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बिहार चुनाव: क्या ओवैसी सीमांचल में बिगाड़ेंगे महागठबंधन का खेल?

बिहार में दो चरणों के मतदान ख़त्म होने के बाद सबकी निगाहें सीमांचल की ओर लगी हुई हैं. पहले दो चरणों में सीधी टक्कर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और महागठबंधन के बीच रही, वहीं सीमांचल के इलाकों में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) पूरे दमखम से उतरी हुई है. चूंकि इस इलाके में मुस्लिम आबादी ज़्यादा है और मुस्लिम वोटर लम्बे समय से महागठबंधन से जुड़े दल राजद और कांग्रेस के साथ रहे हैं, ऐसे में यह माना जा रहा है कि एमआईएम को जो भी वोट मिलेगा वो महागठबंधन को नुकसान पहुंचाएगा.

हैदराबाद के सांसद असदुद्दीन ओवैसी बीते कई सप्ताह से किशनगंज के दफ्तरी होटल में डेरा जमाए हुए हैं. लगभग हर रोज कहीं न कहीं उनकी सभा हो रही है. वे अपनी सभाओं में सत्ता पक्ष से ज़्यादा विपक्ष यानी महागठबंधन पर निशाना साध रहे हैं. वे लगातार राजद, कांग्रेस समेत तमाम दलों को सीमांचल को नजरअंदाज करने का आरोप लगा रहे हैं. जानकर बताते हैं कि ओवैसी को भी पता है कि जिस वोट बैंक पर उनकी निगाह है वो किसको वोट करते हैं. इसीलिए वे विपक्ष पर ही सवाल उठा रहे हैं.

साल 2015 में बिहार की राजनीति में कदम रखने वाले ओवैसी की पार्टी एमआईएम को पहले चुनाव में कोई सफलता नहीं मिली. तब उन्होंने सिर्फ सीमांचल के ही छह विधानसभा क्षेत्रों में अपना उम्मीदवार उतारा था. 2019 लोकसभा चुनाव में भी एमआईएम मैदान में उतरी लेकिन इस बार भी सफलता तो नहीं मिली, पर किशनगंज लोकसभा क्षेत्र से एमआईएम के प्रत्याशी तीसरे नम्बर पर रहे. वहीं किशनगंज लोकसभा क्षेत्र के दो विधानसभा क्षेत्रों में एमआईएम दूसरे नम्बर पर रही.

सीमांचल में रैली के दौरान ओवैसी

सरकारी दस्तावेज में सीमांचल शब्द का कोई जिक्र नहीं है. यह नाम यहां के कद्दावर नेता रहे तस्लीमुद्दीन ने दिया है. कांग्रेस से अपनी राजनीति शुरू करने वाले तस्लीमुद्दीन आगे चलकर राजद में शामिल हो गए. यहां से वे लम्बे समय से प्रतिनिधित्व करते रहे. ये सीमांचल के अंतर्गत अररिया, कटिहार, किशनगंज और पूर्णिया को गिनते थे. इसमें कटिहार छोड़ तीनों के सांसद रहे. इलाके को सीमांचल शब्द से पहचान दिलाने के कारण तस्लीमुद्दीन को उनके समर्थक सीमांचल का गांधी पुकारते हैं. हालांकि उनकी छवि एक विवादास्पद नेता की रही है.

एमआईएम तो साल 2014 से सीमांचल इलाके पर नजर गड़ाए हुए है, लेकिन उनको पहली सफलता तब मिली जब लोकसभा चुनाव में किशनगंज सदर के कांग्रेस विधायक मोहम्मद जावेद लोकसभा चुनाव जीत गए. उसके बाद यहां उपचुनाव हुआ जिसमें एमआईएम को जीत मिली.

