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कोरोना काल: सोशल डिस्टेंस ने बढ़ाई ‘विजुअली चैलेंज्ड लोगों’ से दूरियां
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, दुनिया में कोरोना वायरस की सबसे अधिक मार लगभग एक अरब विकलांगों पर पड़ी है. विकलांग, दिव्यांग या अशक्त जन पहले से ही गरीबी, हिंसा की उच्च दर, उपेक्षा एवं उत्पीड़न जैसी जिन असमानताओं का सामना कर रहे थे, उसको यह महामारी और बढ़ा रही है. लेकिन अगर संयुक्त राष्ट्र की बात पर गौर करें तो इस दौरान नेत्रहीन लोगों को अन्य दिव्यांगों से ज्यादा मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. क्योंकि ये लोग चीजों को छूकर उनकी पहचान करते हैं, इसलिए छूने से कोरोना वायरस संक्रमण की चपेट में आने का भय रहता है. जिससे लोगों को आपस में “दो गज की दूरी” यानी सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने का निर्देश सरकारों की तरफ से जारी किया गया है. इन सामाजिक दूरी के नए नियमों के कारण नेत्रहीनों के लिए बाहर की दुनिया और मुश्किल होने जा रही है. लोग इनकी मदद करने से भी परहेज कर रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, दुनियाभर में 4.5 करोड़ लोग नेत्रहीन हैं. जबकि सामाजिक न्याय एवं सशक्तीकरण मंत्रालय के आकलनों के अनुसार, वर्ष 2015 में 1.6 करोड़ से ज्यादा नेत्रहीन लोग थे और 2.8 करोड़ लोग दष्टि संबंधी दोषों से प्रभावित थे. इस तरह दुनिया में नेत्रहीन लोगों की लगभग एक तिहाई आबादी भारत में निवास करती है.
कोरोनाकाल के बाद की जिंदगी में नेत्रहीन लोगों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ा और कोरोना के बाद उनके लिए चीजें कैसे बदल सकती हैं. हमने कुछ नेत्रहीन छात्रों और लोगों से इस बारे में बात कर सही स्थिति जानने की कोशिश की. दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से इसी साल ग्रेजुएट हुए मोहित पांडे कोविड के दौरान अपने अनुभव बताते हुए कहते हैं, “हम मुख्यत: टचिंग और सुनने पर निर्भर हैं. लेकिन अब सोशल डिस्टेंसिंग से बहुत से लोग हमें टच करने से परहेज करते हैं. अब बहुत से लोग चाहते हुए भी हमारी मदद नहीं कर पाएंगे. क्योंकि उन्हें अपने स्वास्थ्य की चिंता भी होगी. इससे हमें बाहर कहीं आने-जाने में भी दिक्कत आएंगी. क्योंकि पहले तो लोग हाथ पकड़कर हमें रोड आदि पार करा देते थे, लेकिन अब वे कोरोना के डर की वजह से इससे परहेज करेंगे.”
मोहित को कोरोना हो गया था. इस दौरान उन्हें और परेशानी आई थीं. मोहित बताते हैं, “अगर इस बीच आपको कोविड हो जाए तो फिर तो मुश्किलें और आ जाती हैं. जब मुझे कोविड हुआ तो मैं हालांकि अपने घर फरीदाबाद पर ही क्वारंटीन था. लेकिन फिर भी अगर मुझे पानी या खाना लेना है तो पहले तो घर वाले मम्मी, हाथ पकड़ कर बता देते थे. लेकिन तब तो वे भी टच नहीं कर रहे थे तो खुद ही अंदाजे से इधर-उधर कर ढूंढना पड़ता था कि कहां रखा है. यहां तक की अगर कोई डॉक्यूमेंट पढ़वाना हो तो वह भी मुश्किल है. जैसे मुझे अपनी कोविड रिपोर्ट पढ़वाने तक में परेशानी हुई.”
