Newslaundry Hindi
बेमौत मरने को मजबूर नदियां
हमारे अहम सतही जलस्रोतों का 90 प्रतिशत हिस्सा अब इस्तेमाल करने के लायक नहीं बचा है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और अलग अलग राज्यों की प्रदूषण निगरानी एजेंसियों के हालिया विश्लेषण ने इसकी पुष्टि की है. साल 2015 में वाटर ऐड की एक रिपोर्ट जारी हुई थी, जो शहरी विकास मंत्रालय, जनगणना 2011 और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों पर आधारित थी. इस रिपोर्ट में कहा गया था कि सतही पानी का 80 प्रतिशत हिस्सा प्रदूषित है. रिपोर्ट में प्रदूषण के लिए घरेलू सीवरेज, साफ-सफाई की अपर्याप्त सुविधाएं, खराब सेप्टेज प्रबंधन और गंदा पानी तथा साफ-सफाई के लिए नीतियों की गैरमौजूदगी को जिम्मेवार माना गया था. सिर्फ सतह का जल ही प्रदूषित नहीं है बल्कि हमारा भरोसेमंद भू-जल भी अब स्वच्छ नहीं रहा है. झारखंड में रांची महिला कॉलेज के शिक्षा विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर कुंजलता लाल का मत है कि भू-जल जल को पानी का भरोसेमंद और साफ स्रोत माना गया है. भू-जल जल सतही प्रदूषण से सुरक्षित होता है क्योंकि इसमें जियोलॉजिकल फिल्टर लगा होता है, जो पानी में से प्रदूषण तत्वों को बाहर निकाल देता है, जो मिट्टी के रास्ते रिस जाता है. हालांकि, तब भी भू-जल जल सभी प्रदूषक तत्वों से मुक्त नहीं है.
हमारी नदियां मर रही हैं. यही हाल ईकोसिस्टम का है, जो नदियों को बचाए रखता है. नदियों पर न केवल प्रदूषण बल्कि इसके रास्ते में बदलाव, खत्म होती जैवविविधता, बालू खनन और कैचमेंट एरिया के खत्म होने का भी असर पड़ा है. अन्य खुले जलाशय जैसे झील, तालाब या टैंक या तो अतिक्रमण का शिकार हैं या फिर वे सीवेज और कूड़े का डंपिंग ग्राउंड बन गए हैं. अपरिशोधित सीवेज और औद्योगिक कचरा बहाये जाने के कारण बंगलुरू के बेल्लादुर और वाथुर झील में जहरीला झाग कई बार समाचारों की सुर्खियां बन चुका है. ठोस कचरा व अंधाधुंध अतिक्रमण के कारण असम के दीपोर बील व अन्य झीलों को लेकर नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) जांच कर चुका है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक 36 राज्य व केंद्र शासित प्रदेशों में से 31 में नदियों का प्रवाह प्रदूषित है. महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 53 प्रदूषित प्रवाह हैं. इसके बाद असम, मध्यप्रदेश, केरल, गुजरात, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, उत्तर प्रदेश, गोवा, उत्तराखंड, मिजोरम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर, तेलंगाना, मेघालय, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, त्रिपुरा, तमिलनाडु, नागालैंड, बिहार, छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, सिक्किम, पंजाब, राजस्थान, पुडुचेरी, हरियाणा और दिल्ली का नंबर आता है.
साल 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की तरफ से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया था कि 275 नदियों के 302 प्रवाह प्रदूषित हैं जबकि साल 2018 की रिपोर्ट में 323 नदियों के 351 प्रवाह के प्रदूषित होने का जिक्र है. पिछले तीन सालों में देखा गया है कि खतरनाक रूप से प्रदूषित 45 प्रवाह ऐसे हैं, जहां के पानी की गुणवत्ता बेहद खराब है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अधिसूचित किया कि नदियों में छोड़े जाने वाले परिशोधित गंदे पानी की गुणवत्ता काफी खराब है और इसमें बोयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड यानी बीओडी (बीओडी प्रदूषण को मापने का एक पैमाना है) की मात्रा प्रति लीटर 30 मिलीग्राम है. एक लीटर पानी में 30 मिलीग्राम से अधिक बीओडी को पानी की गुणवत्ता बेहद खराब होने का संकेत माना जाता है.