जहां तक विधानसभा चुनाव 2020 की बात है तो एमआईएम बहुजन समाज पार्टी और आरएलएसपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. इस गठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री के उम्मीदवार पूर्व केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा हैं. एमआईएम 243 सीटों पर से महज 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जिसमें से 14 सीमांचल के इलाकों में हैं. सीमांचल में 24 विधानसभा हैं.

ओवैसी बीजेपी को फायदा पहुंचाने आए हैं?

असदुद्दीन ओवैसी पर लगातार एनडीए को फायदा पहुंचाने का आरोप लग रहा है. महागठबंधन के नेता आरोप लगा रहे हैं कि ओवैसी इन इलाकों में मुस्लिम वोटरों का वोट काटकर बीजेपी को फायदा पहुंचा रहे हैं. इस आरोप को बल और तब मिला जब ओवैसी के गठबंधन की सदस्य बीएसपी प्रमुख मायावती ने विधान परिषद के चुनाव में समाजवादी पार्टी को हराने के लिए बीजेपी को सपोर्ट करने की बात कह दी. जब तक मायवती सफाई देतीं तब तक स्थानीय लोगों में यह बात मज़बूती से फ़ैल चुकी थी कि ओवैसी बीजेपी को मदद पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि मायावती ने बाद में इस पर साफाई देते हुए कहा कि वह राजनीति से सन्यास ले लेंगी लेकिन कभी बीजेपी के साथ नहीं जाएंगी. उन्होंने कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से पेश किया गया है.

मंगलवार को कांग्रेस नेता राहुल गांधी किशनगंज में चुनावी रैली को संबोधित करने पहुंचे थे. उनके आने से पहले और उनकी उपस्थिति में भी सबसे ज़्यादा निशाना ओवैसी पर ही साधा गया. कार्यक्रम में मौजूद कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने ओवैसी को मवेशी तक बोल दिया. कांग्रेस के बहादुरगंज से उम्मीदवार तौसीफ आलम ने अपनी बात रखते हुए बोला कि ओवैसी को तय करना है कि वे बीजेपी के साथ हैं की मुसलमानों के साथ. ओवैसी जिस महागठबंधन से हैं उसकी एक अहम सदस्य बीजेपी को समर्थन देने की बात कर रही हैं. उन्हें यह बताना चाहिए कि इस पर उनकी क्या राय है. वैसे ही यहां की जनता उनका टिकट कटाकर महानंदा ट्रेन से हैदराबाद भेजने वाली है.

एक तरफ जहां बाकी कांग्रेस नेता ओवैसी पर निशाना साधते रहे वहीं राहुल गांधी ने अपने भाषण में नोटबंदी और लॉकडाउन में लोगों को हुई परेशानी का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘प्रधानमंत्री मोदी के दिल में गरीब और मज़दूरों के लिए कोई जगह नहीं है. अपने भाषण के आखिर में उन्होंने ओवैसी का नाम लिए बगैर कहा कि बीजेपी की बी टीम के लोग आजकल हेलीकॉप्टर लेकर यहां-वहां घूम रहे हैं. हम बीजेपी की नफरत की नीति से लड़ते हैं और इन लोगों के भी.’’

अररिया के जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र से तस्लीमुद्दीन के दोनों बेटे शाहनवाज आलम और सरफ़राज आलम मैदान में हैं. शाहनवाज आलम जहां एमआईएम के टिकट से चुनाव लड़ रहे हैं वहीं सरफराज आरजेडी के टिकट से चुनावी मैदान में हैं. यहां लड़ाई इन दिनों के बीच ही मानी जा रही है.