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर निवासी धीरज आईपी यूनिवर्सिटी दिल्ली से लॉ की पढ़ाई करने के बाद स्टेट बैंक ऑफ इंडिया दिल्ली की रोहिणी ब्रांच में असिस्टेंट मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं. उन्होंने हमें कोरोना के दौरान पब्लिक बैंकों की गतिविधियों के बारे में भी जानकारी दी. धीरज ने बताया, “एसबीआई ने तो शुरू में लॉकडाउन के एक-दो दिन पहले ही विजुअली इंपेयर्ड लोगों के लिए ‘वर्क फ्रॉम होम’ की घोषणा कर दी थी. तो मैं तो वर्क फ्रॉम होम पर ही हूं और ज्यादा समस्या नहीं हुई. लेकिन ऑथोरिटी तो निर्णय ले लेती हैं, पर वो कई बार ग्राउड पर लागू नहीं हो पाता. हमें तो नहीं लेकिन कुछ ब्रांच में वहां के हेड जो सपोर्टिव नहीं थे, ने जबरदस्ती विजुअली इंपेयर्ड लोगों को बुलाया. और उनमें से कुछ लोग कोरोना पॉजिटिव भी हो गए. ये ऐसी स्थिति है जिसमें विजुअली इंपेयर्ड के लिए सर्वाइव कर पाना, नामुमकिन तो नहीं लेकिन मुश्किल बहुत है.”
कोरोना के दौरान अधिकतर सरकारों ने पढ़ाई जारी रखने के लिए ऑनलाइन पढ़ाई का प्रोसेस शुरू किया. इस प्रोसेस में जहां गरीब बच्चों या दूर-दराज के गावों में रहने वाले छात्रों को पढ़ाई करने में बेहद मुश्किलें आईं. और इस बात की संभावना भी बनी की अमीर और गरीब बच्चों के बीच दूरी और ज्यादा बढ़ सकती है. ब्लाइंड लोगों को भी ऑनलाइन सिस्टम की वजह से काफी परेशानी का सामना करना पड़ा.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के हंसराज कॉलेज से इसी साल बी.ए.ऑनर्स (हिस्ट्री) कर चुके उमेश सिंह बताते हैं, “इस दौरान एक बड़ी समस्या शिक्षा के क्षेत्र में आई है जैसे ऑनलाइन क्लास हो, एग्जाम या एडमिशन प्रोसेस. जैसे एडमिशन फॉर्म भरने में अगर कोई गलती हुई तो पहली बार में ही फॉर्म रिजेक्ट हो रहा है, फिर दोबारा सम्पर्क करना बड़ा मुश्किल हो रहा है. कुछ में कम्प्यूटर एक्सेस फेल बता देता है. अभी जैसे हमारे एग्जाम हुए तो वे हमने जैसे-तैसे दे तो दिए लेकिन बड़ी मुश्किल आई. हमारी समस्याओं को नजरअंदाज कर एग्जाम कराए गए और इसमें हमें कोर्ट से भी निराशा ही मिली. और सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान भी नहीं रखा गया.”
“इस दौरान उन लोगों को और ज्यादा दिक्कत हुई जिनके घर या इंस्टीट्यूशन सपोर्टिव नहीं थे, या जो अकेले रहते हैं या फाइनेंशियल कमजोर हैं. लॉकडाउन में जो बाहर खाना खाते थे उन्हें भी परेशानी उठानी पड़ी. और कहीं आने-जाने की भी क्योंकि मेट्रो बंद थी वहां हमें वॉलिंटियर भी मिलता है और जो कैब अफॉर्ड नहीं कर सकते थे, उन्हें मुश्किल हुई,” उमेश ने कहा.
कुछ ऐसी ही कहानी दीपक गुप्ता की है. आईआईटी दिल्ली से लिटरेचर में पीएचडी कर रहे दीपक गुप्ता ने इस बात की हमसे न सिर्फ पुष्टि की बल्कि विजुअली इंपेयर्ड के लिए बनी ऑनलाइन गाइडलाइन की पोल भी खोल दी. दीपक गुप्ता ने बताया, “ऑनलाइन एजुकेशन सिस्टम पूरी तरह एक्सेसिबल नहीं है. और विजुअली इंपेयर्ड के लिए तो वैसे भी अधिक समस्याएं हैं. क्योंकि “डब्ल्यूसीएजी यानी वेब कन्टेंट एक्सेसिबिलिटी गाइडलाइन” जो विजुअली चैलेंज्ड के लिए अन्तर्राष्ट्रीय गाइडलाइंस हैं उनका इंप्लीमेंटेशन भारत में सही से नहीं हो रहा है. जैसे ‘केप्चा’, टेक्स्ट नहीं बल्कि ऑडियो फॉर्म में होना चाहिए. लेकिन यहां ऐसा नहीं है. तो ऐसी बहुत सी प्रॉब्लम है.”
