कासगंज में आज तक: रोहित सरदाना बनाम आशुतोष

कासगंज हिंसा को लेकर आजतक पर रोहित सरदाना ने जो कहानी बताई उसे उसी आजतक के रिपोर्टर ने सिर के बल खड़ा कर दिया. क्या सरदाना स्टूडियो में बैठकर फंतासियां गढ़ रहे थे?

WrittenBy:Rohin Kumar
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एक ही चैनल पर दो कहानियां. फ़र्क बस इतना है कि एक ग्राउंड रिपोर्ट है और दूसरा फर्जी ‘दंगल’. फर्जी इसलिए कि दंगल अखाड़े में होता, टीवी स्टूडियो में नहीं.

कासगंज की घटना के लगभग दो दिनों बाद हमें 26 जनवरी को तिरंगा फहराने को लेकर हुए विवाद की विस्तृत जानकारियां मिलनी शुरू हुईं. कुछ एक चैनलों के रिपोर्टरों ने कासगंज से ग्राउंड रिपोर्ट भेजी. कुछ पत्रकारों ने वहां के स्थानीय लोगों और प्रशासन के लोगों से बातचीत कर वस्तुस्थिति सामने लाने की शानदार कोशिश की.

आजतक रिपोर्टर आशुतोष मिश्रा ने कासगंज पहुंचकर लोगों से बात की. पुलिस के आला अधिकारियों से बात की. उस रिपोर्ट में घटनास्थल पर मौजूद लोगों ने आजतक के रिपोर्टर को बताया कि “एक समुदाय (मुस्लिम समुदाय) गणतंत्र दिवस की तैयारी कर रहा था. वीडियो में रिपोर्टर वह जगह दिखाता है जहां ज़मीन में बांस लगा था. छतों से रस्सी लगी थी जहां केसरिया, सफेद और हरे रंग के गुब्बारे लगे थे. मतलब यह स्थापित होता है कि मुसलमानों ने तिरंगा झंडा फहराने का कोई विरोध नहीं किया, बल्कि वे खुद भी तिरंगा फहराने का आयोजन कर रहे थे. आज तक के रिपोर्टर आशुतोष मिश्रा की यह पूरी रिपोर्ट 28 जनवरी की रात 9.28 बजे आजतक के ट्विटर हैंडल पर भी डाली गई.

दूसरी तरफ इसी चैनल पर एक दिन पहले यानी 27 जनवरी की शाम 5 बजे प्रसारित कार्यक्रम दंगल, जिसे एंकर रोहित सरदाना संचालित कर रहे थे, में कासगंज सांप्रदायिक हिंसा की बिल्कुल अलहदा कहानी पेश की गई. इसका शीर्षक ही था, “भारत में तिरंगा फहराया तो ‘पंगा’?”. करीब 24 घंटे के भीतर चैनल एक ही मुद्दे पर दो बिल्कुल अलग कहानी क्यों बताने लगा?

यहां दोनों ख़बरों के प्रसारण का समय बेहद महत्वपूर्ण है. सरदाना का शो कासगंज की हिंसा के 24 घंटे से भी ज्यादा समय के बाद प्रसारित हुआ. और उसके अगले दिन आज तक के रिपोर्टर आशुतोष की रिपोर्ट. जिन तथ्यों का खुलासा आशुतोष की रिपोर्ट करती है, उनके बिल्कुल अलग बात रोहित सरदाना क्यों कर रहे थे? उनका कार्यक्रम तथ्यों से परे, अधकचरा जानकारी से भरा था. भाषा और शब्दावली को तो खैर छोड़ ही दीजिए.

कार्यक्रम की शुरुआत में रोहित सरदाना के सवाल पढ़िए-

1- हिंदुस्तान में ही क्या राष्ट्रीय ध्वज फहराने पर झगड़े होंगे?
2- तिरंगा हिंदुस्तान में नहीं तो क्या पाकिस्तान में फहराया जाएगा?
3- कासगंज में तिरंगे के दुश्मन कौन लोग हैं. पुलिस उनके नाम क्यों नहीं बता रही?
4- देश के अंदर ऐसे कितने पाकिस्तान पनप रहे हैं?
5- क्या वंदे मातरम् और भारत माता की जय सांप्रदायिक नारे हैं?

वहीं दूसरी तरफ आशुतोष मिश्रा की रिपोर्ट ग्राउंड पर मौजूद तमाम लोगों से बातचीत कर एक समझ बनाने की कोशिश करती है.

