Opinion
क्या क्लाइमेट चेंज की जंग में भारत को सुनक से कोई उम्मीद करनी चाहिए?
ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को लेकर भारत में काफी उत्साह है. ख़बरिया चैनलों और अख़बारों से लेकर सोशल मीडिया के हर प्लेटफॉर्म में ब्रिटेन की बागडोर संभालने वाले सुनक छाए हुए हैं. बहस चल रही है कि क्या सुनक की नीतियां भारत के लिये मददगार होंगी? जानकार याद दिला रहे हैं कि सुनक से बहुत उम्मीद करना गलत होगा क्योंकि डांवाडोल अर्थव्यवस्था के कारण अपने देश में ही उनके सामने पहाड़ सी दिक्कत है. वैसे भी सत्ता संभालते ही जिस तरह से उन्होंने भारत विरोधी नीतियों के लिए सुर्खियों में रही सुएला ब्रेवरमैन को गृहमंत्री बनाया है वह सुनक की प्राथमिकताओं को स्पष्ट करता है.
अच्छा नहीं है क्लाइमेट पर सुनक का रिकॉर्ड
लेकिन पर्यावरण की फिक्र करने वाले सुनक का क्लाइमेट रिकॉर्ड खंगाल रहे हैं. यह जानना महत्वपूर्ण है कि सुनक की कंज़रवेटिव पार्टी क्लाइमेट चेंज को एक हौव्वा मानती रही है और ऋषि सुनक ने ज़्यादातर मौकों पर पार्टी लाइन पर चलते हुए जलवायु परिवर्तन रोकने के प्रयासों के खिलाफ ही वोट किया है. साल 2016 से 2022 के बीच उन्होंने 16 बार क्लाइमेट चेंज रोकने के प्रयासों के खिलाफ और सिर्फ दो बार उसके पक्ष में वोट डाला जबकि आठ बार वह गैरमौजूद रहे. तो क्या सुनक भी ग्लोबल वॉर्मिंग की लड़ाई में डोनाल्ड ट्रम्प जैसे ही साबित होंगे?
सुनक की पूर्ववर्ती लिज़ ट्रस का पर्यावरण और क्लाइमेट के मामले में रिकॉर्ड इतना ख़राब रहा है कि सुनक उनसे तो कहीं बेहतर दिख सकते हैं. लिज़ ट्रस और सुनक दोनों ही 2050 तक नेट ज़ीरो हासिल करने के लक्ष्य के समर्थक हैं लेकिन उनकी कथनी और करनी में बड़ा अंतर रहा है. अपने सूक्ष्म कार्यकाल में ट्रस फ्रैकिंग समर्थक नीति और अमेरिका और यूके में जीवाश्म ईंधन कंपनियों से करीबी के कारण पर्यावरणविदों के निशाने पर रहीं तो एक इंवेस्टमेंट बैंकर से राजनेता बने सुनक ने बतौर वित्तमंत्री क्लाइमेट पर खर्च का विरोध किया.
क्लाइमेट फाइनेंस पर निभायेंगे वादा?
जल्द ही मिस्र के शर्म-अल-शेख में जलवायु परिवर्तन महासम्मेलन शुरू हो रहा है और क्लाइमेट फाइनेंस (विकासशील देशों को विकसित देशों द्वारा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ने के लिए दी जाने वाली आर्थिक मदद) एक बड़ा मुद्दा रहेगा. ब्रिटेन दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में है और पूरी दुनिया पर राज करने वाली महाशक्ति के तौर पर कोयले और तेल जैसे ईंधन (जो कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन और ग्लोबल व़ॉर्मिंग के लिए ज़िम्मेदार हैं) को बढ़ावा देने में उसका निश्चित रोल रहा है.
सुनक ने 2021 में हुए ग्लासगो सम्मेलन में क्लाइमेट फाइनेंस सुलभ कराने के लिए टास्क फोर्स की बात कही. सच यह है कि 2020 में उनके वित्तमंत्री रहते ब्रिटेन ने अपने हिस्से की आधी राशि भी क्लाइमेट फंड में नहीं दी. 2021 के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं.
यूक्रेन पर रूसी हमले से बिगड़े हालात
पिछले साल ग्लासगो सम्मेलन में ही सुनक ने कहा था वह यूके को दुनिया का पहली नेट-ज़ीरो आर्थिक महाशक्ति बना देंगे. लेकिन यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई के बाद विकसित देशों को यह बहाना मिल गया है कि वह एक बार फिर से जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) के प्रयोग को अपनी मजबूरी बताएं.
महत्वपूर्ण है कि सभी विकसित देशों ने जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को बंद करने की दिशा में तेज़ी का वादा पिछले साल यूके में ही हुए ग्लासगो सम्मेलन में किया था. अब जिस तरह पूरा यूरोप अफ्रीकी देशों से गैस आयात के अनुबंध कर रहा है उससे धरती को बचाने की जंग पटरी से उतर रही है. बोरिस जॉनसन के करीबी रहे सुनक के सामने एक बड़ी चुनौती ईंधन पर खर्च से निपटने की भी होगी जो पिछले एक साल में ढाई गुना बढ़ चुके हैं.
साम्राज्यवाद की कड़वी हक़ीक़त
सवाल यह भी है कि क्या नए प्रधानमंत्री ब्रिटिश साम्राज्यवाद की कड़वी हक़ीकत को समझेंगे क्योंकि अगर आज दुनिया के कई गरीब अफ्रीकी और एशियाई देश जलवायु परिवर्तन की लड़ाई में मीलों पीछे छूट गए हैं तो उसका एक बड़ा कारण औपनिवेशिक शासनकाल में हुआ शोषण भी है जिससे ब्रिटेन पल्ला नहीं झाड़ सकता. ऐसा नहीं लगता है कि भारतीय मूल के होने के बावजूद सुनक 150 साल के अंग्रेज़ी उपनिवेशवाद की सच्चाई को स्वीकार कर पाएंगे?
लिज़ ट्रस ने किंग चार्ल्स को सलाह दी थी कि वह नवंबर में मिस्र में हो रहे क्लाइमेट चेंज सम्मेलन (कॉप-27) में न जाएं. माना जा रहा है कि सुनक चार्ल्स को ऐसे महत्वपूर्ण समागम से दूर रहने की सलाह नहीं देंगे जिसमें दुनिया के सभी छोटे-बड़े देश शामिल हों रहे हों और क्लाइमेट जस्टिस एक महत्वपूर्ण नारा हो.
Also Read
-
We tried to wish Modiji in TOI. Here’s why we failed
-
Gujarat’s invisible walls: Muslims pushed out, then left behind
-
Rekha Gupta, Eknath Shinde lead b’day ad blitz for Modi; ToI, HT skip demonetisation in PM’s legacy feature
-
From Doraemon to Sanjay Dutt: The new grammar of DU’s poll season
-
सियासत और पत्रकारिता की उतरी हुई पैंट के बीच नेपाल में हिंदू राष्ट्र का ख्वाब और मणिपुर में मोदीजी