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एक दिन रिया चक्रवर्ती के घर के बाहर: बार-बार उठी टेलीविज़न पत्रकारिता की अर्थी

सुबह तकरीबन 9.15 बजे हम मुम्बई के जुहू तारा रोड पर स्थित प्रिमरोज़ बिल्डिंग पहुंचे थे. इस इमारत के एक फ्लैट में अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती अपने परिवार के साथ रहती हैं. मुंबई की अलसायी सुबह में भी इमारत के बाहर कुछ रिपोर्टर और कैमरामैन उस समय पहुंच चुके थे. इनमें सबसे प्रमुख था रिपब्लिक भारत. कुछ ओबी वैन भी मौजूद थे.

टीवी-9 मराठी के एक पत्रकार ने 'पीस टू कैमरा' (पीटूसी) करने के पहले पास में खड़े आज तक के रिपोर्टर से कन्फर्म किया कि रिया चक्रवर्ती यहीं रहती है ना? हामी भरने के बाद उसने अपना पीटूसी किया.

वहां मौजूद आजतक-इंडिया टुडे के एक रिपोर्टर से मैंने बातचीत शुरू की ही थी कि तभी सड़क से गुज़रती एक कार रुकी, गाड़ी चलाने वाले व्यक्ति ने हमारी तरफ देखकर खिल्ली उड़ाने के अंदाज में ताली बजायी और आगे निकल गया. यह देख आजतक का रिपोर्टर बोला, "आजकल पत्रकारों की इज़्ज़त ही नहीं बची है. रिपब्लिक वालों ने मीडिया की पूरी इज़्ज़त उतार दी है. थोड़ा बहुत ड्रामा चलता है लेकिन इन लोगों ने हद कर दिया है. इनकी वजह से बाकी रिपोर्टरों पर भी बहुत दबाव आ गया है."

वहां मौजूद एक कैमरापर्सन बोल पड़ा, "अस्सी प्रतिशत खबरें झूठी हैं. रिया का फ्लैट इस इमारत के पिछली तरफ है लेकिन उसके बावजूद भी रिपब्लिक वाले यहीं से पीटूसी देते हुए कहते कि पीछे रिया का किचन दिख रहा है.”

अगले कुछ घंटों में मैं खुद इसी तमाशे से रूबरू हुआ.

रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर वहां अपनी हरकतों से पत्रकारिता के हर नियम-कानून की धज्जी उड़ा रहे थे. लेकिन बाकी चैनलों की गतिविधियां भी उनसे होड़ कर रही थीं. इस सबके लिए बस एक ही शब्द है ‘शर्मिंदगी’.

दस बजते-बजते वहां पत्रकारों की तादाद बढ़ गई थी. रिपब्लिक भारत की एक रिपोर्टर पीटूसी करते हुए कह रही थीं- “रिया चक्रवर्ती चुनिंदा चैनलों से ही बात करती हैं. क्या उन्हें रिपब्लिक भारत से डर लगता है.” इसी समय प्रिमरोज़ इमारत से बाहर निकल रहे एक व्यक्ति की तरफ अपने कैमरापर्सन को कैमरा घुमाने का इशारा कर वो ऊंची आवाज में बोलने लगी, "यह रिया चक्रवर्ती का इन्फॉर्मर है." उनकी बात को नज़रअंदाज़ करते हुए वो व्यक्ति आगे चला गया.

वह व्यक्ति उसी बिल्डिंग में काम करने वाला वॉचमैन था जिसका नाम राम है. राम उस दिन कई बार रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टरों की बदतमीज़ी का शिकार हुए. कुछ की वीडियो भी वायरल हुई. रिपब्लिक की देखादेखी बाकी रिपोर्टर भी उनसे वही बर्ताव कर रहे थे. ऐसा लगा मानों राम पर उनकी मिल्कियत है.

थोड़ी देर बाद जब राम बाहर से एक टैक्सी लेकर लौटे तो रिपब्लिक की रिपोर्टर ने फिर से अपने कैमरापर्सन की तरफ इशारा करते हुए कैमरे का रुख राम की तरफ करने कहा.