देश की राष्ट्रीय नदी गंगा अभी बहस के केंद्र में है. साल-दर-साल गंगा नदी के प्रवाह में दर्ज होते प्रदूषण के स्तर से नदी को साफ करने के लिए की जा रही कोशिशों पर सवाल उठते हैं. पिछले साल अगस्त में एनजीटी, जो गंगा को साफ करने के कार्यक्रम की निगरानी करता है, ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से कहा था कि वह नदी के इन हिस्सों की शिनाख्त करे, जहां का पानी नहाने और पीने के योग्य है. बोर्ड ने इस बाबत एक मानचित्र तैयार किया जिसमें बताया गया है कि गंगा के मुख्य मार्ग के पानी की गुणवत्ता चिंताजनक रूप से खराब है. यहां तक कि सितंबर 2018 का मानचित्र बताता है कि मॉनसून खत्म होने के बाद भी प्रवाह प्रदूषित है और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्लास-ए या क्लास-सी में भी नहीं आता है.
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्लास ए का मतलब उन पेयजल स्रोतों से है, जिनके पानी को पारंपरिक तरीके से परिशोधित किए बिना रोगाणुमुक्त कर इस्तेमाल किया जा सकता है. वहीं, क्लास सी का मतलब उन पेयजल स्रोतों से है जिसके पानी को पारंपरिक तरीके से परिशोधित व रोगाणुमुक्त कर इस्तेमाल किया जा सकता है. एनजीटी ने यह पूछा था कि नदी का पानी नहाने लायक है कि नहीं, लेकिन मानचित्र में ये संकेत नहीं दिया गया कि नदी के पूरे बहाव में खुले तौर पर नहाने दिया जा सकता है या नहीं. क्लास सी गुणवत्ता वाले पानी का यह मतलब नहीं है कि वो क्लास बी की शर्तों को पूरा करता है. क्लास बी और सी के लिए बीडीओ की मात्रा प्रति लीटर अधिकतम 3 मिलीग्राम होनी चाहिए लेकिन खुले तौर पर नहाने के लिए डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन प्रति लीटर 5 मिलीग्राम होनी चाहिए जबकि क्लास सी के लिए प्रति लीटर 4 मिलीग्राम होनी चाहिए.
इसके अलावा खुले तौर पर स्नान के लिए कुल कोलीफार्म प्रति मिली लीटर 500 एमपीएन मिला है, जो क्लास सी के लिए मान्य स्तर का दसवां हिस्सा है. अतः मानचित्र में साफ तौर पर यह संकेत अंकित किया जाना चाहिए कि कहां लोग नहाने के लिए जा सकते हैं. गंगा नदी के कन्नौज से लेकर गाजीपुर तक के हिस्से (मिर्जापुर और वाराणसी को छोड़कर) को मॉनसून के बाद (अगस्त 2018) के आंकड़ों में राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने असंतोषजनक बताया है. हालांकि, इन स्थानों पर टोटल कोलीफोर्म (टीसी) की मात्रा 500 मिनिमम प्रोपेबल नंबर (एमपीएन)/100 मिलीलीटर दर्ज की गई है, लेकिन जैव ऑक्सीजन मांग (बीओडी) और घुलनशील ऑक्सीजन (डीओ) की मात्रा क्लास बी के मानकों के भीतर रहा. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानचित्र, जिसे सुटेब्लिटी आफ रिवर गंगा नाम दिया गया है, में दर्ज लाल बिन्दुओं के जरिए बताया गया है कि इन स्थानों (ये क्लास ए और सी में शामिल नहीं हैं) के पानी को पारंपरिक/आधुनिक तौर पर परिशोधित व रोगाणुमुक्त करने के बाद पीने की इजाजत दी गई है. इस तरह के स्तर को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के असल “वाटर क्वालिटी क्राइटेरिया” में श्रेणीबद्ध नहीं किया गया है.
बोर्ड ने यह भी स्पष्ट नहीं किया है कि क्लास सी में जिस अत्याधुनिक ट्रीटमेंट या संगठित पारम्परिक व्यवस्था का जिक्र किया गया है, वो क्या है. ताजा रिकॉर्ड के मुताबिक, गंगा की सफाई पर मार्च 2017 तक 7,304.64 करोड़ रुपए खर्च किये जा चुके हैं, लेकिन गंगा और उसकी सहायक नदियों के पानी की गुणवत्ता में कोई उल्लेखनीय सुधार नहीं हुआ है. केंद्रीय जल आयोग के आंकड़े (मई 2016-जून 2017 तक) बताते हैं कि गढ़मुक्तेश्वर से शहजादपुर के बीच गंगा में औसत बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड वैल्यू (प्रदूषण का स्तर मापने का पैमाना) स्नान करने के योग्य भी नहीं है.
Also Read
-
Hafta 483: Prajwal Revanna controversy, Modi’s speeches, Bihar politics
-
Can Amit Shah win with a margin of 10 lakh votes in Gandhinagar?
-
Know Your Turncoats, Part 10: Kin of MP who died by suicide, Sanskrit activist
-
In Assam, a battered road leads to border Gorkha village with little to survive on
-
Amid Lingayat ire, BJP invokes Neha murder case, ‘love jihad’ in Karnataka’s Dharwad