1. घटनास्थल पर मौजूद मंदिर का पुजारी रिपोर्टर को बताता है कि भीड़ में लोग नारे लगा रहे थे- “हिंदुस्तान में रहना होगा तो भारत माता की जय कहना होगा.”

2. 80 साल के एक मुस्लिम बुजुर्ग रिपोर्टर को बताते हैं कि भीड़ में लोग नारे लगाने लगे- “वंदे मातरम् कहना होगा नहीं तो पाकिस्तान जाना होगा.”

3. बुजुर्ग यह भी बताते हैं कि हमको पाकिस्तान ने क्या दिया? हम क्यों पाकिस्तान की तारीफ करेंगे?

4. अस्सी साल के एक बुजुर्ग, जिसने अपनी सारी ज़िंदगी इसी देश में बिताई, उसे इस शर्मनाक तरीके से अपनी राष्ट्रीयता प्रमाणित करने की स्थित आन पड़ी है.

सरदाना के कार्यक्रम में उत्तर प्रदेश के एडीजी, लॉ एंड ऑडर भी शामिल थे. उन्होंने न किसी समुदाय का नाम लिया, ना ही उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि झंडे फहराने की वजह से गोली मारी गई है. उन्होंने बड़े ही स्पष्ट शब्दों में कहा कि जांच जारी है और पूरे मामले को रिकंस्ट्रक्ट करके दोषियों पर कारवाई की जाएगी.

यह पूरी घटना रोहित सरदाना की पत्रकारीय समझ और उनके व्यक्तिगत आग्रहों का संकेत देती है. क्योंकि चैनल ने चौबीस घंटे से भी कम समय में ऐसी स्टोरी की जो एक तरह से सरदाना के शो का खंडन करती है.

आशुतोष की स्टोरी उन कुछ सवालों का जवाब हैं जिन्हें सरदाना ने उठाए थे, मसलन-

1- किसी ने भी पाकिस्तान ज़िंदाबाद के नारे नहीं लगाए.

2- उग्र भीड़ तिरंगा के साथ ही भगवा झंडा भी लहरा रही थी.

3- उग्र भीड़ हिंदुस्तान में रहना है तो वंदेमातरम् कहना है और जय श्री राम जैसे नारे भी लगा रही थी.

4- किसी ने भी तिरंगा फहराने पर आपत्ति दर्ज नहीं की बल्कि दूसरा पक्ष खुद भी तिरंगा फहराने का आयोजन कर रहा था, इसलिए तिरंगे के विरोध का सवाल ही नहीं पैदा होता.

इससे एक ही बात साबित होती है कि एंकर ने शायद सुनी-सुनाई बातों और अपने निजी पूर्वाग्रहों से प्रेरित होकर इतने संवेदनशील मसले पर एक समझ बना ली, और कार्यक्रम के अंत में यह निष्कर्ष देने की कोशिश की कि अब भारत में तिरंगा फहराना भी सुरक्षित नहीं है.

कार्यक्रम में संघ के कार्यकर्ता राकेश सिन्हा भी थे जिन्होंने बताया कि मुसलमानों का एक तबका पूरी तरह से ‘रेडिकल’ है. सिन्हा ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश के 12 जिलों में 30 प्रतिशत से ज्यादा मुसलमान है. इस तर्क का कासगंज की घटना से क्या रिश्ता है? न तो एंकर ने इस टिप्पणी पर टोका, ना ही कोई सवाल पूछे.

एंकर ने मृत युवक के मां और बाप से भी बात की. उनके बातचीत का सार था कि योगी सरकार उन्हें न्याय सुनिश्चित करे.

इसके बाद एंकर ने समाजवादी पार्टी प्रवक्ता घनश्याम तिवारी से कहा- “क्या आपको शर्म आ रही है?” एक बार फिर एंकर के अपने दुराग्रह सामने आ रहे थे.

सरदाना को जबाव भी उसी तीखे तेवर में मिला, तिवारी ने कहा, “रोहित जी आपका स्क्रू थोड़ा घूम गया है.”

पत्रकारिता में ऑब्जेक्टिविटी यानि वस्तुनिष्ठता को लेकर ढेरों विमर्श होते रहते हैं. कुछ इससे सहमत होते हैं, कुछ असहमत, पर सभी इस बात पर एकराय हैं कि पत्रकारिता में तथ्यों का कोई विकल्प नहीं है, उससे छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए. इस लिहाज से भी रोहित सरदाना का कार्यक्रम भड़काऊ और तथ्यों के साथ तोड़-मरोड़ करता रहा.

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