Newslaundry Hindi
हिंदू आईटी सेल: वह व्यक्ति जो भगवानों की रक्षा के लिए ऑनलाइन आए
साल 2020 की गर्मियों में, जब भारत में कोविड-19 महामारी को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगा हुआ था, तब मोदी सरकार ने कुछ पुरानी यादें ताजा करने का निश्चय किया- उन्होंने दूरदर्शन को 90 के दशक के हिंदू महाकाव्यों पर आधारित दो प्रसिद्ध टीवी सीरियल रामायण और महाभारत को दोबारा से प्रसारित करने का हुक्म दिया. सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि ऐसा जनता की मांग पर किया जा रहा है. लेकिन इन प्रसारणों ने पुरानी यादों को ही नहीं कुछ और चीजों को भी जन्म दिया.
मुंबई के 39 वर्षीय स्वघोषित "दक्षिणपंथी आंदोलनकारी" रमेश सोलंकी ने यह दावा किया, “इन प्रसारणों ने सोशल मीडिया पर ऐसे पेजों और खातों की सुनामी ला दी जिन्होंने हिंदू देवी-देवताओं को ऑनलाइन गाली देना शुरू कर दिया."
इसीलिए रमेश और 10 अन्य व्यक्तियों ने "चिंतित हिंदू स्वयंसेवियों" के रूप में इंटरनेट के जरिए भगवानों की रक्षा के लिए साथ आने का निश्चय किया. उनके अपनी तरह के "आंदोलन" में कानून की शक्ति का प्रयोग कर, मई 2020 में उन्होंने अपने आप को, "हिंदू आईटी सेल" के रूप में ऑनलाइन घोषित किया.
उनकी ट्विटर पोस्ट ने घोषित किया, "हिंदुओं से नफरत करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. हम दोहराते हैं कि इनमें से किसी को भी कानूनी तौर पर बख्शा नहीं जाएगा. अगर आप इन गुस्ताखों की शिकायत कर इन्हें जिंदगी भर का सबक सीखाना चाहते हैं, तो हमारे स्वयंसेवियों से संपर्क करें."
उन्होंने औरों को भी अपने साथ जोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया, "आपका खाता छोटा हो या बड़ा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर आप धर्म के लिए आगे बढ़कर कुछ करना चाहते हैं तो आप हमारे सदस्य बन सकते हैं."
उनका कहना था कि समूह में आने के लिए स्वयंसेवी की "विचारधारा कट्टर" होनी चाहिए. उन्होंने कम से कम "हिंदू हित" के लिए एक कानूनी शिकायत या मुकदमा दर्ज कराया हो. उन्होंने ऑनलाइन गाली गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल न किया हो और "दूसरे RW (राइट विंग) को निशाना न बनाया हो", जिसका मतलब शायद दूसरे दक्षिणपंथियों से हो.
दावे के अनुसार उनका उद्देश्य, उन सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ कानूनी शिकायत करना और फिर पुलिस पर उनके खिलाफ कार्यवाही करने के लिए दबाव बनाना था, जिन्होंने इनके विचार से हिंदू विरोधी बातें की थीं. इस काम को अंजाम देने के लिए यह लोग वकीलों और इंटरनेट स्वयंसेवियों की एक टीम के साथ काम कर रहे थे.
चाहे आप उनके काम को पसंद करें या ना करें, लेकिन आईटी सेल के काम की यह परिभाषा देखकर लगता है कि यह नियम कानूनों के दायरे में किए जाने वाला साधारण सा काम है. परंतु क्रियान्वयन में ऐसा नहीं है.
उनकी कानूनी प्रक्रिया के साथ-साथ विश्व अमन करने वाली ट्रोलिंग की एक आंधी भी आती है जो उनके द्वारा निशाना बनाए गए लोगों को ही निशाना बनाती है.
हिंदू आईटी सेल अपने नेटवर्क के स्वयंसेवियों को किसी निशाने को पहचानने और उसके बारे में पता लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. हमें इसके सबूत मिले, वह ऐसा उन लोगों से व्यक्तिगत तौर पर या फोन पर संपर्क बनाकर रखते हैं जो उनके द्वारा निशाना बनाए जा रहे व्यक्ति को व्यक्तिगत या कामकाज के जरिए जानते हों, इसमें उनकी काम करने की जगह भी शामिल है. यह लोग येन केन प्रकारेण, किसी भी तरह उन्हें अपने निशाने के खिलाफ कोई कदम उठाने के लिए मजबूर करते हैं. और बिना किसी अपवाद के, एक सुनियोजित, घटिया स्तर की गाली गलौज से भरी ट्रोलिंग शुरू हो जाती है.
आईटी सेल के संस्थापक व्यक्तिगत तौर पर अपने को इंटरनेट पर होने वाली ट्रोलिंग से दूर रखते हैं लेकिन जिस ऑनलाइन तंत्र का वह हिस्सा हैं, वह निशाना बनाए गए व्यक्ति के साथ ऐसा करने का विरोध ना करके उसका संरक्षण ही करता है. तकनीकी तौर पर आईटी सेल से अपना पल्ला झाड़ सकता है.
जैसा कि कई मामलों में हुआ है अगर पुलिस इस आईटी सेल की शिकायतों पर कार्यवाही करती है, एफआईआर लिखती है, तो कानूनी प्रक्रिया की मंद गति यह पक्का कर देती है कि निशाना बनाया गया व्यक्ति सालों तक इसी प्रक्रिया में उलझा रहेगा.
उदाहरण के लिए दिल्ली के एक 26 वर्षीय पत्रकार सुष्मिता सिन्हा को ही देखें.
पिछले साल 20 अगस्त को, तीज के त्यौहार से कुछ दिन पहले जो भगवान शिव के द्वारा देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, सिन्हा ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो डाला.
सुष्मिता ने कहा कि यह त्यौहार उत्तर भारत में काफी मनाया जाता है और उस दिन पत्नियां अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं. सुष्मिता ने वीडियो में कहा, "इस व्रत के दौरान महिलाओं को पानी पीना भी मना होता है. अगर मैं ऐसा कहूं कि यह त्यौहार पुरुषवादी है और महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है, तो आप मुझे गालियां देंगे. लेकिन मुझे खुद कुछ कहने की जरूरत नहीं है. मैं केवल इस किताब का एक पन्ना पढ़ूंगी और आप खुद निर्णय ले सकते हैं." यह कहते वक्त सुष्मिता के हाथ में दिल्ली के कमल पुस्तकालय प्रकाशन से प्रकाशित हरितालिका तीज व्रत कथा की किताब थी.
उन्होंने किताब से पढ़ा- जो दावा करती है कि अगर महिला तीज के दिन व्रत नहीं रखेगी तो वह गरीब, अछूत, लड़ाकू, दरिद्र और दुखी महिला बन जाएगी. सुष्मिता ने यह भी जिक्र किया कि व्रत कथा के अनुसार अगर महिला कुछ खाती है तो खाई गई चीज के हिसाब से किसी जानवर में बदल जाएगी.
इतना पढ़ने के बाद उन्होंने अपने दर्शकों से पूछा कि क्या वह इसे पुरुषवादी समझते हैं या नहीं. उन्होंने पूछा कि क्या किताब महत्वहीन है जिसका केवल टिशू या टॉयलेट पेपर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
सुष्मिता के दो मिनट और 20 सेकेंड के वीडियो पर हिंदू आईटी सेल के लोग झपट पड़े. उनके सदस्य जिनके पीछे पीछे बड़ी संख्या में ट्रोलर्स आ गए, इन सभी में सुष्मिता का केवल 17 सेकंड का वीडियो क्लिप शेयर किया जिसमें वह किताब को टिशू पेपर की तरह इस्तेमाल करने की बात कर रही थीं. उस क्लिप को इस तरह से काटा गया था कि केवल टिशू पेपर की तरह इस्तेमाल की जाने वाली बात दिखाई दे, इसके बाद यह क्लिप वायरल हो गई.
पलक झपकते ही सुष्मिता ऑनलाइन होने वाली निर्मम ट्रोलिंग का शिकार बन गई जो आईटी सेल और उसके सदस्य सम्मिलित तौर पर शुरू करा सकते हैं.
हिंदू आईटी सेल ने अपने टेलीग्राम चैनल जिसके 3000 से ज्यादा फॉलोअर हैं, उसमें यह वीडियो 26 अगस्त 2020 को शेयर किया जिससे इसे और फैलाया जा सके. अभी तक इस वीडियो को 204832 बार देखा जा चुका है और इस पर 16.9 हजार कमेंट आ चुके हैं. सुष्मिता के खिलाफ कानूनी शिकायत करने की मांग खुलकर की गई और इसमें मदद करने के लिए शिकायत का एक ड्राफ्ट भी वितरित किया गया. जिन्होंने आगे आकर शिकायतें लिखवाईं, उन्हें ट्विटर पर "योद्धा" घोषित किया गया और उनके फॉलोअर बढ़ाए गए.
