Newslaundry Hindi
किसानों के समर्थन में अवॉर्ड वापसी की होड़
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का धरना प्रदर्शन 14वें दिन भी जारी है. पंजाब और हरियाणा के किसानों की ओर से शुरू हुआ प्रदर्शन अब अन्य राज्यों के किसानों के समर्थन में आने से और ज्यादा व्यापक हो गया है. लगे हाथ इस आंदोलन को कई सेलिब्रेटी सितारों ने भी अपना समर्थन दिया है. विरोध का असर कई स्तरों पर दिख रहा है. कई पुरस्कार विजेता खिलाड़ियों ने किसानों के समर्थन में अब अपना पुरस्कार वापस करना शुरू कर दिया है. ऐसा ही एक जत्था रविवार को सिंघु बॉर्डर पर पहुंचा जहां 30 खिलाड़ियों ने अर्जुन अवॉर्ड सहित अपने कई खेल अवॉर्ड वापस किए.
अवॉर्ड वापस करने आए करतार सिंह अपने दौर के नामी कुश्ती खिलाड़ी रहे हैं. उन्हें 1982 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. वह पूर्व आईपीएस अफसर भी रहे हैं. सिंघु बॉर्डर पर अवॉर्ड वापिस करने के दौरान न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे बात की. करतार सिंह कहते हैं, "कई दिनों से किसान यहां संघर्ष कर रहे हैं. जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, और महिलाएं शामिल हैं. यह सभी आज अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं कर रहा. बजाए इसके इनके ऊपर पानी की बौछारें और लाठियां बरसाई जा रही हैं. किसानों के साथ ऐसा करके उन्हें परेशान किया जा रहा है. किसानों के साथ हो रहे इस जुल्म को अब हमसे देखा नहीं जा रहा, इसलिए हम पंजाब के पुरस्कार विजेताओं ने मिलकर यह फैसला किया है कि जो अवॉर्ड हमें केंद्र सरकार ने दिए थे हम वह सभी वापिस करके किसानों के साथ खड़े होंगे."
वो आगे कहते हैं, "हम इन्हीं का अनाज खाकर यहां तक पहुंचे हैं और इन्हीं का अन्न खाकर हम अवॉर्ड लेने लायक बने. अब इन्हें हमारी जरूरत है इसलिए हमने इनके समर्थन में अपने अवॉर्ड वापसी का फैसला लिया है. अवॉर्ड वापस करने वाले 30 खिलाड़ी हैं जो कल जाकर राष्ट्रपतिजी से मिलेंगे और उन्हें यह सभी अवॉर्ड वापिस करेंगे. हम ही नहीं किसानों के समर्थन में आज पूरा हिंदुस्तान खड़ा है. बॉक्सर बिजेंद्र सिंह भी आज किसानों के समर्थन में आ गए हैं. और भी कई लोग अवॉर्ड वापसी करेंगे."
उन्होंने कहा, "हर संघर्ष में पंजाब सबसे आगे रहा है. पंजाब ने हमेशा सबको लीड किया है. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है. पंजाब के पीछे हरियाणा और अब धीरे-धीरे पूरा हिंदुस्तान पंजाब के साथ खड़ा है. अब उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान भी साथ आ गए हैं. इस आंदोलन में बुद्धिजीवी, टीचर और फौजी भी लाखों की तादात में जुड़ रहे हैं. सरकार जब तक कृषि कानून वापस नहीं लेती तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा."
करतार सिंह के मुताबिक कोरोना काल में सरकार ने किसानों के साथ चालाकी की है पहले लोकसभा में इस बिल को पास कराया, फिर राज्यासभा में और दो दिन बाद ही इसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी. सरकार ने इतनी जल्दबाजी क्यों की और जिनके लिए यह कानून बनाया जा रहा था उनसे एक बार बात तक नहीं की. अगर सरकार किसानों के साथ मिलकर इस कानून के बारे में बात करती और उसके बाद दोनों की सहमति से सुधार के साथ यह कानून लाया जाता तो आज इस तरह का संघर्ष सड़कों पर देखने को नहीं मिलता. इससे लाखों, करोड़ों का नुकसान हो रहा है.
