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वैक्सीन खोजी अभियान के लिए हांगकांग के कोरोनो वायरस रीइंफेक्शन केस के मायने

जीनोम सिक्वेंसिंग का उपयोग करते हुए, हांगकांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने पहली बार कोरोना से दोबारा संक्रमित होने वाले मरीज को ढूंढ़ निकाला. यह मरीज पहले पहले 26 मार्च को कोरोना पॉजिटिव पाया गया था. तब रोगी को 29 मार्च को अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 14 अप्रैल को छुट्टी दे दी गई थी, उसका आरटी-पीसीआर परीक्षण दो बार नकारात्मक पाया गया था. साढ़े चार महीने के बाद वह व्यक्ति दोबारा कोरोना संक्रमित पाया गया. इस व्यक्ति में दूसरे दौर, जो बिना लक्षण वाला था, के संक्रमण की पुष्टि 15 अगस्त को हुई जब वो ब्रिटेन के रास्ते स्पेन से हांगकांग लौट रहा था. हवाई अड्डे पर उसकी जांच की गई. दूसरी बार बिना लक्षण वाला (एसिम्पटोमैटिक) संक्रमण होने के पीछे शोधकर्ताओं का अनुमान है कि पहली बार संक्रमण के बाद रोगी के अंदर कुछ प्रतिरक्षा विकसित हो गई थी.

पहले दक्षिण कोरिया से आयी थी रीइनफेक्शन की रिपोर्ट

पहले ऐसी ही रिपोर्टें दक्षिण कोरिया से आयीं थीं, जिनमें कोविड-19 से पूर्ण रूप से सही होने के बाद पुन: कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया था. अप्रैल के अंत तक, दक्षिण कोरिया में 263 लोगों में दोबारा संक्रमण की पुष्टि की गयी थी जो कि कोविड-19 की बीमारी के बाद पूरी तरह से उबर चुके थे. इस रिपोर्ट के आने के बाद संक्रमण के पुन: सक्रिय होने को लेकर चिंताएं बढ़ गई थीं. हालांकि, अप्रैल के अंत तक, दक्षिण कोरिया में संक्रामक रोग विशेषज्ञों ने पुष्टि की थी कि आरटी-पीसीआर द्वारा परीक्षण किए जाने पर जिन लोगों में रीइनफेक्शन पाया गया था, असल में उनमें मृत वायरस के अंश मौजूद होने की वजह से वो पॉजिटिव आया था. इसीलिए विशेषज्ञों ने इसे ‘छद्म पॉज़िटिव’ (सुडोपॉसिटिव) माना था.

कोरिया सेंटर फॉर डिसीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने एक ही परिवार के तीन मामलों की जांच की थी, जहां मरीज़ों के ठीक होने के बाद दोबारा आरटी-पीसीआर टेस्ट पॉजिटिव पाया गया था. उस समय वैज्ञानिक प्रयोगशाला में वायरस का प्रजनन करने में असमर्थ थे. अभी तक ऐसे मामलों में जीनोम सिक्वेंसिंग का उपयोग यह सत्यापित करने के लिए नहीं किया गया था कि इन लोगों ने कोरोनावायरस को अपने शरीर में तीन महीनों से ज़्यादा ज़िंदा रक्खा या ये शुद्ध रीइनफेक्शन के मामले थे?

ऐसे मामलों में जीनोम सिक्वेंसिंग के लाभ

जीनोम सिक्वेंसिंग में पाया गया कि हांगकांग का जो व्यक्ति दूसरी बार संक्रमित पाया गया था उसका प्रथम संक्रमण करने वाले वायरस का जीनोम सीक्वेंस दूसरी बार के वायरस से "स्पष्ट रूप से अलग" था. पहले और दूसरे संक्रमण के वायरसों के जीनोम अलग-अलग समूहों या अनुवांशिकी की भाषा में अल-अलग वंशों के थे. “पहले और दूसरे संक्रमण में पाए गए दो वाइरसों के बीच कुल 24 न्यूक्लियोटाइड भिन्न पाए गए थे. यही अंतर अमीनो एसिडों में देखे जाने पर नौ प्रोटीनों के सीक्वेंस में इस भिन्नता को देखा गया था. इसमें पहले वाले वायरस में एक विशेष प्रोटीन की लम्बाई 58-एमिनो एसिड कम पायी गयी थी. “विश्वविद्यालय से एक प्रेस विज्ञप्ति में ऐसा कहा गया है. पहला वायरस जीनोम GISAID क्लैड V से संबंधित पाया गया, जबकि दूसरा जीनोम GISAID क्लैड G से संबंधित था.”

