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टेलीविज़न बहस की ज़हरीली संस्कृति के बावजूद राजीव त्यागी की हत्या की अटकलें नाजायज हैं

12 अगस्त की शाम कांग्रेस के प्रवक्ता राजीव त्यागी का दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. मृत्यु से कुछ समय पहले रिकॉर्ड हुए 45 सेकंड के एक वीडियो क्लिप में 52 वर्षीय त्यागी‌ एक टीवी डिबेट के दौरान काफी असहजता महसूस करते और हांफते हुए देखे जा सकते हैं. आज तक चैनल पर रोहित सरदाना के कार्यक्रम दंगल की बहस में हिस्सा लेने के 30 मिनट के बाद राजीव त्यागी की मृत्यु हो गई.

घंटे भर चलने वाली यह बहस पिछले हफ्ते बेंगलुरु में उन्मादी भीड़ के द्वारा करी गई हिंसा पर थी, जिसमें 3 लोगों की जान चली गई. बहस में त्यागी का सामना उन्हें जयचंद यानी गद्दार कहने वाले भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता संबित पात्रा, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगीत रवि थे. यह दोनों इतने आक्रामक तरीके से बहस में हिस्सा ले रहे थे कि रोहित सरदाना को उनका माइक बाद में बंद करवाना पड़ा.

राजीव त्यागी की अकस्मात मृत्यु ने टीवी पर होने वाली बहसों की विषैली प्रकृति पर बहस छेड़ दी है, हालांकि बहुत से लोगों ने इस ओर इशारा किया है कि स्वयं राजीव त्यागी भी इसी तरह की बहसें करते थे और ईंट का जवाब पत्थर से देना जानते थे.

13 अगस्त यानी राजीव त्यागी की मृत्यु के एक दिन बाद कांग्रेस के प्रवक्ता जयवीर शेरगिल ने सूचना और प्रसारण मंत्रालय और एनबीएसए को टीवी पर होने वाली "सनसनीखेज, अपमानजनक और जहरीली बहसों" के लिए एक आचार संहिता लागू करने का पत्र लिखा. शेरगिल और त्यागी एक दूसरे को 7 वर्षों से जानते थे और दोनों ने साथ ही टीवी पर प्रवक्ता के रूप में आना शुरू किया था.

जयवीर शेरगिल ने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया: "हर रोज़ आप दो या तीन बहसों में शामिल होते हैं. ऐसा लगता है कि जैसे आप हाई ब्लड प्रेशर और कान फाड़ू शोर के साथ साल के 365 दिन भाग रहे हैं. यह अखाड़ेबाजी शरीर पर निरंतर असर करती हैं."

राजीव त्यागी 90 के दशक में युवा कांग्रेस के नेता थे. उनके फेसबुक पेज के मुताबिक 1998 से अब तक वो गाज़ियाबाद जिले में "किसानों, युवाओं और मज़दूरों" के हक के लिए लड़ते हुए 5 बार जेल जा चुके थे. उनकी उपलब्धियों में 1999 में अटल बिहारी वाजपेई की एक जनसभा के दौरान खलल डालना और 2005 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के खिलाफ "आखिर क्यों" नाम की यात्रा में भाग लेना शामिल है.

उत्तर प्रदेश संगठन के एक महत्वाकांक्षी कांग्रेसी नेता के रूप में राजीव त्यागी ने पिछले कुछ सालों में टीवी पर एक प्रवक्ता के रूप में अपनी एक जगह बनाई थी जो गाहे-बगाहे नौटंकियां भी किया करते थे. क्या उन्होंने 2014 में बीजेपी के सत्ता में आने के बाद अपनी रणनीति में यह बदलाव किया?

अप्रैल 2018 में जब राहुल गांधी राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से मिलने गए तब राजीव त्यागी न्यूज़ 18 की एक बहस में शामिल हुए. उनकी भृकुटियां फड़कने लगीं, वो खड़े होकर एंकर सुमित अवस्थी के पास पहुंच गए. अवस्थी उनकी इस हरकत से इतना विचलित हो गए कि उन्होंने राजीव त्यागी की पीठ पर लगभग हाथ ही चला दिया. जुलाई 2018 में आज तक के एक कार्यक्रम में त्यागी ने संबित पात्रा के गले लगने की कोशिश की, उसी तरह जिस तरह राहुल गांधी ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा में झप्पी दी थी.

कांग्रेस नेता मनीष तिवारी के अनुसार: "यूपीए सरकार के वर्षों में मीडिया सरकार की जवाबदेही तय करता था. हालांकि अब मीडिया विपक्ष से सवाल पूछता है."

