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#MeToo: मुंबई फिल्म उद्योग का खुला और घिनौना सच

हॉलीवुड से शुरू हुआ #MeToo अभियान आखिरकार मुंबई फिल्म इंडस्ट्री तक पहुंच ही गया. फिलहाल अनुराग कश्यप की फिल्म कंपनी फैंटम के बिजनेस पार्टनर विकास बहल के ऊपर एक महिला सहकर्मी ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. बहल सुपरहिट फिल्म क्वीन के निर्देशक हैं. मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में इस अभियान की शुरुआत अभिनेत्री तनुश्री दत्ता ने की. उन्होंने सीनियर फिल्म अभिनेता नाना पाटेकर के ऊपर 2008 में ‘हॉर्न ओके प्लीज’ के सेट पर एक डांस सीक्वेंस के समय हुए अप्रत्याशित और अपमानजनक अनुभवों को शेयर करते हुए यौन शोषण का आरोप लगाया है.

इस आरोप के बाद हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण के मामले ने तूल पकड़ा है. पत्रकार अब छोटे, मझोले और बड़े फिल्म स्टार से उनकी राय पूछ रहे हैं. कुछ समर्थन में तो कुछ महिलाओं के प्रति निस्संग सहानुभूति में अपनी राय रख रहे हैं. हॉलीवुड में हार्वी वाइनस्टीन का मामला सामने आने के बाद अब भारत में भी अभिनेत्रियों के बीच सुगबुगाहट दिखने लगी है.

पिछले साल दबे स्वर में ही सही, लेकिन अनेक अभिनेत्रियों ने खुद के हौलनाक अनुभव शेयर किये थे. इसके बावजूद यह सच्चाई है कि कभी बदनामी और कभी अलग-थलग कर दिए जाने के डर से अभिनेत्रियां ऐसे अपराधियों के नाम लेने से हिचकिचाती हैं. अक्सर उनकी आपबीती में एक निर्माता, एक निर्देशक, एक कास्टिंग डायरेक्टर और एक को-एक्टर जैसे शब्दों से आरोपी का चेहराविहीन उल्लेख किया जाता है. अपराधियों का पर्दाफाश नहीं होता. कुछ समय के बाद फिल्म इंडस्ट्री पुराने ढर्रे पर चलने लगती है.

इसी साल वयोवृद्ध अभिनेत्री डेज़ी ईरानी ने अपना पचास साल पुराना कटु अनुभव साझा किया कि उनके संरक्षक और अभिभावक के तौर पर साथ आए पुरुष ने उनका बलात्कार किया था, तो फिल्म इंडस्ट्री में खलबली सी मच गयी थी. एक बार फिर पुराने किस्से सुनाई पड़ने लगे. दिक्कत यह है कि हमेशा आरंभिक शोर के बाद सब कुछ कानाफूसी में तब्दील होकर अगली घटना सामने आने तक भुला दिया जाता है.

याद करें कि  इसी साल अप्रैल में ‘कास्टिंग काउच’ की कितनी घटनायें सुनाई और बताई गईं. राधिका आप्टे, स्वरा भास्कर, रिचा चड्ढा, उषा जाधव ने अपने अनुभव बताये. कुछ अभिनेत्रियों ने ऑफ द रिकॉर्ड कुछ कास्टिंग डायरेक्टर और फिल्म डायरेक्टर्स के नाम भी बताये. लेकिन उनमें से कोई भी दोषियों के नाम सार्वजानिक करने का साहस नहीं बटोर पाया. सबका डर एक ही है, हिंदी फिल्म उद्योग का जकड़न भरा तंत्र उनका करियर बर्बाद कर देगा, और असमय इंडस्ट्री से बाहर कर देगा.

