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लाइव कवरेज के दौरान ज़ी पंजाबी के पत्रकार को किसानों ने दौड़ाया
दिल्ली-हरियाणा के सिंधु बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा से आए किसान बीते तीन दिनों से केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां आए किसान सरकार से नाराज तो हैं ही लेकिन यहां उनकी नाराजगी टेलीविजन मीडिया के प्रति भी देखी जा रही है.
जब से यहां किसान आए हैं तब से टेलीविजन मीडिया के कई रिपोर्टरों को यहां रिपोर्टिंग करने से रोका जा चुका है. यहां कई पोस्टर भी लगाए गए हैं जिस पर मीडिया को सच बोलने के लिए कहा जा रहा है. इनका आरोप है कि कुछ मीडिया वाले यहां के प्रदर्शन को न्यूज चैनल पर गलत तरीके से दिखा रहे हैं.
सोमवार दोपहर ज़ी पंजाब के रिपोर्टर बासु मनचंदा भी यहां से लाइव कर रहे थे इस दौरान उनके आसपास खड़े किसान ज़ी न्यूज़ के खिलाफ नारे लगाने लगे. काफी देर तक गोदी मीडिया गो बैक, मोदी मीडिया गो बैक के नारे लगते रहे. इस घटना के बाद न्यूज़लॉन्ड्री ने बासु मनचंदा से बात की.
मनचंदा ने कहा, वह किसान आंदोलन को कवर करने सिंधु बॉर्डर पहुंचे थे इस दौरान उनके साथ किसानों ने मारपीट की. मनचंदा ने उन्हें समझाने की कोशिश की तो किसानों ने कहा कि आप लोग हमारे खिलाफ टीवी पर गलत दिखा रहे हैं. किसी एक ने कहा कि ये आपको खालिस्तान दिखा रहे हैं. इस पर मनचंदा ने कहा कि नहीं हम तो ज़ी पंजाबी हैं वो दूसरा चैनल हैं."
वहां मौजूद एक यूट्यूब चैनल वाले ने कहा कि, "हां-हां पूछो-पूछो इन्हीं से पूछो ये ज़ी वाले ही हैं और ये एक ही हैं."
मनचंदा आगे कहते हैं, "इसके बाद वहां और ज्यादा भीड़ इक्ट्ठा हो गई और उन्होंने घेरा डाल लिया. वहीं कुछ लोग ट्रक पर बैठे हुए थे जो मोदी मीडिया मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे. इस दौरान उन्हें पीछे से किसी ने धक्का भी मार दिया. हालांकि चार लोग उनके बचाव में भी आए और कहने लगे कि ये तो ज़ी पंजाबी वाले हैं ये गलत नहीं दिखाते हैं. वह चारों लोग मनचंदा को आगे लेकर जा ही रहे थे कि तभी किसी ने उनके मुंह पर गर्म चाय डाल दी. तभी किसी ने उन्हें पीछे से लाठी भी मार दी. इसके बाद वह वहां से भागकर अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गए. गाड़ी के पास भी कुछ किसान पहुंच गए और उन्हें गोदी मीडिया कह कर टोंट मारने लगे.
उन्होंने बताया कि, "जब यह घटना हुई तब हमारा लाइव शुरू हो चुका था. और बाद में तो भीड़ उग्र हो गई थी. काफी लोग इक्ट्ठा हो गए थे. किसी तरह वहां से जान बचाकर निकलना पड़ा."
हमने इस पूरे मामले पर उन किसानों से भी पूछा कि ऐसी नौबत क्यों आ रही है कि आपको मीडिया वालों को भगाना पड़ रहा है. इस पर हरियाणा के करनाल से आए हर्षदीप सिंह कहते हैं, "ज़ी न्यूज वालों का कॉमन सेंस खत्म हो गया है. इनको किसान और कसाब में फर्क ही नजर नहीं आ रहा है. ये किसान को आतंकवादी बता रहे हैं. ये भोले-भाले किसान इनमें से 80 फीसदी किसान ऐसे हैं जिनकी पूरी जिंदगी निकल जाती है लेकिन वह दिल्ली का मुंह तक नहीं देख पाते हैं. लेकिन उन्हें मोदी ने मजबूर कर रखा है सड़कों पर सोने के लिए. परिवार वाले चिंतित हैं कि कहीं मोर्चे पर गए हुए किसान वापस लौटेंगे भी या नहीं.
उन्होंने आगे कहा, "हम अपना हक लेने आए हैं और लेकर जाएंगे. मैं हरियाणा से हूं और हरियाणा और पंजाब एक हैं. हम मोदी से छाती से छाती मिलाकर मुकाबला करेंगे. अगर गोली चलेगी तो हमारी छाती पंजाब वालों से पहले होगी.