कई तथाकथित हिंदुत्ववादी वेबसाइटों ने आईटी सेल के ट्वीट को उठा लिया और सुष्मिता के खिलाफ कई भड़काऊ लेख लिखें, उनके व्यक्तिगत फोटों, पति और संबंधों पर उल्टी सीधी टिप्पणियों की बाढ़ ला दी. इस सब के बाद एक हिंदी समाचार चैनल ने उनके ऊपर 1 घंटे का डिबेट शो, बिना पूरा वीडियो दिखाए और सुष्मिता के स्पष्टीकरण के चलाया.
इसके बाद दिन पर दिन ट्रोलिंग बढ़ती ही गई. उन्हें बलात्कार हत्या और उनके ऊपर तेजाब फेंकने की धमकियां दी गईं. उनके परिवार का भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया. उनके काम करने वाले संस्थान को भी इसके लिए घेरा गया.
सुष्मिता ने बताया, "हिंदू आईटी सेल के स्वयंसेवियों ने मेरे दोस्त को फोन किया और उसे मजबूर किया कि वह उन्हें मेरा पता बताए. उन्होंने उसे बोला कि वह मुझे व्यक्तिगत तौर पर समझाना चाहते थे. मैं इन हाशिए पर रहने वाले लोगों से इतना आतंकित महसूस कर रही थी कि मैंने अपना दिल्ली वाला घर छोड़ दिया."
सुष्मिता के खिलाफ आईटी सेल के अभियान को समर्थन और आवाज़, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा से भी मिली. उन्होंने भी ट्विटर पर सुष्मिता की आलोचना की जिसके बाद #ArrestSushmitaSinha ट्विटर इंडिया पर ट्रेंड होने लगा.
सुष्मिता याद करते हुए कहती हैं, "उस ट्विटर के बाद मेरा दिल ही बैठ गया. मुझे विश्वास हो गया था कि अब तो मैं गिरफ्तार हो ही जाऊंगी. मैं बिल्कुल अकेली पड़ गई थी, यह जो हो रहा था उसमें तिल का ताड़ बनाया जा रहा था."
यह विषाक्त ट्रोलिंग चालू रहा जब तक आईटी सेल को 7 सितंबर को अपना नया निशाना नहीं मिल गया, जो एथिइस्ट रिपब्लिक ग्रुप के अर्मिन नवाबी थे, जो अपने नास्तिक होने का खुलकर प्रदर्शन करते हैं.
नवाबी ने एक हिंदू देवी, काली का एक कार्टून उन्हें सेक्सी कहकर शेयर किया था. उनके खिलाफ भी इसी तरह तेजी से बहुत सी शिकायतें दाखिल कर दी गईं.
सुष्मिता के खिलाफ दर्ज की गई शिकायतों ने कुछ खास असर नहीं दिखाया, 6 महीने बाद भी पुलिस ने अभी तक एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की है.
सुष्मिता दबी आवाज में फोन पर बताती हैं, "लेकिन इस घटना ने मेरा आत्मविश्वास चूर-चूर कर दिया. मैं आज भी डरी हुई हूं. इस घटना ने मेरे जीवन पर हमेशा के लिए छाप छोड़ दी है."
सुष्मिता का मामला इस तरह का इकलौता मामला नहीं है.
आईटी सेल के संस्थापकों के अनुसार, सेल ने मई 2020 से करीब 500 से ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई हैं. वह अब इंडियन ट्रस्ट एक्ट के अंतर्गत एक पंजीकृत संस्था है. 11 स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुई यह संस्था अब 200 से ज्यादा सक्रिय स्वयंसेवियों के होने का दावा करती है.
इनके निशाने पर पत्रकार, वकील और एक्टिविस्ट रहे हैं.
(इस लेख को लिखने वालों में से एक पत्रकार वह भी हैं जिन्हें उनके ट्वीट के लिए निशाना बनाया गया, उनकी आपबीती यह है)
संस्थापक
हिंदू आईटी सेल के जनक रमेश सोलंकी और विकास पांडे हैं.
रमेश अपने को अपने ट्विटर के परिचय में "बहुत गर्वशाली राष्ट्रवादी हिंदू" बताते हैं. वह एक इंडियन राजपूत के नाम से ब्लॉक भी चलाते हैं जिसका विचार विडंबना से परे नहीं है, "सुख का रहस्य आज़ादी है और आज़ादी का रहस्य साहस."
रमेश 1998 में शिवसेना के सदस्य बने थे और वर्षों तक उसकी आईटी सेल से जुड़े रहे. उन्होंने शिवसेना को 2019 में छोड़ा जब शिवसेना ने अपने एक समय के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई. वह अपने हिंदुत्व के लक्ष्य को नहीं छोड़ सके जैसा कि उन्होंने विकास के साथ दिए गए एक इंटरव्यू में समझाया. उनका पूरा इंटरव्यू आप यहां पढ़ सकते हैं.
शिवसेना को छोड़ने के कारणों को समझाते हुए एक ट्विटर ट्रेंड में उन्होंने एक हिंदी कहावत का उल्लेख किया, "डूबते जहाज से चूहे सबसे पहले कूदते हैं." यह समझना मुश्किल है कि क्या वह अपने बारे में बात कर रहे थे या किसी और के.
गोरखपुर के रहने वाले विकास पहले भारतीय जनता पार्टी की आईटी सेल से जुड़े थे और 2014 के आम चुनावों में उन्होंने कई सोशल मीडिया अभियानों को चलाने में मदद की थी. 17 नवंबर 2020 को उन्होंने फेसबुक पर फोटो डाली जिसमें उनके बेटे प्रधानमंत्री मोदी के साथ थे. विकास अक्सर सोशल मीडिया पर भाजपा के कई मंत्रियों और प्रधानमंत्री से अपने व्यक्तिगत संबंधों का बखान करते हैं.
हिंदू आईटी सेल के अलावा वह ट्विटर पर एक खाता मोदी के समर्थन में चलाते हैं.
एक ऑनलाइन इंटरव्यू में रमेश याद करते हैं कि सब कैसे शुरू हुआ. वे कहते हैं, "लॉकडाउन के दौरान महाभारत और रामायण के प्रसारित होने के बाद, ऑनलाइन हिंदू देवी देवताओं को दी जाने वाली गालियों मैं बहुत बढ़ोतरी हुई. उसके बाद विकास ने मुझे फोन किया और कहा कि हमें इस बारे में कुछ करना चाहिए. मैं जानता हूं कि लोगों की मुझसे बड़ी उम्मीदें हैं पर मेरी भी सीमाएं हैं. मैं हमारे धर्म के खिलाफ बोलने वालों के खिलाफ 100 से ज्यादा शिकायतें कर चुका हूं. विमर्श के बाद विकास और मैंने यह निश्चय किया कि हम अपने धर्म के लिए कानूनी तौर पर लड़ने के लिए एक सी सोच वाले व्यक्तियों को इकट्ठा करेंगे. हिंदू आईटी सेल का जन्म ऐसे हुआ."
रमेश ने कई टिकटॉक चलाने वालों, नेटफ्लिक्स इंडिया और अभिनेताओं के खिलाफ बहुत सीएफआईआर दर्ज कराई हैं, जिनके बनाए गए कंटेंट को हिंदू विरोधी कहकर बहिष्कृत करते हैं.
वे नेटफ्लिक्स को निशाना बनाने को याद करते हैं, "मेरा लक्ष्य भारत में बॉयकॉट नेटफ्लिक्स को 1 दिन में ढाई हजार ट्वीट करा कर ट्रेंड कराना था. मैं इस काम में सुबह 8:00 बजे से लगा और 1 घंटे के भीतर ही 70 से 80000 ट्वीट हुए और यह पूरी दुनिया में ट्रेंड करने लगा."
काम का तरीका
रमेश समझाते हैं कि नेटवर्क कैसे काम करता है. वे अपने स्वयंसेवियों का संदर्भ देते हुए कहते हैं, "जो भी कोई हिंदू विरोधी चीज देखता है तो वह आकर हमें उसमें टैग कर देते हैं. हम उन पोस्ट को अपने मुख्य टीम के पास ले जाते हैं और उस पर रिसर्च शुरू करते हैं. क्या वह पोस्ट किसी सत्यापित खाते से की गई है? उस व्यक्ति की मंशा क्या है? आईटी सेल यह पड़ताल करती है कि उस खाते से कोई और पोस्ट भी हैं जो हिंदू विरोधी या राष्ट्र विरोधी हों. एक बार जब मुख्य टीम निर्णय ले लेती है कि हम इस मामले में आगे बढ़ना चाहते हैं तो फिर हम उस व्यक्ति की खोज खबर लेना शुरू करते हैं. हम लोगों को उनका पता, काम करने की जगह और उससे जुड़ी बाकी जानकारियां सोशल मीडिया पर भेजने के लिए कहते हैं."
रमेश आगे बताते हैं, "इसके बाद अगला कदम हमारे वकील उठाते हैं. बातचीत करके शिकायत की एक रूपरेखा तैयार करते हैं. जिसके ड्राफ्ट को स्वयंसेवियों के एक दूसरे ग्रुप में साझा किया जाता है जो शिकायत दर्ज कराने वाले हैं. हम उन्हें गृह मंत्रालय की साइबर सेल के संपर्क और उस व्यक्ति का पता भेजते हैं. जब 20-30 लोग ऑनलाइन या खुद जाकर शिकायतें दर्ज करा देते हैं तो फिर हम उनके स्क्रीनशॉट को ट्विटर पर डाल देते हैं. हम अपने फॉलोअर्स को शिकायत करने वालों को भी फॉलो करने के लिए कहते हैं."