करतार सिंह कहते हैं, "हरियाणा की भाजपा सरकार ने किसान प्रदर्शन न करें इसके लिए सड़कें तक खोद दीं. सरकार ने ऐसा करके अन्नदाता के साथ अच्छा नहीं किया. देश में भाजपा सरकार लगातार किसी न किसी को निशाना बना रही है. जबकि यह सबका देश है. भारत एक गुलदस्ते की तरह है. यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी रहते हैं. यहां अगर किसी एक को भी तकलीफ होती है तो सबको दुख होता है. भाजपा सरकार आंदोलनों को फेल करने के लिए नकारात्मकता फैला रही है.”
करतार सिंह की बातों में एक चिंता सरकार द्वारा किसानों को बदनाम करने की रणनीति पर भी दिखी. किसी को भी किसी से जोड़ देती है ये सरकार. अभी इस आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ दिया है. यह बहुत ही शर्मनाक है. जबकि यहां किसान संगठनों ने खुद अपनी बहुत सारी कमेटियां बना रखी हैं ताकि आंदोलन में कोई गलत आदमी न घुस जाए. इन कमेटियों के लोग खुद इतने जागरुक हैं कि किसी भी असमाजिक या गड़बड़ी फैलाने वाले शख्स की पहचान करके उसे पकड़ रहे हैं. सरकार अपने गलत मंसूबों में कामयाब नहीं होगी.
खिलाड़ी रहे गुरनाम सिंह अपनी पत्नी के साथ किसानों के समर्थन में अपना अवॉर्ड वापस करने सिंघु बॉर्डर पहुंचे. गुरनाम सिंह को 2014 में ध्यानचंद अवॉर्ड मिला था. उन्हें यह अवॉर्ड राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दिया गया था. जबकि उनकी पत्नी 1985 की एशियन गोल्ड मेडलिस्ट हैं. उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस अवॉर्ड से सम्मानित किया था.
गुरनाम सिंह कहते हैं, "हमसे किसानों का दर्द देखा नहीं जा रहा है. इसलिए हम सभी पंजाब के खिलाड़ियों ने किसानों के समर्थन में अपने अवॉर्ड वापस करने का फैसला लिया है. हमारी मांग है कि जल्दी से जल्दी इन तीनों काले कानूनों को सरकार को वापस लेना चाहिए. मैं और मेरी पत्नी राजबीर कौर दोनों ने मिलकर अवॉर्ड वापिस करने का फैसला लिया है. मेरी पत्नी एशियन गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं जबकि मैं खुद ओलंपिक मेडलिस्ट हूं."
उन्होंने कहा, "हमारे किसान भाइयों के साथ इस तरह का व्यहवार ठीक नहीं है. उनके साथ ऐसा होगा तो हम यह बर्दाश्त नहीं करेंगे. आज हम ही नहीं पूरा हिंदुस्तान किसानों के साथ खड़ा है लेकिन सरकार को नहीं दिखाई दे रहा. सरकार को पीछे हटने की जरूरत है नहीं तो यह आंदोलन और तेज होता जाएगा. सरकार को चाहिए कि वह किसानों के साथ मिलकर बैठक करे और इस समस्या का समाधान निकाले."
अवॉर्ड वापस करने के लिए गुरनाम सिंह के साथ सिंघु बॉर्डर पहुंची उनकी पत्नी राजबीर कौर कहती हैं, "यह कानून सरकार किसानों को खुश करने के लिए लेकर आई है लेकिन जब किसान खुश ही नहीं हैं तो ऐसे कानून का क्या फायदा. इसलिए सरकार को अपना अड़ियल रवैया खत्म करके कानून को वापस ले लेना चाहिए. पंजाब में किसान का बच्चा-बच्चा आज खिलाड़ी है और वह आगे के लिए संघर्ष कर रहा है. लेकिन जब सरकार किसानों के साथ ही ऐसा करेगी तो फिर उन बच्चों का भविष्य क्या होगा. सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए."
