड़ी को रोकने की जरूरत नहीं समझी. हम आगे बढ़ गए. मण्डी में चारों तरफ अच्छी-खासी गंदगी के बीच चारों तरफ वो गाड़ियां खड़ी थीं, जो मुर्गे अंडे लाने-ले जाने के लिए इस्तेमाल होती हैं.
मंडी में ठीक भीड़-भाड़ थी, लेकिन स्थानीय लोगों के मुताबिक ये तो कुछ नहीं थी वरना पहले के इस समय हमें पैर रखने को जगह नहीं मिलती थी.
वहां सबसे पहले हमारी मुलाकात “फ्रेंड पॉल्ट्री मार्केट” के मालिक अबरार अहमद से हुई. 50 वर्षीय अबरार कुछ लोगों के साथ अपनी दुकान के सामने बैठे हुए थे. दुकान के पिछले हिस्से में कुछ लोग मुर्गों की कटिंग के बाद पानी से दुकान धो रहे थे. और चारों तरफ मुर्गे रखे हुए थे.
अनलॉक के बाद व्यापार में कोई सुधार आया है.इस सवाल पर अबरार कहते हैं, “नहीं आया!दुकानदार माल खरीदने नहीं आ रहे क्योंकि उनके पास भी पैसा नहीं है. जो पैसा था वह लॉकडाउन में खत्म हो गया. अब तो पिछले पैसे डूबने की चिंता और सता रही है.दोनों तरफ से टूट गए हैं हम लोग. काम भी खत्म और बकाया भी फंसा है.छुट्टी के दिन अच्छा काम चल जाता था लेकिन अबरही-सही कसर यूपी में शुरू हुए शनिवार, इतवार के लॉकडाउन ने पूरी कर दी.”
उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में नया प्रोटोकॉल जारी किया है जिसके तहत सप्ताह में दो दिन (शनिवार, रविवार) पूरा लॉकडाउन रहेगा.
मूलत:दिल्ली के त्रिलोकपुरी में रहने वाले अबरार बातचीत के दौरान हमें ऊपर अपने ऑफिस में ले गए. उन्होंने हमें बताया कि यहां कुल 88 आढ़ती हैं लेकिन एक बंद है. इस दौरान अबरार सरकार पर भी जमकर बरसे.
लॉकडाउन ने होलसेल व्यापारियों के साथ ही मजदूरों पर भीजबरदस्त प्रहार किया है. जो हमें यहां भी देखने को मिला. अबरार के ऑफिस में ही हमारी मुलाकात बिहार निवासी मोहम्मद शाहनवाज उर्फ चन्ना से हुई. गाजियाबाद के खोड़ा में किराए पर रहने वाले चन्ना, अबरार की दुकान में अपने भाई के साथ मुर्गों की कटाई का काम करते हैं.
चन्ना ने हमें बताया,“लॉकडाउन के बाद हालात खराब हैं पहले हम भी 10-12 लोग काम करते थे, लेकिन अब सिर्फ 6 लोग बचे हैं. बाकि लोग बिहार जा चुके हैं.”
मुर्गा मंडी के स्थानीय व्यापारियों ने हमें बताया कि यहां काम करने वाले लोगों में 90 प्रतिशत से ज्यादा मजदूर बिहार से हैं. जिनमें अधिकतर पलायन करके अपने घर लौट गए हैं. अभी तक लौटे नहीं हैं.एक और चीज हमने पाया कि काम न होने की वजह से लगभग सारे आढ़ती जो पहले देर शाम तक मंडी में रहते थे. दोपहर तक वापस अपने घर चले जाते हैं. हमने जब कई जगह एक बजे के आस-पास पूछा तो हमें बताया गया कि वह तो वापसघरजा चुके हैं.
यहां से निकलकर हम “अहमद एंड कम्पनी” के ऑफिस में पहुंचे.इसके मालिक मूलत: मेरठ निवासी 4 भाईहैं. यहां हमारी मुलाकात 2 भाइयोंसे हुई.