रमेश कहते हैं, "इसके बाद कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है. साइबर क्राइम की वेबसाइट से शिकायत स्थानीय पुलिस चौकी पर पहुंचती है जिसके बाद पुलिस हमारे स्वयंसेवियों को उनका बयान लेने के लिए फोन करती है. हमारे प्रेम से भी पुलिस पर एफआईआर दर्ज करने के लिए दबाव बनाते हैं. पहले ट्वीट से लेकर एफआईआर तक हमारे सदस्य उन पर निगरानी रखते हैं. हम यह पक्का करते हैं कि वह व्यक्ति गिरफ्तार हो और कम से कम जेल तो जाए."
शिकार बने लोग
जुलाई 2020 में एक स्टैंड अप कॉमेडियन अग्रिमा जोशुआ अपने एक पुराने वीडियो के लिए ट्रोल की गई जिसमें उन्होंने छत्रपति शिवाजी की एक प्रस्तावित प्रतिमा की बात की थी. उसका वीडियो हिंदू आईटी सेल ने ही चिन्हित किया था.
दीपिका राजावत जिन्होंने कठुआ बलात्कार और हत्या के मामले को थोड़े समय देखा था, उन्हें आईटी सेल ने अक्टूबर 2020 में "हिंदू विरोधी" घोषित कर दिया. उनके द्वारा साझा किया गया बलात्कार के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाले पोस्टर को नवरात्रि के अपमान की तरह गलत तौर पर पेश किया गया. 21 अक्टूबर 2020 को दीपिका को सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगानी पड़ी जब उनके घर के बाहर रात में भीड़ इकट्ठा हो गई. आईटी सेल की ट्रोलिंग के द्वारा भड़काई गई यह भीड़ चिल्ला रही थी, "दीपिका तेरी कब्र खुदेगी."
अपने भयभीत कर देने वाले अनुभव को याद करके दीपिका कहती हैं, "मैं यह ऑन रिकॉर्ड कहना चाहती हूं कि स्थानीय पुलिस अधिकारी जिसने मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज की उसने मुझे साफ शब्दों में बताया कि वह ऐसा आईटी सेल के दबाव की वजह से कर रहा था." हम इस बात की पुष्टि स्वतंत्रत तौर पर नहीं कर पाए हैं.
दिल्ली में रहने वाले एक पत्रकार साकेत कुमार जो दलित समाज के सामने आने वाली परेशानियों की बात करते हैं उन्हें हिंदू देवता हनुमान पर की गई टिप्पणियों की वजह से आईटी सेल ने ट्रोल किया.
वे कहते हैं, "मेरे खिलाफ सुनियोजित रूप से चलाया गया वह नफरती अभियान एक हफ्ते तक चला. वह केवल मेरे ही नहीं मेरी गर्लफ्रेंड के पीछे भी आए. उन्हें जो मिल सका चाहे वह मेरे व्यक्तिगत संबंध हो या काम करने की जगह, सभी को निशाना बनाया. मैं अभी भी उस आघात से उबर नहीं पाया हूं."
अग्रिमा जिन्हें बलात्कार तक की धमकियां मिली ट्रोलिंग को एक टीडी दल के हमले की तरह परिभाषित करती हैं.
ट्रोलिंग सोशल मीडिया पर होने का एक हिस्सा है, परंतु निशाना बनाकर और सुनियोजित ढंग से की गई हिंदू आईटी सेल की ट्रोलिंग इसको बहुत भयानक बना देती है.
उदाहरण के लिए यूट्यूब पर हनुमान मनमोहन को देखें, जो आईटी सेल के द्वारा निशाना बनाए गए लोगों को रोल करते हुए एक गाली गलौज से भरे वीडियो बनाते हैं.
जब हमने रमेश से इस ट्रोलिंग के बारे में पूछा, जो उनके द्वारा निशाना बनाए जाने के बाद किसी व्यक्ति को झेलनी पड़ती है, तो उन्होंने अपने को और संस्था को उस से पृथक रखा. लेकिन उसे न्यायसंगत ठहराया.
उन्होंने कहा, "हम इस ट्रोलिंग की निंदा करते हैं लेकिन यह लोग विक्टिम कार्ड खेलते हैं.”
अग्रिमा के मामले के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, "उन्हें अच्छे से पता था वह क्या कर रही हैं, इसके बावजूद उन्होंने वह किया और फिर बाद में विक्टिम कार्ड और राजनीति खेली."
जब उनसे सीधे तौर पर पूछा गया की वह हिंदू आईटी सेल के बाद निशाना बनाए जाने पर किसी के साथ होने वाली ट्रोलिंग को किस प्रकार से देखते हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया, "जब वह हिंदुओं को गाली देते हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया भी होती है. हर कोई महात्मा गांधी का रास्ता नहीं पकड़ता, कोई भगत सिंह का भी पकड़ सकता है. यही मुनव्वर फारूकी के साथ भी हुआ."
मुनव्वर फारूकी एक स्टैंड अप कॉमेडियन है जिसे मध्यप्रदेश के इंदौर में नए साल के दिन कथित तौर पर हिंदू देवताओं को अपमानित करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि वहां उन्होंने शो किया भी नहीं था. उच्चतम न्यायालय से जमानत मिलने से पहले उन्होंने 1 महीने से ज्यादा समय जेल में बिताया.
गौर करने लायक बात है कि रमेश ने अप्रैल 2020 में मुनव्वर फारुकी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, उनके गिरफ्तार होने से करीब 8 महीने पहले.
रमेश चेतावनी देते हैं, "अगर आपको लगता है आप किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं और लोग उसके लिए तालियां बजाएंगे, तो यह सही नहीं है. जब आप बेज्जती करते हैं या मखौल उड़ाते हैं तो आपको याद रखना चाहिए कि इसके परिणाम भी हो सकते हैं. अगर आप हमारे भगवानों को गाली नहीं देंगे तो आप ट्रोल भी नहीं होंगे. साफ सी बात है. उन्हें जो गालियां मिल रही हैं और टोल हो रहे हैं यह उन्हीं के कर्मों का फल है, हमारे नहीं. हम अच्छे लोगों को निशाना नहीं बनाते. हम उन्हें निशाना बनाते हैं जो हिंदुओं को, हिंदुत्व को और भारत को निशाना बना रहे हैं."
उन्होंने जोर देकर ट्रोलिंग को न्याय संगत बताते हुए कहा, "गलती उन्हीं की है. हम मदद नहीं कर सकते."
कानूनी असफलता
बोलने की आजादी की इच्छा और उस पर धार्मिक भावनाओं को आहत ना करने से बचाने के लिए लगाई गईं तरह तरह की पाबंदियों के बीच की खींचतान देश में दशकों से चली आ रही है. कई लोग या समूह किसी न किसी धर्म के रक्षक बनकर सार्वजनिक मंचों और अदालतों दोनों को ही बोलने की आजादी पर पाबंदियां लगाने के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं.
भारत का संविधान बोलने की आजादी नागरिकों को प्रदान करता है लेकिन वह सरकार को भी यह हक देता है कि वह उस पर "तर्कसंगत पाबंदियां" लगा सके. यह पाबंदियां भारतीय कानून संहिता में दो खास कानूनों में परिभाषित होती हैं जो किसी भी धर्म जाति भाषा के बिना पर नफरत फैलाने वाले को रोकने और सजा देने के लिए बनाई गई हैं.
हिंदू आईटी सेल के द्वारा कानूनी तौर पर लोगों को निशाना बनाने की प्रक्रिया मुख्यतः भारतीय कानून संहिता की धारा 153a और 295a पर टिकी है. आईटी सेल के स्वयंसेवी अक्सर इन धाराओं कि बिना पर ही अपनी शिकायतें दर्ज कराते हैं.
गौतम भाटिया जो एक अधिवक्ता हैं यह समझाते हैं कि भारतीय कानून संहिता की धारा 295a "ब्लॉस्फेमी कानून का ही एक प्रारूप है", ब्लास्फेमी का अर्थ ईश-निंदा होता है. धारा 295ए किसी भी नागरिक के धर्म या धार्मिक भावनाओं के अपमान की सजा देने के लिए है, अगर वह अपमान जानबूझकर और उस समूह विशेष की धार्मिक भावनाएं आहत करने की बुरी मंशा से किया गया है.
यह एक ऐसा अपराध है जिसका संज्ञान पुलिस स्वयं ले सकती है जिसका मतलब कि पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है.
धारा 153ए ऐसे व्यक्ति को सजा देने के लिए बनी है "जो धर्म, जाति, जन्म स्थान, घर, भाषा आदि चीजों का इस्तेमाल अलग-अलग समूहों में नफरत पैदा करने और शांति भंग करने वाले कामों को करने के लिए करता है." यही धारा सार्वजनिक तौर पर नफरत फैलाने वाली भाषा के लिए भी इस्तेमाल की जाती है.