जोकीहाट विधानसभा क्षेत्र के प्रसादपुर में किराने की दुकान चला रहे 24 वर्षीय असद बीएड कर रहे हैं. असद इस बात से नाराज़ हैं कि आखिर दोनों भाइयों ने आपस में लड़ने का फैसला क्यों किया. असद न्यूजलॉन्ड्री से बात करते हुए कहते हैं, ‘‘शुरू-शुरू में यहां के लोगों में ओवैसी को लेकर लोगों में उत्साह तो था. लोग बदलाव चाह रहे थे, लेकिन मायावती के बीजेपी के समर्थन देने के बयान के बाद स्थिति बदल गई है. कल ही मेरे दुकान पर एक ओवैसी समर्थक आया था. मैंने इस संबंध में सवाल किया तो उसका जवाब था कि मायावती गठबंधन से अलग हो गई हैं. इसके बाद हमने पूछा की फिर ओवैसी साहब के पोस्टर पर क्यों दिख रही हैं. इस पर उसने सफाई दी कि पोस्टर तो पहले ही छप गया था. वो जैसे-तैसे मुझे समझाने की कोशिश कर रहा था लेकिन सफल नहीं हो पाया. यहां अब ओवैसी साहब की पार्टी कुछ खास नहीं कर पाएगी. जो भी वोट मिलेगा वो सरफराज की अपनी पकड़ पर ही मिलेगा.’’

असद आगे कहते हैं, ‘‘वैसे इस बार हम लोग विधायक नहीं मुख्यमंत्री चुन रहे हैं. विधायक और सांसद से हमें तो कोई फायदा होता नहीं है. हमें तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री बनाना है. इसलिए मैं तो यहीं सोचकर वोट करूंगा कि तेजस्वी यादव सीएम बने. मैं ही क्या ज़्यादातर लोग यहीं सोचकर वोट कर रहे हैं.’’

असद सही ही कहते हैं क्योंकि इस बाजार में हमारी जितने लोगों से मुलाकात हुई वे ठीक यही कहते नज़र आए. यहां मिले 32 वर्षीय मोहम्मद तबारक हुसैन कहते हैं, ‘‘ओवैसी साहब 20 सीटों पर चुनाव लड़कर सरकार तो नहीं बनाने जा रहे हैं. सरकार तो आखिर तेजस्वी ही बना सकते हैं. इसीलिए हम लोग तेजस्वी को वोट करेंगे. हम अपना उम्मीदवार नहीं देख रहे हैं. हमारी तरफ तेजस्वी की ही लहर है. ओवैसी 10 प्रतिशत से ज़्यादा लोगों को अपनी तरफ नहीं कर पाएंगे. ये 10 प्रतिशत वहीं लोग होंगे जो सोशल मीडिया वाले हैं. जिनको ओवैसी साहब का तकरीर अच्छा लगता है. तेजस्वी बिहार के हैं और ओवैसी साहब हैदराबाद के रहने वाले हैं. हमारी ज़रूरत के समय में तेजस्वी आएंगे या ओवैसी.’’

प्रसादपुर बाजार पर ही मिले जुबैर अहमद सीमांचल पर ओवैसी के प्रभाव को लेकर कहते हैं, ‘‘यहां लालू रहा है और लालू रहेंगे. ओवैसी को क्यों ना रोके. वो बीजेपी वाला है. सीएए-एनआरसी प्रदर्शन के दौरान बीजेपी ने तमाम लोगों को जेल के अंदर डाला. हर मौलाना, हर जागरूक इंसान पर केस हुए, लेकिन इन्हें छोड़ दिया. इसका कोई मतलब है ना. बीजेपी ओवैसी ही है. हमारे यहां बीजेपी कभी लड़ाई में रहती नहीं इसीलिए ओवैसी यहां आकर चुनाव लड़ रहे हैं ताकि बीजेपी मुस्लिम वोट आपस में बंट जाए.’’

मोहम्मद अशफ़ाक़

प्रसादपुर से छह किलोमीटर आगे चलने पर भगवानपुर पंचायत पड़ता है. इस गांव में हिन्दू समुदाय के महज 15 घर हैं. यहां मिले 70 वर्षीय इब्राहिम कहते हैं, ''यहां कौन लड़ रहा है उससे हमें मतलब नहीं है. हमें सिर्फ लालू को जिताना है. लालू के साथ कांग्रेस भी है. कांग्रेस अगर एक्शन नहीं लेती तो सीएए-एनआरसी कानून के तहत बीजेपी सरकार हमें देश से बाहर कर देती.