मीडिया से नाराजगी क्यों है इस पर वह कहते हैं, "मीडिया से नाराजगी की वजह यह है कि मीडिया मोदी का सबसे बड़ा दलाल है. मीडिया मोदी की गोदी में बैठा हुआ है. रिपब्लिक मीडिया, ज़ी मीडिया सबसे बड़े दलाल हैं. इनमें कई और भी हैं लेकिन मैं अभी उनके नाम भूल रहा हूं. मीडिया चौथा स्तंभ होता है लेकिन मोदी ने मीडिया को खोखला कर दिया है. ये सुबह शाम मोदी मोदी का राग अलापते रहते हैं. अंजना ओम कश्यप और रिपब्लिक वाला एंकर शाम को डिबेट नहीं करते हैं ये तो पोगो का कार्टून चैनल चला रहे हैं. लोग इन्हें हंसने के लिए देखते हैं इन्हें कोई सीरियस नहीं लेता है. इन्होंने मीडिया का तमाशा बना रखा है.
उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री की तारीफ करते हुए कहा, "मैंने न्यूज़लॉन्ड्री को फॉलो कर रखा है. आप अच्छी खबरें निकालकर लाते हो, मैं आपका धन्यवाद करता हूं."
वह कहते हैं, "किसानों का आंदोलन जिस तरह से चल रहा है उसी तरह से दिखाया जाए, इसे तोड़ मरोड़ कर नहीं दिखाना चाहिए. ये किसान हैं इन्होंने सारे देश का पेट पाला है. इनका सबको साथ देना चाहिए. हमारा साथ दोगे तो किसान सारी उम्र अहसान नहीं भूलेगा."
वहीं जालंधर से आए मनदीप सिंह कहते हैं, "यहां से आजतक और ज़ी न्यूज को हमने भगा दिया है. क्योंकि यह गोदी मीडिया वाले है. कम से कम दो महीनों से पंजाब में आंदोलन चल रहा था लेकिन इन्होंने हमारी कोई न्यूज नहीं दी. इसिलए हम नहीं चाहते कि वो अब यहां आए और हमसे उल्टे सीधे सवाल करें."
उल्टे सीधे क्या सवाल कर रहे हैं इस पर वह कहते हैं, "वह अनपढ़ और बुजुर्ग किसानों से सवाल करते हैं जिनको ठीक से कृषि कानून के बारे में नहीं पता है. उन्हें क्या पता होगा. इसलिए हम नहीं चाहते कि यहां ज़ी न्यूज और आज तक वाले यहां आएं.
दिल्ली-हरियाणा के सिंधु बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा से आए किसान बीते तीन दिनों से केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. यहां आए किसान सरकार से नाराज तो हैं ही लेकिन यहां उनकी नाराजगी टेलीविजन मीडिया के प्रति भी देखी जा रही है.
जब से यहां किसान आए हैं तब से टेलीविजन मीडिया के कई रिपोर्टरों को यहां रिपोर्टिंग करने से रोका जा चुका है. यहां कई पोस्टर भी लगाए गए हैं जिस पर मीडिया को सच बोलने के लिए कहा जा रहा है. इनका आरोप है कि कुछ मीडिया वाले यहां के प्रदर्शन को न्यूज चैनल पर गलत तरीके से दिखा रहे हैं.
सोमवार दोपहर ज़ी पंजाब के रिपोर्टर बासु मनचंदा भी यहां से लाइव कर रहे थे इस दौरान उनके आसपास खड़े किसान ज़ी न्यूज़ के खिलाफ नारे लगाने लगे. काफी देर तक गोदी मीडिया गो बैक, मोदी मीडिया गो बैक के नारे लगते रहे. इस घटना के बाद न्यूज़लॉन्ड्री ने बासु मनचंदा से बात की.
मनचंदा ने कहा, वह किसान आंदोलन को कवर करने सिंधु बॉर्डर पहुंचे थे इस दौरान उनके साथ किसानों ने मारपीट की. मनचंदा ने उन्हें समझाने की कोशिश की तो किसानों ने कहा कि आप लोग हमारे खिलाफ टीवी पर गलत दिखा रहे हैं. किसी एक ने कहा कि ये आपको खालिस्तान दिखा रहे हैं. इस पर मनचंदा ने कहा कि नहीं हम तो ज़ी पंजाबी हैं वो दूसरा चैनल हैं."
वहां मौजूद एक यूट्यूब चैनल वाले ने कहा कि, "हां-हां पूछो-पूछो इन्हीं से पूछो ये ज़ी वाले ही हैं और ये एक ही हैं."
