प्रोफेसर वीके त्रिपाठी गलियों में पर्चे बांटते हुए.
Video

नफरत के खिलाफ 30 साल का संघर्ष, गाज़ा से राजघाट तक प्रोफेसर वीके त्रिपाठी की कहानी

हाल ही में राजघाट से आए एक वीडियो ने सबका ध्यान खींचा. वीडियो में एक पुलिसवाले को राजघाट से एक बुजुर्ग को हटाते देखा गया. ये बुजुर्ग और कोई नहीं बल्कि पूर्व आईआईटी प्रोफेसर वीके त्रिपाठी हैं. जो गाज़ा नरसंहार के खिलाफ शांतिपूर्ण उपवास पर बैठे थे और पुलिस उनसे पोस्टर हटाने को कह रही थी.

न्यूज़लॉन्ड्री से बातचीत में प्रोफेसर बताते हैं कि पुलिस ने जब सवाल किया कि “गाज़ा से आपको क्या मतलब?”, तो उनका जवाब था- “आप पहले इंसान हैं, बाद में इंस्पेक्टर.” हालांकि, प्रोफेसर त्रिपाठी का यह टकराव केवल राजघाट की दीवारों तक सीमित नहीं है, बल्कि उस लंबे संघर्ष का हिस्सा है जो वे तीन दशकों से नफरत और सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ लड़ रहे हैं.

न्यूज़लॉन्ड्री के साथ बातचीत में उन्होंने अपने इस संघर्ष की कहानी साझा की. वे बताते हैं कि 1990 के भागलपुर दंगे ने उनकी सोच को पूरी तरह बदल दिया था. अमेरिका में अध्यापन छोड़कर वे भारत लौटे और अहिंसक प्रतिकार का रास्ता चुना. तब से वे मोहल्लों में पर्चे बांटते हैं, छात्रों से चर्चा करते हैं, और गांधीवादी तरीके से नफरत की राजनीति को चुनौती देते हैं.

उनका कहना है कि भारत का सबसे सबसे कमजोर तबका अब राजनीतिक दलों के लिए आसान शिकार बन चुका है. दलित छात्रों पर शिक्षा संस्थानों में भेदभाव आज भी एक गंभीर समस्या है, और आईआईटी जैसे शीर्ष संस्थानों तक में यह सच्चाई मौजूद है. वे चेतावनी देते हैं कि मंदिरों और धार्मिक संस्थानों पर सांप्रदायिक ताक़तों का कब्ज़ा केवल धर्म का अपमान नहीं बल्कि इंसानियत की जड़ों पर हमला है.

राजघाट की घटना ने उन्हें और स्पष्ट कर दिया कि गांधी की धरती पर अब इंसानियत और अहिंसा की बात करना भी शक की नज़र से देखा जाता है. सुरक्षाबलों के साये और पूछताछ की दीवारें उस जगह खड़ी कर दी गई हैं जहां कभी गांधी ने बिना हथियारों के, बिना नफरत के, प्यार और प्रतिरोध का सबक दिया था. वे कहते हैं कि यह भारत की राजनीति का खतरनाक मोड़ है, जहां नफरत सत्ता का सबसे बड़ा औजार बन चुकी है.

फिर भी उनका विश्वास टूटा नहीं है. वे मानते हैं कि आज भले ही संगठित नफरत और मजबूत हो गई हो, लेकिन नए ज़माने के कुछ बच्चे अब भी खुले दिमाग के साथ इंसानियत का रास्ता चुन रहे हैं. यही वजह है कि उनका कहना है- “हिंदुस्तान अभी जिंदा है.”

देखिए प्रोफेसर त्रिपाठी से बातचीत पर आधारित ये खास रिपोर्ट.

Also Read: समाज के सबसे कमजोर तबके का वोट चोरी हो रहा है: वीरेंद्र सिंह

Also Read:  संभल हिंसा के आरोपी बनाये गए सांसद ज़िया उर रहमान बर्क का सवाल: दूसरे सर्वे की जरूरत क्यों पड़ी?