एक फिल्म अभिनेत्री जो फिलहाल फिल्मों में सक्रिय हैं, उन्होंने तनुश्री प्रकरण पर उनकी हिम्मत की दाद देने के बाद यही कहा कि उसे फिल्म इंडस्ट्री में काम नहीं चाहिए, इसलिए वह हिम्मत कर सकती है. सारा मामला एकता के अभाव और सामूहिक स्वर की कमी से बेजान हो जाता है. फिल्म और टीवी कलाकारों के एसोसिएशन CINTAA के मानद सचिव और प्रवक्ता सुशांत सिंह ने अपने बयान में स्पष्ट कहा है कि 2008 में तनुश्री की शिकायत पर उचित फैसला नहीं लिया जा सका था. उन्होंने अफ़सोस जाहिर किया है कि एसोसिएशन के संविधान में तीन साल से पुराने मामले पर विचार करने का प्रावधान नहीं है. उन्होंने अधिकारियों से अपील की है कि इस मामले की निष्पक्ष जांच करवाएं.

इस बीच नाना पाटेकर के वकील ने तनुश्री दत्ता को लीगल नोटिस भेजा है. जवाब में तनुश्री दत्ता ने भी नाना पाटेकर के खिलाफ ओशीवारा थाने में एफआईआर दर्ज करवाया है. महारष्ट्र सरकार के गृह राज्यमंत्री दीपक केसरकर ने पहले तो नाना पाटेकर के बारे कहा कि वे महज अभिनेता नहीं हैं, वह सोशल वर्कर भी हैं और उन्होंने महाराष्ट्र के लिए अनेक कार्य किये हैं. संकेत यह था कि उन्हें किसी आरोप में घसीटना उचित नहीं होगा. बाद में उन्होंने यह कहना शुरू किया कि अगर तनुश्री दत्ता पुलिस में शिकायत करती हैं तो पूरी पारदर्शिता के साथ जांच होगी.

तनुश्री दत्ता ने नाना पाटेकर और गणेश आचार्य के साथ ही निर्माता सामी सिद्दीकी, निर्देशक राकेश सारंग और मनसे के कार्यकर्ताओं के खिलाफ मामला दर्ज किया है. अब देखना रोचक होगा कि मुंबई पुलिस और महारष्ट्र सरकार पारदर्शी जांच के लिए क्या कदम उठाती है.

उन्होंने अपनी शिकायत में लिखा है कि तीन दिनों के रिहर्सल के बाद गाने की शूटिंग के चौथे दिन 26 मार्च, 2008 को ज़रुरत नहीं होने के बावजूद नाना पाटेकर सेट पर मौजूद थे. मुझे डांस सिखाने के नाम पर हाथ पकड़ कर खींच और धकेल रहे थे. इस प्रक्रिया में अनुचित तरीके से वे मुझे छू रहे थे. मुझे सब असहज लगा तो मैंने निर्माता-निर्देशक से शिकायत की. शूटिंग रोक दी गई. एक घंटे के बाद जब मुझे बुलाया गया तो नए स्टेप जोड़ दिए गए, जो अन्तरंग होने के साथ ही मेरे शरीर को छूने वाले भी थे.

इस मामले में नाना पाटेकर और उनके समर्थक तर्क दे रहे हैं कि सेट पर सैकड़ों लोगों की मौजूदगी में कैसे कोई ऐसी हरकत करेगा? यहां अगर आप बसों, बाज़ार और मेले में होने वाली छेड़खानियों को याद करें तो वह तमाम लोगों की भीड़ के बीच ही होती हैं. यौन उत्पीडन और शोषण हमेशा बलात्कार ही नहीं होता. लड़की की मर्जी के बगैर उसे छूना भी इसी श्रेणी में आता है.

इन दिनों बच्चियों को परिवार और स्कूलों में ‘बैड टच’ और ‘गुड टच’ का फ़र्क समझाया जाता है. यौन उत्पीड़न के दोषी उत्तेजना में हिंसक और आक्रामक हो जाते हैं. उन्हें परिणाम की चिंता नहीं रहती. अमूमन देखा गया है कि ऐसे मामलों में प्रत्यक्षदर्शी भी खामोश रह जाते हैं. फिल्म इंडस्ट्री में ताकतवर और रसूखदार का दबदबा बना रहता है. उनकी लॉबी नाराज़ होने पर इंडस्ट्री से निकाल बाहर करने का इंतजाम कर लेती है. तनुश्री के बारे में प्रचार हो गया कि वह अनप्रोफेशनल है. स्थिति यह बन गयी कि आख़िरकार तनुश्री दत्ता को फिल्म इंडस्ट्री छोडनी पड़ी.

