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भारत में बिगड़ती जा रही है मीडिया और पत्रकारों की हालत: रॉयटर्स की सालाना रिपोर्ट
रॉयटर्स इंस्टीट्यूट फॉर द स्टडी ऑफ जर्नलिज्म ने अपनी वार्षिक डिजिटल न्यूज रिपोर्ट में कहा कि भारतीय मीडिया कंपनियां खबरों में घटती रूचि, कम विश्वास और प्रेस की आजादी पर खतरे के बीच राजस्व में गिरावट के साथ "कठिन समय" का सामना कर रही हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में मीडिया "पत्रकारों की सुरक्षा के संबंध में चुनौतियों" और "अनुचित राजनीतिक प्रभाव" का सामना कर रहा है. इसने कहा कि स्वतंत्र और सरकार के प्रति आलोचनात्मक रुख रखने वाले पत्रकार जानलेवा हमलों, ऑनलाइन ट्रॉलिंग और कानूनी दांवपेंचों का सामना कर रहे हैं. उल्लेखनीय है कि गत फरवरी माह में ही दिल्ली और मुंबई स्थित बीसीसी कार्यालयों पर आयकर विभाग ने सर्वे किए थे. माना गया कि बीबीसी द्वारा गुजरात दंगों में तत्कालीन मुख्यमंत्री और मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूमिका को लेकर डॉक्यूमेंट्री रिलीज किए जाने के बाद ये कार्रवाई बदले की भावना से की गई है.
इसके अलावा विभिन्न स्रोतों के जरिए समाचारों को पढ़ने और साझा किए जाने के मामलों में भी भारी गिरावट आई है. डिजिटल मीडिया की बात की जाए तो लीगेसी ब्रांड्स में, एनडीटीवी 24×7, बीबीसी न्यूज, रिपब्लिक टीवी और टाइम्स ऑफ इंडिया लोगों के लिए शीर्ष समाचार स्रोत थे. आश्चर्यजनक रूप से, हिंदी भाषी अख़बार दैनिक भास्कर, अंग्रेजी समाचार पाठकों द्वारा पढ़े जाने वाले 10 शीर्ष लीगेसी ब्रांडों में शामिल है.
हालांकि, डिजिटल ब्रांड लीगेसी मीडिया ब्रांड जितने लोकप्रिय नहीं हो सकते हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि समाचार वेबसाइट "समर्पित और एंगेज्ड दर्शकों" को आकर्षित कर रही हैं.
महत्वपूर्ण बात यह है कि रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘द वायर’ ने मेटा के मामले में अपनी हार के कारण "गंभीर विश्वसनीयता संकट का सामना किया." यही वजह है कि इसने वार्षिक ब्रांड ट्रस्ट रेटिंग में "कुछ दर्शकों का विश्वास" खो दिया.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऑनलाइन समाचारों को देखने में भारी कमी आई है. पिछले वर्ष की तुलना में इसमें 12 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है, खासकर सोशल मीडिया के जरिए समाचार देखने के मामलों में. रिपोर्ट के अनुसार, विशेष रूप से युवा और शहरी दर्शकों के बीच टीवी समाचार की खपत में भी 10 प्रतिशत की गिरावट आई है. रिपोर्ट ने महामारी के लुप्त होते प्रभाव को आंशिक रूप से गिरावट के लिए जिम्मेदार ठहराया है.
रिपोर्ट में केंद्र सरकार द्वारा आईटी रुल्स, 2021 को संशोधित किए जाने के फैसले पर भी सवाल उठाए हैं. हालांकि, ऑनलाइन सामग्री को ब्लॉक करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित पहले की प्रक्रियाओं का पालन न करने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को खतरे में डालने के लिए सरकार की इन कोशिशों की व्यापक रूप से आलोचना हुई है. न्यूज़लॉन्ड्री ने भी "मीडिया की आवाज को दबाने" के लिए संशोधनों के इस्तेमाल के बारे में समाचार संगठनों द्वारा जाहिर आशंकाओं पर रिपोर्ट की थी.
रिपोर्ट में रेखांकित किया गया है कि NDTV, जिसे "भारत में ध्रुवीकृत टेलीविज़न समाचार स्थान में एक स्वतंत्र आवाज़ गया", को पिछले साल अडानी समूह ने अपने कब्जे में ले लिया था, जो बड़े व्यवसायों के स्वामित्व या नियंत्रण वाले कई मीडिया आउटलेट्स में से एक बन गया.यहाँ पढें कि चैनल अपने सह-संस्थापकों प्रणय रॉय और राधिका रॉय के बिना कैसे आगे बढ़ रहा है, इस बारे में जानने के लिए न्यूज़लॉन्ड्री की ये रिपोर्ट भी पढ़ सकते हैं.
खुशी की बात यह है कि रॉयटर्स की इस रिपोर्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजद्रोह कानून को निलंबित करने और टीवी चैनल मीडिया वन मामले में प्रेस की स्वतंत्रता कायम रखने का उल्लेख किया है. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा था कि- चैनल को संचालन की मंजूरी न देने से प्रेस की स्वतंत्रता पर "चिंताजनक प्रभाव" पैदा होगा. इस मामले में केंद्र सरकार ने "नागरिकों को अधिकारों से वंचित करने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा की दलील" का इस्तेमाल कैसे किया, इसके बारे में आप यहां पढ सकते हैं ।
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