सीएए-एनआरसी बीते दिनों भारत में एक बड़ा मुद्दा रहा. इसको लेकर जगह-जगह आंदोलन हुए. बिहार के कई इलाकों से भी आंदोलन की तस्वीरें सामने आई थीं. दिल्ली दंगे के बाद इन आंदोलनों में कमी होती गई और कोरोना के आने के साथ ही ये विरोध प्रदर्शन पूरी तरह रुक गए. बिहार चुनाव में मुस्लिम समुदाय की एक बड़ी आबादी है. ऐसे में अनुमान लगाया जा रहा था कि यहां के चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा, लेकिन ऐसा होता नज़र नहीं आया. इसकी मुख़ालफत करने वाली पार्टियों ने भी चुनावी भाषण में इसका इस्तेमाल नहीं किया तो उधर बीजेपी ने एकाध सभाओं को छोड़कर इसका कहीं भी जिक्र नहीं किया. हालांकि बुजुर्ग इब्राहिम कहते हैं, ‘‘सीएए-एनआरसी तो यहां के लोगों के लिए एक मुद्दा तो है. जिन लोगों ने साथ दिया हम उनका साथ देंगे.’’

सीमांचल के कई युवक ओवैसी पर सांप्रदायिक राजनीति को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हैं. इन युवाओं की माने तो बीजेपी और आरएसएस जिस तरह मज़हब के नाम पर लोगों को भड़काने का काम करती है ठीक वैसे ही ओवैसी मुस्लिम युवाओं के साथ कर रहे हैं. अररिया के तुरकैली चौक पर मिले 27 वर्षीय युवक शकील अहमद बीए करने के बाद एक दुकान चलाते हैं. बेहद संजीदा अंदाज में बात करते हुए शकील कहते हैं, ‘‘बीजेपी और ओवैसी एक ही सिक्के को दो पहलू हैं. दोनों का मकसद समाज को बांटकर वोट बटोरना है. अगर चुनाव जीतने और सरकार बनाने के लिए लड़ना था तो ओवैसी साहब पूरे बिहार में अपने प्रत्याशी उतारते सिर्फ सीमांचल ही क्यों? इनका मकसद हिन्दू-मुस्लिम कराना है. लालू भी हिन्दू हैं लेकिन वह यह सब नहीं करते हैं. इसलिए हम लोग ओवैसी साहब से ज़्यादा लालू को चाह रहे हैं.’’

शकील अहमद

ओवैसी पर साम्प्रदायिकता वाली राजनीति करने की चर्चा कई लोगों से हमें सुनने को मिलती है. यह बात यहां के युवाओं में फैला दी गई है. ओवैसी पर लगने वाले इस आरोप को और स्पष्ट तरीके से किशनगंज शहर के रहने वाले मुफ़स्सिर आलम बताते हैं, ‘‘ओवैसी साहब खुद को मुसलमानों का रहनुमा पेश करते हैं. एक तरह से वो अपने भाषणों में कहते हैं कि मुसलमानों एकजुट हो जाओ. एक बात बताइये कि मुसलमान अगर किसी एक जगह इकठ्ठा होंगे तो हिन्दू क्यों नहीं होंगे. ऐसे में आपसी भाईचारा तो मिटेगा ही इसके साथ ही हमारा कोई सुनने वाला नहीं होगा क्योंकि मुस्लिम समुदाय भारत में बहुत बड़ी आबादी में नहीं है. यह जीत-हार तय नहीं करती. अगर जीत हार तय करती तो बीजेपी बिना किसी मुस्लिम उम्मीदवार के उत्तर प्रदेश में पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं बनाती जबकि वहां मुस्लिम आबादी ठीक-ठाक है. ऐसे में मिलकर ही वोट करना जायज है. ओवैसी साहब इसी को खत्म करना चाह रहे हैं लेकिन यहां लोग समझ चुके हैं.’’