लॉकडाउन के प्रभाव के बारे में पूछने पर मोहम्मद शाहनवाज ने हमें बताया, “हालात बहुत खराब हैं. पहले हम रोज लगभग 10 हजार किलो माल सप्लाई करते थे और अब हजार-दोहजार किलो वो भी हफ्ते में 2 दिन जा रहा है. हमारे यहां 25 मजदूर महीने में 26 दिन काम करते थे. उन्हें छुट्टी तक नहीं मिल पाती थी, तरसते थे छुट्टी के लिए. उनमें से अब जो 10 कटिंग वाले थे उनकी तो सबकी छुट्टी हो गई. बाकि 8 दूसरा काम करते थे उनमें से 2 बचे हैं.काम ही नहीं है. बिजली का बिल भी पहाड़ नजर आ रहा है.”
उन्होंने हमें बताया कि जहां हम बैठे थे, पहले वहां पैर रखने की जगह भी नहीं रहती थी. कोई यहां इतने सुकून से नहीं बैठ सकता था.
शाहनवाज अपना माल राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और नासिक तक से मंगाते थे. और थोक में सप्लाई करते थे. लेकिन यहां शाहनवाज की तरह ज्यादातर व्यापारी हरियाणा के ऊपर निर्भर हैं और वहीं से सर्वाधिक माल मंगाते हैं.
“पहले मंडी में रोज 130-150 गाड़ी माल आता था और अगर अब 25-30 ही आती हैं. लगभग 10,000 मजदूर यहां रोजाना काम करते थे. अब 2 हजार के आस पास रह गए हैं. यहां 90 प्रतिशत मजदूर बिहार से हैं जो वापस अपने घर लौट गए हैं.पहले कुछ शनिवार- इतवार में काम हो जाता था अब यूपी में इस दिन लॉकडाउन हो गया तो अब वह भी नहीं रहा. क्योंकि यह मंडी दिल्ली से ज्यादा गाजियाबाद, नोएडा को कवर करती है. शायद आगे कुछ सुधार हो,”शाहनवाज ने बताया.
इस दौरान वहीं बैठे शाहनवाज के दूसरे भाई इमरान कुरैशी ने हमें एक महत्तवपूर्ण जानकारी दी. 30 वर्षीय इमरान ने बताया, “अब लोग चोरी-छुपे बाहर ट्रक उतरवा रहे हैं. और वहीं से बेच रहे हैं. फिलहालहमें इससे सबसे बड़ा नुकसान हो रहा है.हम तो टैक्स जमा करते हैं, सारे सर्टिफिकेट लेते हैं, लेकिन उनके पास क्या है. इससे हम एक प्रतिशत जो सरकार को देते हैं उसका सरकार को भी नुकसान हो रहा है. और ये काम अधिकारी रिश्वत लेकर अवैध तरीके से करा रहे हैं.”
गौरतलब है कि मंडी का संचालन दिल्ली सरकार द्वारा किया जाता हैऔर इसकी कुल बिक्री का एक प्रतिशत हिस्सा सरकार को जाता है, जो मंडी समिति की देख-रेख में होता है.
“आप जामा-मस्जिद, सुंदरनगरी, कसाबपुरा चले जाओ खुलेआम ये अवैध काम हो रहा है. जबकि ये जगह इसके लिए आवंटित है. हमारे तो खर्चे के पैसे भी नहीं निकल रहे हैं,” इमरान ने कहा.
मंडी में छाई मंदी हमें साफ नज़र आ रही थी. दुकानों पर ग्राहक नहीं थे. कुछ व्यापारी घर जा चुके थे और कुछ जाने की तैयारी कर रहे थे.
मंडी के मुख्य रोड की दुकानों से हटकर जब हम पीछे की साइड में पहुंचे तो वहां हमें मोहम्मद सुलेमान मिले जो खाताबही में हिसाब दर्ज कर रहे थे. उनकी मेज पर सैनेटाइजर की बोतल रखी हुई थी.
जामा मस्जिद दिल्ली निवासी 52 वर्षीय सुलेमान ने हमें बताया कि यह उनका पुश्तैनी काम है और वह भी 25 साल से इस काम को कर रहे हैं.
सुलेमान ने बताया, “अब सिर्फ 20 प्रतिशत काम रह गया है. वह भी लोकल वाला, जो हम-तुम खा रहे हैं. दरअसल हम ज्यादातर फाइव स्टार होटलों पर डिपेंड हैं, जो अभी खुले नहीं हैं. और अभी उनके खुलने की उम्मीद भी नहीं है. पहले 40 आदमी काम करते थे, अब 20 ही रह गएहैं. अब आपको सुबह मंडी खुलने पर भी सिर्फ 30 प्रतिशत आदमी ही मंडी में मिलेगा.पहले जितनी गाड़ी माल लेकर आती थीं अब उसका चौथाई भी आ जाए तो बड़ी बात है.”