दो जीनोम सीक्वेन्स के बीच एमिनो एसिड में अंतर स्पाइक प्रोटीन, न्यूक्लियोप्रोटीन, नॉन-स्ट्रक्चरल प्रोटीन और एक्सेसरी प्रोटीन में पाया गया था. विश्विद्यालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इस पर आधारित एक शोध पत्र क्लिनिकल डिजीज़ जर्नल में प्रकाशन के लिए स्वीकार किया गया है.

कोरोनावायरस रीइनफेक्शन के मायने

"यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रदर्शित करता है की यह (हांगकांग वाला) एक रीइनफेक्शन का केस है, बजाय एक ही संक्रमण के जो महीनों से उस व्यक्ति के शरीर में ज़िंदा अटका हुआ था,” डॉ. साइमन क्लार्क, रीडिंग विश्वविद्यालय में सेलुलर माइक्रोबायोलॉजी के एसोसिएट प्रोफेसर हैं और उन्होंने साइंस मीडिया सेंटर पत्रिका को ये बात बताया.

“इस खोज को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत नहीं किया जाना चाहिए. इस बात की बड़ी संभावना है कि दोबारा होने वाले संक्रमण गंभीर बीमारी का कारण नहीं बनते हों. क्योंकि पहले संक्रमण की वजह से उत्पन्न प्रतिरक्षा के अवशिष्ट अंश दूसरी बार संक्रमण को रोकने के लिए अपर्याप्त तो हो सकते हैं, लेकिन वे गंभीर बीमारी के जोखिम को कम करने में सफल साबित होते हैं. यह भी स्पष्ट नहीं है कि, ऐसे लोग दूसरों को संक्रमित करने के लिहाज से कितने खतरनाक हो सकते हैं. इस तरह के मामलों में कुछ और सवाल पूछे जाने चाहिए, उदाहरण के लिए, क्या वायरस लोड दूसरे संक्रमण में पहले जैसा ही था? इसीलिए यह रिपोर्ट अभी पूरी तरह से ये साबित नहीं करती है कि टीकाकरण कोरोना वायरस संक्रमणों को रोकने में अप्रभावी होगा. इससे पहले कि हम वास्तव में इसके मायने को समझ सकें, हमें इन मामलों में अधिक जानकारी की आवश्यकता है,” प्रोफेसर पॉल हंटर, दी नॉर्विच स्कूल ऑफ मेडिसीन, यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट एंग्लिया, ने साइंस मीडिया सेंटर पत्रिका को बताया.

रीइनफेक्शन रोगी के खून इत्यादि की पैथोलॉजी जांच और अधिक साक्ष्य प्रदान कर सकती है

रीइनफेक्शन वाले रोगी के खून की जांच में सी-रिएक्टिव प्रोटीन का उच्च लेवल, अपेक्षाकृत उच्च वायरल लोड, और कोरोनोवायरस IgG की क्रमिक गिरावट के साथ, ये दर्शाता है कि यह एक तीक्ष्ण संक्रमण का मामला हो सकता है. लेखकों ने शोधपत्र में इसकी व्याख्या की है. इसके अलावा, पहले और दूसरे संक्रमण के बीच 142 दिनों का अंतर था, जिसके दौरान रोगी ने यूरोप की यात्रा की थी, जहां जुलाई के अंत में उसको वायरस का रीइनफेक्शन हुआ था. "दूसरे संक्रमण के दौरान प्राप्त वायरस जीनोम का वंश जुलाई और अगस्त में यूरोप में पाए गए अन्य सभी वाइरसों से संबंधित पाया गया है" प्रो पॉल आगे लिखते हैं.