कौर याद करते हुए कहती हैं कि जब उन्हें यह अवॉर्ड मिला था तब बहुत खुशी के पल थे. कोई खिलाड़ी बहुत मेहनत के बाद इस मुकाम तक पहुंचता है. वह दिन रात मेहनत करके जब अवॉर्ड लेने जाता है तो वह पल बहुत ही शानदार होता है. लेकिन आज इसे वापिस करते हुए अफसोस हो रहा है. उन्होंने कहा कि यह अवॉर्ड भी हमें इन्हीं किसानों की बदोलत मिला है. इनका अन्न खाकर ही हम लोग यहां तक पहुंचे हैं. यही हमारा पेट पालते हैं और इन्हीं के समर्थन में हम इसे वापिस कर रहे हैं तो कोई दुख भी नहीं है.
वह कहती हैं, "बेटियों को भी अधिक संख्या में स्पोर्ट्स में आना चाहिए. आज पंजाब के युवा नशे की लत में हैं. इसलिए सभी को स्पोर्ट्स में आना चाहिए. क्योंकि स्पोर्ट्स अपने आप में एक नशा है. और इस नशे के आगे अन्य सभी नशे बेकार हैं. अगर युवा स्पोर्ट्स के साथ जुड़ेंगे तो वह खुद ब खुद नशे की लत से दूर रहेंगे. आज बहुत सारे परिवार सिर्फ नशे के चक्कर में बर्बाद हो चुके हैं. इन परिवारों को बचाने के लिए इनके बच्चों का स्पोर्ट्स में आना जरूरी है." बता दें कि राजबीर कौर को 1985 में हॉकी के लिए यह सम्मान मिला था.
आज भले ही किसानों के समर्थन में खिलाड़ी अपने अवॉर्ड वापिस कर रहे हों लेकिन सबसे पहले इसकी शुरुआत पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने की थी. उन्होंने किसानों के समर्थन में अपना पद्म विभूषण सम्मान लौटा दिया था. इसके बाद तो मानों अवॉर्ड वापस करने की होड़ सी लग गई. उनके बाद कुछ लेखकों ने साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाने की घोषणा कर दी.
इसके बाद बॉक्सर बिजेंद्र सिंह भी किसानों के समर्थन में सिंधु बॉर्डर पहुंचे. यहां उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर सरकार कृषि कानून वापिस नहीं लेती है तो वो अपना खेल रत्न वापिस कर देंगे.
बता दें कि किसानों की सरकार के साथ अभी तक पांच बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन सब बेनतीजा रही हैं. एक मीटिंग बुधवार यानी आज होनी है. हालांकि किसानों का कहना है कि उन्हें इस मीटिंग से भी कोई उम्मीद नहीं है. गुरुवार को सरकार और किसानों के साथ हुई बातचीत करीब सात घंटे चली लेकिन किसी नतीजे के बगैर ही खत्म हो गई.
मंगलवार को भी गृहमंत्री अमित शाह ने 13 किसानों के साथ बैठक की. इस दौरान सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने से इनकार कर दिया. सरकार आज कृषि कानूनों पर लिखित में प्रस्ताव देगी जिस पर किसान विचार करेंगे. जहां सरकार किसानों को मनाने में जुटी है तो वहीं किसान नेता भी तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की जिद्द पर अड़े हुए हैं.
आज होने वाली मीटिंग पर देश भर की निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि किसानों का आंदोलन अब सीमित नहीं बल्कि व्यापक रूप ले चुका है. जिसे रोज देश और देश के बाहर से समर्थन मिल रहा है. ऐसे में अवॉर्ड वापसी के जरिए किसानों ने सरकार पर दबाव और बढ़ा दिया है.
कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का धरना प्रदर्शन 14वें दिन भी जारी है. पंजाब और हरियाणा के किसानों की ओर से शुरू हुआ प्रदर्शन अब अन्य राज्यों के किसानों के समर्थन में आने से और ज्यादा व्यापक हो गया है. लगे हाथ इस आंदोलन को कई सेलिब्रेटी सितारों ने भी अपना समर्थन दिया है. विरोध का असर कई स्तरों पर दिख रहा है. कई पुरस्कार विजेता खिलाड़ियों ने किसानों के समर्थन में अब अपना पुरस्कार वापस करना शुरू कर दिया है. ऐसा ही एक जत्था रविवार को सिंघु बॉर्डर पर पहुंचा जहां 30 खिलाड़ियों ने अर्जुन अवॉर्ड सहित अपने कई खेल अवॉर्ड वापस किए.