धारा 295ए का सत्यापन उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की बेंच ने भी किया है. इसका मतलब है कि उसे संवैधानिक मान्यता प्राप्त है और भाटिया की नजर में अब उसकी समीक्षा 7 जज वाली बेंच ही कर सकती है, जो एक दुर्लभ संभावना है.
हालांकि 1957 की 5 जजों की बेंच के निर्णय के बाद अदालतों ने ब्लॉस्फेमी कानून के इस भारतीय प्रारूप पर निर्णय लेने में नियमितता नहीं दिखाई है.
उच्चतम न्यायालय के कुछ आदेश आए हैं जिन्होंने इन धाराओं के इस्तेमाल पर कुछ बंदिशें लगाई है.
संविधान में दी गई बोलने की आजादी जो संविधान के अनुच्छेद 19ए में सबको मिलती है उसे दोहराते हुए उच्चतम न्यायालय ने कई बार इन दो धाराओं के दुरुपयोग को रेखांकित किया है. क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के द्वारा उन पर धारा 295ए के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले में निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनजाने में और गलती से हुई धर्म की इन "बेज्जतियों" पर कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह कानून के दुरुपयोग से कम नहीं होगा. धोनी के ऊपर मामला इसलिए दर्ज हुआ था क्योंकि सन 2013 में एक बिजनेस मैगजीन के कवर पर उन्हें भगवान विष्णु की तरह दिखाया गया था.
धारा 153ए को लेकर न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में यह निर्णय दिया था कि इस धारा के अंदर मामला दर्ज करने के लिए आरोपी की ओर से बुरा फैलाने की नियत और हरकत के पीछे सोचे समझे निर्णय का होना जरूरी है.
लेकिन हिंदू आईटी सेल के भुक्तभोगियों को कानून की न्यायिक व्याख्या ही परेशान नहीं करती, बल्कि भारत की न्याय व्यवस्था की मंद गति और ट्रोलिंग ही कभी-कभी बड़े खतरे में बदल जाती हैं.
अभिनव सेखरी, एक अधिवक्ता जो इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के साथ बोलने की आजादी के मामलों पर काम कर रहे हैं, समझाते हैं, "इन नफरत के अपराधों में यह आरोप लगाया जाता है कि किसी कार्य से धार्मिक भावनाएं आहत हुई है. केवल इसे जांच रहे थे और साक्ष्य रहित आरोप पर ही किसी व्यक्ति को जमानत के हक के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है क्योंकि इन अपराधियों का संज्ञान पुलिस खुद ले सकती है और यह गैर जमानती है. यहीं पर से गड़बड़ और प्रताड़ना शुरू हो जाती है. इसीलिए महेंद्र सिंह धोनी जैसे लोग भी सुरक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय की ओर दौड़ते हैं, क्योंकि हमारी न्यायिक व्यवस्था किसी को केवल आरोपों के बिना पर ही जेल भेजने देती है, और कानूनी प्रक्रिया की धीमी गति अनावश्यक और अनुच्छेद कारावास सुनिश्चित कर देती है. इन शुरुआती परिस्थितियों में, पुलिस किसी अपराध की मानसिक पृष्ठभूमि को कैसे जांचेगी या वह साबित होगा भी या नहीं, यह बात बाद के लिए रहती है."
प्रदीप कुमार के मामले में हिंदू आईटी सेल ने कम से कम 6 शिकायतें की हालांकि उनमें से एक भी एफआईआर में नहीं बदली. और भी कई मामलों में शिकायतें कानूनी मापदंडों पर खरी नहीं उतरीं.
दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील मुकेश शर्मा जो आईटी सेल के कानूनी सलाहकार की भूमिका भी अदा करते हैं, ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा, "पुलिस स्टेशनों में करीब 50-60 शिकायतें ऐसी लंबित हैं जिन्हें वह एफआईआर में नहीं बदल रहे. ऐसे मामले में हम उनके वरिष्ठ अधिकारियों से सलाह करते हैं, या तो एसएचओ या डीसीपी, और उन्हें संज्ञान लेने के लिए प्रेरित करते हैं. अगर वह भी ऐसे ही करते तो हम स्थानीय अदालत में धारा 156(3) के अंतर्गत अपील दायर करते हैं."
सीआरपीसी की धारा 156(3) एक मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वह पुलिस को किसी शिकायत की जांच करने का आदेश दे सके.
वे समझाते हैं, "सुष्मिता सिन्हा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. दिल्ली पुलिस ने संज्ञान नहीं लिया जिसके बाद मैंने साकेत न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी."
सुष्मिता याद करते हुए कहती हैं, "हिंदू आईटी सेल ने मेरे खिलाफ गोविंदपुरी थाने में शिकायत दर्ज की लेकिन एसएचओ ने एफआईआर लिखने से मना कर दिया. बाद में मेरे खिलाफ शिकायत की. अदालत ने पुलिस को इस मामले में अपनी कार्यवाही की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा. पुलिस ने बताया कि मेरे खिलाफ कोई मामला नहीं बनता. उसके बाद हिंदू आईटी सेल ने उसको भी चुनौती दी लेकिन अक्टूबर में इस मामले की सुनवाई की तारीख को वह अदालत में उपस्थित नहीं हुए."
'धर्म के लिए'
हिंदू आईटी सेल शुरू करने वालों ने अपना किसी भी राजनीतिक दल से संबंध होने से इनकार यह कहकर किया कि वह केवल "राष्ट्रवाद और हिंदू धर्म" के लिए ही हैं. लेकिन फिर भी वह अक्सर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से मिलते रहते हैं. पिछले साल वह भाजपा नेता कपिल मिश्रा के साथ दीपावली मनाने के एक अभियान की शुरुआत कर रहे थे जो नए नागरिकता कानून के अंतर्गत इंतजार कर रहे हिंदू शरणार्थियों के साथ मनाया जा रहा था. कपिल मिश्रा पर 2020 के दिल्ली दंगों को भड़काने का आरोप लगाया जाता है.
अगस्त 2019 में गृह मंत्रालय ने आईटी सेल के सदस्यों जैसे "साइबर क्राइम स्वयंसेवी, जो गैरकानूनी कंटेंट को चिन्हित करते हैं" को ऑनलाइन "आतंकवाद, कट्टरवाद और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों" को चिन्हित करने और उन्हें राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिर्पोटिंग पोर्टल पर रिपोर्ट करने के लिए आमंत्रित किया था.
रमेश गृह मंत्रालय के कदम को सही बताते हुए यह सवाल पूछते हैं, "सरकार अकेली कितना कर सकती है. जागरूक नागरिक होने के नाते हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं. हालांकि हमारा गृह मंत्रालय से कोई संबंध नहीं, लेकिन हम उन्हें शिकायत करते हैं." उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि आईटी सेल शिकायतें दर्ज करने के लिए राष्ट्रीय साइबर क्राईम रिर्पोटिंग पोर्टल का इस्तेमाल करती रही है.
नवंबर 2020 में मंत्रालय ने राज्यों को नेशनल साइबर क्राईम रिर्पोटिंग पोर्टल पर आई शिकायतों की समीक्षा करने और उन पर आधारित एफआईआर दर्ज करने के लिए लिखा. मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार पोर्टल पर दर्ज की गई शिकायतों में से केवल 2.5 प्रतिशत ही एफआईआर में परिवर्तित की गई हैं.
अपने कार्यों को सही ठहराते हुए रमेश ने कहा, "यह किसी के बाप का बगीचा थोड़ी ना है जो आप घूम के चले जाओ. अगर आप अपमान करोगे, किसी को उंगली करोगे, तो देन यू हेव टु फेस इट."
उन्होंने यह भी कहा, "हमारे देश में बोलने की आजादी है, ऐसा संविधान में लिखा है, लेकिन उसकी भी सीमा है. अगर मैं आपको थप्पड़ मारूं तो क्या वह बोलने की आजादी है?"
"बहुत ही महीन रेखा है. एक बार आप उसे लांघें हैं तो वह अपराध है."
"वैसे भी हम यह सब कानूनी तौर पर कर रहे हैं."
सृष्टि जसवाल और श्रीगिरीश जालिहाल द रिपोर्टर्स कलेक्टिव से जुड़े हुए हैं.
साल 2020 की गर्मियों में, जब भारत में कोविड-19 महामारी को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन लगा हुआ था, तब मोदी सरकार ने कुछ पुरानी यादें ताजा करने का निश्चय किया- उन्होंने दूरदर्शन को 90 के दशक के हिंदू महाकाव्यों पर आधारित दो प्रसिद्ध टीवी सीरियल रामायण और महाभारत को दोबारा से प्रसारित करने का हुक्म दिया. सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा कि ऐसा जनता की मांग पर किया जा रहा है. लेकिन इन प्रसारणों ने पुरानी यादों को ही नहीं कुछ और चीजों को भी जन्म दिया.
मुंबई के 39 वर्षीय स्वघोषित "दक्षिणपंथी आंदोलनकारी" रमेश सोलंकी ने यह दावा किया, “इन प्रसारणों ने सोशल मीडिया पर ऐसे पेजों और खातों की सुनामी ला दी जिन्होंने हिंदू देवी-देवताओं को ऑनलाइन गाली देना शुरू कर दिया."