मनचंदा आगे कहते हैं, "इसके बाद वहां और ज्यादा भीड़ इक्ट्ठा हो गई और उन्होंने घेरा डाल लिया. वहीं कुछ लोग ट्रक पर बैठे हुए थे जो मोदी मीडिया मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे. इस दौरान उन्हें पीछे से किसी ने धक्का भी मार दिया. हालांकि चार लोग उनके बचाव में भी आए और कहने लगे कि ये तो ज़ी पंजाबी वाले हैं ये गलत नहीं दिखाते हैं. वह चारों लोग मनचंदा को आगे लेकर जा ही रहे थे कि तभी किसी ने उनके मुंह पर गर्म चाय डाल दी. तभी किसी ने उन्हें पीछे से लाठी भी मार दी. इसके बाद वह वहां से भागकर अपनी गाड़ी में जाकर बैठ गए. गाड़ी के पास भी कुछ किसान पहुंच गए और उन्हें गोदी मीडिया कह कर टोंट मारने लगे.
उन्होंने बताया कि, "जब यह घटना हुई तब हमारा लाइव शुरू हो चुका था. और बाद में तो भीड़ उग्र हो गई थी. काफी लोग इक्ट्ठा हो गए थे. किसी तरह वहां से जान बचाकर निकलना पड़ा."
हमने इस पूरे मामले पर उन किसानों से भी पूछा कि ऐसी नौबत क्यों आ रही है कि आपको मीडिया वालों को भगाना पड़ रहा है. इस पर हरियाणा के करनाल से आए हर्षदीप सिंह कहते हैं, "ज़ी न्यूज वालों का कॉमन सेंस खत्म हो गया है. इनको किसान और कसाब में फर्क ही नजर नहीं आ रहा है. ये किसान को आतंकवादी बता रहे हैं. ये भोले-भाले किसान इनमें से 80 फीसदी किसान ऐसे हैं जिनकी पूरी जिंदगी निकल जाती है लेकिन वह दिल्ली का मुंह तक नहीं देख पाते हैं. लेकिन उन्हें मोदी ने मजबूर कर रखा है सड़कों पर सोने के लिए. परिवार वाले चिंतित हैं कि कहीं मोर्चे पर गए हुए किसान वापस लौटेंगे भी या नहीं.
उन्होंने आगे कहा, "हम अपना हक लेने आए हैं और लेकर जाएंगे. मैं हरियाणा से हूं और हरियाणा और पंजाब एक हैं. हम मोदी से छाती से छाती मिलाकर मुकाबला करेंगे. अगर गोली चलेगी तो हमारी छाती पंजाब वालों से पहले होगी.
मीडिया से नाराजगी क्यों है इस पर वह कहते हैं, "मीडिया से नाराजगी की वजह यह है कि मीडिया मोदी का सबसे बड़ा दलाल है. मीडिया मोदी की गोदी में बैठा हुआ है. रिपब्लिक मीडिया, ज़ी मीडिया सबसे बड़े दलाल हैं. इनमें कई और भी हैं लेकिन मैं अभी उनके नाम भूल रहा हूं. मीडिया चौथा स्तंभ होता है लेकिन मोदी ने मीडिया को खोखला कर दिया है. ये सुबह शाम मोदी मोदी का राग अलापते रहते हैं. अंजना ओम कश्यप और रिपब्लिक वाला एंकर शाम को डिबेट नहीं करते हैं ये तो पोगो का कार्टून चैनल चला रहे हैं. लोग इन्हें हंसने के लिए देखते हैं इन्हें कोई सीरियस नहीं लेता है. इन्होंने मीडिया का तमाशा बना रखा है.
उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री की तारीफ करते हुए कहा, "मैंने न्यूज़लॉन्ड्री को फॉलो कर रखा है. आप अच्छी खबरें निकालकर लाते हो, मैं आपका धन्यवाद करता हूं."
वह कहते हैं, "किसानों का आंदोलन जिस तरह से चल रहा है उसी तरह से दिखाया जाए, इसे तोड़ मरोड़ कर नहीं दिखाना चाहिए. ये किसान हैं इन्होंने सारे देश का पेट पाला है. इनका सबको साथ देना चाहिए. हमारा साथ दोगे तो किसान सारी उम्र अहसान नहीं भूलेगा."
वहीं जालंधर से आए मनदीप सिंह कहते हैं, "यहां से आजतक और ज़ी न्यूज को हमने भगा दिया है. क्योंकि यह गोदी मीडिया वाले है. कम से कम दो महीनों से पंजाब में आंदोलन चल रहा था लेकिन इन्होंने हमारी कोई न्यूज नहीं दी. इसिलए हम नहीं चाहते कि वो अब यहां आए और हमसे उल्टे सीधे सवाल करें."
उल्टे सीधे क्या सवाल कर रहे हैं इस पर वह कहते हैं, "वह अनपढ़ और बुजुर्ग किसानों से सवाल करते हैं जिनको ठीक से कृषि कानून के बारे में नहीं पता है. उन्हें क्या पता होगा. इसलिए हम नहीं चाहते कि यहां ज़ी न्यूज और आज तक वाले यहां आएं.
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