अवॉर्ड वापस करने आए करतार सिंह अपने दौर के नामी कुश्ती खिलाड़ी रहे हैं. उन्हें 1982 में अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था. वह पूर्व आईपीएस अफसर भी रहे हैं. सिंघु बॉर्डर पर अवॉर्ड वापिस करने के दौरान न्यूज़लॉन्ड्री ने उनसे बात की. करतार सिंह कहते हैं, "कई दिनों से किसान यहां संघर्ष कर रहे हैं. जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, और महिलाएं शामिल हैं. यह सभी आज अपनी मांगों को लेकर सड़कों पर हैं लेकिन इनकी कोई सुनवाई नहीं कर रहा. बजाए इसके इनके ऊपर पानी की बौछारें और लाठियां बरसाई जा रही हैं. किसानों के साथ ऐसा करके उन्हें परेशान किया जा रहा है. किसानों के साथ हो रहे इस जुल्म को अब हमसे देखा नहीं जा रहा, इसलिए हम पंजाब के पुरस्कार विजेताओं ने मिलकर यह फैसला किया है कि जो अवॉर्ड हमें केंद्र सरकार ने दिए थे हम वह सभी वापिस करके किसानों के साथ खड़े होंगे."
वो आगे कहते हैं, "हम इन्हीं का अनाज खाकर यहां तक पहुंचे हैं और इन्हीं का अन्न खाकर हम अवॉर्ड लेने लायक बने. अब इन्हें हमारी जरूरत है इसलिए हमने इनके समर्थन में अपने अवॉर्ड वापसी का फैसला लिया है. अवॉर्ड वापस करने वाले 30 खिलाड़ी हैं जो कल जाकर राष्ट्रपतिजी से मिलेंगे और उन्हें यह सभी अवॉर्ड वापिस करेंगे. हम ही नहीं किसानों के समर्थन में आज पूरा हिंदुस्तान खड़ा है. बॉक्सर बिजेंद्र सिंह भी आज किसानों के समर्थन में आ गए हैं. और भी कई लोग अवॉर्ड वापसी करेंगे."
उन्होंने कहा, "हर संघर्ष में पंजाब सबसे आगे रहा है. पंजाब ने हमेशा सबको लीड किया है. इस बार भी ऐसा ही हो रहा है. पंजाब के पीछे हरियाणा और अब धीरे-धीरे पूरा हिंदुस्तान पंजाब के साथ खड़ा है. अब उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान भी साथ आ गए हैं. इस आंदोलन में बुद्धिजीवी, टीचर और फौजी भी लाखों की तादात में जुड़ रहे हैं. सरकार जब तक कृषि कानून वापस नहीं लेती तब तक यह आंदोलन जारी रहेगा."
करतार सिंह के मुताबिक कोरोना काल में सरकार ने किसानों के साथ चालाकी की है पहले लोकसभा में इस बिल को पास कराया, फिर राज्यासभा में और दो दिन बाद ही इसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी. सरकार ने इतनी जल्दबाजी क्यों की और जिनके लिए यह कानून बनाया जा रहा था उनसे एक बार बात तक नहीं की. अगर सरकार किसानों के साथ मिलकर इस कानून के बारे में बात करती और उसके बाद दोनों की सहमति से सुधार के साथ यह कानून लाया जाता तो आज इस तरह का संघर्ष सड़कों पर देखने को नहीं मिलता. इससे लाखों, करोड़ों का नुकसान हो रहा है.
