Newslaundry Hindi
इंटरव्यू: दंडकारण्य के नीचे धधकती आग पर धीमे-धीमे पकाई गई किताब
कथाकार, आलोचक और पत्रकार आशुतोष भारद्वाज इंडियन एक्सप्रेस के लिए कई साल बस्तर से रिपोर्टिंग कर चुके हैं. अपनी तथ्यपरक, धारदार खबरों के लिए उनको लगातार चार बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिल चुका है. उनकी नयी किताब, द डेथ स्क्रिप्ट, मध्य भारत के जंगलों में बिताये गए उन वर्षों पर केन्द्रित है, लेकिन पाठक को उससे बहुत आगे ले जाती है. फिलहाल किताब का अंग्रेज़ी संस्करण उपलब्ध है, निकट भविष्य में इसका हिंदी संस्करण आना है. आशुतोष हिंदी और अंग्रेज़ी में साधिकार लिखते हैं, इसलिए हिंदी संस्करण में आपको रूखे अनुवाद की समस्या से नहीं गुजरना होगा.
इस किताब को किसी श्रेणी में बांधना मुश्किल है. इसके भीतर डायरी की आत्मीयता है, रिपोर्ताज की निस्संगता है और साथ ही उपन्यास की आत्मा भी है. करीब पचास अध्यायों में फैली यह किताब– जहां प्रत्येक अध्याय को एक लघु कथा बतौर भी पढ़ा जा सकता है– कथानक और शिल्प के साथ एक किस्म का प्रयोग करती चलती है.
मसलन इस किताब में मृतक अपनी कथा सुनाते हैं, तो खुद नायक अक्सर अपने हमज़ाद, अपने ‘डबल’ से जूझता नजर आता है. पुलिस-नक्सल हिंसा में फंसे आदिवासी की कथा कहते हुए आशुतोष इस क्रांतिकारी आन्दोलन को परखते हैं. लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या निर्णय सुनाने की जल्दी में नहीं हैं. वह बड़े धैर्य से समूचे परिवेश को अपनी कलम से थामते हैं.
इस किताब की एक शक्ति है इसकी साहित्यिक पठनीयता, मसलन जंगल में घटित होती कोई घटना अचानक से किसी विराट साहित्यिक सन्दर्भ जोड़कर हमारे सामने उजागर होती है. रामायण, महाभारत से लेकर बर्गमैन की फ़िल्में, मोत्ज़ार्ट का संगीत, टॉलस्टॉय और निर्मल वर्मा की कथाएं बस्तर के कथानक को समृद्ध करती हैं. युद्ध भूमि में खड़ा एक लेखक-पत्रकार समूची निष्ठा से दृश्यों को दर्ज कर रहा है.
दूसरी शक्ति इसका गहन आत्मबोध है. पूरी सजगता से यह किताब सिर्फ फर्जी मुठभेड़ों का रिपोर्ताज या आदिवासी जीवन का दस्तावेज नहीं होना चाहती. यह अपनी तात्कालिकता से ऊपर उठना चाहती है. शायद इसलिए नक्सल हिंसा के आईने से यह जीवन के कुछ बुनियादी सत्यों का संधान करती है. जाहिर है, मृत्यु को इस किताब कीप्रमुख थीम होना था. पत्रकार हृदयेश जोशी से बातचीत में आशुतोष कहते हैं, “मृत्यु सृष्टि का शायद सबसे विराट सत्य है. सदियों से तमाम दार्शनिक-लेखक इस सत्य से संवाद और संघर्ष करते आये हैं. यह किताब भी उस सत्य को उसके विविध पहलुओं में थामने की प्रक्रिया में जन्म लेती है.”