इसीलिए रमेश और 10 अन्य व्यक्तियों ने "चिंतित हिंदू स्वयंसेवियों" के रूप में इंटरनेट के जरिए भगवानों की रक्षा के लिए साथ आने का निश्चय किया. उनके अपनी तरह के "आंदोलन" में कानून की शक्ति का प्रयोग कर, मई 2020 में उन्होंने अपने आप को, "हिंदू आईटी सेल" के रूप में ऑनलाइन घोषित किया.
उनकी ट्विटर पोस्ट ने घोषित किया, "हिंदुओं से नफरत करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा. हम दोहराते हैं कि इनमें से किसी को भी कानूनी तौर पर बख्शा नहीं जाएगा. अगर आप इन गुस्ताखों की शिकायत कर इन्हें जिंदगी भर का सबक सीखाना चाहते हैं, तो हमारे स्वयंसेवियों से संपर्क करें."
उन्होंने औरों को भी अपने साथ जोड़ने के लिए प्रोत्साहित किया, "आपका खाता छोटा हो या बड़ा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. अगर आप धर्म के लिए आगे बढ़कर कुछ करना चाहते हैं तो आप हमारे सदस्य बन सकते हैं."
उनका कहना था कि समूह में आने के लिए स्वयंसेवी की "विचारधारा कट्टर" होनी चाहिए. उन्होंने कम से कम "हिंदू हित" के लिए एक कानूनी शिकायत या मुकदमा दर्ज कराया हो. उन्होंने ऑनलाइन गाली गलौज वाली भाषा का इस्तेमाल न किया हो और "दूसरे RW (राइट विंग) को निशाना न बनाया हो", जिसका मतलब शायद दूसरे दक्षिणपंथियों से हो.
दावे के अनुसार उनका उद्देश्य, उन सोशल मीडिया इस्तेमाल करने वालों के खिलाफ कानूनी शिकायत करना और फिर पुलिस पर उनके खिलाफ कार्यवाही करने के लिए दबाव बनाना था, जिन्होंने इनके विचार से हिंदू विरोधी बातें की थीं. इस काम को अंजाम देने के लिए यह लोग वकीलों और इंटरनेट स्वयंसेवियों की एक टीम के साथ काम कर रहे थे.
चाहे आप उनके काम को पसंद करें या ना करें, लेकिन आईटी सेल के काम की यह परिभाषा देखकर लगता है कि यह नियम कानूनों के दायरे में किए जाने वाला साधारण सा काम है. परंतु क्रियान्वयन में ऐसा नहीं है.
उनकी कानूनी प्रक्रिया के साथ-साथ विश्व अमन करने वाली ट्रोलिंग की एक आंधी भी आती है जो उनके द्वारा निशाना बनाए गए लोगों को ही निशाना बनाती है.
हिंदू आईटी सेल अपने नेटवर्क के स्वयंसेवियों को किसी निशाने को पहचानने और उसके बारे में पता लगाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. हमें इसके सबूत मिले, वह ऐसा उन लोगों से व्यक्तिगत तौर पर या फोन पर संपर्क बनाकर रखते हैं जो उनके द्वारा निशाना बनाए जा रहे व्यक्ति को व्यक्तिगत या कामकाज के जरिए जानते हों, इसमें उनकी काम करने की जगह भी शामिल है. यह लोग येन केन प्रकारेण, किसी भी तरह उन्हें अपने निशाने के खिलाफ कोई कदम उठाने के लिए मजबूर करते हैं. और बिना किसी अपवाद के, एक सुनियोजित, घटिया स्तर की गाली गलौज से भरी ट्रोलिंग शुरू हो जाती है.
आईटी सेल के संस्थापक व्यक्तिगत तौर पर अपने को इंटरनेट पर होने वाली ट्रोलिंग से दूर रखते हैं लेकिन जिस ऑनलाइन तंत्र का वह हिस्सा हैं, वह निशाना बनाए गए व्यक्ति के साथ ऐसा करने का विरोध ना करके उसका संरक्षण ही करता है. तकनीकी तौर पर आईटी सेल से अपना पल्ला झाड़ सकता है.
जैसा कि कई मामलों में हुआ है अगर पुलिस इस आईटी सेल की शिकायतों पर कार्यवाही करती है, एफआईआर लिखती है, तो कानूनी प्रक्रिया की मंद गति यह पक्का कर देती है कि निशाना बनाया गया व्यक्ति सालों तक इसी प्रक्रिया में उलझा रहेगा.
उदाहरण के लिए दिल्ली के एक 26 वर्षीय पत्रकार सुष्मिता सिन्हा को ही देखें.
पिछले साल 20 अगस्त को, तीज के त्यौहार से कुछ दिन पहले जो भगवान शिव के द्वारा देवी पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है, सिन्हा ने इंस्टाग्राम पर एक वीडियो डाला.
सुष्मिता ने कहा कि यह त्यौहार उत्तर भारत में काफी मनाया जाता है और उस दिन पत्नियां अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए उपवास रखती हैं. सुष्मिता ने वीडियो में कहा, "इस व्रत के दौरान महिलाओं को पानी पीना भी मना होता है. अगर मैं ऐसा कहूं कि यह त्यौहार पुरुषवादी है और महिलाओं के अधिकारों के खिलाफ है, तो आप मुझे गालियां देंगे. लेकिन मुझे खुद कुछ कहने की जरूरत नहीं है. मैं केवल इस किताब का एक पन्ना पढ़ूंगी और आप खुद निर्णय ले सकते हैं." यह कहते वक्त सुष्मिता के हाथ में दिल्ली के कमल पुस्तकालय प्रकाशन से प्रकाशित हरितालिका तीज व्रत कथा की किताब थी.
उन्होंने किताब से पढ़ा- जो दावा करती है कि अगर महिला तीज के दिन व्रत नहीं रखेगी तो वह गरीब, अछूत, लड़ाकू, दरिद्र और दुखी महिला बन जाएगी. सुष्मिता ने यह भी जिक्र किया कि व्रत कथा के अनुसार अगर महिला कुछ खाती है तो खाई गई चीज के हिसाब से किसी जानवर में बदल जाएगी.
इतना पढ़ने के बाद उन्होंने अपने दर्शकों से पूछा कि क्या वह इसे पुरुषवादी समझते हैं या नहीं. उन्होंने पूछा कि क्या किताब महत्वहीन है जिसका केवल टिशू या टॉयलेट पेपर की तरह इस्तेमाल किया जा सकता है.
सुष्मिता के दो मिनट और 20 सेकेंड के वीडियो पर हिंदू आईटी सेल के लोग झपट पड़े. उनके सदस्य जिनके पीछे पीछे बड़ी संख्या में ट्रोलर्स आ गए, इन सभी में सुष्मिता का केवल 17 सेकंड का वीडियो क्लिप शेयर किया जिसमें वह किताब को टिशू पेपर की तरह इस्तेमाल करने की बात कर रही थीं. उस क्लिप को इस तरह से काटा गया था कि केवल टिशू पेपर की तरह इस्तेमाल की जाने वाली बात दिखाई दे, इसके बाद यह क्लिप वायरल हो गई.
पलक झपकते ही सुष्मिता ऑनलाइन होने वाली निर्मम ट्रोलिंग का शिकार बन गई जो आईटी सेल और उसके सदस्य सम्मिलित तौर पर शुरू करा सकते हैं.
हिंदू आईटी सेल ने अपने टेलीग्राम चैनल जिसके 3000 से ज्यादा फॉलोअर हैं, उसमें यह वीडियो 26 अगस्त 2020 को शेयर किया जिससे इसे और फैलाया जा सके. अभी तक इस वीडियो को 204832 बार देखा जा चुका है और इस पर 16.9 हजार कमेंट आ चुके हैं. सुष्मिता के खिलाफ कानूनी शिकायत करने की मांग खुलकर की गई और इसमें मदद करने के लिए शिकायत का एक ड्राफ्ट भी वितरित किया गया. जिन्होंने आगे आकर शिकायतें लिखवाईं, उन्हें ट्विटर पर "योद्धा" घोषित किया गया और उनके फॉलोअर बढ़ाए गए.
कई तथाकथित हिंदुत्ववादी वेबसाइटों ने आईटी सेल के ट्वीट को उठा लिया और सुष्मिता के खिलाफ कई भड़काऊ लेख लिखें, उनके व्यक्तिगत फोटों, पति और संबंधों पर उल्टी सीधी टिप्पणियों की बाढ़ ला दी. इस सब के बाद एक हिंदी समाचार चैनल ने उनके ऊपर 1 घंटे का डिबेट शो, बिना पूरा वीडियो दिखाए और सुष्मिता के स्पष्टीकरण के चलाया.
इसके बाद दिन पर दिन ट्रोलिंग बढ़ती ही गई. उन्हें बलात्कार हत्या और उनके ऊपर तेजाब फेंकने की धमकियां दी गईं. उनके परिवार का भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया. उनके काम करने वाले संस्थान को भी इसके लिए घेरा गया.
