क्यों हम मणिशंकर अय्यर से राजनीतिक कुशलता, व्यावहारिकता और ज़मीनी राजनीति की उम्मीद नहीं कर सकते?
मणिशंकर अय्यर की बदजुबानियों के अनगिनत किस्से दिल्ली के सियासी गलियारों में आम हैं. अब मीडिया के अतिवाद वाले समय में उनमें से तमाम बातें आम जनता तक भी पहुंच रही हैं. देर रात की अभिजात्य पार्टियों, उत्सवों में शराब के आगोश में उनकी लड़खड़ाती जुबान से फिसलने वाले अपशब्दों के तमाम चश्मदीद दिल्ली और लाहौर में मिलते हैं.
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Contributeअय्यर की छवि आम लोगों के बीच हद दर्जे तक श्वेत–श्याम खांचों में बंटी है. लोग उनसे बेतरह घृणा करते हैं या फिर एक तबका उनसे बेहद सहानुभूति रखने वाला भी है जिसे लगता है कि वे बेहद ईमानदार हैं, सही बात कहने के लिए वे पॉलिटिकली करेक्ट होने की मजबूरियों में नहीं फंसते, बेलाग बयान देते हैं.
लेकिन मणिशंकर एक नेता भी हैं. सियासत की अपनी व्यावहारिक मजबूरियां होती हैं. उनके नेता राहुल गांधी मंदिरों में दर्शन इसी व्यावहारिक राजनीति की वजह से कर रहे हैं. सियासत में बयानबाजी, उसके भावी परिणाम और साथ में उसकी टाइमिंग यानी समय का महत्व होता है. इस लिहाज से देखें तो मणिशंकर अय्यर में इस प्रतिभा का हमेशा अकाल दिखता है.
अय्यर उस ऑक्सब्रिज लॉट से आते हैं जो परंपरागत रूप से भारत की राजनीति में सही वक्त और सही जगह पर मौजूद रहकर देश की नियंत्रणकारी व्यवस्था का हिस्सा रही हैं. वे बेहद विद्वान, पढ़े–लिखे, व्यक्ति हैं. भारत–पाकिस्तान के रिश्तों पर उनकी समझ बाकियों से कहीं ज्यादा स्पष्ट, मजबूत और व्यावहारिक है. वे भारतीय विदेश सेवा के एक मंझे हुए नौकरशाह रहे हैं.
उनके व्यक्तित्व का एक दूसरा पहलु भी है जो बेहद अहंकारी, ओछापन समेटे हुए और “मैं ही सबसे सही हूं” वाली मानसिकता से बुरी तरह ग्रस्त है. जाहिर है यहां उन आदर्शवादी सिद्धांतों की बात करना बेमानी है कि, राजनीति में शिष्टाचार जरूरी है या संबंधों की मर्यादा बनाए रखना बहुत जरूरी है आदि, इत्यादि.
भारत की राजनीति आदर्शवाद के उन स्वर्णिम दिनों (अगर कभी थी) से बहुत आगे निकल चुकी है. वर्तमान प्रधानमंत्री देश के पहले प्रधानमंत्री की मर्यादा और सम्मान को संसद भवन में भी कायम नहीं रख पाते. खैर अय्यर उस तबीयत के आदमी नहीं हैं जो इन बातों में यकीन रखता है. जाहिर है अय्यर के व्यक्तित्व का आकलन राजनीतिक व्यावहारिकता के धरातल पर करना ही बेहतर रहेगा.
इस पैमाने पर हम पाते हैं कि अय्यर में वह सलीका या क्षमता भी नहीं है. अय्यर पेशेवर राजनेता नहीं हैं. यह उनकी सबसे बड़ी कमजोरी है. अय्यर की राजनीति में एंट्री उसी कांग्रेसी रवायत के साथ हुई है जैसी आज के ज्यादातर कांग्रेसियों की हुई है. अय्यर शॉर्टकट से सियासत में पहुंचे हैं. विदेश सेवा के एक अधिकारी से सीधे केंद्र सरकार में मंत्री. यह राजीव गांधी के उत्कर्ष का काल था. जाहिर है अय्यर उस राजीव गांधी के कृपापात्र हैं. उनसे बातचीत में राजीव गांधी से दोस्ती की कहानियां और कसमें शायद इतनी बार आ जायं कि गिनना मुश्किल हो जाय. वे गांधी परिवार में हमेशा से रही कोटरी का हिस्सा रहे हैं. सत्ता के गलियारों में इसे चापलूस मंडली भी कहा जाता है.
अय्यर की अपने दलीय सहयोगी शशि थरूर के साथ हुई अदावत का किस्सा इसे समझने में मददगार सिद्ध होगा. नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद शशि थरूर का एक वीडियो सामने आया. इस वीडियो का मजमून मोदी की तारीफ भरा था. थरूर ने कहा कि अहमदाबाद से दिल्ली के सफर में मोदी का जो दूसरा संस्करण सामने आया है वह बेहद परिष्कृत और उन्नत है. थरूर ने इसे मोदी 2.0 नाम दिया.
इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए मणिशंकर अय्यर ने एक लेख लिखा. इसका शीर्षक ही था– “मोदी-1, मोदी-2 जैसे चापलूसों वाले शब्द इस्तेमाल मत करो”. जाहिर है अपने ही पार्टी के एक नेता को खुलेआम लेख लिखकर चापलूस कहना साहस और आवेग की मांग करता है. ये बात वो अय्यर कह रहे थे जो खुद दरबारी बनकर परिवार की कृपा से राजनीति करते रहे हैं.