कुछ ही देर बाद उसी इमारत में रहने वाले एक बुज़ुर्ग व्यक्ति राम द्वारा लायी गयी टैक्सी में बैठकर बाहर निकले. वह टैक्सी इमारत के फाटक से बाहर निकली ही थी कि वहां मौजूद रिपोर्टरों और कैमरापर्सन ने उस टैक्सी को रोक लिया. टीवी-9, इंडिया न्यूज़, रिपब्लिक भारत, ज़ी न्यूज़ के अलावा और भी कुछ चैनलों के पत्रकारों ने अपने-अपने माइक और कैमरे टैक्सी की पिछली सीट पर बैठे बुज़र्ग की तरफ बढ़ा दिया. पत्रकार उस बुज़ुर्ग को रिया चक्रवर्ती का रिश्तेदार बताकर सवाल करने लगे.

रिपब्लिक भारत की रिपोर्टर ने टैक्सी चालक को तेज़ आवाज़ में धमकाया कि "गाड़ी आगे बढ़नी नहीं चाहिए". यह कह कर उन्होंने माइक गाड़ी के भीतर बैठ बुज़र्ग के मुंह के सामने किया और पूछने लगी कि वह कहां जा रहे हैं. जब उस बुज़ुर्ग ने टैक्सी ड्राइवर को गाड़ी वहां से आगे बढ़ाने के लिए कहा तो रिपब्लिक भारत की रिपोर्टर उस बुज़ुर्ग से कहती है- “नहीं वो (टैक्सी ड्राइवर) कहीं नहीं जाएंगे.” जब उस बुज़ुर्ग ने साफ किया की वह इमारत में रहने वाले एक रहवासी हैं तब जाकर उनको पत्रकारों ने वहां से जाने दिया.

न्यूज़-एक्स की रिपोर्टर जो थोड़ी दूर से यह सब देख रही थी कहती हैं, "रिपब्लिक के पत्रकारों ने सारी हदें पार कर दी हैं. वो व्यक्ति यहां के रहवासी थे, यह सरासर किसी को बेवजह परेशान करने वाली हरकतें है.”

शायद रिपब्लिक के पत्रकारों की रिपोर्टिंग करने के अंदाज़ से वहां कुछ पत्रकार खफा भी थे. लेकिन ऐसा सोचने वालों की तादाद बहुत कम थी.

किसी के पीछे पड़ना, उसका घेराव कर, उसके मुंह की तरफ माइक बढ़ाकर ज़बरदस्ती अपने सवालों का जवाब लेने में हर रिपोर्टर एक दूसरे से आगे थे. पता नही उन्हें वहां किस खबर के छूटने का डर था जबकि वहां ऐसा कुछ नही हो रहा था जिसे ख़बर कहा जा सके. अपने आपको सबसे आगे बताने की होड़ में टीवी चैनलों ने इन रिपोर्टरों को पूरी तरह से गिद्ध बना दिया था.

कुछ देर बाद इमारत के फाटक पर एक इनोवा गाड़ी आकर रुकी. यह देख वहां मौजूद रिपोर्टर उस गाड़ी की तरफ लपके. गाड़ी इमारत में घुसी तो पत्रकार भी उसके पीछे भागने लगे. लेकिन अपने पीछे पत्रकारों को भागता देख उस गाड़ी में मौजूद व्यक्ति ने इमारत के परिसर का तेज़ी से पूरा चक्कर लगाया और फिर से गाड़ी इमारत के गेट से तेज़ी से बाहर निकल गयी. कुछ पत्रकार कहने लगे कि गाड़ी में रिया चक्रवर्ती के भाई शौविक चक्रवर्ती थे.

हालांकि किसी को पक्के तौर पर कुछ पता नहीं था. उनकी अटकल थी कि अगर गाड़ी में शौविक चक्रवर्ती नहीं थे तो गाड़ी तेज़ी से इमारत के अंदर का चक्कर मार कर चली क्यों गयी.

जब इमारत में पत्रकार प्रवेश कर गए थे तब एक बार फिर रिपब्लिक भारत की रिपोर्टर वॉचमैन राम के ऊपर चिल्लाने लगी कि वह उसे इमारत में अंदर जाने से क्यों रोक रहे हैं.