अगर हम इन सब तथ्यों को मिलकर देखें तो ये पाते हैं कि SARS-CoV-2 एंटीबॉडी को शुरू में दूसरे संक्रमण के दौरान नहीं पाया गया था, पिछले संक्रमण से एंटीबॉडी के अवशिष्ट निम्न स्तर ने वायरस को ज़रूर नियंत्रित किया होगा. लेकिन पहले संक्रमण के परिणाम स्वरूप स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ बनने वाली एंटीबॉडी जिसे कि दूसरे संक्रमण के दौरान वायरस को लक्षित करना चाहिए था वो ऐसा पूरी तरह करने में नाकामयाब साबित हुआ. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि दूसरे संक्रमण के वायरस का जीनोम सीक्वेंस स्पाइक प्रोटीन के लिए 54-एमिनो एसिड स्थानों पर भिन्न पाया गया था. यही कारण है कि दूसरे संक्रमण में देखा गया है, कि पहले संक्रमण के दौरान प्रेरित किया गया एंटीबॉडी रिस्पांस दूसरे संक्रमण को पूरी तरह से रोकने में असफल रहा.

कोरोनावायरस का टीका प्राप्त करने के वैश्विक मिशन पर ‘रीइंफेक्शन मामले’ का असर

“पिछली कुछ रिपोर्टों की तुलना में यह निश्चित रूप से रीइंफेक्शन का अधिक मजबूत सबूत है क्योंकि यह दो संक्रमणों को अलग करने के लिए वायरस के जीनोम सीक्वेंस का उपयोग करता है. यह प्रभावी रूप साबित करता है कि इस मरीज़ को एक एकल संक्रमण की तुलना में दो अलग-अलग संक्रमण हुए थे, जिसके बाद एक बीमारी (कोविड-19) फिर से वापिस आयी,” डॉ जेफरी बैरेट, कोविड-19 जीनोम प्रोजेक्ट, वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार, वेलकम-सेंगर इंस्टीट्यूट ने साइंस मीडिया सेंटर पत्रिका को ये बताया.

डॉ. बैरेट फिर कहते हैं, “किसी भी अवलोकन से किसी भी मजबूत निष्कर्ष को बनाना बहुत कठिन है. आज तक वैश्विक संक्रमणों की संख्या को देखते हुए, रीइंफेक्शन के एक मामले को देखना बहुत आश्चर्य की बात नहीं है, भले ही यह बहुत दुर्लभ घटना हो. मुझे लगता है कि उनके मायने अत्यंत व्यापक हैं. यह बहुत दुर्लभ हो सकता है, और यह हो सकता है कि दूसरे संक्रमण, जब वे होते हैं, गंभीर नहीं होते हैं (हालांकि हम ये नहीं जानते हैं कि इस व्यक्ति में दूसरे सक्रमण के दौरान अन्य व्यक्तियों को संक्रमित करने की क्षमता थी या नहीं.)”

दुनिया भर में आज कोविड-19 के कुल तेईस मिलियन से अधिक मामलों के साथ, कोरोनावायरस के रीइंफेक्शन की ये एक पहली सत्यापित (जीनोम सिक्वेंसिंग द्वारा) रिपोर्ट है जिसे सही संदर्भ में समझने की आवश्यकता है. ऐसा प्रतीत होता है कि हांगकांग के युवा और स्वस्थ वयस्क को तीन महीने पहले, पहला संक्रमण हुआ था जिसके वायरस से थोड़ा सा भिन्न प्रकार के वायरस ने उसे पुन: संक्रमित किया लेकिन पहले संक्रमण से प्राप्त शारीरिक प्रतिरक्षा दूसरे संक्रमण को रोक पाने में असफल रही, लेकिन ये प्रतिरक्षा दूसरे संक्रमण के समय COVID-19 बीमारी की तीव्रता को सीमित करने में ज़रूर सफल रही. यह रीइंफेक्शन का एक बहुत ही दुर्लभ उदाहरण है, इन परिणामों को कोविड-19 टीकों को विकसित करने के लिए जो वैश्विक प्रयास चल रहें, हैं उनको नकारने के लिए नहीं इस्तेमाल किया जाना चाहिए.

( लेखक बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर विश्विद्यालय, केंद्रीय विश्विद्यालय, लखनऊ, में बायोटेक्नोलॉजी विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं.)

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