करतार सिंह कहते हैं, "हरियाणा की भाजपा सरकार ने किसान प्रदर्शन न करें इसके लिए सड़कें तक खोद दीं. सरकार ने ऐसा करके अन्नदाता के साथ अच्छा नहीं किया. देश में भाजपा सरकार लगातार किसी न किसी को निशाना बना रही है. जबकि यह सबका देश है. भारत एक गुलदस्ते की तरह है. यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी रहते हैं. यहां अगर किसी एक को भी तकलीफ होती है तो सबको दुख होता है. भाजपा सरकार आंदोलनों को फेल करने के लिए नकारात्मकता फैला रही है.”
करतार सिंह की बातों में एक चिंता सरकार द्वारा किसानों को बदनाम करने की रणनीति पर भी दिखी. किसी को भी किसी से जोड़ देती है ये सरकार. अभी इस आंदोलन को खालिस्तान से जोड़ दिया है. यह बहुत ही शर्मनाक है. जबकि यहां किसान संगठनों ने खुद अपनी बहुत सारी कमेटियां बना रखी हैं ताकि आंदोलन में कोई गलत आदमी न घुस जाए. इन कमेटियों के लोग खुद इतने जागरुक हैं कि किसी भी असमाजिक या गड़बड़ी फैलाने वाले शख्स की पहचान करके उसे पकड़ रहे हैं. सरकार अपने गलत मंसूबों में कामयाब नहीं होगी.
खिलाड़ी रहे गुरनाम सिंह अपनी पत्नी के साथ किसानों के समर्थन में अपना अवॉर्ड वापस करने सिंघु बॉर्डर पहुंचे. गुरनाम सिंह को 2014 में ध्यानचंद अवॉर्ड मिला था. उन्हें यह अवॉर्ड राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी द्वारा दिया गया था. जबकि उनकी पत्नी 1985 की एशियन गोल्ड मेडलिस्ट हैं. उन्हें तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इस अवॉर्ड से सम्मानित किया था.
गुरनाम सिंह कहते हैं, "हमसे किसानों का दर्द देखा नहीं जा रहा है. इसलिए हम सभी पंजाब के खिलाड़ियों ने किसानों के समर्थन में अपने अवॉर्ड वापस करने का फैसला लिया है. हमारी मांग है कि जल्दी से जल्दी इन तीनों काले कानूनों को सरकार को वापस लेना चाहिए. मैं और मेरी पत्नी राजबीर कौर दोनों ने मिलकर अवॉर्ड वापिस करने का फैसला लिया है. मेरी पत्नी एशियन गोल्ड मेडलिस्ट रही हैं जबकि मैं खुद ओलंपिक मेडलिस्ट हूं."
उन्होंने कहा, "हमारे किसान भाइयों के साथ इस तरह का व्यहवार ठीक नहीं है. उनके साथ ऐसा होगा तो हम यह बर्दाश्त नहीं करेंगे. आज हम ही नहीं पूरा हिंदुस्तान किसानों के साथ खड़ा है लेकिन सरकार को नहीं दिखाई दे रहा. सरकार को पीछे हटने की जरूरत है नहीं तो यह आंदोलन और तेज होता जाएगा. सरकार को चाहिए कि वह किसानों के साथ मिलकर बैठक करे और इस समस्या का समाधान निकाले."
अवॉर्ड वापस करने के लिए गुरनाम सिंह के साथ सिंघु बॉर्डर पहुंची उनकी पत्नी राजबीर कौर कहती हैं, "यह कानून सरकार किसानों को खुश करने के लिए लेकर आई है लेकिन जब किसान खुश ही नहीं हैं तो ऐसे कानून का क्या फायदा. इसलिए सरकार को अपना अड़ियल रवैया खत्म करके कानून को वापस ले लेना चाहिए. पंजाब में किसान का बच्चा-बच्चा आज खिलाड़ी है और वह आगे के लिए संघर्ष कर रहा है. लेकिन जब सरकार किसानों के साथ ही ऐसा करेगी तो फिर उन बच्चों का भविष्य क्या होगा. सरकार को इस बारे में सोचना चाहिए."