थोड़ी देर बाद पीटूसी देते हुये रिपब्लिक भारत की वही पत्रकार अपने एक साथी से बार बार कह रही थीं कि उस गाड़ी में शौविक चक्रवर्ती है और वह उसका पीछा करते रहें.

यह विकृत पपराज़ी पत्रकारिता का नमूना था. हमने रिपब्लिक के कैमरापर्सन से पूछा कि तुम्हें कैसे पता कि गाड़ी में रिया का भाई ही था, तो उसने हंसते हुए बताया कि उसकी कंपनी की एक गाड़ी डीआरडीओ से ही उसका पीछा कर रही थी.

कुछ देर बाद वहां एक पुलिस कांस्टेबल पहुंचा. पत्रकारों ने उसका भी घेराव कर वहां से जाने के लिए मजबूर कर दिया. सवाल करने का ऊंचा लहजा, कैमरा लगातार चल रहा था, बेअदबी से भरे सवाल उछाले जा रहे थे. वह रिपोर्टर, उनसे सवाल कर रही थीं कि क्या वो रिया चक्रवर्ती को समन देने आए हैं या उनसे मिलने आये हैं? एक ही सवाल बार-बार कि आप यहां क्यों आए हैं.

हमने पता किय तो पाया कि वह कॉन्सटेबल वहां रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार को मीडिया द्वारा लगातार परेशान करने की शिकायत पर आया था. खबर बनाने के दबाव में पत्रकारिता के सारे सिद्धांतो को ताक पर रखने का यह नज़ारा अगले दो-तीन घंटे तक मैंने देखा.

रिया के पिता से बदतमीजी

दोपहर तकरीबन सवा बारह बजे फिर से वही गाड़ी आई जिसमें रिया चक्रवर्ती के पिता इंद्रजीत चक्रवर्ती थे. वो जैसे ही गाड़ी से उतरे सभी पत्रकार उन पर टूट पड़े.जैसे तैसे बड़ी मुश्किल से वो इमारत के एक रहवासी और कुछ चौकीदारों के सहारे वहां से निकले.

जैसे ही वो अपने फ्लैट की विंग में घुसे वहां मौजूद गेट के चौकीदार राम ने ताला लगाकर बंद कर दिया.इसी दौरान उस इमारत के भीतर पत्रकारों के पीछे पीछे बाहर से दाखिल हुयी दो महिलायें वाचमैन राम से कहने लगी कि वो इंद्रजीत चक्रवर्ती को क्यों बचा रहा है. एक महिला ने कहा, " चोर है, चोर डरता क्यों है.” इतना सुनना बोलना भर था कि वहां मौजूद तमाम माइक और कैमरा उन महिलाओं की ओर घूम गए.

एक महिला ने अपना नाम दृष्टि अजवानी बताया.वो अपने आप को सुशांत की फैन बता रही थी.पत्रकारों के सवाल कुछ ऐसे थे, वो काला जादू कैसे करते थे, आपने काला जादू में क्या देखा आदि. वह महिला बोली, “तीन महीने इन लोगों ने सुशांत को यहां रखा था, जब वह लंदन से वापस आया था. उसे डराया गया था की उसके घर में भूत है.” फिर वह महिला कहने लगी कि पत्रकारों को रिया चक्रवर्ती की मां को पकड़ना चाहिए. उनका पूरा परिवार काला जादू करता था. साथ में आयी दूसरी महिला कहने लगी, "हम अर्नबजी के बहुत बड़े फैन है."

उस महिला का इतना बोलना था कि रिपब्लिक टीवी के रिपोर्टर ने कहा कि वो उसे रिपब्लिक के कैमरे पर एक्सक्लूसिव आना चाहिए. इसके बाद वह रिपोर्टर कार पार्किंग से उन महिलाओं को इमारत के परिसर में मौजूद गार्डेन के पास ले गया और पूछने लगा कि इस मामले में कौन-कौन शामिल है? वह महिला बोली- “इसकी मां शामिल है, इसका भाई शामिल है, इसके पिताजी शामिल हैं, सब शामिल है.”