मुफ़स्सिर आलम अपने आप को राजद से जुड़ा बताते हैं

मुफ़स्सिर आलम ओवैसी पर झूठ बोलने का आरोप भी लगाते नज़र आते हैं. वे कहते हैं, ‘‘ओवैसी यहां घूमकर कह रहे हैं कि उन्होंने सदन में सीएए का बिल फाड़ा है. कांग्रेस और राजद ने कुछ नहीं किया. यह वो सफेद झूठ बोल रहे हैं. उस दौरान की तस्वीरें कोई भी देख सकता है. सीमांचल में ही आंदोलन को मज़बूत करने में कांग्रेस और राजद के लोगों की बड़ी भूमिका रही है. इसके खिलाफ जो वोट पड़े वो सिर्फ ओवैसी साहब के नहीं थे. कई विपक्षी दलों ने सीएए के खिलाफ मतदान किया था. उनकी इस झूठ को भी यहां की जनता अच्छे से समझ रही है. वैसे भी यहां के ज्यादातर लोग चाहते हैं कि तेजस्वी यादव प्रदेश के सीएम बने. ऐसे में ओवैसी को चाहने वाले भी अंत-अंत में राजद महागठबंधन को ही वोट करेंगे.’’

मुफ़स्सिर आलम मीडिया पर ओवैसी को ज़्यादा जगह देने का आरोप लगाते हुए कहते हैं, ‘‘आप ग्राउंड पर जाकर देखिए. उनका अपना वोटर भी अपना मन बदल चुका है. उसको अब ओवैसी नहीं तेजस्वी दिख रहा है. जहां तक रही बात उपचुनाव में एमआईएम के जीतने की तो इसे जीत इसके मज़बूत कैडर की वजह से नहीं मिली बल्कि सांसद मोहम्मद जावेद की वजह से मिली. खुद सांसद बन गए तो किसी कायकर्ता को विधानसभा चुनाव लड़वाना था लेकिन उन्होंने अपनी बुजुर्ग मां को लड़वाया. जिससे जनता खफा हो गई और एमआईएम का उम्मीदवार चुनाव जीत गया.’’

सीमांचल के इलाके में ‘मैं मीडिया’ नाम से ऑनलाइन पोर्टल चलाने वाले युवा पत्रकार तंज़ील आसिफ बताते हैं, ‘‘ओवैसी की पार्टी सिर्फ 20 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. जिसमें से सीमांचल में 14 सीटें हैं. इन 14 सीटों में से सिर्फ छह सीट, कोचाधामन, किशनगंज, बहादुरगंज, अमौर, बाइसी और जोकीहाट पर ये चुनाव को त्रिकोणीय बनाए हुए है, ऐसा नहीं है कि यहां से ये जीत रहे हैं. अगर 24 सीटों वाले इलाके में छह पर लड़ाई में है तो मैं यह नहीं कह सकता की इनका कोई असर है. लगभग इतनी ही सीटों पर लोजपा भी मज़बूत स्थिति में लड़ रही है. लोजपा ने कई सीटों पर एनडीए को मुकाबले से बाहर कर दिया है. ऐसे में लोगों को लग रहा है कि ये सरकार बनाने नहीं जा रहे हैं. ओवैसी के जो कोर वोटर हैं उससे भी आप पूछेंगे की सरकार किसकी आनी चाहिए तो वे तेजस्वी का ही नाम लेंगे. अभी वोटरों में कन्फ्यूजन है वो चुनाव आने तक अपना मन बदल सकते हैं. मुझे लगता है कि एमआईएम को मीडिया की कवरेज ज़्यादा मिल रही है तो बिहार चुनाव में इनकी स्थिति दरिया में ड्राप की तरह है. कई इलाकों में इनके उम्मीदवारों की जमानत भी जब्त हो सकती है.’’