जयवीर शेरगिल का मानना है कि पूर्व निर्धारित और दुराग्रह से भरी बहसें, प्रवक्ताओं पर और ज्यादा दबाव बना रही हैं. वो कहते हैं, "कटुता का वातावरण भी हम पर दबाव बनाता है. हमारी बात बार-बार काटी जाती है और बहस का विषय साफ चुगली करता है कि जरूरी मुद्दों से भटकाने के लिए की जा रही है."

टीवी का विषवमन एक सच्चाई है

राजीव त्यागी की मृत्यु के पश्चात ट्विटर पर #ArrestSambitandSardana तेजी से ट्रेंड करने लगा और कुछ लोग संबित पात्रा और रोहित सरदाना की गिरफ्तारी की मांग करने लगे. वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह ने इसे "भारतीय मीडिया के लिए शर्मनाक क्षण" के रूप में देखा और इस बात पर खेद प्रकट किया कि कैसे "मशहूर टीवी एंकर हर रात भाजपा के प्रवक्ताओं के द्वारा धमकाये जाते हैं."

उनके मत में, "इससे अच्छे तो पुराने दूरदर्शन के ही दिन थे."

पर यह तुलना तर्कसंगत नहीं है क्योंकि पिछले कुछ दशकों में लोगों का नजरिया तेजी से बदला है. आम आदमी पार्टी के पूर्व सदस्य और पत्रकार आशुतोष ने न्यूज़लॉन्ड्री से कहा, "टीवी पर होने वाला विषवमन, एक सच्चाई है. 2014 से पहले भी टीवी पर प्रवक्ता एक दूसरे पर आक्रामक होते थे पर जैसी गालियों और भाषा का प्रयोग अब हो रहा है वह बिल्कुल नया है.

आशुतोष ने स्वयं एक दशक से ज्यादा टीवी पर बहसों का संचालन किया है और वह 2014 में राजनीति में उतरे. उन्होंने आज के एक एंकर की भूमिका पर प्रश्न उठाए, "आज के समय का रुझान स्पष्ट है, एक एक विशिष्ट प्रकार का प्रवक्ता एक विशिष्ट प्रकार के एंकर के द्वारा ढोया जाता है, जिसमें एंकर अपने कार्यक्रम के दौरान इस प्रकार के प्रवक्ता को कुछ भी कहने की छूट देता है. दुख की बात यह है कि ये एंकर अब सुपारी किलर की भूमिका में आ गए हैं."

यह सच्चाई है फिर भी राजीव त्यागी की असमय मृत्यु के लिए रोहित सरदाना या संबित पात्रा के जहरीले रवैये को जिम्मेदार ठहराना गलत होगा. पत्रकार निधि राजदान ने न्यूजलॉन्ड्री को बताया, "मैं यहां किसी के ऊपर दोषारोपण की बात नहीं कहना चाहती. पर मुझे ऐसा अवश्य लगता है कि संबित पात्रा को यह आत्मचिंतन अवश्य करना चाहिए कि क्या उन्हें किसी की देशभक्ति पर सवाल उठाना और लोगों के ऊपर व्यक्तिगत कटाक्ष करना, एक पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता के रूप में शोभा देता है?"

निधि राजदान फिर से आज तक के ऊपर राजीव त्यागी की दोषारोपण की बात को नकारते हुए कहती हैं, "यह घटना दिखाता है कि भाषा कितनी कड़वी और विषैली हो गई है." 2017 में संबित पात्रा से एक बहस के दौरान अपने चैनल को खास "एजेंडा" चैनल का आरोप लगाने पर निधि राजदान ने संबित को कार्यक्रम छोड़कर जाने के लिए कह दिया था.

14 अगस्त को कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने राजीव त्यागी की मृत्यु को एक खतरे की घंटी बताते हुए बड़े सुधारों का सुझाव रखा, जिसकी शुरुआत सरकार को सारे टीवी चैनलों के लाइसेंस रद्द करने से करनी चाहिए. मनीष तिवारी भी भारत के पूर्व सूचना व प्रसारण मंत्री रह चुके हैं.

मनीष तिवारी ने टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों के नियमन के मुद्दे पर न्यूज़लॉन्ड्री को फोन के जरिए बताया, "यहां असल मुद्दा टीवी चैनलों की आय के ढांचे का है. आपको लोगों का ध्यान खींचने के लिए क्रूर और वाहियात हरकतें करनी पड़ती है जो आपकी आय में जुड़ती है." केबल टेलीविजन नेटवर्क (विनियमन) अधिनियम 1995 के अनुच्छेदों का उल्लेख करते हुए मनीष तिवारी कहते हैं कि उनकी राय में मंत्रालय को उन चैनलों पर नज़र रखनी चाहिए जो इस तरह की हरकत करते हैं या उसका माध्यम बनते हैं. आवश्यकता पड़ने पर उन्हें नोटिस भी दिया जाना चाहिए.