रिपब्लिक के रिपोर्टर का अगला सवाल था कि यह काला जादू कैसे करते थे. उसके इस सवाल पर महिला उत्तेजित होकर चिल्लाने लगी, " यह लोग बहुत काला जादू करते हैं, अब क्यों छुप के बैठे हैं, बाहर निकलो, बाहर निकलो ना, बहार निकलो, सामने आओ." जब वह महिला चिल्ला रही थी तो रिपब्लिक टीवी का रिपोर्टर भी उसी के सुर में ईमारत की तरफ हाथ उठाकर बोलने लगा, "बाहर निकलिये, बहार आइये, जवाब दीजिये."

इसके बाद वो रिपोर्टर उस महिला से पूछने लगा की क्या वह अर्नब और रिपब्लिक की मुहीम का समर्थन करती है तो महिला ने हामी में जवाब देते हुआ कहा कि इनको गिरफ्तार करना चाहिए वरना यह लोग भाग जाएंगे . फिर रिपोर्टर कहने लगा कि क्या रिया के परिवार को गिरफ्तार करना चाहिए जिसका फिर से महिला ने हामी में जवाब दिया.

उस रिपोर्टर ने अपना हाथ हिलाते हुए महिला से पूछा, "बड़ा नेता ,कोई बड़ा नेता है?” इस पर महिला बोली, "उद्धव ठाकरे क्यों डर रहा है, क्यों इन लोगों को सपोर्ट कर रहा है." जब बॉलीवुड (हिंदी फिल्म जगत) के शामिल होने के बारे में रिपब्लिक के रिपोर्टर ने सवाल किया तो महिला कहने लगी सलमान खान, शाहरुख खान सब शामिल हैं.

इसके बाद बारी-बारी से आज तक, इंडिया टुडे, न्यूज़ नेशन, टीवी-9, इंडिया टीवी, रिपब्लिक, टीवी-18, इंडिया न्यूज़, न्यूज़ एक्स व बाकी सभी अन्य चैनलों के पत्रकारों ने उस महिला से बात कर उसकी ख़बर चलाई. लेकिन किसी ने भी रिया चक्रवर्ती के परिवार के ऊपर लगाए गए इल्ज़ामों के बारे में उससे कोई सबूत होने का सवाल पूछने की ज़हमत नहीं उठायी. वह महिला कैसे इस मामले में पक्ष बन गई, किसी को नहीं पता, उसकी विश्वसनीयता क्या है किसी रिपोर्टर ने नहीं पूछी, लेकिन उसकी बेबुनियाद बातों को एक्सक्लूसिव का ठप्पा लगाकर सबने चलाया.

वह महिला फेसबुक और समाचार चैनलों में ही दिखाई गयी मनगढ़ंत कहानियों के आधार पर बातें कर रही थी और मीडिया उसकी बतायी गयी कहानी परोस रहा था.

पत्रकारों की हरकतें यह सोचने के लिए मजबूर कर रही थी कि इस तरह के मामलों में रिपोर्टिंग के लिए जरूरी संवेदनशीलता और योग्यता क्या उनके अंदर है? थोड़ी ही देर बाद वहीं मौजूद टीवी-9 एक महिला पत्रकार ने कहा, "वो पागल औरत वाली बाइट डायरेक्ट चला दें.” यानि उन्हें खुद भी अहसास है कि उस महिला की बाइट का कोई महत्व नहीं है लेकिन सीनियरों और रेटिंग के दबाव में वो जानबूझकर ऐसी हरकते कर रहे हैं.

वहां मौजूद एक न्यूज़ एजेंसी के पत्रकार से मैंने उस महिला की विश्वसनीयता के बारे में पूछा. वो कहते हैं, " वो दोनों औरतें पहले बाहर खड़ी थी. मीडिया के जमावड़े को देखकर वो यहां रुकी थीं. जब पत्रकार लोग इंद्रजीत चक्रवर्ती की गाडी के पीछे अंदर घुसे तो यह दोनों महिलाएं भी अंदर चली गयी. वो कुछ भी बोल रही थी और सारे चैनल्स ने उस महिला को सुशांत का फैन बताकर उसका स्टेटमेंट चला दिया. यहां पूरा सर्कस चल रहा है. पागलखाना बन गया है.”