ओवैसी की रैलियों में काफी भीड़ देखने को मिल रही है. तंजील आसिफ ओवैसी की कई रैलियों को कवर कर चुके हैं. वे बताते हैं, ‘‘ओवैसी पहले झूठ नहीं बोलते थे. ऐसा मुझे उनकी भाषणों में नहीं लगता था लेकिन इस चुनाव में वो लगातार झूठ बोल रहे हैं. जहां तक रही विपक्ष को टारगेट करने की बात तो वह उनकी मज़बूरी भी है. जिन जगहों पर ओवैसी की पार्टी मज़बूत स्थिति में लड़ रही है वहां उसकी लड़ाई कांग्रेस से ही है. तो वो कांग्रेस की आलोचना करते नज़र आते हैं. वे अपनी सभाओं पर कांग्रेस पर निशान साधते हुए बाबरी मस्जिद का ताला खुलवाने समेत उनकी बाकी नीतियों का विरोध करते हैं. उसके बाद वे स्थानीय नेताओं और उनके कामों की आलोचना करते हैं. वे इनके कामों का हिसाब मांग रहे हैं.’’

आपका बड़ा दुश्मन महागठबंधन है या एनडीए इस सवाल के जवाब में द क्विंट वेबसाइट को दिए इंटरव्यू में असदुद्दीन ओवैसी कहते हैं, ‘‘मेरा दुश्मन वो है जिसको 15 साल सत्ता संभालने का मौका मिला. एक खानदान से दो लोग मुख्यमंत्री बने. उन्होंने ‘माई’ समीकरण के नाम पर मुसलमानों से बहुत वोट लिया मगर आज क्या वजह है कि बिहार में मुसलमानों का सामाजिक और शैक्षणिक स्थिति कमज़ोर है. और फिर 15 साल नीतीश कुमार को मिला. उन्होंने सेकुलरिज्म को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कीं, लेकिन आप आज देख लीजिए बिहार प्रदेश में बदहाली है. यकीनन एक इंसान की जिंदगी में 30 साल का सफर एक लम्बा सफर होता है. इन्हीं ने तो पूरे बिहार को बर्बाद किया है.’’

वोट कटवा होने या किसी का ‘बी टीम’ होने के सवाल पर ओवैसी कहते हैं, ‘‘अगर कोई ऐसा कहता है तो मैं कहूंगा कि उनके दिमाग का इलाज किया जाना चाहिए. उनके दिमाग में ज़रूर फितूर है. लोकसभा चुनाव में हम सिर्फ किशनगंज का चुनाव लड़े और यहां कौन जीता? 40 में से सिर्फ एक सीट किशनगंज आप (कांग्रेस) जीतते हैं और इतने अहमक हैं कि हमको वोट कटवा बोल रहे हैं. बाकी सीटों पर क्यों नहीं जीते. लालू परिवार के लोग चुनाव लड़े, हार गए वो भी क्या वोट कटवा थे?’’

किशनगंज में राहुल गांधी की सभा में आए एक बुजुर्ग मुसलमानों को किसको वोट देना चाहिए के सवाल पर कहते हैं, "यह समाज भी अब किसी का बंधुआ वोटर नहीं रह गया है. जिसने भी हमारा ख्याल रखा होगा हम उसे वोट देंगे. ऐसा नहीं होगा कि आंख बंद करके किसी को भी दे देंगे.’’

सीमांचल में 7 नवंबर को चुनाव होना है. बिहार के चुनाव के नतीजे 10 नवंबर को आएंगे. ऐसे में देखना होगा कि सीमांचल की जनता ओवैसी के बिहार में सियासी सफर को तेज करती है या ब्रेक लगाती है. ओवैसी के पास सीमांचल में खोने के लिए कुछ नहीं है.

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