Newslaundry Hindi
एसओई 2021: 2019 में वायु प्रदूषण के कारण अकेले पांच राज्यों में हुईं 8.5 लाख से ज्यादा मौतें
वर्ष 2019 में 16.7 लाख मौतों का कारण वायु प्रदूषण रहा है, इनमें 50 फीसदी (851,698) मौतें महज पांच राज्यों में ही हुई है. इन पांच राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थान का नाम शामिल हैं.
बड़ी जनसंख्या और प्रति व्यक्ति कम आय वर्ग वाले यह राज्य वायु प्रदूषण के कारण होने वाली समयपूर्व मौतों और रुग्णता के कारण जबरदस्त आर्थिक नुकसान भी उठा रहे हैं. पांच राज्यों ने 36,803 अमेरिकी डॉलर की लागत का नुकसान उठाया है जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.36 फीसदी के बराबर है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट व डाउन टू अर्थ की ओर से 25 फरवरी, 2021 को जारी स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट रिपोर्ट– 2021 (एसओई-2021) के ‘बैड ब्रीदिंग’ अध्याय में यह तथ्य उजागर किया गया है. एसओई का यह अध्ययन ग्लोबल बर्डन डिजीज 2019 के आंकड़ों और तथ्यों के विश्लेषण पर आधारित है.
एसओई 2021 का विश्लेषण यह बताता है कि खासतौर से ऐसे राज्य जो गरीब आय वाले हैं और जहां बच्चों व माताओं के लिए कुपोषण की बड़ी लड़ाई है वहां वायु प्रदूषण ज्यादा हमलावर है.
जीबीडी 2017 की रिपोर्ट में भी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान वायु प्रदूषण के कारण शीर्ष मौत वाले राज्यों की सूची में शामिल थे.
एसओई 2021 बताता है कि 2019 की जीबीडी रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण जनित मौतें 349,000 उत्तर प्रदेश में हुई हैं.
वायु प्रदूषण जनित रोगों में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निचले फेफड़ों के संक्रमण सबसे ज्यादा मौत का कारण बनते हैं. 2017 जीबीडी रिपोर्ट के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है. हालांकि, इनमें सबसे ज्यादा जोखिम में रहने वाले पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे कितने हैं, यह खास स्पष्ट नहीं है.
यदि जीबीडी, 2017 के आंकड़ों के आधार पर 1990 से लेकर 2017 तक दो दशक में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की प्रमुख बीमारियों के कारण होने वाले मौतों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट होता है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण जनित निचले फेफड़ों का संक्रमण (एलआरआई) परेशान करता है.
जीबीडी 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 1990 में पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की डायरिया से 16.73 फीसदी (4.69 लाख मौतें) हुई थीं जबकि 2017 में नियंत्रण से यह 9.91 फीसदी (एक लाख) पहुंच गईं. वहीं, निचले फेफड़ों के संक्रमण से 1990 में 20.20 फीसदी (5.66 लाख मौतें) हुईं थी जो कि 2017 में 17.9 फीसदी (1.85 लाख) तक ही पहुंची. यानी करीब तीन दशक में एलआरआई से मौतों की फीसदी में गिरावट बेहद मामूली है.
निचले फेफड़े के संक्रमण और वायु प्रदूषण के घटक पार्टिकुलेट मैटर 2.5 के बीच एक गहरा रिश्ता भी है. 0 से 5 आयु वर्ग वाले समूह में निचले फेफड़े का संक्रमण जितना प्रभावी है उतना 5 से 14 वर्ष आयु वर्ग वालों पर नहीं है. 2017 में 5 से 14 आयु वर्ग वाले बच्चों में निचले फेफड़ों के संक्रमण से 6 फीसदी बच्चों की मृत्यु हुई. इससे स्पष्ट है कि निचले फेफड़ों का संक्रमण पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर ही ज्यादा प्रभावी है.
वहीं, जीबीडी रिपोर्ट बताती है कि 2019 में 17 लाख मौतों में 58 फीसदी मौतें बाहरी यानी परिवेशी वायु प्रदूषण के कारण हैं जबिक 36 फीसदी मौतें भीतरी यानी घर से होने वाली मौतों के कारण हैं. घर से होने वाले प्रदूषण में सबसे बड़ा कारक प्रदूषित ईंधन से खाने का पकाया जाना है.
पार्टिकुलेट मैटर 2.5 का तय मानकों से कई गुना ज्यादा होना और वायु प्रदूषण जनित मौतों का सीधा कनेक्शन है. यह कई रिपोर्ट बार-बार दोहरा रही हैं. मसलन शीर्ष ऐसे 10 राज्य जहां पीएम 2.5 प्रदूषण ज्यादा रहा है और वहां होने वाली मौतें भी ज्यादा रही हैं.
डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक पीएम 2.5 का सालाना सामान्य सांद्रण 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से नीचे का है. जबकि राज्यों में 20 गुना ज्यादा पीएम 2.5 प्रदूषण है और वहां मौतें भी सबसे ज्यादा हैं. इसे नीचे सारिणी में देखें.
वर्ष 2019 में 16.7 लाख मौतों का कारण वायु प्रदूषण रहा है, इनमें 50 फीसदी (851,698) मौतें महज पांच राज्यों में ही हुई है. इन पांच राज्यों की सूची में उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और राजस्थान का नाम शामिल हैं.
