Report
एक व्यक्ति के स्वास्थ्य पर हर रोज महज 4.8 रुपए खर्च करती है सरकार
देश में सरकार हर व्यक्ति के स्वास्थ्य पर रोज करीब 4.8 रुपए खर्च करती है. यह जानकारी नेशनल हेल्थ अकाउंट (एनएचए) द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है. 2017-18 के लिए जारी आंकड़ों के अनुसार सरकार ने इस दौरान प्रति व्यक्ति स्वास्थ्य पर करीब 1,753 रुपए खर्च किए हैं, जबकि 2013-14 में यह राशि करीब 1,042 रुपए थी, देखा जाए तो पिछले चार वर्षों में 711 रुपए की बढ़ोतरी हुई है पर सोचने वाली बात है कि क्या यह बढ़ोतरी पर्याप्त है.
वहीं इसके विपरीत यदि लोगों द्वारा स्वास्थ्य पर अपनी जेब से किए जा रहे खर्च को देखें तो वो 2017-18 में प्रति व्यक्ति औसतन 2,097 रुपए था, जबकि 2013-14 में यह आंकड़ा 2,336 रुपए था. कुल मिलकर देखें तो स्वास्थ्य पर किए जा रहे कुल व्यय का करीब 48.8 फीसदी हिस्सा लोगों द्वारा स्वयं खर्च किया जाता है. वहीं 2013-14 में यह आंकड़ा 64.2 फीसदी था.
अपने जीडीपी का केवल 1.35 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करता है देश
रिपोर्ट में इस गिरावट के लिए सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं के उपयोग में होने वाली वृद्धि और सेवाओं की लागत में आने वाली कमी को कारण माना है. यदि एनएचए 2014-15 और 2017-18 के आंकड़ों की तुलना करें तो सरकारी अस्पतालों और सुविधाओं पर लोगों द्वारा अपनी जेब से किए जा रहे खर्च में 50 फीसदी की कमी दर्ज की गई है.
अपने जीडीपी का केवल 1.35 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च करता है देश
गौरतलब है कि 2013-14 में स्वास्थ्य पर किए जा रहे कुल खर्च में सरकार की हिस्सेदारी करीब 28.6 फीसदी थी, जो 2017-18 में बढ़कर 40.8 फीसदी हो गई थी. देखा जाए तो देश अपने कुल जीडीपी का करीब 1.35 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च कर रहा है जबकि 2013-14 में यह आंकड़ा 1.15 फीसदी था.
केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सचिव राजेश भूषण के अनुसार 2017-18 के लिए जारी इस एनएचए के अनुमान न केवल स्वास्थ्य क्षेत्र में बढ़ते सरकारी खर्च को दर्शाते हैं, साथ ही सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रति लोगों के बढ़ते विश्वास की ओर भी इशारा करते हैं. यही नहीं 2013-14 में सरकार ने अपने कुल खर्च का केवल 3.78 फीसदी हिस्सा स्वास्थ्य पर खर्च किया था जो 2017-18 में बढ़कर 5.12 फीसदी हो गया है.
आंकड़ों की मानें तो पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर कहीं अधिक जोर दिया है. जहां 2013-14 में प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं पर स्वास्थ्य व्यय का करीब 51.1 फीसदी खर्च किया गया था वो 2017-18 में बढ़कर 54.7 फीसदी हो गया है. वहीं यदि प्राथमिक तथा माध्यमिक स्वास्थ्य सुविधाओं की बात करें तो सरकार स्वास्थ्य पर किए जा रहे कुल खर्च का करीब 80 फीसदी से ज्यादा हिस्सा उस पर व्यय करती हैं.
पिछले कुछ वर्षों में स्वास्थ्य के क्षेत्र में सामाजिक सुरक्षा पर किए जा रहे खर्च में वृद्धि दर्ज की गई है जिसमें सामाजिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम, सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा योजनाएं और सरकारी कर्मचारियों को दी गई चिकित्सा प्रतिपूर्ति शामिल है. इसपर किए जा रहे खर्च में 2013-14 के 6 फीसदी के मुकाबले तीन फीसदी की वृद्धि हुई है जो 2017-18 में बढ़कर करीब नौ फीसदी हो गई है. यही नहीं स्वास्थ्य के लिए दी जा रही विदेशी सहायता 0.5 फीसदी तक कम हो गई है.
हालांकि इन सबके बावजूद कोविड-19 ने देश में मौजूद स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल खोल दी थी. जब लोगों के लिए अस्पताल में ऑक्सीजन और बेड भी कम पड़ गए थे. वहीं यदि 2020 में नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो द्वारा जारी रिपोर्ट को देखें तो बीमारी के चलते 27,623 लोगों ने बीमारियों के चलते आत्महत्या की थी जोकि कुल आत्महत्या करने वालों का 18 फीसदी था.
कुल मिलकर यह कहा जा सकता है कि भले ही स्वास्थ्य क्षेत्र पर किए जा रहे सरकारी खर्च में इजाफा किया गया है, इसके बावजूद देश की एक बड़ी आबादी अभी भी इन स्वास्थ्य सेवाओं से कोसो दूर है. स्वास्थ्य पर पर्याप्त आबंटन की कमी के चलते गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली सात फीसदी आबादी और 23 फीसदी मरीज स्वास्थ्य सेवाओं का भार उठा पाने में असमर्थ हैं.
हालांकि केंद्र सरकार ने 2025 तक स्वास्थ्य सेवाओं पर जीडीपी का करीब 2.5 फीसदी खर्च करने का लक्ष्य तय किया है, जबकि वैश्विक औसत देखें तो वो करीब छह फीसदी है. देश में इससे बड़ी दुर्भाग्य की बात क्या होगी कि हर चार में से एक परिवार को चिकित्सा सेवाओं का भुगतान करने के लिए या तो कर्ज लेना पड़ता है या फिर अपनी संपत्ति बेचनी पड़ती है.
(साभार- डाउन टू अर्थ)
Also Read
-
2 convoys, narrow road, a ‘murder’: Bihar’s politics of muscle and fear is back in focus
-
Argument over seats to hate campaign: The story behind the Mumbai Press Club row
-
Delhi AQI ‘fraud’: Water sprinklers cleaning the data, not the air?
-
How a $20 million yacht for Tina Ambani became a case study in ‘corporate sleight’
-
क्लाउड सीडिंग पर वैज्ञानिक नजरिया, क्या कहते हैं पूर्व मौसम महानिदेशक केजे रमेश