उस महिला के जाने के बाद रिपब्लिक टीवी और रिपब्लिक भारत दोनों के रिपोर्टर एक बार फिर वॉचमन राम को परेशान करने में लग गए. दोनो उससे कहने लगे, “पुलिस क्यों प्रोटेक्ट (सुरक्षा) कर रही है, कोई बड़े नेता आते थे यहां पर, बड़े बड़े बॉलीवुड के लोग आते थे, जवाब दो.” वॉचमन ने कोई जवाब नहीं दिया और किसी को फ़ोन करने लगा. इस पर रिपोर्टर ने बोला किसको फ़ोन कर रहे हो. जवाब में जब राम ने कहा पुलिस को. यह सुनते ही रिपोर्टर फिर शुरू हो गया, "हमें मुंबई पुलिस की धमकी दी जा रही है. मुंबई पुलिस क्या तुम्हारी निजी पुलिस है."

लगभग एक बजे चुके थे. रिया चक्रवर्ती ने सोशल मीडिया के ज़रिये उनकी बिल्डिंग के अंदर अपने पिता को मीडिया द्वारा घेरे जाने का एक वीडियो साझा करते हुए मुंबई पुलिस से अपने परिवार की सुरक्षा की अपील की. उन्होंने लिखा था कि ईडी, सीबीआई और अन्य जांच एजेंसियों की पूछताछ में उनका परिवार पूरी तरह से सहयोग दे रहा है लेकिन उन्हें और उनके परिवार को जांच एजेंसियों तक पहुंचने के लिए मुंबई पुलिस द्वारा सुरक्षा दी जाए. इस वीडियो के बाद उनकी बिल्डिंग के वॉचमन राम का भी सोशल मीडिया पर वीडियो आया जिसमें मीडिया द्वारा उनको परेशान करने की बात कही गई.

सोशल मीडिया पर रिया चक्रवर्ती की इस अपील के बाद वहां मौजूद पत्रकारों ने इस बारे में पीटूसी देना शुरू कर दिया. इंडिया टुडे की एक पत्रकार बोल रही थी की रिया ने मुंबई पुलिस से सुरक्षा की गुहार लगायी है. न्यूज़24 के एक पत्रकार कह रहे थे कि रिया चक्रवर्ती सवालों के घेरे में हैं. वह उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा का हवाला देते हुए सवालों से बचना चाहती है. वही इंडिया टीवी के दो रिपोर्टर किसी अदाकार के अंदाज़ में अपने हाथों को लहराते हुए और बहुत ऊंची आवाज़ में कह रहे थे कि रिया चक्रवर्ती ड्रग्स लेती है.

इसके बाद तकरीबन एक बज कर चालीस मिनट पर एक पुलिस कांस्टेबल रिया चक्रवर्ती के इमारत के अंदर गए. कुछ ही मिनटों बाद इमारत के फाटक को ज़बरदस्ती खोलते हुए पत्रकार भी इमारत में दाखिल हो गए.

न्यूज़ एक्स की रिपोर्टर ने वहां मौजूद चौकीदार राम का पीछा करते करते पूछा क्या पुलिस कंप्लेंट हुयी हैं.टीवी-९ मराठी के एक पत्रकार पूछ रहे थे कि क्या रिया के घर पर कोई अवैध गतिविधियां होती थीं , कौन कौन उनके घर पर आता था वह पुलिस कांस्टेबल रिया चक्रवर्ती के घर के नीचे के सीढ़ियों पर जहां खड़े थे वहां शटर लगा था. इण्डिया टीवी का एक पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था कि जो शख्स सीबीआई के मामले में आरोपी है उसे मुंबई पुलिस सुरक्षा मुहैय्या करवा रही है. दूसरी तरफ रिपब्लिक भारत की पत्रकार चिल्ला चिल्ला कर कह रही थी कि सवाल पूछने पर रिया चक्रवर्ती ने सुरक्षा की मांग की है. फिर वह कांस्टेबल से कहने लगी- “आप आरोपियों का साथ क्यों दे रहे हैं.”