बिहार के रोहतास जिले निवासी दीपक आगे बताते हैं, “बाकि कोविड के दौरान अब जैसे मैं अपने गांव हूं तो यहां माहौल नहीं है पढ़ाई का. इन्फ्रास्ट्रक्चर हमारे माकूल नहीं है, लोग अवेयर नहीं हैं तो स्टिक भी यूज नहीं कर पाता हूं. दूसरा बिहार में चुनाव है और मुझे वोट डालना था तो मुझे दूसरे की मदद लेनी पड़ी, जो गलत है. जबकि इलेक्शन कमीशन के मुताबिक ईवीएम ब्रेन लिपि में होना चाहिए, लेकिन नहीं था. जबकि दिल्ली में ऐसा होता है.”
जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी से संस्कृत में पीएचडी कर रहे सूर्यप्रकाश भी कहते हैं कि इस दौरान परीक्षा, पढ़ाई और यातायात में हमें सबसे ज्यादा समस्या हुई है. सूर्यप्रकाश ने बताया, “जैसे रिसर्च करने वाले विजुअली इंपेयर्ड छात्रों को अलग से समस्याएं आ रही हैं. अगर उन्हें कोई रीडर या कोई लेखक चाहिए तो वह अब आसानी से नहीं मिलेगा. क्योंकि हॉस्टल में भी एंट्री नहीं मिल रही है.”
सूर्यप्रकाश आगे बताते हैं, “दूसरा लोगों के अंदर यह डर भी बैठ गया है कि हम इसे पकड़ कर रोड पार कराएं और यह कोरोना पॉजिटिव न हो. अभी बेर सराय इलाके में एक विजुअली इंपेयर्ड लड़का श्याम किशोर रोड क्रॉस करना चाह रहा था. कोरोना या जैसे भी किसी ने उसका हाथ पकड़ के रोड क्रॉस नहीं कराया, जबकि लोग वहां मौजूद थे. आखिरकार उसने अकेले ही रोड क्रॉस करने की कोशिश की और उसका पैर फ्रैक्चर हो गया. ये सब समस्या हमें आ रही है. लोगों के मन में एक डर की भावना बैठ गई है.”
सूर्यप्रकाश ने बताया, “दूसरे अगर ट्रेवल की बात करें तो अभी मैं कोविड में लखनऊ गया था तो वहां इस दौरान बहुत ज्यादा शांति थी, पहले तो लोग रहते थे. हालांकि मैंने तो पहले ही अपने दोस्तों को सूचित कर दिया था लेकिन जो अकेला अनजान ब्लाइंड हो उसके पटरी पर आने की पूरी संभावना है. क्योंकि वहां मेट्रो की तरह, बैरियर, टाइल्स या लोगों की कोई सुविधा नहीं थी. और सरकार का इस ओर कोई ध्यान नहीं है.
सूर्यप्रकाश अंत में कहते हैं, “पब्लिक ट्रांसपोर्ट में भी समस्याएं हैं. जैसे दिल्ली में बसों में सिर्फ 20 लोगों के बैठने की सुविधा थी, तो देखने वाले लोग तो चढ़ जाएंगे और हम इस कारण पीछे रह जाएंगे. क्योंकि हमें पता नहीं कि बस में 20 हैं या नहीं, परेशानियां बहुत बढ़ गई हैं. सरकार को चाहिए कि हमें ज्यादा से ज्यादा इलेक्ट्रिक डिवाइस उपलब्ध कराए. जिससे हम आसानी से इधर-उधर जा सकें.”
दिल्ली स्थित नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड की एडमिन ऑफिसर हेमा कहती हैं, “हमारे यहां मुख्यत फाइनेंशियल समस्या आ रही है. और इस दौरान ट्रेवल नहीं कर सकते क्योंकि अभी यातायात सुचारू नहीं है और सेफ भी नहीं है. कैब सब अफॉर्ड नहीं कर सकते. दूसरा ये टच करके सबकुछ करते हैं, लेकिन अब बहुत मुश्किल आ रही है, बाकि हम जितना कर सकते हैं कर रहे हैं.”
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