पुस्तक: द डेथस्क्रि प्ट
प्रकाशक: हार्पर कॉलिन्स इंडिया
लेखक: अशुतोष भारद्वाज
कथाकार, आलोचक और पत्रकार आशुतोष भारद्वाज इंडियन एक्सप्रेस के लिए कई साल बस्तर से रिपोर्टिंग कर चुके हैं. अपनी तथ्यपरक, धारदार खबरों के लिए उनको लगातार चार बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार मिल चुका है. उनकी नयी किताब, द डेथ स्क्रिप्ट, मध्य भारत के जंगलों में बिताये गए उन वर्षों पर केन्द्रित है, लेकिन पाठक को उससे बहुत आगे ले जाती है. फिलहाल किताब का अंग्रेज़ी संस्करण उपलब्ध है, निकट भविष्य में इसका हिंदी संस्करण आना है. आशुतोष हिंदी और अंग्रेज़ी में साधिकार लिखते हैं, इसलिए हिंदी संस्करण में आपको रूखे अनुवाद की समस्या से नहीं गुजरना होगा.
इस किताब को किसी श्रेणी में बांधना मुश्किल है. इसके भीतर डायरी की आत्मीयता है, रिपोर्ताज की निस्संगता है और साथ ही उपन्यास की आत्मा भी है. करीब पचास अध्यायों में फैली यह किताब– जहां प्रत्येक अध्याय को एक लघु कथा बतौर भी पढ़ा जा सकता है– कथानक और शिल्प के साथ एक किस्म का प्रयोग करती चलती है.
मसलन इस किताब में मृतक अपनी कथा सुनाते हैं, तो खुद नायक अक्सर अपने हमज़ाद, अपने ‘डबल’ से जूझता नजर आता है. पुलिस-नक्सल हिंसा में फंसे आदिवासी की कथा कहते हुए आशुतोष इस क्रांतिकारी आन्दोलन को परखते हैं. लेकिन वह किसी निष्कर्ष पर पहुंचने या निर्णय सुनाने की जल्दी में नहीं हैं. वह बड़े धैर्य से समूचे परिवेश को अपनी कलम से थामते हैं.
इस किताब की एक शक्ति है इसकी साहित्यिक पठनीयता, मसलन जंगल में घटित होती कोई घटना अचानक से किसी विराट साहित्यिक सन्दर्भ जोड़कर हमारे सामने उजागर होती है. रामायण, महाभारत से लेकर बर्गमैन की फ़िल्में, मोत्ज़ार्ट का संगीत, टॉलस्टॉय और निर्मल वर्मा की कथाएं बस्तर के कथानक को समृद्ध करती हैं. युद्ध भूमि में खड़ा एक लेखक-पत्रकार समूची निष्ठा से दृश्यों को दर्ज कर रहा है.
दूसरी शक्ति इसका गहन आत्मबोध है. पूरी सजगता से यह किताब सिर्फ फर्जी मुठभेड़ों का रिपोर्ताज या आदिवासी जीवन का दस्तावेज नहीं होना चाहती. यह अपनी तात्कालिकता से ऊपर उठना चाहती है. शायद इसलिए नक्सल हिंसा के आईने से यह जीवन के कुछ बुनियादी सत्यों का संधान करती है. जाहिर है, मृत्यु को इस किताब कीप्रमुख थीम होना था. पत्रकार हृदयेश जोशी से बातचीत में आशुतोष कहते हैं, “मृत्यु सृष्टि का शायद सबसे विराट सत्य है. सदियों से तमाम दार्शनिक-लेखक इस सत्य से संवाद और संघर्ष करते आये हैं. यह किताब भी उस सत्य को उसके विविध पहलुओं में थामने की प्रक्रिया में जन्म लेती है.”
पुस्तक: द डेथस्क्रि प्ट
प्रकाशक: हार्पर कॉलिन्स इंडिया
लेखक: अशुतोष भारद्वाज
Also Read
-
DU polls: Student politics vs student concerns?
-
Gurugram’s Smart City illusion: Gleaming outside, broken within
-
Margins shrunk, farmers forced to switch: Trump tariffs sinking Odisha’s shrimp industry
-
Fresh spotlight on Karnataka CID case as Rahul Gandhi flags missing ‘voter fraud’ details
-
ABC suspends Jimmy Kimmel show after TV host’s remarks on Charlie Kirk killing