यह सब ठीक रिया चक्रवर्ती का घर के नीचे हो रहा था. बहुत से पत्रकार एक साथ कॉन्सटेबल से चिल्ला चिल्ला के सवाल कर रहे थे. थोड़ी देर बाद वहां पुलिस की गाड़ी में एक पुलिस निरीक्षक के ओहदे के अधिकारी आये. उस पुलिस अधिकारी को भी पत्रकारों ने घेर लिया. वह अधिकारी पत्रकारों से इस बात की गुहार लगा रहे थे कि कोविड-19 के खतरे को तो समझ कर बर्ताव करिये. पत्रकार उनसे पूछ रहे थे कि वो वहां क्यों आये हैं. जवाब में उस अधिकारी ने बताया कि ईडी ने उनको एक पत्र दिया है और वो उसी पत्र को इंद्रजीत चक्रवर्ती को देने आये हैं.

ज़ाहिर सी बात है कि मीडिया द्वारा उनके साथ जिस तरह का बर्ताव किया जा रहा था उसके मद्देनज़र रिया और उनके परिजनों को ईडी के दफ्तर तक पहुंचने के लिए पुलिस सुरक्षा बहुत ज़रूरी थी. पुलिस के दो-तीन अधिकारीयों की सुरक्षा होने के बावजूद भी मीडियाकर्मी जिस तरह से इंद्रजीत चक्रवर्ती पर टूट पड़े थे, ऐसा लगा रहा था उन्हें नोच डालेंगे. वह नज़ारा बहुत डरावना था. बुजुर्ग इंद्रजीत चक्रवर्ती पर किसी को भी दया आ जाती. वह एकदम असहाय दिख रहे थे. पत्रकारिता के नाम पर हो गुंडागर्दी के सामने विवश.

तक़रीबन दो बज कर 35 मिनट पर इंद्रजीत चक्रवर्ती नीचे उतरे. पत्रकारों के हुजूम ने उन्हें घेर लिया. जैसे-तैसे पुलिस अधिकारी पत्रकारों के उस हिंसक झुंड से बचाकर उन्हें गाड़ी तक ले गए.रिपोर्टरों ने अपने सवालों का जवाब ज़बरदस्ती पाने की चाह में उनका रास्ता रोक लिया था.

पुलिस अधिकारी पत्रकारों के उस वहशी झुण्ड से उन्हें बचाने की कोशिश करते हुए जब गाडी तक ले जा रहे थे तब मीडिया के माइक-कैमरा उनके मुँह के इर्द गिर्द ही घूम रहे थे. मुश्किल से १५-२० मीटर चलकर अपनी गाड़ी तक पहुंचने में उन्हें लगभग दो मिनट लग गए. पत्रकार उनसे सवाल कर रहे थे कि उनकी बेटी पर गंभीर आरोप लगे हैं उनको जवाब देना होगा.

नेशनल रिपोर्टर नाम के यूट्यूब चैनल का एक पत्रकार बार बार कह रहा था आपको जवाब देना होगा.

जब गाड़ी आगे बढ़ी तो नेशनल रिपोर्टर नाम के एक यूट्यूब चैनल का पत्रकार ज़ोर-ज़ोर से उनकी गाड़ी पर मुक्का मारने लगा. इंद्रजीत चक्रवर्ती के कपड़े अस्त व्यस्त हो गए थे.साथ ही साथ जिस पुलिस निरीक्षक ने उन्हें गाडी में बिठाया था उनके कपडे देख कर लग रहा था जैसे कहीं किसी से हाथापाई करके आये हैं.

