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वैदिक मंत्रोच्चार के बीच दी गई ‘दिल्ली’ की आहुति
गाजीपुर के रामबचन सिंह (50 वर्ष) को लगता है कि जैसे लोहा लोहे को काटता है, वैसे ही धुंआ धुंए को काटेगा. रामबचन और उनकी पत्नी पूनम (42 वर्ष) धार्मिक संगठन विहंगम योग से करीब 25 वर्षों से जुड़े हैं. विकट ठंड के बावजूद उन्होंने गाजीपुर से दिल्ली का सफर सिर्फ इस यज्ञ के लिए किया है.
विहंगम योग की तरफ से रविवार को दिल्ली के उपनगरीय इलाके द्वारका के सेक्टर 11 में डीडीए स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में 5,101 कुंडों के यज्ञ का आयोजन किया गया. आयोजकों के मुताबिक यज्ञ में करीब सात हजार लोग शामिल हुए.
भारत का संविधान अपने हर नागरिक को अपनी पसंद का धर्म मानने, उसका प्रचार करने की छूट देता है लेकिन ऐसा दार्मिक मान्यताएं जो हमारे पर्यावरण के लिए चुनौती बन जाएं, उन्हें जारी रखने पर विचार करना चाहिए या नहीं? विशेष रूप से उस दिल्ली में जहां की आबोहवा दुनिया की सबसे प्रदूषित और जहरीली श्रेणी में पहुंच गई है.
सेंट्रल पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली की हवा की गुणवत्ता (एयर क्वॉलिटी) लगातार ‘हजार्ड्स’ (खतरनाक) और ‘बहुत खराब’ के बीच झूल रही है. अक्टूबर और नवंबर में दिल्ली में धुंध का दोष पंजाब और हरियाणा पर मढ़ना आसान था क्योंकि दोनों ही राज्यों में पराली (धान का अवशेष) जलाई जा रही थी. आज की स्थिति यह है कि गेंहू की बुवाई हो चुकी है और पराली जलाने का काम भी खत्म हो चुका है. लिहाजा दिसंबर में दिल्ली की हवा की जिम्मेदारी सीधे तौर पर दिल्ली सरकार, दिल्ली महानगर पालिका और केन्द्र सरकार की है.
सिस्टम ऑफ एयर क्वॉलिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग (सफर) के रियल टाइम आंकड़ों का औसत देखें तो 2018 में पूरे साल के दौरान दिल्ली की हवा की गुणवत्ता सिर्फ दो दिन ‘गुड’ की श्रेणी में दर्ज की गई. दिल्ली के प्रदूषण संबंधित ये सभी आंकड़ें तथ्य हैं. बावजूद इसके दिल्ली, द्वारका के स्पोर्ट्स कॉम्पलेक्स में ‘पर्यावरण शुद्धि’ के नाम पर इतने बड़े पैमाने पर आम की लकड़ियों और हवन सामग्री को खुले में जलाने की अनुमति दी गई.
इस महायज्ञ में आहुति देने के लिए दिल्ली के डाबरी क्षेत्र से आईं सविता कुमारी (35 वर्ष) विहंगम योग की प्रचारक हैं. वह पिछले आठ वर्षों से संगठन से जुड़ा हुआ बताती हैं. उन्होंने न्यूज़लॉन्ड्री को बताया, “यह हवन जानबूझकर दिल्ली में करवाया गया ताकि यहां के लोगों को प्रदूषण से छुटकारा मिल सके. आप देखिएगा, हवन के बाद अपने-आप दिल्ली के वातावरण में आपको फर्क दिखेगा.”
सविता इस रिपोर्टर के एक सवाल का जवाब देने में असमर्थ सिद्ध हुई कि वे कौन से वैज्ञानिक गुण हैं जिनसे हवन के धुएं से वातावरण शुद्ध होने का दावा वो कर रही हैं.
सविता से बातचीत के दौरान ही रामेश्वर कुशवाहा (64 वर्ष) इस रिपोर्टर की पड़ताल करने लगे, “आप किस तरह के मीडिया से हैं? हिंदुओं के यज्ञ पर इस तरह के सवाल-जवाब कर रहे हैं. कभी मुसलमानों से भी सवाल कर लिया कीजिए. सारा पर्यावरण का नुकसान हमारे धार्मिक संस्कारों से ही होता है, कभी दिवाली पर पटाखे, कभी हवन. आप लोगों को सेकुलरिज्म का कीड़ा इतना क्यों काटता हैं?”
हम उनसे निवेदन करते रहे कि हवन से पर्यावरण कैसे शुद्ध होगा, इस सीधे से सवाल की वैज्ञानिकता समझा दें. पेशे से वकील रामेश्वर कुशवाहा ने इस रिपोर्टर की एक न सुनी. जबरन उन्होंने रिपोर्टर का नाम पूछा और नाम से धर्म की पहचान करने के बाद संतुष्ट हुए कि यह रिपोर्टर भी उनके ही धर्म से ताल्लुक रखता है.
दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक चलने वाले यज्ञ में बच्चे, बूढ़े और जवान खांसते, छींकते और आंख मलते नज़र आए. ऐसे भी लोग दिखे जिन्होंने नाक पर मास्क और आखों पर चश्मे लगा कर यज्ञ में आहुति दी. यज्ञ के मुख्य आयोजक जो मंचासीन थे, वे भी अपनी आंखें मलते नज़र आए. हैरानी की बात थी कि खुद को तकलीफ देकर भी उनके भीतर यह बोध था कि वे पर्यावरण की बेहतरी में अपना योगदान दे रहे थे.
न्यूज़लॉन्ड्री ने विहंगम योग के संस्थापक स्वतंत्र देव से बात करने की कोशिश की लेकिन उनतक पहुंचने के लिए सुरक्षा के तीन स्तर पार करने थे. उनके कार्यकर्ताओं ने बताया कि ‘गुरुजी से बात करने के लिए पियूषजी से अनुमति लेनी होगी’. पीयूष स्वतंत्र देव के निजी सचिव हैं. जब इस रिपोर्टर ने पियूष से गुरूजी से बात करवाने की बात कही तो उन्होंने स्पष्ट शब्दों में मना कर दिया, “गुरुजी मीडिया से बात नहीं करते. आपको जो कुछ पूछना है, हमसे पूछिए.”
पियूष से जब हमने पूछा कि पर्यावरण शुद्धि के लिए किए जा रहे हवन के पीछे तर्क क्या है. उन्होंने कहा, “आप गूगल कीजिए. आपको यज्ञ की वैज्ञानिकता के बारे में बहुत साम्रगी मिलेगी.” यह रिपोर्टर उनसे पूछता रहा कि दिल्ली की हवा खतरनाक स्तर को छू रही है, क्या आपको प्रदूषण के मद्देनज़र यज्ञ को टाल नहीं देना चाहिए था. वह सवाल के जवाब में “गूगल कीजिए-गूगल कीजिए” कहते रहे.
गूगल पर मौजूद तमाम धार्मिक वेबसाइटों पर वैदिक यज्ञों की महत्ता और गुणगान लिखा गया है. तथाकथित वैज्ञानिकों के हवाले से लिखा गया है कि यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है. लेकिन न किसी वैज्ञानिक का नाम मौजूद है. न ही उन वैज्ञानिकों के ऐसे कोई शोध कार्य मौजूद हैं, जिनसे यज्ञ और वातावरण शुद्धि के बीच कोई सांगोपांग संबंध स्थापित किया जा सके. इस रिपोर्टर ने विंहगम योग में स्वतंत्र देव के पीएस सहित अन्य आयोजकों से वैज्ञानिक के नाम और शोध के बारे में पूछा पर कोई भी इस मामले में हमारी मदद नहीं कर सका. महायज्ञ के आयोजक अनिल बंसल ने बाद में इस रिपोर्टर के फोन पर क्वोरा का एक लिंक भेजा.
पीयूष ने हमें बताया कि यज्ञ की अनुमति दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए) से मिली थी. डीडीए द्वारका जोन के चीफ एक्जक्यूटिव राजीव कुमार सिंह ने अनुमति की प्रक्रिया पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया. हालांकि डीडीए के एक अन्य अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, “क्या आपको नहीं मालूम है कि विहंगम योग क्या चीज़ है और कौन से लोग उससे जुड़े हैं?” हमने इस संकेत पर जानकारी जुटाई तो पता चला कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाई पंकज मोदी और भाजपा सांसद मनोज तिवारी जैसे लोग विहंगम योग संस्था से जुड़े हैं.
रविवार को यज्ञ कार्यक्रम में पंकज मोदी मंच पर मौजूद थे. शनिवार रात उसी द्वारका क्षेत्र में विहंगम योग के सत्संग कार्यक्रम में भाजपा सांसद मनोज तिवारी भी पहुंचे थे और उन्होंने भजन गायन भी किया. यज्ञ के दिन एमडीएच मसाला कंपनी के मालिक धर्मपाल भी मंच पर मौजूद थे. विहंगम योग से प्रभावशाली लोगों के जुड़े होने के कारण संभवत: अनुमति लेने में दिक्कत नहीं हुई होगी. अन्यथा जब दिल्ली की जनता प्रदूषण से त्रस्त हो और पर्यावरण को लेकर व्यापक स्तर बहस छिड़ी हो, वहां खुलेआम पर्यावरण के साथ इस तरह का मज़ाक करना अपने आप में विद्रूप है.