बड़ी जनसंख्या और प्रति व्यक्ति कम आय वर्ग वाले यह राज्य वायु प्रदूषण के कारण होने वाली समयपूर्व मौतों और रुग्णता के कारण जबरदस्त आर्थिक नुकसान भी उठा रहे हैं. पांच राज्यों ने 36,803 अमेरिकी डॉलर की लागत का नुकसान उठाया है जो कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 1.36 फीसदी के बराबर है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट व डाउन टू अर्थ की ओर से 25 फरवरी, 2021 को जारी स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरमेंट रिपोर्ट– 2021 (एसओई-2021) के ‘बैड ब्रीदिंग’ अध्याय में यह तथ्य उजागर किया गया है. एसओई का यह अध्ययन ग्लोबल बर्डन डिजीज 2019 के आंकड़ों और तथ्यों के विश्लेषण पर आधारित है.
एसओई 2021 का विश्लेषण यह बताता है कि खासतौर से ऐसे राज्य जो गरीब आय वाले हैं और जहां बच्चों व माताओं के लिए कुपोषण की बड़ी लड़ाई है वहां वायु प्रदूषण ज्यादा हमलावर है.
जीबीडी 2017 की रिपोर्ट में भी उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और राजस्थान वायु प्रदूषण के कारण शीर्ष मौत वाले राज्यों की सूची में शामिल थे.
एसओई 2021 बताता है कि 2019 की जीबीडी रिपोर्ट के मुताबिक सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण जनित मौतें 349,000 उत्तर प्रदेश में हुई हैं.
वायु प्रदूषण जनित रोगों में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में निचले फेफड़ों के संक्रमण सबसे ज्यादा मौत का कारण बनते हैं. 2017 जीबीडी रिपोर्ट के विश्लेषण से यह स्पष्ट होता है. हालांकि, इनमें सबसे ज्यादा जोखिम में रहने वाले पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चे कितने हैं, यह खास स्पष्ट नहीं है.
यदि जीबीडी, 2017 के आंकड़ों के आधार पर 1990 से लेकर 2017 तक दो दशक में पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की प्रमुख बीमारियों के कारण होने वाले मौतों के आंकड़ों का विश्लेषण करें तो यह स्पष्ट होता है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण जनित निचले फेफड़ों का संक्रमण (एलआरआई) परेशान करता है.
जीबीडी 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक 1990 में पांच वर्ष से कम उम्र वाले बच्चों की डायरिया से 16.73 फीसदी (4.69 लाख मौतें) हुई थीं जबकि 2017 में नियंत्रण से यह 9.91 फीसदी (एक लाख) पहुंच गईं. वहीं, निचले फेफड़ों के संक्रमण से 1990 में 20.20 फीसदी (5.66 लाख मौतें) हुईं थी जो कि 2017 में 17.9 फीसदी (1.85 लाख) तक ही पहुंची. यानी करीब तीन दशक में एलआरआई से मौतों की फीसदी में गिरावट बेहद मामूली है.
निचले फेफड़े के संक्रमण और वायु प्रदूषण के घटक पार्टिकुलेट मैटर 2.5 के बीच एक गहरा रिश्ता भी है. 0 से 5 आयु वर्ग वाले समूह में निचले फेफड़े का संक्रमण जितना प्रभावी है उतना 5 से 14 वर्ष आयु वर्ग वालों पर नहीं है. 2017 में 5 से 14 आयु वर्ग वाले बच्चों में निचले फेफड़ों के संक्रमण से 6 फीसदी बच्चों की मृत्यु हुई. इससे स्पष्ट है कि निचले फेफड़ों का संक्रमण पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों पर ही ज्यादा प्रभावी है.
वहीं, जीबीडी रिपोर्ट बताती है कि 2019 में 17 लाख मौतों में 58 फीसदी मौतें बाहरी यानी परिवेशी वायु प्रदूषण के कारण हैं जबिक 36 फीसदी मौतें भीतरी यानी घर से होने वाली मौतों के कारण हैं. घर से होने वाले प्रदूषण में सबसे बड़ा कारक प्रदूषित ईंधन से खाने का पकाया जाना है.
पार्टिकुलेट मैटर 2.5 का तय मानकों से कई गुना ज्यादा होना और वायु प्रदूषण जनित मौतों का सीधा कनेक्शन है. यह कई रिपोर्ट बार-बार दोहरा रही हैं. मसलन शीर्ष ऐसे 10 राज्य जहां पीएम 2.5 प्रदूषण ज्यादा रहा है और वहां होने वाली मौतें भी ज्यादा रही हैं.
डब्ल्यूएचओ के मानकों के मुताबिक पीएम 2.5 का सालाना सामान्य सांद्रण 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से नीचे का है. जबकि राज्यों में 20 गुना ज्यादा पीएम 2.5 प्रदूषण है और वहां मौतें भी सबसे ज्यादा हैं. इसे नीचे सारिणी में देखें.
Also Read
-
What’s Your Ism? Ep 8 feat. Sumeet Mhasker on caste, reservation, Hindutva
-
The polarisation of America: Israel, media and campus protests
-
‘1 lakh suicides; both state, central govts neglect farmers’: TN farmers protest in Delhi
-
Reporters Without Orders Ep 319: The state of the BSP, BJP-RSS links to Sainik schools
-
सूरत का सूरत-ए-हाल: नामांकन के दिन ही ‘फिक्स’ था चुनाव