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लॉकडाउन के एक साल बाद की स्थिति: दिहाड़ी मज़दूरों को अब भी नहीं मिल रहा है काम
कोरोना महामारी को रोकने के लिए 24 मार्च 2020 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा अचानक से लॉकडाउन की घोषणा कर दी गई थी. जिसके बाद लोगों के घरों से निकलने पर प्रतिबंध लगा दिया गया.
इस दौरान लॉकडाउन का सबसे ज़्यादा असर दिहाड़ी मज़दूरों पर हुआ. तब कोरोना के कारण रोजमर्रा के काम कम हो गए थे, लेकिन लॉकडाउन लगने के बाद तो काम मिलना बिलकुल बंद हो गया. जबकि दिहाड़ी मज़दूरों का एक बड़ा तबका रोजाना कमाता है और उसी कमाई से उसका घर चलता है. काम ठप होने के बाद कुछ मज़दूर अपने घर पैदल चले गए तो कुछ जैसे तैसे शहर में रह पाए. जो रह गए उन पर किराये का कर्ज हो गया.
बुधवार को लॉकडाउन की घोषणा का एक साल हो गया है. ऐसे में न्यूजलॉन्ड्री नोएडा के हरौला मार्केट स्थित लेवर चौक पहुंचा और वहां काम की तलाश में आने वाले मज़दूरों से बात की. यहां मज़दूरों ने बताया, ‘‘इस लेबर चौक पर पहले सैकड़ों की संख्या में मज़दूर काम की तलाश में आते थे. काम देने वालों की संख्या काफी होती थी. ज़्यादातर लोगों को काम मिल जाता था लेकिन अब महीने में 10 दिन काम भी मिलना मुश्किल हो गया है. लॉकडाउन ने हमें बर्बाद कर दिया है.’’
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की रहने वालीं सुनीता देवी अपने पति परमलाल के साथ यहां काम की तलाश में पहुंची हुई थीं. इनके बच्चे अपने दादा दादी के साथ गांव में रहते हैं. जब लॉकडाउन लगा तो ये लोग पैदल ही अपने गांव के लिए निकल गए. आठ दिन पैदल चलकर गांव पहुंचे थे. वहां कर्ज लेकर कुछ दिनों तक खाए और रहे. जब कर्ज बढ़ने लगा तो दोनों वापस नोएडा लौट आए हैं.
न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए सुनीता देवी कहती हैं, ‘‘कर्ज बहुत हो गया है. यहां लौटकर इसलिए आए हैं कि कमाकर कर्ज उतार देंगे लेकिन यहां काम ही नहीं मिल रहा है. चार दिन पहले आखिरी बार काम पर गए थे. रोज सुबह सात बजे यहां काम की तलाश में आते हैं. 10-11 बजे तक इंतज़ार करते हैं. काम नहीं मिलता तो वापस लौट जाते हैं. बुरा हाल है भाई. काम ही नहीं मिल रहा है.’’
यहां हमारी जितने भी मज़दूरों से मुलाकात हुई वो काम नहीं मिलने से बेहद परेशान नजर आए. दूसरी तरफ कोरोना के बढ़ते मामलों से भी वे डरे हुए हैं कि कहीं फिर से लॉकडाउन न लग जाए.
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