उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में प्रेम पत्र किसी लड़की को सुरमयी सपने या मखमली अहसास कराने की बजाय भय और दु:स्वप्न का सबब बन जाते हैं.
“मैं स्कूल नहीं जाऊंगी, आज से स्कूल जाना बंद…!” ये शब्द हैं 14 वर्षीय गोमती के, जो अपनी मां के पूछे गए सवाल के जवाब में यह कहती है. गोमती की मां उसके बोलने के तरीके और उसकी बहस से को देखकर हैरान है. मां के बार-बार सवाल करने पर गोमती गुस्से में आ कर उसके सामने एक कागज का टुकड़ा रख देती है और कहती है- यह लो, पढ़ लो लेकिन मुझसे सवाल मत करो.
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Contributeगोमती द्वारा दिया गया पत्र, एक प्रेम पत्र था. यह पत्र गोमती को चंद्रप्रकाश उर्फ़ चंदू ने दिया था. चंदू उसका पड़ोसी है. उसने कई बार अपनी पसंद का इजहार गोमती के सामने किया था. लेकिन यह कोई प्रेम भरा, पहला-पहला प्यार वाली कहानी नहीं थी. गोमती परमहंस इंटर कॉलेज की 9वीं कक्षा की छात्रा है. यह सिलसिला कुछ हफ्ते पहले शुरू हुआ. यह उसे परेशान करने, उसका पीछा करने, रोज़ उसे डर में झोंकने की वाली कहानी है. उसे हमेशा डर सताता रहता था कि आज क्या होगा, वो लड़का उसके साथ क्या करेगा, और अंतत: गोमती ने इस दबाव में स्कूल छोड़ देने का जाने का फैसला किया.
उस पत्र में लड़के ने मानो शब्दों में अपने मन की इच्छा लिख दी थी. “भगवान लड़कियों को प्यार करने के लिए ही बनाता है, न कि लड़ाई करने के लिए. मैं तो सभी सवालों का एक ही जवाब मांग रहा हूं- हां, या ना. यदि तुम्हारा कोई और दोस्त है तो बता दो, बस खत्म करो.”
गोमती जानती थी कि यूपी जैसे राज्य में उसकी जैसी कई लड़कियां सदियों से पुरुषों द्वारा बनाई गई इस गर्त भरे हाशिये पर जीती रही है, जहां उन्हें अपनी ज़िन्दगी दांव पर लगी नज़र आती है.
गोमती ऐसी अकेली लड़की नहीं है, जो ऐसे बुरे अनुभवों से गुजरी है. ऐसा समाज जहां पितृसत्ता के नियम उनके लिए दिन-प्रतिदिन बर्बरता के साथ लागू होते हैं, वहां उन्हें हमेशा घर के अंदर रहने और अपने घर के बाहर की दुनिया से संपर्क को खत्म करने का निर्णय लेना होता है. ऐसे ख़तरे जो एक लड़की के स्कूल के बाहर उसका इंतजार कर रहे होते हैं.
कॉलेज जाने वाली ग्रामीण बुंदेलखंड की हर लड़की हाल ही में जारी हुई असर की रिपोर्ट से जुड़े कई पहलुओं पर अपने आपको जुड़ा पाती है. यह रिपोर्ट ग्रामीण शिक्षा की निराशाजनक स्थिति को दर्शाती है. यहां लड़का-लड़की का भेद है जिसके कारण लिंगानुपात भयावह असमानता पर पहुंच गया है. यह खत्म न होने वाली सूचि है जिसमें 47.1% लड़के 14-18 के एक समूह में थे, वह साधारण जोड़-घटाने का सवाल भी हल नहीं कर पाए जिसमें, 39.5% लड़कियों की हालत और भी बदतर रही.
जहां, 12% लड़के मोबाइल फ़ोन इस्तेमाल नहीं करते, वहीं, 22% लड़कियां ऐसी है जिन्होंने कभी मोबाइल इस्तेमाल ही नहीं किया. लेकिन यदि स्कूलों में नामांकन को देखा जाये तो “शिक्षा पर सबका हक़” के लिए बने कानून को धन्यवाद देना चाहिये जिसने लड़के और लड़कियों का प्रतिशत यहां बराबर रखा हुआ है. जबकि यही आंकड़े 17-18 वर्ष तक आते-आते कम हो जाते हैं. इसमें लड़कों का प्रतिशत 71.6 है जबकि लड़कियों का प्रतिशत 67.4 पर देखने को मिलता है.
हमारे यहां ऐसा माना जाता है कि लड़कियों के लिए औपचारिक शिक्षा ही काफी होती है, यह इसलिए नहीं कि उन्हें आखिर में शादी ही करनी है बल्कि इसलिए भी क्योंकि महिलाओं के साथ होने वाली यौन हिंसा उन्हें आगे पढ़ने से रोकती है. कई बार ऐसा भी होता है कि यह प्रेम जबरन थोपा जाता है, उसके साथी मित्रों द्वारा. लड़की के स्कूल के शिक्षक द्वारा भी यौनाचार जैसी घटनाएं देखने को मिल जाती है.
यह प्रेम पत्र एक अहानिकारक पत्र भी हो सकता है!
बुंदेलखंड इलाके के बांदा जिले में पड़ने वाले गांव खप्टिहा कलां गांव का इस मामले ने एक नया मोड़ ले लिया जो कि एक अपवाद है और वह यह यकीन दिलाता है कि हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये. गोमती की मां ने यह निर्णय लिया कि वह इस मामले को दबाएगी नहीं बल्कि पुलिस के पास जाएंगी और उस लड़के को सजा दिलवाएगी. स्थानीय थाने के थानेदार राजीव कुमार के अनुसार- 4/18, धारा 354(ख) 504 आईपीसी के पोक्सो एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है.
इस पहल के बाद गोमती की मां अपने “शुभचिंतकों” द्वारा उपहास का विषय बन गई हैं. जिसका उल्लेख उस प्रेम पत्र में भी है, जिसमें लिखा है- “तुम्हारी मां को ये चिंता नहीं है कि समाज में मेरी बेटी की इज्जत बरकरार रहे. गाली-गलौज करती रहती है.”
वहीं सामान्यतया यह देखा जाता है कि गोमती जैसी स्थिति में परिवार के दबाव में आकर मामले दबा दिए जाते हैं और लड़की की पढ़ाई रोक दी जाती है. लेकिन गोमती की मां अडिग हैं और कहती हैं, “अब हमारी इज्ज़त उड़ने दो. अब हम खुद ही उड़ा रहे हैं. हम आरोपी पर लगाये गये इल्जामों के साथ खड़े रहेंगे.”
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