इस दौरान कई अन्य व्यापारियों की तरह सुलेमान ने भी सरकार की नीतियों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया.
सुलेमान आगे कहते हैं, “मोदी सरकार के बाद तो खत्म ही समझो. पहले नोटबंदी और जीएसटी से कमर टूट गई और अब जो कभी किसी ने सोचा भी नहीं था तो कोरोना ने रही-सही कसर पूरी कर दी. बहुत बड़ा नुकसान है.”
मछली मार्केट
मुर्गा मार्केट के बाद हमारा अगला पड़ाव था मछली मार्केट. जो मुर्गा मार्केट के दूसरी तरफ ‘कूड़े के पहाड़’ के पास स्थित है. इसके गेट के पास एक चेकपोस्ट और एक बोर्ड था जिस पर मंडी समिति के पदाधिकारियों का विवरण था. बाईं ओर पहली मंजिल पर मंड़ी समिति का दफ्तर था.
हमने मछली व्यापारियों से पहले मंडी समिति के लोगों से बात करने का फैसला किया और दफ्तर जा पहुंचे. शुरुआत में ही चेयरमैन नसीर अल्वी का ऑफिस था. पूछने पर पता चला कि वह आज आए नहीं हैं.
ऑफिस में हमारी मुलाकात असिस्टेंट सेक्रेटरी देवराज से हुई. हमने उनसे मंडी में कोरोना के प्रभाव के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया, “यहां मुर्गा मंडी में 88 और मछली मार्केट में 252 आढ़ती हैं. पहले के मुकाबले अब अराइवल 40-50 प्रतिशत ही है. मंडी से मुख्य सप्लायर तो छोड़कर भाग गए हैं. समिति को पहले मंडी से औसतन 60 लाख रुपयेमासिक प्राप्त होता था, लेकिन जून 2020 में सिर्फ 22 लाख रुपये ही आए हैं. फर्क तो बहुत पड़ा है.”
मंडी में साफ-सफाई और कोरोना से बचाव संबंधी सवाल पर देवराज बताते हैं, “हम यहां सुबह ही पूरी तरह से मंडी को सैनेटाइज करा देते हैं. साथ ही सैनेटाइजर और मास्क भी बांटे हैं. मंडी बंद होने के बाद शाम को भी चाहे हमें रात 10 बजे जाना हो पूरी तरह सैनेटाइज कराकर ही जाते हैं.”
“इसके अलावा जो भी अराइवल आता है उसके साथ एक मेडिकल सर्टिफिकेट भी होता है. सरकारी डॉ. पीके बंसल यहां नियमित रूप से आते हैं. और डॉक्टरों की टीम भी जांच के लिए आती रहती है, जो टेस्टिंग करते हैं. अभी तक मंडी में एक भी कोरोना का केस नहीं आया है.”
“बाकि मंडी समिति के लोग व्यापारियों को हर तरीके से सहयोग कर रहे हैं. इससे आने वाले दिनों में सुधार होनो की गुंजाइश है,” देवराज ने बताया.
हमने चेयरमैन नसीर अल्वी से भी फोन पर बात की. उन्होंने कहा कि डाउन तो हुआ है और लेकिन अब दुबारा खुलने से सही होने की संभावना है. इसके बाद उन्होंने यह कहते हुए कि मैं कहीं मीटिंग में हूं आप ऑफिस में किसी से बात कर लीजिए, फोन काट दिया.
हम वहां से निकलकर मछली मार्केट जाने ही वाले थे कि 2-3 होलसेल मछली व्यापारी वहीं आ गए.
उनमें से एक जो 20 साल से मछली कारोबार से जुड़े हाजी मोहम्मद इस्माईल की मछली मार्केट में ए-85 में दुकान है. उन्होंने बताया, “लॉकडाउन से हमारा लगभग 30 लाख रुपए का नुकसान हुआ है. हम मछली आंध्रप्रदेश से मंगाते हैं. जैसे ही लॉकडाउन हुआ, हमारी 4 ट्रक मछली रास्ते में फंस गई और बर्फ न मिलने की वजह से सड़ गईं. इससे बहुत नुकसान हुआ.कुछ लोगों ने यहां कोल्ड स्टोर में भी 30-35 ट्रक लगाए, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा.”