सुष्मिता ने बताया, "हिंदू आईटी सेल के स्वयंसेवियों ने मेरे दोस्त को फोन किया और उसे मजबूर किया कि वह उन्हें मेरा पता बताए. उन्होंने उसे बोला कि वह मुझे व्यक्तिगत तौर पर समझाना चाहते थे. मैं इन हाशिए पर रहने वाले लोगों से इतना आतंकित महसूस कर रही थी कि मैंने अपना दिल्ली वाला घर छोड़ दिया."
सुष्मिता के खिलाफ आईटी सेल के अभियान को समर्थन और आवाज़, भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा से भी मिली. उन्होंने भी ट्विटर पर सुष्मिता की आलोचना की जिसके बाद #ArrestSushmitaSinha ट्विटर इंडिया पर ट्रेंड होने लगा.
सुष्मिता याद करते हुए कहती हैं, "उस ट्विटर के बाद मेरा दिल ही बैठ गया. मुझे विश्वास हो गया था कि अब तो मैं गिरफ्तार हो ही जाऊंगी. मैं बिल्कुल अकेली पड़ गई थी, यह जो हो रहा था उसमें तिल का ताड़ बनाया जा रहा था."
यह विषाक्त ट्रोलिंग चालू रहा जब तक आईटी सेल को 7 सितंबर को अपना नया निशाना नहीं मिल गया, जो एथिइस्ट रिपब्लिक ग्रुप के अर्मिन नवाबी थे, जो अपने नास्तिक होने का खुलकर प्रदर्शन करते हैं.
नवाबी ने एक हिंदू देवी, काली का एक कार्टून उन्हें सेक्सी कहकर शेयर किया था. उनके खिलाफ भी इसी तरह तेजी से बहुत सी शिकायतें दाखिल कर दी गईं.
सुष्मिता के खिलाफ दर्ज की गई शिकायतों ने कुछ खास असर नहीं दिखाया, 6 महीने बाद भी पुलिस ने अभी तक एक भी एफआईआर दर्ज नहीं की है.
सुष्मिता दबी आवाज में फोन पर बताती हैं, "लेकिन इस घटना ने मेरा आत्मविश्वास चूर-चूर कर दिया. मैं आज भी डरी हुई हूं. इस घटना ने मेरे जीवन पर हमेशा के लिए छाप छोड़ दी है."
सुष्मिता का मामला इस तरह का इकलौता मामला नहीं है.
आईटी सेल के संस्थापकों के अनुसार, सेल ने मई 2020 से करीब 500 से ज्यादा शिकायतें दर्ज कराई हैं. वह अब इंडियन ट्रस्ट एक्ट के अंतर्गत एक पंजीकृत संस्था है. 11 स्वयंसेवकों के साथ शुरू हुई यह संस्था अब 200 से ज्यादा सक्रिय स्वयंसेवियों के होने का दावा करती है.
इनके निशाने पर पत्रकार, वकील और एक्टिविस्ट रहे हैं.
(इस लेख को लिखने वालों में से एक पत्रकार वह भी हैं जिन्हें उनके ट्वीट के लिए निशाना बनाया गया, उनकी आपबीती यह है)
संस्थापक
हिंदू आईटी सेल के जनक रमेश सोलंकी और विकास पांडे हैं.
रमेश अपने को अपने ट्विटर के परिचय में "बहुत गर्वशाली राष्ट्रवादी हिंदू" बताते हैं. वह एक इंडियन राजपूत के नाम से ब्लॉक भी चलाते हैं जिसका विचार विडंबना से परे नहीं है, "सुख का रहस्य आज़ादी है और आज़ादी का रहस्य साहस."
रमेश 1998 में शिवसेना के सदस्य बने थे और वर्षों तक उसकी आईटी सेल से जुड़े रहे. उन्होंने शिवसेना को 2019 में छोड़ा जब शिवसेना ने अपने एक समय के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों, कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई. वह अपने हिंदुत्व के लक्ष्य को नहीं छोड़ सके जैसा कि उन्होंने विकास के साथ दिए गए एक इंटरव्यू में समझाया. उनका पूरा इंटरव्यू आप यहां पढ़ सकते हैं.
शिवसेना को छोड़ने के कारणों को समझाते हुए एक ट्विटर ट्रेंड में उन्होंने एक हिंदी कहावत का उल्लेख किया, "डूबते जहाज से चूहे सबसे पहले कूदते हैं." यह समझना मुश्किल है कि क्या वह अपने बारे में बात कर रहे थे या किसी और के.
गोरखपुर के रहने वाले विकास पहले भारतीय जनता पार्टी की आईटी सेल से जुड़े थे और 2014 के आम चुनावों में उन्होंने कई सोशल मीडिया अभियानों को चलाने में मदद की थी. 17 नवंबर 2020 को उन्होंने फेसबुक पर फोटो डाली जिसमें उनके बेटे प्रधानमंत्री मोदी के साथ थे. विकास अक्सर सोशल मीडिया पर भाजपा के कई मंत्रियों और प्रधानमंत्री से अपने व्यक्तिगत संबंधों का बखान करते हैं.
हिंदू आईटी सेल के अलावा वह ट्विटर पर एक खाता मोदी के समर्थन में चलाते हैं.
एक ऑनलाइन इंटरव्यू में रमेश याद करते हैं कि सब कैसे शुरू हुआ. वे कहते हैं, "लॉकडाउन के दौरान महाभारत और रामायण के प्रसारित होने के बाद, ऑनलाइन हिंदू देवी देवताओं को दी जाने वाली गालियों मैं बहुत बढ़ोतरी हुई. उसके बाद विकास ने मुझे फोन किया और कहा कि हमें इस बारे में कुछ करना चाहिए. मैं जानता हूं कि लोगों की मुझसे बड़ी उम्मीदें हैं पर मेरी भी सीमाएं हैं. मैं हमारे धर्म के खिलाफ बोलने वालों के खिलाफ 100 से ज्यादा शिकायतें कर चुका हूं. विमर्श के बाद विकास और मैंने यह निश्चय किया कि हम अपने धर्म के लिए कानूनी तौर पर लड़ने के लिए एक सी सोच वाले व्यक्तियों को इकट्ठा करेंगे. हिंदू आईटी सेल का जन्म ऐसे हुआ."
रमेश ने कई टिकटॉक चलाने वालों, नेटफ्लिक्स इंडिया और अभिनेताओं के खिलाफ बहुत सीएफआईआर दर्ज कराई हैं, जिनके बनाए गए कंटेंट को हिंदू विरोधी कहकर बहिष्कृत करते हैं.
वे नेटफ्लिक्स को निशाना बनाने को याद करते हैं, "मेरा लक्ष्य भारत में बॉयकॉट नेटफ्लिक्स को 1 दिन में ढाई हजार ट्वीट करा कर ट्रेंड कराना था. मैं इस काम में सुबह 8:00 बजे से लगा और 1 घंटे के भीतर ही 70 से 80000 ट्वीट हुए और यह पूरी दुनिया में ट्रेंड करने लगा."
काम का तरीका
रमेश समझाते हैं कि नेटवर्क कैसे काम करता है. वे अपने स्वयंसेवियों का संदर्भ देते हुए कहते हैं, "जो भी कोई हिंदू विरोधी चीज देखता है तो वह आकर हमें उसमें टैग कर देते हैं. हम उन पोस्ट को अपने मुख्य टीम के पास ले जाते हैं और उस पर रिसर्च शुरू करते हैं. क्या वह पोस्ट किसी सत्यापित खाते से की गई है? उस व्यक्ति की मंशा क्या है? आईटी सेल यह पड़ताल करती है कि उस खाते से कोई और पोस्ट भी हैं जो हिंदू विरोधी या राष्ट्र विरोधी हों. एक बार जब मुख्य टीम निर्णय ले लेती है कि हम इस मामले में आगे बढ़ना चाहते हैं तो फिर हम उस व्यक्ति की खोज खबर लेना शुरू करते हैं. हम लोगों को उनका पता, काम करने की जगह और उससे जुड़ी बाकी जानकारियां सोशल मीडिया पर भेजने के लिए कहते हैं."
रमेश आगे बताते हैं, "इसके बाद अगला कदम हमारे वकील उठाते हैं. बातचीत करके शिकायत की एक रूपरेखा तैयार करते हैं. जिसके ड्राफ्ट को स्वयंसेवियों के एक दूसरे ग्रुप में साझा किया जाता है जो शिकायत दर्ज कराने वाले हैं. हम उन्हें गृह मंत्रालय की साइबर सेल के संपर्क और उस व्यक्ति का पता भेजते हैं. जब 20-30 लोग ऑनलाइन या खुद जाकर शिकायतें दर्ज करा देते हैं तो फिर हम उनके स्क्रीनशॉट को ट्विटर पर डाल देते हैं. हम अपने फॉलोअर्स को शिकायत करने वालों को भी फॉलो करने के लिए कहते हैं."
रमेश कहते हैं, "इसके बाद कानूनी प्रक्रिया शुरू होती है. साइबर क्राइम की वेबसाइट से शिकायत स्थानीय पुलिस चौकी पर पहुंचती है जिसके बाद पुलिस हमारे स्वयंसेवियों को उनका बयान लेने के लिए फोन करती है. हमारे प्रेम से भी पुलिस पर एफआईआर दर्ज करने के लिए दबाव बनाते हैं. पहले ट्वीट से लेकर एफआईआर तक हमारे सदस्य उन पर निगरानी रखते हैं. हम यह पक्का करते हैं कि वह व्यक्ति गिरफ्तार हो और कम से कम जेल तो जाए."
