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एंकर-एंकराओं का लोकतंत्र ज्ञान और थोड़ा सा कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट
महान दार्शनिक, समाज सुधारक कबीरदास का उलटबांसी वाला एक भजन बहुत मशहूर है- बूझो पंडित अमृतवाणी, बरसे कंबल भीजै पानी. बीते हफ्ते उलटबासियों की पूरी रेलगाड़ी खबरिया चैनलों पर दौड़ी. अमेरिका में लोकतंत्र पर हुए हमले की आड़ लेकर अखंड भक्तिरस और प्रचंड राष्ट्रवाद की खुमारी में डूबे एंकर एंकराओं ने जो-जो दावे किए उससे साबित हुआ कि उनका इतिहासबोध कच्चा है और सामान्य ज्ञान उससे भी कच्चा. तो हमने सोचा कि एंकर एंकराओं के ज्ञानवर्धक शो के बाद क्यों न भारत और अमेरिका में लोकतंत्र की यात्रा के कुछ जरूरी पड़ावों का पुनर्पाठ कर लिया जाय.
दीपक चौरसिया को लगता है कि भारत दुनिया का प्राचीनतम लोकतंत्र है. लेकिन लोकतंत्र के इतिहास को दुनिया ने अमेरिकी लोकतंत्र के नजरिए से ही जाना है. वह बाकियों से बीस क्यों है उसके लिए इतिहास को खंगालना पड़ेगा. हमने टिप्पणी के इस अंक में इसकी कोशिश की कि आपको लोकतंत्र की यात्रा की एक तस्वीर दिखाई जाय.
अमेरिका का लोकतंत्र 230 साल का पुख्ता परिपक्व हो चुका है. उस लिहाज से भारत का लोकतंत्र अभी जवानी की दहलीज पर है. भारत 1947 में आज़ाद हुआ. 1950 में हमारा संविधान लागू हुआ. भारत की महानता यह थी कि इसने पहली ही बार में अपनी जनता को यूनिवर्सल वोटिंग का अधिकार दिया. अपने संविधान के जरिए कुछ मूल अधिकार दिए. 1952 में भारत के पहले चुनाव हुए और सही मायनों में तब जाकर यह एक पूर्ण लोकतंत्र बना.
दीपक चौरसिया और उनके जैसे तमाम एंकर एंकराओं की जानकारी के लिए भारत का संविधान दुनिया के तमाम पश्चिमी देशों के संविधान की अच्छी बातों को समाहित करके बना है. जिस अमेरिकी लोकतंत्र का मखौल भारतीय चैनलों पर उड़ाया जा रहा है उसके तमाम प्रावधान भारतीय संविधान की प्रेरणा बने, खासकर दलितों, आदिवासियों को मिले अधिकार.
अंग्रेजी का एक शब्द है कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट, यानि हितों का टकराव. इन दिनों यह पत्रकारिता से लेकर न्यायपालिका, राजनीति, व्यापार और खेल, हर जगह दिख जाता है. इस अंक में हमने इसी तरह के दो वाकयों की बात की है.
हितों के टकराव के अलावा भी हमने खबरिया चैनलों के अंडरवर्ल्ड से कुछ खबरें समेटी है आपके लिए और साथ में इस हफ्ते की रिपोर्ट के तहत एक खूबसूरत ग्राउंड रिपोर्ट भी है आपके लिए. तो देखिए और अफनी राय दीजिए. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना मत भूलिए.
महान दार्शनिक, समाज सुधारक कबीरदास का उलटबांसी वाला एक भजन बहुत मशहूर है- बूझो पंडित अमृतवाणी, बरसे कंबल भीजै पानी. बीते हफ्ते उलटबासियों की पूरी रेलगाड़ी खबरिया चैनलों पर दौड़ी. अमेरिका में लोकतंत्र पर हुए हमले की आड़ लेकर अखंड भक्तिरस और प्रचंड राष्ट्रवाद की खुमारी में डूबे एंकर एंकराओं ने जो-जो दावे किए उससे साबित हुआ कि उनका इतिहासबोध कच्चा है और सामान्य ज्ञान उससे भी कच्चा. तो हमने सोचा कि एंकर एंकराओं के ज्ञानवर्धक शो के बाद क्यों न भारत और अमेरिका में लोकतंत्र की यात्रा के कुछ जरूरी पड़ावों का पुनर्पाठ कर लिया जाय.
दीपक चौरसिया को लगता है कि भारत दुनिया का प्राचीनतम लोकतंत्र है. लेकिन लोकतंत्र के इतिहास को दुनिया ने अमेरिकी लोकतंत्र के नजरिए से ही जाना है. वह बाकियों से बीस क्यों है उसके लिए इतिहास को खंगालना पड़ेगा. हमने टिप्पणी के इस अंक में इसकी कोशिश की कि आपको लोकतंत्र की यात्रा की एक तस्वीर दिखाई जाय.
अमेरिका का लोकतंत्र 230 साल का पुख्ता परिपक्व हो चुका है. उस लिहाज से भारत का लोकतंत्र अभी जवानी की दहलीज पर है. भारत 1947 में आज़ाद हुआ. 1950 में हमारा संविधान लागू हुआ. भारत की महानता यह थी कि इसने पहली ही बार में अपनी जनता को यूनिवर्सल वोटिंग का अधिकार दिया. अपने संविधान के जरिए कुछ मूल अधिकार दिए. 1952 में भारत के पहले चुनाव हुए और सही मायनों में तब जाकर यह एक पूर्ण लोकतंत्र बना.
दीपक चौरसिया और उनके जैसे तमाम एंकर एंकराओं की जानकारी के लिए भारत का संविधान दुनिया के तमाम पश्चिमी देशों के संविधान की अच्छी बातों को समाहित करके बना है. जिस अमेरिकी लोकतंत्र का मखौल भारतीय चैनलों पर उड़ाया जा रहा है उसके तमाम प्रावधान भारतीय संविधान की प्रेरणा बने, खासकर दलितों, आदिवासियों को मिले अधिकार.
अंग्रेजी का एक शब्द है कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट, यानि हितों का टकराव. इन दिनों यह पत्रकारिता से लेकर न्यायपालिका, राजनीति, व्यापार और खेल, हर जगह दिख जाता है. इस अंक में हमने इसी तरह के दो वाकयों की बात की है.
हितों के टकराव के अलावा भी हमने खबरिया चैनलों के अंडरवर्ल्ड से कुछ खबरें समेटी है आपके लिए और साथ में इस हफ्ते की रिपोर्ट के तहत एक खूबसूरत ग्राउंड रिपोर्ट भी है आपके लिए. तो देखिए और अफनी राय दीजिए. न्यूज़लॉन्ड्री को सब्सक्राइब करना मत भूलिए.
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