अगर वहां पुलिस नहीं होती तो वो इंद्रजीत चक्रवर्ती ईडी के सामने पेश भी नहीं हो पाते. पत्रकारों की इस हरकत ने मेरे दिमाग में भोपाल के आकांक्षा हत्याकांड की यादें ताज़ा कर दी. उस वक़्त मैं भोपाल में एक अंग्रेजी अखबार में क्राइम रिपोर्टर था. वहां एक भाई अपनी बहन की अस्थियां लेकर शमशान घाट से बाहर निकल रहा तब ऐसे ही हिंसक पत्रकारों ने उस पकड़ लिया था और अपने सवालों का जवाब देने के लिए मजबूर करने लगे थे. जब वह लड़का उनके सवालों का जवाब दिए बिना आगे बढ़ने लगा तो कुछ पत्रकारों ने उसे धक्का देकर गिरा दिया और बोला आगे तभी जा पाओगे जब हमारे सवालों का जवाब दोगे. रिया चक्रवर्ती के घर बाहर मौजूद इन पत्रकारों में और भोपाल के शमशान घाट पर मौजूद पत्रकारों में कोई फर्क नहीं था.

इंद्रजीत चक्रवर्ती के जाने के बाद फिर पत्रकार और कैमरापर्सन थोड़ी फुर्सत में हो गए. शाम के लगभग साढ़े चार बज गए थे. इंडिया टीवी का एक पत्रकार अपने चैनल के स्टूडियो में बात करते हुए कैमरा के सामने कहा ईडी इंद्रजीत चक्रवर्ती को बुलाया है तो अगला नंबर रिया चक्रवर्ती का ही होगा. नेशनल रिपोर्टर का पत्रकार फ़ोन कैमरे में कह रहा था कि रिया चक्रवर्ती बहुत मैनीपुलेटीव लड़की है, ऐसा सुना है वह काला जादू करती थी. यह वही पत्रकार है जिसका कुछ दिन पहले रिया चक्रवर्ती के घर के बाहर एक डिलीवरी बॉय को सताने का वीडियो वायरल हुआ था.

शाम को मीडिया का जमावड़ा देखते हुए रिया की इमारत के सामने वाली सड़क पर छोटा-मोटा जाम लग गया. गुजरने वाले वहां रुक कर तमाशा देखने लगते.

लगभग साढ़े पांच बजे तक थोड़ी शान्ति स्थापित हो गई थी. दिन भर की पत्रकारों की मारामारी थम गई थी. कुछ पत्रकार आपस में रिया चक्रवर्ती के नाम से मज़ाक कर रहे थे. रिपब्लिक भारत की रिपोर्टर पीटूसी में कह रही थीं- “रिया चक्रवर्ती को रिपब्लिक भारत के सवालों का जवाब देना होगा, रिपब्लिक भारत रिया चक्रवर्ती को प्लेटफार्म नहीं देगा."

रात के आठ बजे तक इमारत के बाहर थोड़े बहुत ट्राइपॉड बचे थे. कुछ पत्रकार अपने फ़ोन पर राजदीप सरदेसाई को दिया इंटरव्यू सुन रहे थे. सुबह से लेकर रात तक इस मीडिया ट्रायल को देखने के बाद मेरा दिमाग़ सुन्न हो गया था. सोचने-समझने की हिम्मत छूट रही थी. इसी उधेड़बुन में मैं वहां से निकल गया.

अगर रिया चक्रवर्ती और उनका परिवार किसी भी तरह के अपराध में शामिल है या नहीं तो सीबीआई की जांच में सामने आ जाएगा लेकिन मीडिया का इस तरह रिया चक्रवर्ती और उनके परिवार के पीछे पड़ जाना और उन्हें अपराधी घोषित कर देना शर्मनाक है. पूरे देश में मीडिया द्वारा चलाये गए इस ट्रायल के चलते रिया और उसके परिवार के प्रति नफरत फ़ैल गयी है.

किसी ज़माने में उर्दू के मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी ने कलम की पैरवी करते हुए अर्ज़ किया था, "खेंचों ना कमानों को, न तलवार निकालों, जब तोप मुकाबिल हो तो अखबार निकालो. इस शेर के ज़रिये अकबर साहब अर्ज़ करना चाहते थे कि उनकी नज़रों में अखबार की अहमियत तलवार या तोप से कहीं ज़्यादा है. लेकिन अगर आज वो ज़िंदा होते तो गलती से भी कलम को इतनी तव्वजो नही देते.

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