परंतु भारत में पत्रकारों ने सरकार के द्वारा निगरानी का हस्तक्षेप बढ़ने की आशंका से हमेशा विरोध किया है. निधि राजदान कहती हैं, "सरकारी निगरानी और हस्तक्षेप मुसीबतों का पिटारा खोल सकते हैं. आदर्श स्थिति में तो स्वनियमन ही अच्छा है. हमें मीडिया और पत्रकारों की संस्थाओं को सशक्त बनाना चाहिए और उन्हें ही निगरानी का अधिकार देना चाहिए."

न्यूजलॉन्ड्री ने संबित पात्रा और आज तक के एंकर रोहित सरदाना के साथ-साथ भारतीय जनता पार्टी की आईटी सेल से इस विषय पर टिप्पणी के लिए संपर्क किया किया लेकिन उनकी तरफ से कोई भी उत्तर नहीं मिला. उनका जवाब मिलने पर इस रिपोर्ट में जोड़ दिया जाएगा.

सभ्य आचरण का क्षरण

जैसा कि कांग्रेस का मुखपृष्ठ नेशनल हेराल्ड कहता है, “राजीव त्यागी एक अकेले कांग्रेस प्रवक्ता थे जो भाजपा के प्रवक्ता संबित पात्रा के चीख-चिल्लाहट के खेल में मात देने की क्षमता रखते थे.” लेख में एक अनाम एंकर कहते हैं, "वह संबित पात्रा का सही प्रत्युत्तर थे." यह तथ्य नवंबर 2018 में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के दौरान हुई एक बहस में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया, जहां संबित पात्रा और राजीव त्यागी एक प्रकार के खिलाफ नारेबाजी में उलझ गए थे और एंकर अंजना ओम कश्यप लगभग नज़रअंदाज कर दी गईं.

उसी साल जुलाई महीने में राजीव त्यागी का एक क्लिप सोशल मीडिया पर बहुत प्रचलित हुआ जिसमें उन्होंने न्यूज़18 के एंकर अमीश देवगन को गाली दे दिया. यह रकबर खान की भीड़ द्वारा हत्या पर आयोजित बहस के दौरान हुआ था. उन्होंने अमीश देवगन को काफी अपशब्द कहे.

आशुतोष बताते हैं, "वह बहुत ही ज्यादा आक्रामक थे." पर यह भी कहते हैं कि टीवी पर आने वाले प्रवक्ताओं के पास जवाब देने के अलावा और कोई चारा भी नहीं है.

जाने-माने राजनैतिक टीकाकार शाहिद सिद्दीकी कहते हैं, "यह सभी लोग फॉक्स न्यूज़ की नकल करते हैं. यह कुत्तों या बैलों की लड़ाई से भी बुरा हाल है." शाहिद ने स्वयं टीवी पर होने वाली बहसों में वर्षों पहले जाना बंद कर दिया. उनके कथन के अनुसार उनको कभी एक विशेषज्ञ नहीं बस एक मुसलमान के तौर पर बुलाया और घेरा जाता था.

भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता नलिन कोहली ने न्यूज़लॉन्ड्री से एक वकील के तौर पर व्यक्तिगत रूप में बात की, उन्होंने कहा, "मेरी यह सुदृढ़ धारणा है कि सभ्य आचरण का क्षरण, सभ्यता का क्षरण भी है. टीवी पर होने वाली बहस से आम समाज में आचरण के गिरते स्तर को दर्शाती हैं जिसमें सोशल मीडिया भी शामिल है."

कोहली संविधान के अनुच्छेद 19, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार सुनिश्चित करता है, का उल्लेख करते हुए कहते हैं, "अनुच्छेद 19 की सीमाओं पर वाद विवाद अभी निपटा नहीं है. इसके एक छोर पर वो लोग हैं जो भारत के टुकड़े होने वाली बात को भी अनुच्छेद 19 के तहत अपना अधिकार मानते हैं और उसके दूसरी तरफ यह धारणा है कि ऐसी बात कहने वालों को तुरंत जेल में भेज देना चाहिए."

उनके विचार में, "इस संदर्भ में, जब हम अपने संवैधानिक अधिकारों के अंदर क्या बोल सकते हैं और क्या नहीं इसी पर वाद विवाद चल रहा हो, तब हम कैसे बोलना है इसका निर्धारण कैसे कर सकते हैं?"

परंतु किसी भी सीधे सबूत और कड़ी के आभाव में राजीव त्यागी की मृत्यु के लिए संबित पात्रा को दोषी ठहराने के अभियानों को रोका जाना चाहिए. इससे एक पग पीछे हटकर, यह पत्रकारिता के नाम पर टीवी के कार्यक्रमों में हर रात परोसे जाने वाले विषवमन पर पुनर्विचार करने का सही समय है.

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