गाजियाबाद निवासी इस्माईल आगे बताते हैं, “पहले हमारे यहां 9 लोग काम करते थे वे सब घर चले गए. अनलॉक के बाद भी 40-50 प्रतिशत काम ही है. अब खुद ही अपने लड़कों और 1-2 लोकल के साथ काम करना पड़ रहा है.क्योंकि ये समय मछली के ब्लीडिंग का है तो ढ़ाई महीने का समय हर सालप्रतिबंधित रहता है. तो अब वह लग गया है. खर्चे, बिजली का बिल आदि भरना भी मुश्किल हो रहा है. अब इसे रिकवर करने में 4-5 साल का समय लग सकता है.”
मछली मार्केट के ए-57 में “एमएमबी फिश मार्केट” के मालिक 63 वर्षीय महबूब भी हमें यहीं मिल गए.
पटेल नगर निवासी महबूब ने हमें बताया, “40 साल से तोहोलसेल मछली का काम करता हूं लेकिन इतनी बुरी हालत कभी नहीं आई. रुपए में 10 पैसे का काम ही बचा है. कुछ दिन पहले हिसाब लगाया है तो 4 लाख 70 हजार रुपए का घाटा हुआ है. इमेज न खराब हो जाए, इस कारण जहां से माल मंगाते हैं वहां तो पैसा भेज दिया. लेकिन हमारा फुटकर व्यापारियों से आया नहीं है. अब उन पर जोर भी नहीं डाल सकते क्योंकि हालत सभी की खराब है.”
महबूब अपना माल गुवाहाटी, सिलिगुड़ी, जलपाईगुड़ी, डिब्रुगढ़ तक अपना माल सप्लाई करते थे.
“अनलॉक के बाद भी कभी यूपी बंद है, कभी कुछ,कभी कुछ. पहले नोटबंदी और जीएसटी ने मारा और अब ये लॉकडाउन ने काम खत्म कर दिया. अब जो कुछ बाहर का बैंक आदि का पैसा था, उसे जमीन बेचकर चुकाया है. क्योंकि इस उम्र में अब टेंशन लेना नहीं चाहता. बच्चे भी इसी काम में लगे हैं,कोई खुशहाल नहीं है,” महबूब ने कहा.
मंडी समिति के ऑफिस से उतर हम मछली मार्केट के मुख्य प्वाइंट पर आए तो 3 बजे तक मंडी लगभग सूनी हो चुकी थी. कुछ दुकानें खुली थीं, लेकिन ग्राहक नदारद थे. इक्का-दुक्का फुटकर दुकानदार सड़क किनारे धूप की छतरी लगाकर मछलियां बेच रहे थे.
राहुल विहार गाजियाबाद में रहने वाले बिहार निवासी 50 वर्षीय महफूज आलम भी यहींफुटकर में अपने मालिक की मछली बेच रहेथे. जिन्हें उनका मालिक 6000 रुपए महीने तनख्वाह देते हैं. इसके अलावा रोज 100-50 रुपया अलग से मिल जाता है.
महफूज आलम ने बताया, “बचपन से यही काम कर रहे हैं. पहले जामा मस्जिद पर बेचते थे, अब जब से ये मंडी बनी है, यहां बेच रहे हैं. अब तोकाम-धाम है नहीं, पेट भर जाए वही काफी है. लॉकडाउन में मालिक ने ही अलग से सब खर्चा दिया. सारा सामान घर भिजवा दिया था. इसी वजह से नहीं गए, बाकि सब लोग बिहार वापस जा चुके हैं.”
मंडी में 4 घंटे से ज्यादा गुजारने के दौरान हमने पाया कि छोटे-बड़े लगभग सभी व्यापारी लॉकडाउन से बुरी तरह प्रभावित हैं. कुछ ने जरूर उम्मीद जताई है कि शायद आगे हालात सुधरें लेकिन अब वक्त ही बताएगा कि स्थिति कब तक सही हो पाएगी.
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