एनएल चर्चा 26: जम्मू-कश्मीर, एयरटेल विवाद, हापुड़ और अन्य

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बीते मंगलवार को जम्मू-कश्मीर में भाजपा का पीडीपी से गठबंधन खत्म कर राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जाना, हापुड़ में गोकशी के नाम पर भीड़ द्वारा कासिम की हत्या, एयरटेल द्वारा पूजा सिंह नाम की युवती की आपत्ति के बाद मुस्लिम धर्म के कस्टमर केयर एग्जेक्यूटिव की जगह हिंदू कस्टमर केयर एग्जेक्यूटिव मुहैया करवाया जाना, जज लोया की स्टोरी करने वाले पत्रकार निरंजन टाकले का करीब आठ महीने से बेरोजगार होना व अन्य मुद्दे रहे इस हफ्ते चर्चा के मुख्य विषय.

चर्चा के मुख्य अतिथि रहे बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े अनिल पाण्डेय, न्यूज़लॉन्ड्री संवाददाता अमित भारद्वाज और उपसंपादक रोहिण कुमार. चर्चा का संचालन न्यूज़लॉन्ड्री के कार्यकारी संपादक अतुल चौरसिया ने किया.

19 जून को भाजपा ने जम्मू कश्मीर में पीडीपी से अपना गठबंधन खत्म कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि जम्मू-कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की सरकार गिर गई. फिलहाल जम्मू कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है.

इस विषय पर वरिष्ठ पत्रकार और नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी की संस्था बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े अनिल पाण्डेय ने कहा कि इसकी पटकथा पहले से लिखी जा चुकी थी.

दोनों पार्टियां विचारधारा के दो छोर पर खड़ी थीं. यह फैसला 2019 के मद्देनजर लिया गया है. अनिल ने कहा कि महबूबा मुफ्ती जम्मू क्षेत्र में रोहिंग्या मुसलमानों को बसाने की कोशिश कर रही थी और यह क्षेत्र भाजपा का गढ़ है. यह भी दोनों पार्टियों के बीच विवाद का एक कारण था. इसके साथ ही अनिल ने कर्नाटक में भाजपा की सरकार बनाने की पहल पर ध्यान दिलाते हुए कहा, इससे देशभर में संदेश गया कि भाजपा सरकार बनाने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. अब 2019 चुनाव नजदीक है तो भाजपा जम्मू कश्मीर में सरकार गिराने के बाद यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि वह यह गठबंधन देशहित में तोड़ रही है.

साथ ही अनिल ने कश्मीर की तुलना पंजाब से करते हुए फौज को और भी शक्तियां दिए जाने का समर्थन किया. इस तुलना से अतुल और अन्य पैनेलिस्ट असहमत रहे.

रोहिण ने कश्मीर मसले पर स्थानीय फोटोग्राफर से हुई बातचीत का जिक्र करते हुए कहा, “पीडीपी की पकड़ दक्षिण कश्मीर में है. वहीं भाजपा की पकड़ जम्मू क्षेत्र में है. दोनों दलों के बीच गठबंधन के दौरान जिस एजेंडा ऑफ एलांयस की बात हुई थी, जिसके अंदर कश्मीर के सभी पक्षों से बातचीत होनी थी वह नहीं हुई. इससे कश्मीर के लोगों ने खुद को ठगा हुआ महसूस किया.”

इसके साथ ही रोहिण ने फिल्म किस्सा कुर्सी का के एक दृश्य का जिक्र किया. जिसमें जो शासक आपस में बात करते हैं कि हमारी दोस्ती से लोगों में नाराज़गी है. उनकी उम्मीदें पूरी नहीं हो सकी हैं.

अमित ने कश्मीर से दूर बैठे पत्रकारों के कश्मीर के प्रति समझ बनाने के स्त्रोतों की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने कहा कि दिल्ली में बैठकर हमें मालूम नहीं चल पाता कि कश्मीर में लड़ाई किस से है- क्या वह पत्थर फेंकने वाले लड़कों से है, क्या वह आंतकवादियों से है, क्या कश्मीरियों से हैं और अगर लड़कों से है तो वह लड़ाई हम हार चुके हैं.

अमित ने कश्मीर के उस ट्रेंड की ओर इशारा किया कि चरमपंथियों के जनाज़े में भारी भीड़ उमड़ती है और वे युवाओं के बीच हीरो के तरह पेश किए जाते हैं.

अतुल ने गठबंधन टूटने के राजनीतिक निहितार्थ की ओर इशारा दिलाया. भाजपा-पीडीपी तीन वर्षों तक गठबंधन में रहे. अब अचानक भाजपा गठबंधन से निकलकर ये कहती है कि वहां आतंकी घटनाएं बढ़ गईं हैं. इसकी जिम्मेदारी भाजपा को भी लेनी होगी. वह इस जिम्मेदारी से भाग नहीं सकती है.

अतुल ने यह भी ध्यान दिलाया कि नोटबंदी के बाद सरकार ने दावा किया था कि आंतकवाद की कमर टूट गई है, तो अब उस दावे का क्या हुआ. साथ ही उन्होंने बताया कि पिछले तीन साल में सबसे ज्यादा आंतकी घटनाएं हुई हैं. सुनिए न्यूज़लॉन्ड्री पॉडकास्ट.

पत्रकारों की राय क्या सुना, पढ़ा, देखा जाए-

अनिल पाण्डेय

अतुल चौरसिया

निरंजन टाकले: वह पत्रकार जिसने जज लोया की स्टोरी की थी

रोहिण कुमार

स्टोरी: डोंट गो सर

अमित भारद्वाज

किताब: कन्नूर

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