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जजों के फैसलों को प्रभावित करने के लिए की जाती हैं मीडिया में बहस: अटॉर्नी जनरल
मीडिया में अदालतों में विचाराधीन मामलों की रिपोर्टिंग पर अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में चिंता जताई है. केके वेणुगोपाल ने प्रशांत भूषण के अवमानना केस की सुनवाई के दौरान कहा, अदालतों में लंबित मामलों में जजों की सोच को प्रभावित करने के लिए प्रिंट और टीवी में बहस चलती है.
अटॉर्नी जनरल ने कहा, इन बहसों ने संस्था को बहुत नुकसान पहुंचाया है. यह मुद्दा आज गंभीर अनुपात में चल रहा है. उन्होंने आगे कहा, जब कोई जमानत की अर्जी सुनवाई के लिए आती है तो टीवी, अभियुक्तों और किसी के बीच के संदेशों को फ्लैश करता है. यह अभियुक्तों के लिए हानिकारक है और यह जमानत की सुनवाई के दौरान सामने आता है.
केके वेणुगोपाल ने उदाहरण देते हुए कहा, अगर अदालत में रफाल की सुनवाई है तो एक लेख सामने आ जाएगा. यह अदालत की अवमानना है. यह बातें एजी ने वर्ष 2009 के प्रशांत भूषण अवमानना मामले की सुनवाई के दौरान कहीं.
एनडीटीवी में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबकि जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्ण मुरारी की बेंच ने इस मामले की सुनवाई की. कोर्ट ने अटॉर्नी जनरल से मदद मांगते हुए कहा था, किसी न्यायाधीश के खिलाफ कोई शिकायत करने की प्रकिया क्या है, जब कोई मामला लंबित है, तो मीडिया या किसी अन्य माध्यम से मामले में किस हद तक बयान दिया जा सकता है?
कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई, 4 नवंबर तक स्थगित कर दी है. बता दें कि, वर्ष 2009 में भूषण ने तहलका पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में न्यायपालिका के खिलाफ विवादित टिप्पणी देने के अलावा भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीशों के खिलाफ आरोप लगाए थे.
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