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किसान आंदोलन: वकीलों की टीम मीडिया हाउस और सरकार को भेजेगी लीगल नोटिस
नए कृषि कानूनों के विरोध में पिछले 47 दिनों से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर हजारों किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. जहां लगभग 60 किसानों की मौत भी हो चुकी है. बावजूद इसके आंदोलन पर शुरू से ही मीडिया का एक तबका सवाल उठा रहा हैं. कभी धरने पर बैठे लोगों को खालिस्तानी, आतंकवादी बताया जाता है तो कभी उनके खाने-पीने पर टिप्पणी कर उनके किसान होने पर ही सवाल उठाए जाते रहे हैं. राजस्थान के बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने तो रविवार को किसान आंदोलन को ‘पिकनिक’ बताते हुए बर्ड फ्लू फैलाने के लिए भी इन्हें ही जिम्मेदार बता दिया.
इसे देखते हुए कुछ वकीलों ने एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी ने ऐसे सभी लोगों, मीडिया हाउस, और अफसरों को नोटिस भेजकर उनके खिलाफ केस करने का फैसला किया है. जिन्होंने इस तरह के ऊल-जलूल बयान दिए या खबरें चलाई हैं. नोटिस में इनसे पूछा जाएगा कि आपने किस आधार पर किसानों को खालिस्तानी, आतंकवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग बताया. जिन मीडिया हाउस को नोटिस दिया जाना है इनमें प्रमुख रूप से दैनिक जागरण, आजतक, जी न्यूज और रिपब्लिक भारत का नाम शामिल है.
साथ ही बिना मंजूरी सड़क तोड़ने व पब्लिक प्रोपर्टी को नुकसान पहुंचाने पर हरियाणा सरकार व उन अफसरों पर कोर्ट केस करने का फैसला किया है, जिन्होंने सड़कें तुड़वाईं और जनता के पैसे का नुकसान किया. सरकार को एक लीगल नोटिस भेजा जा चुका है.
गौरतलब है कि लगभग दो महीने तक पंजाब और हरियाणा में प्रदर्शन के बाद विरोध को आगे बढ़ाते हुए किसान संगठनों ने जब 26-27 नवंबर को ‘दिल्ली कूच’ का कार्यक्रम रखा तो पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए सड़क तक खोद डाली थी. साथ ही हाईवे को जगह-जगह बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया था व कुछ जगहों पर ट्रकों को आड़ा-तिरछा खड़ा कर दिया था.
इसके अलावा मीडिया की कवरेज पर भी काफी सवाल उठे हैं. हालत ये है कि आंदोलन में शामिल लोग मुख्यधारा की मीडिया के बजाए सोशल मीडिया और छोटे स्थानीय मीडिया चैनलों पर अधिक विश्वास कर रहे हैं. बहुत से पत्रकारों को लोग यहां से दौड़ा रहे हैं.
पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के वकील रविंद्र ढ़ुल से हमने इस नोटिस के बारे में बात की. उन्होंने विस्तार से इसके बारे में हमें बताया.
रविंद्र ढ़ुल कहते हैं, “दरअसल ये हमने वकीलों की एक कमेटी बनाई है. जिसमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान 4 राज्यों के 10-12 वकील शामिल हैं, जिनकी संख्या आगे बढ़ेगी. जितने भी मुख्यधारा के चैनल, अखबार या पॉलिटिशियन हैं, और जिन्होंने किसान आंदोलन को लेकर गलत स्टेटमेंट दिए हैं. उन्हें हम मानहानि का नोटिस देकर सबके खिलाफ क्रिमिनल डिफेमेशन का केस करेंगे. हमने इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. इसके लिए नोटिस तैयार हैं और आज शाम को हमारी मीटिंग है. एक हफ्ते में हम ये सारा काम कर देंगे. इससे पहले जो सड़क तोड़ी गई थी उसका नोटिस हमने हरियाणा प्रशासन को भेजा था. उसका जवाब अभी तक नहीं आया है. उस पर भी आज हमें कंसर्ट करना है कि अब आगे कैसे बढ़ा जाए.”
इन नोटिस की जरूरत आपको क्यों महसूस हुई. इस सवाल के जवाब में रविंद्र ढ़ल कहते हैं, “इसके दो कारण हैं. पहली बात तो ये कि कोई भी आंदोलन किसी भी प्रकार का हो, सरकार (चाहे कोई भी हो) उसे बदनाम करने की पूरी कोशिश करती है. अब अगर पब्लिक प्रोपर्टी का किसी भी प्रकार का डैमेज होता है जैसे हरियाणा के फतेहाबाद में किसान पंजाब से घुसे तो उस बॉर्डर पर बैरिकेड लगे हुए थे. उन्हें किसानों ने तोड़ा तो उनके खिलाफ तो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का केस दर्ज हो गया. लेकिन जब जींद (हरियाणा) में पुलिस ने 60 फुट चौड़ी सड़क को ही खोद दिया तो क्या ये सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान नहीं है”
“नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) का जो एक्ट है वह भी कहता है कि एनएचएआई की परमीशन के बिना आप किसी भी सड़क या नेशनल हाईवे को डैमेज नहीं कर सकते. इस बारे में जब आरटीआई के जरिए पूछा गया तो पता चला कि एनएचएआई से इजाजत नहीं ली गई थी. और न ही ऐसी किसी परमिशन की उन्हें कोई जानकारी है, इसलिए बिना किसी एनएचएआई की इजाजत के सड़क तोड़ना पूरी तरह से गैरकानूनी था चाहें अब उसके लिए कुछ भी जस्टिफिकेशन दे दें,” रविंद्र ढ़ल ने कहा.