कौर याद करते हुए कहती हैं कि जब उन्हें यह अवॉर्ड मिला था तब बहुत खुशी के पल थे. कोई खिलाड़ी बहुत मेहनत के बाद इस मुकाम तक पहुंचता है. वह दिन रात मेहनत करके जब अवॉर्ड लेने जाता है तो वह पल बहुत ही शानदार होता है. लेकिन आज इसे वापिस करते हुए अफसोस हो रहा है. उन्होंने कहा कि यह अवॉर्ड भी हमें इन्हीं किसानों की बदोलत मिला है. इनका अन्न खाकर ही हम लोग यहां तक पहुंचे हैं. यही हमारा पेट पालते हैं और इन्हीं के समर्थन में हम इसे वापिस कर रहे हैं तो कोई दुख भी नहीं है.
वह कहती हैं, "बेटियों को भी अधिक संख्या में स्पोर्ट्स में आना चाहिए. आज पंजाब के युवा नशे की लत में हैं. इसलिए सभी को स्पोर्ट्स में आना चाहिए. क्योंकि स्पोर्ट्स अपने आप में एक नशा है. और इस नशे के आगे अन्य सभी नशे बेकार हैं. अगर युवा स्पोर्ट्स के साथ जुड़ेंगे तो वह खुद ब खुद नशे की लत से दूर रहेंगे. आज बहुत सारे परिवार सिर्फ नशे के चक्कर में बर्बाद हो चुके हैं. इन परिवारों को बचाने के लिए इनके बच्चों का स्पोर्ट्स में आना जरूरी है." बता दें कि राजबीर कौर को 1985 में हॉकी के लिए यह सम्मान मिला था.
आज भले ही किसानों के समर्थन में खिलाड़ी अपने अवॉर्ड वापिस कर रहे हों लेकिन सबसे पहले इसकी शुरुआत पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने की थी. उन्होंने किसानों के समर्थन में अपना पद्म विभूषण सम्मान लौटा दिया था. इसके बाद तो मानों अवॉर्ड वापस करने की होड़ सी लग गई. उनके बाद कुछ लेखकों ने साहित्य अकादमी अवॉर्ड लौटाने की घोषणा कर दी.
इसके बाद बॉक्सर बिजेंद्र सिंह भी किसानों के समर्थन में सिंधु बॉर्डर पहुंचे. यहां उन्होंने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर सरकार कृषि कानून वापिस नहीं लेती है तो वो अपना खेल रत्न वापिस कर देंगे.
बता दें कि किसानों की सरकार के साथ अभी तक पांच बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन सब बेनतीजा रही हैं. एक मीटिंग बुधवार यानी आज होनी है. हालांकि किसानों का कहना है कि उन्हें इस मीटिंग से भी कोई उम्मीद नहीं है. गुरुवार को सरकार और किसानों के साथ हुई बातचीत करीब सात घंटे चली लेकिन किसी नतीजे के बगैर ही खत्म हो गई.
मंगलवार को भी गृहमंत्री अमित शाह ने 13 किसानों के साथ बैठक की. इस दौरान सरकार ने कृषि कानूनों को वापस लेने से इनकार कर दिया. सरकार आज कृषि कानूनों पर लिखित में प्रस्ताव देगी जिस पर किसान विचार करेंगे. जहां सरकार किसानों को मनाने में जुटी है तो वहीं किसान नेता भी तीनों कृषि क़ानूनों को वापस लेने की जिद्द पर अड़े हुए हैं.
आज होने वाली मीटिंग पर देश भर की निगाहें टिकी हुई हैं, क्योंकि किसानों का आंदोलन अब सीमित नहीं बल्कि व्यापक रूप ले चुका है. जिसे रोज देश और देश के बाहर से समर्थन मिल रहा है. ऐसे में अवॉर्ड वापसी के जरिए किसानों ने सरकार पर दबाव और बढ़ा दिया है.
Also Read
-
TV Newsance 304: Anchors add spin to bland diplomacy and the Kanwar Yatra outrage
-
How Muslims struggle to buy property in Gujarat
-
A flurry of new voters? The curious case of Kamthi, where the Maha BJP chief won
-
South Central 34: Karnataka’s DKS-Siddaramaiah tussle and RSS hypocrisy on Preamble
-
Reporters Without Orders Ep 375: Four deaths and no answers in Kashmir and reclaiming Buddha in Bihar