नाना पाटेकर हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय मराठी एक्टर हैं. किसी राजनीतिक पार्टी से उनका सीधा ताल्लुक नहीं है, लेकिन सत्ता में मौजूद सभी नेता बतौर अभिनेता और सोशल वर्कर उनका सम्मान करते हैं. अपने बेबाक और ढीठ व्यक्तित्व से उन्होंने एक अलग पहचान बनायीं है. फिल्म इंडस्ट्री में सभी मानते हैं कि नाना ‘नो नॉनसेंस’ व्यक्ति हैं और सेट पर निर्माता-निर्देशक और सहयोगी कलाकारों से कुछ भी कह सकते हैं. रूखे व्यवहार के लिए मशहूर नाना तुनकमिजाज हैं. वे थोड़े अप्रिय और अप्रत्याशित माने जाते हैं. फिल्मों में उनकी प्रतिभा की वजह से लेने के बावजूद डायरेक्टर डरे-सहमे रहते हैं. अनेक फिल्मकारों और को-एक्टर के कड़वे अनुभव रहे हैं. व्यर्थ की औपचारिकताओं का पालन न करने की वजह से उनका व्यवहार उजड्ड और उदंड लगता है. इसका उन्हें लाभ भी मिलता है. वह कुछ बोल कर निकल जाते हैं. उन्हें ‘मूडी’ कलाकार की संज्ञा मिली हुई है. उनके साथ काम कर चुके कलाकार कहते हैं कि वे ऐसे ही हैं.

तनुश्री दत्ता की ताज़ा एफ़आईआर  से स्पष्ट है कि वह पिछली बार की तरह खामोश नहीं रहेंगी. पिछली बार अपमान के घूंट पीकर उन्हें फिल्म इंडस्ट्री से तौबा करनी पड़ी थी. फिल्म इंडस्ट्री में इतिहास कुरेदें तो अनेक नई-पुरानी घटनाएं मिल जायेंगीं. ‘दो शिकारी’ (1979) फिल्म में बिश्वजीत ने निर्माता-निर्देशक से साठगांठ कर फिल्म में चुम्बन का दृश्य डलवाया था. फिल्म की नायिका रेखा थीं. इस सीन को फिल्माते समय बिश्वजीत ने रेखा को दबोचा और निर्देशक ने पांच मिनट तक कट नहीं बोला. रेखा तब नयी-नयी थीं. माधुरी दीक्षित को भी ऐसे जबरन दृश्यों से गुजरना पड़ा है.

1935 की कोलकाता के न्यू थिएटर की एक घटना है. कोलकाता के बोउ बाज़ार (रेड लाइट) की इमाम बांदी को बीएन सरकार की टीम ने चुना. उन्हें रतन बाई का नाम दिया गया. उन्हें ‘यहूदी की लड़की’, ’कारवां-ए-हयात’ जैसी फिल्मों में काम दिया. रतन बाई को राष्ट्रीय ख्याति मिली. लेकिन जब ‘कारवां-ए-हयात’ रिलीज हुई तो रतन बाई अपनी भूमिका के कट जाने से हैरान हुईं और उन्होंने इसकी लिखित शिकायत की. तब बीएन सरकार के वकील ने जवाब में जो चिट्ठी लिखी, उसमें उनकी पृष्ठभूमि का उल्लेख कर यह जताने की कोशिश की गयी कि न्यू थिएटर ने उन्हें बोउ बाज़ार से उठा कर इस मुकाम तक पहुंचाया, भला बीएन सरकार रतन बाई की प्रतिष्ठा को कैसे आंच पहुंचा सकते हैं? रतन बाई चुप नहीं बैठीं. उन्होंने पलट कर जवाब भेजा कि सोनागाछी, रामबागान, हरकटा गली और बोउ बाज़ार से सैकड़ों लड़कियां चुनी गईं, लेकिन उनमें से कितनी को राष्ट्रीय ख्याति मिली? मेरी पैदाईश और पृष्ठभूमि के बारे में बता कर सरकार अपनी घृणा व्यक्त कर रहे हैं.