शिकार बने लोग
जुलाई 2020 में एक स्टैंड अप कॉमेडियन अग्रिमा जोशुआ अपने एक पुराने वीडियो के लिए ट्रोल की गई जिसमें उन्होंने छत्रपति शिवाजी की एक प्रस्तावित प्रतिमा की बात की थी. उसका वीडियो हिंदू आईटी सेल ने ही चिन्हित किया था.
दीपिका राजावत जिन्होंने कठुआ बलात्कार और हत्या के मामले को थोड़े समय देखा था, उन्हें आईटी सेल ने अक्टूबर 2020 में "हिंदू विरोधी" घोषित कर दिया. उनके द्वारा साझा किया गया बलात्कार के बारे में जागरूकता बढ़ाने वाले पोस्टर को नवरात्रि के अपमान की तरह गलत तौर पर पेश किया गया. 21 अक्टूबर 2020 को दीपिका को सोशल मीडिया पर मदद की गुहार लगानी पड़ी जब उनके घर के बाहर रात में भीड़ इकट्ठा हो गई. आईटी सेल की ट्रोलिंग के द्वारा भड़काई गई यह भीड़ चिल्ला रही थी, "दीपिका तेरी कब्र खुदेगी."
अपने भयभीत कर देने वाले अनुभव को याद करके दीपिका कहती हैं, "मैं यह ऑन रिकॉर्ड कहना चाहती हूं कि स्थानीय पुलिस अधिकारी जिसने मेरे खिलाफ एफआईआर दर्ज की उसने मुझे साफ शब्दों में बताया कि वह ऐसा आईटी सेल के दबाव की वजह से कर रहा था." हम इस बात की पुष्टि स्वतंत्रत तौर पर नहीं कर पाए हैं.
दिल्ली में रहने वाले एक पत्रकार साकेत कुमार जो दलित समाज के सामने आने वाली परेशानियों की बात करते हैं उन्हें हिंदू देवता हनुमान पर की गई टिप्पणियों की वजह से आईटी सेल ने ट्रोल किया.
वे कहते हैं, "मेरे खिलाफ सुनियोजित रूप से चलाया गया वह नफरती अभियान एक हफ्ते तक चला. वह केवल मेरे ही नहीं मेरी गर्लफ्रेंड के पीछे भी आए. उन्हें जो मिल सका चाहे वह मेरे व्यक्तिगत संबंध हो या काम करने की जगह, सभी को निशाना बनाया. मैं अभी भी उस आघात से उबर नहीं पाया हूं."
अग्रिमा जिन्हें बलात्कार तक की धमकियां मिली ट्रोलिंग को एक टीडी दल के हमले की तरह परिभाषित करती हैं.
ट्रोलिंग सोशल मीडिया पर होने का एक हिस्सा है, परंतु निशाना बनाकर और सुनियोजित ढंग से की गई हिंदू आईटी सेल की ट्रोलिंग इसको बहुत भयानक बना देती है.
उदाहरण के लिए यूट्यूब पर हनुमान मनमोहन को देखें, जो आईटी सेल के द्वारा निशाना बनाए गए लोगों को रोल करते हुए एक गाली गलौज से भरे वीडियो बनाते हैं.
जब हमने रमेश से इस ट्रोलिंग के बारे में पूछा, जो उनके द्वारा निशाना बनाए जाने के बाद किसी व्यक्ति को झेलनी पड़ती है, तो उन्होंने अपने को और संस्था को उस से पृथक रखा. लेकिन उसे न्यायसंगत ठहराया.
उन्होंने कहा, "हम इस ट्रोलिंग की निंदा करते हैं लेकिन यह लोग विक्टिम कार्ड खेलते हैं.”
अग्रिमा के मामले के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, "उन्हें अच्छे से पता था वह क्या कर रही हैं, इसके बावजूद उन्होंने वह किया और फिर बाद में विक्टिम कार्ड और राजनीति खेली."
जब उनसे सीधे तौर पर पूछा गया की वह हिंदू आईटी सेल के बाद निशाना बनाए जाने पर किसी के साथ होने वाली ट्रोलिंग को किस प्रकार से देखते हैं, तो उन्होंने उत्तर दिया, "जब वह हिंदुओं को गाली देते हैं, तो उन्हें पता होना चाहिए कि हर क्रिया की प्रतिक्रिया भी होती है. हर कोई महात्मा गांधी का रास्ता नहीं पकड़ता, कोई भगत सिंह का भी पकड़ सकता है. यही मुनव्वर फारूकी के साथ भी हुआ."
मुनव्वर फारूकी एक स्टैंड अप कॉमेडियन है जिसे मध्यप्रदेश के इंदौर में नए साल के दिन कथित तौर पर हिंदू देवताओं को अपमानित करने के लिए गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि वहां उन्होंने शो किया भी नहीं था. उच्चतम न्यायालय से जमानत मिलने से पहले उन्होंने 1 महीने से ज्यादा समय जेल में बिताया.
गौर करने लायक बात है कि रमेश ने अप्रैल 2020 में मुनव्वर फारुकी के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी, उनके गिरफ्तार होने से करीब 8 महीने पहले.
रमेश चेतावनी देते हैं, "अगर आपको लगता है आप किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचा सकते हैं और लोग उसके लिए तालियां बजाएंगे, तो यह सही नहीं है. जब आप बेज्जती करते हैं या मखौल उड़ाते हैं तो आपको याद रखना चाहिए कि इसके परिणाम भी हो सकते हैं. अगर आप हमारे भगवानों को गाली नहीं देंगे तो आप ट्रोल भी नहीं होंगे. साफ सी बात है. उन्हें जो गालियां मिल रही हैं और टोल हो रहे हैं यह उन्हीं के कर्मों का फल है, हमारे नहीं. हम अच्छे लोगों को निशाना नहीं बनाते. हम उन्हें निशाना बनाते हैं जो हिंदुओं को, हिंदुत्व को और भारत को निशाना बना रहे हैं."
उन्होंने जोर देकर ट्रोलिंग को न्याय संगत बताते हुए कहा, "गलती उन्हीं की है. हम मदद नहीं कर सकते."
कानूनी असफलता
बोलने की आजादी की इच्छा और उस पर धार्मिक भावनाओं को आहत ना करने से बचाने के लिए लगाई गईं तरह तरह की पाबंदियों के बीच की खींचतान देश में दशकों से चली आ रही है. कई लोग या समूह किसी न किसी धर्म के रक्षक बनकर सार्वजनिक मंचों और अदालतों दोनों को ही बोलने की आजादी पर पाबंदियां लगाने के लिए इस्तेमाल करते रहे हैं.
भारत का संविधान बोलने की आजादी नागरिकों को प्रदान करता है लेकिन वह सरकार को भी यह हक देता है कि वह उस पर "तर्कसंगत पाबंदियां" लगा सके. यह पाबंदियां भारतीय कानून संहिता में दो खास कानूनों में परिभाषित होती हैं जो किसी भी धर्म जाति भाषा के बिना पर नफरत फैलाने वाले को रोकने और सजा देने के लिए बनाई गई हैं.
हिंदू आईटी सेल के द्वारा कानूनी तौर पर लोगों को निशाना बनाने की प्रक्रिया मुख्यतः भारतीय कानून संहिता की धारा 153a और 295a पर टिकी है. आईटी सेल के स्वयंसेवी अक्सर इन धाराओं कि बिना पर ही अपनी शिकायतें दर्ज कराते हैं.
गौतम भाटिया जो एक अधिवक्ता हैं यह समझाते हैं कि भारतीय कानून संहिता की धारा 295a "ब्लॉस्फेमी कानून का ही एक प्रारूप है", ब्लास्फेमी का अर्थ ईश-निंदा होता है. धारा 295ए किसी भी नागरिक के धर्म या धार्मिक भावनाओं के अपमान की सजा देने के लिए है, अगर वह अपमान जानबूझकर और उस समूह विशेष की धार्मिक भावनाएं आहत करने की बुरी मंशा से किया गया है.
यह एक ऐसा अपराध है जिसका संज्ञान पुलिस स्वयं ले सकती है जिसका मतलब कि पुलिस आरोपी को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है.
धारा 153ए ऐसे व्यक्ति को सजा देने के लिए बनी है "जो धर्म, जाति, जन्म स्थान, घर, भाषा आदि चीजों का इस्तेमाल अलग-अलग समूहों में नफरत पैदा करने और शांति भंग करने वाले कामों को करने के लिए करता है." यही धारा सार्वजनिक तौर पर नफरत फैलाने वाली भाषा के लिए भी इस्तेमाल की जाती है.
धारा 295ए का सत्यापन उच्चतम न्यायालय की पांच जजों की बेंच ने भी किया है. इसका मतलब है कि उसे संवैधानिक मान्यता प्राप्त है और भाटिया की नजर में अब उसकी समीक्षा 7 जज वाली बेंच ही कर सकती है, जो एक दुर्लभ संभावना है.