रविंद्र ढ़ल आगे कहते हैं, “दूसरी बात ये है कि किसी एक व्यक्ति की गलती के कारण पूरी कम्युनिटी को बदनाम नहीं किया जा सकता. यहां तक की मैं कई बार बॉर्डर पर जा चुका हूं तो मैं ‘खालिस्तानी’ हो गया क्या! अब अगर बड़े मीडिया हाउस इस तरह के गलत स्टेटमेंट देंगे या गलत चीजों को पब्लिश करेंगे तो... This is very bad for the Integrity of the Country.”
रविंद्र ढ़ल कहते हैं, “इस देश में रूल ऑफ लॉ है. जब कानून है तो वह सबके लिए बराबर होना चाहिए, चाहे वह मुख्यमंत्री हो, डीजीपी हो या फिर आम आदमी. भविष्य में ये लोग इस प्रकार की चीजों का दुरुपयोग न करें. इनकी जवाबदेही तय हो आगे इस प्रकार के कदम न उठाए जाएं अगर किसी ऑफिसर ने इनलीगल काम किया है तो उसकी भी जवाबदेही तय हो. इस वजह से हमने ये नोटिस देने का फैसला किया है.”
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार सितंबर माह में तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं. तभी से किसान इन कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं. किसानों और सरकार के बीच आठ दौर की वार्ता के बाद भी इसका कोई हल निकलता नजर नहीं आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट में भी सोमवार को इन नए कानूनों को रद्द करने समेत किसान आंदोलन से जुड़े दूसरे मुद्दों पर करीब दो घंटे सुनवाई हुई. जिसमें सरकार के रवैये को लेकर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है.
नए कृषि कानूनों के विरोध में पिछले 47 दिनों से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर हजारों किसान प्रदर्शन कर रहे हैं. जहां लगभग 60 किसानों की मौत भी हो चुकी है. बावजूद इसके आंदोलन पर शुरू से ही मीडिया का एक तबका सवाल उठा रहा हैं. कभी धरने पर बैठे लोगों को खालिस्तानी, आतंकवादी बताया जाता है तो कभी उनके खाने-पीने पर टिप्पणी कर उनके किसान होने पर ही सवाल उठाए जाते रहे हैं. राजस्थान के बीजेपी विधायक मदन दिलावर ने तो रविवार को किसान आंदोलन को ‘पिकनिक’ बताते हुए बर्ड फ्लू फैलाने के लिए भी इन्हें ही जिम्मेदार बता दिया.
इसे देखते हुए कुछ वकीलों ने एक कमेटी का गठन किया है. इस कमेटी ने ऐसे सभी लोगों, मीडिया हाउस, और अफसरों को नोटिस भेजकर उनके खिलाफ केस करने का फैसला किया है. जिन्होंने इस तरह के ऊल-जलूल बयान दिए या खबरें चलाई हैं. नोटिस में इनसे पूछा जाएगा कि आपने किस आधार पर किसानों को खालिस्तानी, आतंकवादी, टुकड़े-टुकड़े गैंग बताया. जिन मीडिया हाउस को नोटिस दिया जाना है इनमें प्रमुख रूप से दैनिक जागरण, आजतक, जी न्यूज और रिपब्लिक भारत का नाम शामिल है.
साथ ही बिना मंजूरी सड़क तोड़ने व पब्लिक प्रोपर्टी को नुकसान पहुंचाने पर हरियाणा सरकार व उन अफसरों पर कोर्ट केस करने का फैसला किया है, जिन्होंने सड़कें तुड़वाईं और जनता के पैसे का नुकसान किया. सरकार को एक लीगल नोटिस भेजा जा चुका है.
गौरतलब है कि लगभग दो महीने तक पंजाब और हरियाणा में प्रदर्शन के बाद विरोध को आगे बढ़ाते हुए किसान संगठनों ने जब 26-27 नवंबर को ‘दिल्ली कूच’ का कार्यक्रम रखा तो पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए सड़क तक खोद डाली थी. साथ ही हाईवे को जगह-जगह बैरिकेड लगाकर बंद कर दिया था व कुछ जगहों पर ट्रकों को आड़ा-तिरछा खड़ा कर दिया था.