मालूम हो कि दिल्ली सरकार के पर्यावरण मंत्रालय ने हाल ही में 24 दिसंबर को एक अतिआवश्यक गाइडलाइन जारी की थी. गाइडलाइन के मुताबिक दिल्ली एनसीआर में निर्माण कार्य, उद्योग धंधे, कचरा जलाने आदि पर रोक लगा दिया गया है. प्रदूषण की आपात स्थिति को देखते हुए यह फैसला अगले 48 घंटों के लिए लिया गया था. लेकिन सीपीसीबी के आंकड़ें को दिनवार गौर करें तो दिल्ली गैस चैंबर नज़र आती है. 30 तारीख को भी दिल्ली का एयर क्वालिटी प्रदूषण स्तर ‘खतरनाक’ स्तर पर ही था. प्रदूषण के खतरनाक स्तर पर पहुंचते ही सलाह जारी हो जाती है कि घर के बाहर जाने से बचा जाए.
विंहगम योग के कार्यकर्ताओं ने न सिर्फ हवन से पर्यावरण शुद्ध करने का दावा किया बल्कि वे बताते रहे कि हवन से व्यक्ति निरोग होता है. एमबीए की छात्रा मनीषा मिश्रा बताती हैं, “हवन के धुंए से शरीर निरोग रहता है. मैं विहंगम योग के सभी यज्ञ कार्यक्रमों में जाती हूं. यह यज्ञ की ही देन ही कि मैं आजतक कभी बीमार नहीं हुई.”
वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन (WHO) की बीते साल आई रिपोर्ट के अनुसार साल 2016 में भारत में पांच साल से कम उम्र के करीब एक लाख बच्चों की मौत वायु प्रदूषण से हुई थी.
मनीषा से जब न्यूज़लॉन्ड्री ने पूछा, जब हवन के इतने गुण हैं तो क्यों नहीं विहंगम योग दिल्ली सरकार और केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर यह बताता कि वे सारे प्रदेश में हवन करवाएं? जवाब में मनीषा कहती हैं, “बिल्कुल, समूचे दिल्ली में हवन होना चाहिए. लेकिन वह विहंगम योग के हवन साम्रगी से होना चाहिए. विहंगम योग की हवन साम्रगी शुद्ध है. और, सिर्फ विहंगम योग की साम्रगी पर्यावरण को शुद्ध कर सकती है.”
यज्ञ में भाग ले रहे दूसरे लोगों ने भी विहंगम योग की हवन साम्रगी पर जोर दिया. जबकि हकीकत यह है कि हवन साम्रगी कमोबेश एक (आम की लकड़ियां, घी, जड़ी-बूटी, नारियल आदि) जैसी ही होती हैं. तकरीबन सौ क्विंटल से ज्यादा आम की लकड़ियों की आहुति इस महायज्ञ में दी गई.
कार्यकर्ताओं और श्रद्धालुओं के मुंह-जुबानी प्रचार में व्यापारिक हित निहित है. विहंगम योग तरह-तरह के उत्पाद भी बनाता है जिसमें घी, अगरबत्ती, हवन साम्रगी, च्यवनप्राश, तेल, चाय आदि शामिल हैं. जब कार्यकर्ता विंहगम योग के उत्पाद से ही वातावरण शुद्ध करने की बात पर जोर देते हैं, तब वे दरअसल संस्था के व्यापार को विस्तार देने में मदद कर रहे होते हैं. रोचक यह भी था कि हवन साम्रगी की ब्रांडिंग भी ‘ग्लोबल वार्मिंग में कमी’, ‘हवन धुंए से ओजोन परत क्षय में कमी’ जैसे जुमलों से की जा रही है.
सेंटर फॉर साइंस एंड इंवॉरमेंट से जुड़ी शर्मीला बताती हैं, “हवन के धुंए से लोग निरोग होते हैं, वातावरण शुद्ध होता है इस पर सिर्फ और सिर्फ हंसा जा सकता है. दुखद है कि पढ़े-लिखे लोग भी इस तरह की बातों में फंस जाते हैं, भरोसा करते हैं.”
पर्यावरणविद और वायु प्रदूषण पर काम कर रहे सुनील दहिया कहते हैं, “दिल्ली में पहले से प्रदूषण खतरनाक स्तर को पार कर चुका है और आम की लकड़ियां जलाई जा रही है. यह बायो मास है, क्षय ऊर्जा संसाधनों का है. इससे प्रदूषण होता है. और, आप इसे इतने बड़े स्तर पर कर रहे हैं तो प्रदूषण का असर भी दिखेगा.”
हिंदू दर्शन पर्यावरण संरक्षण का दावा जरूर करता है लेकिन श्रद्धालुओं की आस्था तर्कों को सिर के बल खड़ा कर देती है.
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