ऐसी अनेक घटनाओं का उल्लेख मिलता है, जिसमें अभिनेत्रियों का यौन शोषण और उत्पीड़न फिल्म उद्योग में किया गया. कानन देवी और दुर्गा खोटे ने अपनी आत्मकथाओं में ऐसे बुरे अनुभवों का ज़िक्र किया है. उन दिनों तो माना ही जाता था कि सभ्य और शिक्षित परिवारों की लड़कियां फिल्मों में नहीं आतीं. अख्तरी बाई फैजाबादी उर्फ़ बेगम अख्तर के साथ किशोरावस्था में ही दुष्कर्म हुआ. उन्होंने एक बेटी को जन्म दिया, लेकिन उसे बेटी का दर्जा नहीं दे सकीं. उसे बहन ही बताती रहीं. हर दशक में मशहूर होने के पहले अभिनेत्रियों को बुरे और अपमानजनक अनुभवों से गुजरना पड़ा है. फिल्म इंडस्ट्री में यह मानी हुई बात है कि आउटसाइडर लड़कियों को यह सब भुगतना ही पड़ेगा. अभी लड़कियां थोड़ी सजग हो गयी हैं. उन्हें हमेशा सचेत रहना पड़ता है. इसी हफ्ते पूजा भट्ट ने दिल्ली में बताया कि एक बार एक को-एक्टर ने एयरपोर्ट पर उनकी छाती पर हाथ रखा था.

अनुराग कश्यप का ड्रीम फैंटम दो दिनों पहले बंद हो गया, उसके चार निदेशकों में से एक विकास बहल पर एक सहायिका ने यौन उत्पीडन का आरोप लगाया है. फैंटम के बंद होने में इस आरोप का भी असर रहा है. महिला और बाल विकास मंत्रालय के सख्त आदेश के बावजूद फिल्म कंपनियों में यौन उत्पीडन और शोषण की कार्रवाई के लिए ज़रूरी कमेटी नहीं हैं. शोषित और उत्पीड़ित लड़कियां बदनामी के डर और कुछ भी नतीजा न निकलने की आशंका से घटनाओं को खुलेआम नहीं कहती हैं. उन्हें सलाह दी जाती है कि देख लो, कुछ होगा नहीं और तुम्हें बदनामी मिलेगी.

तनुश्री दत्ता के मामले में ही अमिताभ बच्चन, सलमान खान और दूसरे बड़े स्टार का रवैया शर्मनाक रहा है. सपोर्ट करना तो दूर, उन्होंने सिरे से किनारा कर लिया और कुछ भी कहने से बचे. एक रेणुका शहाणे खुल कर समर्थन में आईं और उन्होंने तार्किक तरीके से अपना पक्ष रखा. युवा कलाकारों ने बेशक हमदर्दी दिखाई है. कुछ ऐसी भी प्रतिक्रियाएं आईं कि ऐसे मामले तो हर जगह होते हैं. और देखना पड़ेगा कि कौन दोषी है और किस का आरोप सही है. पितृसत्तात्मक व्यवस्था इसी तरके से काम करती है. वह अपने बचाव के तर्क इसी तरह ढूंढ़ती है, जिसमें सबसे पहले लड़कियों की शिकायत को ख़ारिज कर दिया जाता है. अमूमन सभी सोचते हैं कि यह कौन सी नयी बात है. ’नो मीन्स नो’ की किताबी और फ़िल्मी वकालत तो की जाती है, लेकिन व्यवहार में उसके पैरोकार ही पलटते नज़र आते हैं.

पिछले दो सालों में जागरूकता आई है. फिल्म इंडस्ट्री के दफ्तरों, सेट और स्टूडियो में लड़कियों की तादाद बढ़ी है. अब अभिनेत्रियां अपनी बहनों या मां के साथ शूटिंग पर नहीं जातीं, कमरे में कोई लड़की मौजूद हो तो फिल्म यूनिट के पुरुष सदस्य अपनी टिप्पणियों, बैटन और मजाक में सावधानी बरतते हैं. सबंध और स्थितियां बदल रही है. अगर तनुश्री दत्ता के आरोपों का उचित नतीजा निकला तो इसके व्यापक परिणाम होंगे. कास्टिंग काउच के अगले चरण के शोषण और उत्पीड़न की संभावनाओं पर अंकुश लगेगा.