हालांकि 1957 की 5 जजों की बेंच के निर्णय के बाद अदालतों ने ब्लॉस्फेमी कानून के इस भारतीय प्रारूप पर निर्णय लेने में नियमितता नहीं दिखाई है.
उच्चतम न्यायालय के कुछ आदेश आए हैं जिन्होंने इन धाराओं के इस्तेमाल पर कुछ बंदिशें लगाई है.
संविधान में दी गई बोलने की आजादी जो संविधान के अनुच्छेद 19ए में सबको मिलती है उसे दोहराते हुए उच्चतम न्यायालय ने कई बार इन दो धाराओं के दुरुपयोग को रेखांकित किया है. क्रिकेटर महेंद्र सिंह धोनी के द्वारा उन पर धारा 295ए के तहत धार्मिक भावनाओं को आहत करने के मामले में निर्णय देते हुए उच्चतम न्यायालय ने कहा कि अनजाने में और गलती से हुई धर्म की इन "बेज्जतियों" पर कानूनी कार्यवाही नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह कानून के दुरुपयोग से कम नहीं होगा. धोनी के ऊपर मामला इसलिए दर्ज हुआ था क्योंकि सन 2013 में एक बिजनेस मैगजीन के कवर पर उन्हें भगवान विष्णु की तरह दिखाया गया था.
धारा 153ए को लेकर न्यायालय ने पिछले साल दिसंबर में यह निर्णय दिया था कि इस धारा के अंदर मामला दर्ज करने के लिए आरोपी की ओर से बुरा फैलाने की नियत और हरकत के पीछे सोचे समझे निर्णय का होना जरूरी है.
लेकिन हिंदू आईटी सेल के भुक्तभोगियों को कानून की न्यायिक व्याख्या ही परेशान नहीं करती, बल्कि भारत की न्याय व्यवस्था की मंद गति और ट्रोलिंग ही कभी-कभी बड़े खतरे में बदल जाती हैं.
अभिनव सेखरी, एक अधिवक्ता जो इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के साथ बोलने की आजादी के मामलों पर काम कर रहे हैं, समझाते हैं, "इन नफरत के अपराधों में यह आरोप लगाया जाता है कि किसी कार्य से धार्मिक भावनाएं आहत हुई है. केवल इसे जांच रहे थे और साक्ष्य रहित आरोप पर ही किसी व्यक्ति को जमानत के हक के बिना गिरफ्तार किया जा सकता है क्योंकि इन अपराधियों का संज्ञान पुलिस खुद ले सकती है और यह गैर जमानती है. यहीं पर से गड़बड़ और प्रताड़ना शुरू हो जाती है. इसीलिए महेंद्र सिंह धोनी जैसे लोग भी सुरक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय की ओर दौड़ते हैं, क्योंकि हमारी न्यायिक व्यवस्था किसी को केवल आरोपों के बिना पर ही जेल भेजने देती है, और कानूनी प्रक्रिया की धीमी गति अनावश्यक और अनुच्छेद कारावास सुनिश्चित कर देती है. इन शुरुआती परिस्थितियों में, पुलिस किसी अपराध की मानसिक पृष्ठभूमि को कैसे जांचेगी या वह साबित होगा भी या नहीं, यह बात बाद के लिए रहती है."
प्रदीप कुमार के मामले में हिंदू आईटी सेल ने कम से कम 6 शिकायतें की हालांकि उनमें से एक भी एफआईआर में नहीं बदली. और भी कई मामलों में शिकायतें कानूनी मापदंडों पर खरी नहीं उतरीं.
दिल्ली उच्च न्यायालय के वकील मुकेश शर्मा जो आईटी सेल के कानूनी सलाहकार की भूमिका भी अदा करते हैं, ने भी इस बात की पुष्टि की. उन्होंने कहा, "पुलिस स्टेशनों में करीब 50-60 शिकायतें ऐसी लंबित हैं जिन्हें वह एफआईआर में नहीं बदल रहे. ऐसे मामले में हम उनके वरिष्ठ अधिकारियों से सलाह करते हैं, या तो एसएचओ या डीसीपी, और उन्हें संज्ञान लेने के लिए प्रेरित करते हैं. अगर वह भी ऐसे ही करते तो हम स्थानीय अदालत में धारा 156(3) के अंतर्गत अपील दायर करते हैं."
सीआरपीसी की धारा 156(3) एक मजिस्ट्रेट को यह अधिकार देती है कि वह पुलिस को किसी शिकायत की जांच करने का आदेश दे सके.
वे समझाते हैं, "सुष्मिता सिन्हा के मामले में भी ऐसा ही हुआ. दिल्ली पुलिस ने संज्ञान नहीं लिया जिसके बाद मैंने साकेत न्यायालय में अर्जी दाखिल की थी."
सुष्मिता याद करते हुए कहती हैं, "हिंदू आईटी सेल ने मेरे खिलाफ गोविंदपुरी थाने में शिकायत दर्ज की लेकिन एसएचओ ने एफआईआर लिखने से मना कर दिया. बाद में मेरे खिलाफ शिकायत की. अदालत ने पुलिस को इस मामले में अपनी कार्यवाही की रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा. पुलिस ने बताया कि मेरे खिलाफ कोई मामला नहीं बनता. उसके बाद हिंदू आईटी सेल ने उसको भी चुनौती दी लेकिन अक्टूबर में इस मामले की सुनवाई की तारीख को वह अदालत में उपस्थित नहीं हुए."
'धर्म के लिए'
हिंदू आईटी सेल शुरू करने वालों ने अपना किसी भी राजनीतिक दल से संबंध होने से इनकार यह कहकर किया कि वह केवल "राष्ट्रवाद और हिंदू धर्म" के लिए ही हैं. लेकिन फिर भी वह अक्सर भारतीय जनता पार्टी के नेताओं से मिलते रहते हैं. पिछले साल वह भाजपा नेता कपिल मिश्रा के साथ दीपावली मनाने के एक अभियान की शुरुआत कर रहे थे जो नए नागरिकता कानून के अंतर्गत इंतजार कर रहे हिंदू शरणार्थियों के साथ मनाया जा रहा था. कपिल मिश्रा पर 2020 के दिल्ली दंगों को भड़काने का आरोप लगाया जाता है.
अगस्त 2019 में गृह मंत्रालय ने आईटी सेल के सदस्यों जैसे "साइबर क्राइम स्वयंसेवी, जो गैरकानूनी कंटेंट को चिन्हित करते हैं" को ऑनलाइन "आतंकवाद, कट्टरवाद और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों" को चिन्हित करने और उन्हें राष्ट्रीय साइबर क्राइम रिर्पोटिंग पोर्टल पर रिपोर्ट करने के लिए आमंत्रित किया था.
रमेश गृह मंत्रालय के कदम को सही बताते हुए यह सवाल पूछते हैं, "सरकार अकेली कितना कर सकती है. जागरूक नागरिक होने के नाते हमारी भी कुछ जिम्मेदारियां हैं. हालांकि हमारा गृह मंत्रालय से कोई संबंध नहीं, लेकिन हम उन्हें शिकायत करते हैं." उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि आईटी सेल शिकायतें दर्ज करने के लिए राष्ट्रीय साइबर क्राईम रिर्पोटिंग पोर्टल का इस्तेमाल करती रही है.
नवंबर 2020 में मंत्रालय ने राज्यों को नेशनल साइबर क्राईम रिर्पोटिंग पोर्टल पर आई शिकायतों की समीक्षा करने और उन पर आधारित एफआईआर दर्ज करने के लिए लिखा. मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार पोर्टल पर दर्ज की गई शिकायतों में से केवल 2.5 प्रतिशत ही एफआईआर में परिवर्तित की गई हैं.
अपने कार्यों को सही ठहराते हुए रमेश ने कहा, "यह किसी के बाप का बगीचा थोड़ी ना है जो आप घूम के चले जाओ. अगर आप अपमान करोगे, किसी को उंगली करोगे, तो देन यू हेव टु फेस इट."
उन्होंने यह भी कहा, "हमारे देश में बोलने की आजादी है, ऐसा संविधान में लिखा है, लेकिन उसकी भी सीमा है. अगर मैं आपको थप्पड़ मारूं तो क्या वह बोलने की आजादी है?"
"बहुत ही महीन रेखा है. एक बार आप उसे लांघें हैं तो वह अपराध है."
"वैसे भी हम यह सब कानूनी तौर पर कर रहे हैं."
सृष्टि जसवाल और श्रीगिरीश जालिहाल द रिपोर्टर्स कलेक्टिव से जुड़े हुए हैं.
Also Read
-
India’s lost decade: How LGBTQIA+ rights fared under BJP, and what manifestos promise
-
Another Election Show: Meet journalist Shambhu Kumar in fray from Bihar’s Vaishali
-
‘Pralhad Joshi using Neha’s murder for poll gain’: Lingayat seer Dingaleshwar Swami
-
Corruption woes and CPIM-Congress alliance: The TMC’s hard road in Murshidabad
-
‘Allies don’t have to agree on everything’: Jana Sena’s Pawan Kalyan on differences with TDP, BJP