थरूर भी फुल टाइम राजनेता नहीं रहे हैं. दोनों नेताओं का राजनीतिक उपनयन संस्कार एक ही तरीके से हुआ है. दोनों का एक और जुड़ाव रहा है. दोनों प्रतिष्ठित सेंट स्टीफेंस के एलुमिनाई हैं.
अय्यर के अनियंत्रित हमले के शिकार सिर्फ थरूर या विपक्षी दलों के लोग ही नहीं, बल्कि लंबे समय से उनकी अपनी पार्टी और अपनी सरकार के लोग भी होते रहे हैं. कॉमनवेल्थ खेल के दौरान हुआ एक वाकया अय्यर के बारे में कुछ और भी बताता हैं. 2011 में उस समय के खेल मंत्री अजय माकन ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखे गए एक पत्र में अय्यर के ऊपर आरोप लगाया कि उन्होंने जानबूझकर खेलमंत्री रहते हुए तमाम योजनाओं में अड़ंगे लगाए, देरी की. इसकी वजह से कॉमनवेल्थ खेल से जुड़ी परियोजनाओं की समयसीमा और कीमत कई गुना बढ़ गई.
इस पर बिलबिलाए अय्यर ने टीवी पर बयान दिया– “सबसे पहले हमें उस पत्र की वैधता सुनिश्चित करनी है. उसमें ‘डाइकोटॉमस’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया गया है. हंसराज कॉलेज का बीए पास लड़का ऐसी अंग्रेजी कैसे लिख सकता है.” यह अय्यर के व्यक्तित्व का वही सामंती, अभिजात्य बोल रहा था जिसे अपनी अंग्रेजी शिक्षा–दीक्षा का गुमान है, जो अंग्रेजी के एक–एक शब्द पर अपना तयशुदा (बाइडिफॉल्ट) आधिपत्य मानकर चलता है. इसी टीवी बयान में अय्यर ने तत्कालीन योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया का नाम लिए बिना कहा– “एक मक्खीचूस जो योजना आयोग चला रहा है.”
आगे अय्यर की बदजुबानी दिनोंदिन बदतर होती गई. शुरुआत में जिस टाइमिंग की बात की गई है वह सियासत में बहुत मायने रखती है लेकिन अय्यर के अपने अहंकार, कुंठा और कुलीनता के आवेश में सब कई–कई बार बेमानी होता नज़र आया.
2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ऑल इंडिया कॉन्ग्रेस कमेटी की एक बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए अय्यर ने बयान दिया– “मोदी कभी भी इस देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सकते. हां अगर वो चाहें तो यहां हम उनके लिए थोड़ी जगह दे देंगे जहां वे चाय बेच सकते हैं.” यह उन्होंने तब कहा जब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
इस बयान ने कांग्रेस की पहले से ही पतली हालत को और बुरा कर दिया. नरेंद्र मोदी ने चुनाव से ठीक पहले आए इस बयान को जमकर अपने प्रचार में इस्तेमाल किया. इसके बावजूद अय्यर ने कोई सीख नहीं ली. एक बार फिर से टाइमिंग चूकते हुए अय्यर ने गुजरात चुनाव से ठीक पहले फिर से मोदी के प्रति अपनी व्यक्तिगत कुंठा को हल्के शब्दों में जाहिर किया– “ मोदी बहुत नीच किसम का इंसान है.”
इस मौके पर चिंतित कांग्रेस पार्टी ने तुरंत ही अय्यर को पार्टी से निलंबित कर दिया. अब उसी अय्यर को पार्टी से बर्खास्त करने की मांग कांग्रेस पार्टी के भीतर से उठ रही है क्योंकि कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले उन्होंने एक बार फिर से पाकिस्तान में कुछ ऐसा कहा है जो उनके अपने देश भारत में उनकी छीछालेदर करवा रही है. अय्यर ने बातचीत के लिए सहमति देने पर पाकिस्तानी प्रशासन की तारीफ की है जबकि भारतीय पक्ष की निंदा की है.
हालांकि अय्यर तमिल ब्राह्मण हैं लेकिन उनकी पैदाइश और शुरुआती पढ़ाई–लिखाई लाहौर की है. उनके दोस्तों, प्रशंसकों का एक बड़ा तबका पाकिस्तान में मौजूद है. पाकिस्तानी बौद्धिक जमात में वो सबकी आंखों के तारे हैं. लेकिन अक्सर उनका पाकिस्तान प्रेम उनकी व्यावहारिक राजनीति की समझ पर हावी हो जाता है. उन्हें राजनीति भारत में करनी है. व्यावहारिक राजनीति और व्यक्तिगत पसंद–नापसंद के बीच अंतर की सलाहियत का अय्यर में घोर अभाव है.
अपनी राजनीति के लिए अय्यर को पाकिस्तानी राजनीति से ही एक सीख ले लेनी चाहिए. जुल्फिकार अली भुट्टो जब जेल में डाल दिए गए थे, उनके बेटे मुर्तजा भुट्टो दुनिया भर में अपने पिता की रिहाई के लिए अभियान चला रहे थे. ऐसे ही एक मौके पर जब मुर्तजा अपने पिता जुल्फिकार से मिलने जेल गए थे तब जुल्पिकार ने उन्हें सीख दी थी– “सबसे बात करना पर कभी हिंदुस्तान मत जाना.”
जुल्फिकार हिंदुस्तान से किसी घृणा या दुश्मनीवश बेटे को ऐसी सलाह नहीं दे रहे थे. वे भारत–पाकिस्तान की आवाम और वहां की व्यावहारिक राजनीति की मजबूरियों को समझा रहे थे. अय्यर को भी यह पाठ जितनी जल्द हो सके पढ़ लेना चाहिए. यूं भी उनके पास करने को अब ज्यादा राजनीति बची नहीं है.
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