इसके अलावा मीडिया की कवरेज पर भी काफी सवाल उठे हैं. हालत ये है कि आंदोलन में शामिल लोग मुख्यधारा की मीडिया के बजाए सोशल मीडिया और छोटे स्थानीय मीडिया चैनलों पर अधिक विश्वास कर रहे हैं. बहुत से पत्रकारों को लोग यहां से दौड़ा रहे हैं.
पंजाब और हरियाणा हाइकोर्ट के वकील रविंद्र ढ़ुल से हमने इस नोटिस के बारे में बात की. उन्होंने विस्तार से इसके बारे में हमें बताया.
रविंद्र ढ़ुल कहते हैं, “दरअसल ये हमने वकीलों की एक कमेटी बनाई है. जिसमें उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और राजस्थान 4 राज्यों के 10-12 वकील शामिल हैं, जिनकी संख्या आगे बढ़ेगी. जितने भी मुख्यधारा के चैनल, अखबार या पॉलिटिशियन हैं, और जिन्होंने किसान आंदोलन को लेकर गलत स्टेटमेंट दिए हैं. उन्हें हम मानहानि का नोटिस देकर सबके खिलाफ क्रिमिनल डिफेमेशन का केस करेंगे. हमने इसकी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है. इसके लिए नोटिस तैयार हैं और आज शाम को हमारी मीटिंग है. एक हफ्ते में हम ये सारा काम कर देंगे. इससे पहले जो सड़क तोड़ी गई थी उसका नोटिस हमने हरियाणा प्रशासन को भेजा था. उसका जवाब अभी तक नहीं आया है. उस पर भी आज हमें कंसर्ट करना है कि अब आगे कैसे बढ़ा जाए.”
इन नोटिस की जरूरत आपको क्यों महसूस हुई. इस सवाल के जवाब में रविंद्र ढ़ल कहते हैं, “इसके दो कारण हैं. पहली बात तो ये कि कोई भी आंदोलन किसी भी प्रकार का हो, सरकार (चाहे कोई भी हो) उसे बदनाम करने की पूरी कोशिश करती है. अब अगर पब्लिक प्रोपर्टी का किसी भी प्रकार का डैमेज होता है जैसे हरियाणा के फतेहाबाद में किसान पंजाब से घुसे तो उस बॉर्डर पर बैरिकेड लगे हुए थे. उन्हें किसानों ने तोड़ा तो उनके खिलाफ तो सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने का केस दर्ज हो गया. लेकिन जब जींद (हरियाणा) में पुलिस ने 60 फुट चौड़ी सड़क को ही खोद दिया तो क्या ये सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान नहीं है”
“नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) का जो एक्ट है वह भी कहता है कि एनएचएआई की परमीशन के बिना आप किसी भी सड़क या नेशनल हाईवे को डैमेज नहीं कर सकते. इस बारे में जब आरटीआई के जरिए पूछा गया तो पता चला कि एनएचएआई से इजाजत नहीं ली गई थी. और न ही ऐसी किसी परमिशन की उन्हें कोई जानकारी है, इसलिए बिना किसी एनएचएआई की इजाजत के सड़क तोड़ना पूरी तरह से गैरकानूनी था चाहें अब उसके लिए कुछ भी जस्टिफिकेशन दे दें,” रविंद्र ढ़ल ने कहा.
रविंद्र ढ़ल आगे कहते हैं, “दूसरी बात ये है कि किसी एक व्यक्ति की गलती के कारण पूरी कम्युनिटी को बदनाम नहीं किया जा सकता. यहां तक की मैं कई बार बॉर्डर पर जा चुका हूं तो मैं ‘खालिस्तानी’ हो गया क्या! अब अगर बड़े मीडिया हाउस इस तरह के गलत स्टेटमेंट देंगे या गलत चीजों को पब्लिश करेंगे तो... This is very bad for the Integrity of the Country.”
रविंद्र ढ़ल कहते हैं, “इस देश में रूल ऑफ लॉ है. जब कानून है तो वह सबके लिए बराबर होना चाहिए, चाहे वह मुख्यमंत्री हो, डीजीपी हो या फिर आम आदमी. भविष्य में ये लोग इस प्रकार की चीजों का दुरुपयोग न करें. इनकी जवाबदेही तय हो आगे इस प्रकार के कदम न उठाए जाएं अगर किसी ऑफिसर ने इनलीगल काम किया है तो उसकी भी जवाबदेही तय हो. इस वजह से हमने ये नोटिस देने का फैसला किया है.”
गौरतलब है कि केन्द्र सरकार सितंबर माह में तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जिन पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून बन चुके हैं. तभी से किसान इन कानूनों को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं. किसानों और सरकार के बीच आठ दौर की वार्ता के बाद भी इसका कोई हल निकलता नजर नहीं आ रहा है. सुप्रीम कोर्ट में भी सोमवार को इन नए कानूनों को रद्द करने समेत किसान आंदोलन से जुड़े दूसरे मुद्दों पर करीब दो घंटे सुनवाई हुई. जिसमें सरकार के रवैये को लेकर कोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई है.
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